पूनम दुबे के यात्रा वृत्तांत हमलोग पढ़ते आए हैं। इस बार उन्होंने प्राग शहर पर लिखा है। काफ़्का के शहर प्राग को हम हिंदी वाले निर्मल वर्मा के कारण भी जानते हैं। आइए पढ़ते हैं- मॉडरेटर
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कुछ शहर ऐसे होते है जिनके रंग पानी जैसे कोरे मन में घुल कर ज़ेहन में कुछ ऐसी तस्वीरें बनाते है कि जिन्हें पन्नों पर उतारना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. उन रंगीन तस्वीरों को आँखों से केवल महसूस भर किया जा सकता है. कुछ ऐसे ही अनोखे रंग मैंने भी देखें प्राग यात्रा के दौरान.
यह तो हम सभी जानते है मानव इतिहास की प्रगति में पुलों (ब्रिजेज) का बहुत बड़ा योगदान रहा है. पुलों ने न केवल जमीन के टुकड़ों को जोड़ा है बल्कि अनके संस्कृतियों के मिलाप और उत्थान में भी वह भागीदार रहीं हैं. इन्हीं पुलों की बनावट उनकी रूपरेखा में उनके शहर के इतिहास और कल्चर की झलक दिख जाती है. मुझे लगता है ये पुल मद्धिम आवाज में किस्सों कहानियों की सरगोशी करतें हैं, जरूरत है तो केवल इन सरगोशियों को सुनने की. जैसे न्यूयोर्क का विशाल ब्रुकलिन ब्रिज कह गया कहानी प्रतिष्ठा, शक्ति और उम्मीद की. उसी तरह इस्तांबुल का बोस्फोरस ब्रिज सुनाता है दास्तान पूरब और पश्चिम के मिलाप की. याद है ब्रूज़ का वह दिलकश लवर्स ब्रिज जिस पर कई जोड़ों को किस करते देखा था. पी.के. फ़िल्म में अनुष्का और सुशांत का किसिंग सीन भी इसी ब्रिज पर शूट हुआ है.
खैर प्राग का चार्ल्स ब्रिज भी कुछ ऐसी ही कहानियां कह गया. वाल्तावा नदी को पार करता चार्ल्स ब्रिज देखने में इतना एंटीक है कि उस पर चलते हुए ऐसा लगा जैसे समय का पहिया गोल-गोल पीछे घूमा और हम भूतकाल में आ गए हों. आर्च आकार के गोथिक शैली में बड़े-बड़े पत्थरों से बना यह ब्रिज और उसके दोनों तरफ बरोक शैली में बनी सेंटस की मूर्तियाँ मन को आभास दिला जाती हैं उस एरा की जिसे हम इतिहास की तरह किताबों में पढ़ते आये हैं. सोचा, न जाने ही कितने ही वारदातों का साक्षी रहा है यह ब्रिज. युद्ध और प्राकृतिक विपत्तियों आई और गई. कैसी हालत रही होगी इसी ब्रिज की जब वर्ल्ड वार टू के दौरान नाज़ी सैनिकों ने इस शहर को अपने कब्जे में ले लिया. क्या वो सैनिक इस ब्रिज पर मार्च करते हुए पहुंचे होंगे आसपास के इलाकों में. और उस समय क्या सहा होगा इसने जब वॉर ख़त्म होने के बाद कहर बरसा कम्युनिज्म का .
मार्क ट्वेन कहते हैं, “जब आपकी कल्पना आउट ऑफ़ फोकस हो, तो आप अपनी आँखों पर निर्भर नहीं रह सकते.”
सही कहते हैं मुझे भी लगता है यात्राओं के दौरान बैगपैक में कल्पनाओं को भी साथ भरकर ले चलना जरूरी है. कल्पनाएं ही तो हैं जो सफर को और भी रोमांचक बनाती हैं. क्योंकि सिर्फ आँखें काफी नहीं किसी भी चीज को देखने के लिए.
चार्ल्स ब्रिज पर खड़े होकर वाल्तावा नदी के बहते पानी को निहारते हुए कल्पना की आज से सालों पहले हॉर्स कैरिज पर सवार होकर काबल स्टोन पर टुक-टुक करते हुए रफ्तार से इस ब्रिज को पार कर लोग माला स्त्राना से ओल्ड टाउन स्क्वायर जाया करते होंगे. वही ओल्ड टाउन स्क्वायर जहाँ महान साहित्यकार फ्रांज काफ़्का का जन्म हुआ था. न जाने कितनी बार काफ्का ने इस ब्रिज को क्रॉस किया होगा, स्कूल जाते समय या फिर यूँ ही टहलते हुए. क्या ख़याल आते होंगे उनके मन में? अपने लेखन में जिस दुनिया को वह दर्शाते है क्या वह इसी प्राग का भूला बिसरा हिस्सा है या महज़ फैंटसी. काफ़्का यहूदी थे उस समय का जीवन आसान नहीं था यहूदियों के लिए.
उन्होंने ने एक कविता भी लिखी थी चार्ल्स ब्रिज पर. ब्रिज से कुछ दस मिनट की दूरी पर काफ्का म्यूजियम भी है. जब मेटामॉरफोसिस पढ़ी तो फ्रांज काफ़्का से खूब प्रभावित हुई थी, सोचा म्यूजियम जरूर जाना चाहिए. बहुत कुछ जानने और पढ़ने को मिला इस महान साहित्यकार की लिखी डायरी के पन्नों से.
अब इस ब्रिज पर किसी भी प्रकार के वाहन नहीं चलते. करीब सत्तर साल पहले चार्ल्स ब्रिज का उपयोग केवल पैदल चलने वालों के लिए कर दिया गया. यह ब्रिज इतना मनोहर है कि पर्यटकों की भीड़ सी लगी रहती है देर रात तक. दो अधेड़ उम्र के लोग वायलिन और चेलो बजाते हुए दिखे जिनके आस पास सुनने वालों की भीड़ जमा थी. कुछ लोग उन्हें पैसे भी दे रहे थे. आस-पास सोवेनियर बेचते दुकानदार भी नजर आ रहे थे. एक लड़की ने प्यारी सी लाल और सफेद रंग की फ्राक पहनी थी. अपनी फोटोज खिचवाने की लिए अलग-अलग पोज दिए जा रही थी. उसने हमें देखा तो आग्रह किया कि हम उसकी और उसके बॉयफ्रेंड की एक साथ एक तस्वीर खींच दे.
काबल स्टोन की सड़कों पर चलते हुए आसपास की दुकानों को निहारते कुछ संकरी तो कुछ चौड़ी गलियों से गुजरते हुए हम पहुंचे ओल्ड टाउन स्क्वायर. आते-जाते कई लोगों को टरडेलनिक खाते हुए देखा. देखने में उसकी शेप कुछ आइसक्रीम कोन जैसी लगी लेकिन बेकरी के लोग उसे फ्रेश बना रहे थे. हमने भी टरडेलनिक लिया उसके अंदर चॉकलेट आइसक्रीम और स्ट्राबेरी की फिलिंग करवाई. अपने तीन दिन की प्राग यात्रा में मैंने दिन में कम से कम एक बार कभी-कभी दो बार भी टरडेलनिक खाया. मेरा फेवरेट ट्रीट बन गया वह प्राग में. गोथिक और रंगबिरंगे बरोक स्टाइल में बनी इमारतों से घिरा है ओल्ड टाउन स्क्वायर. मध्यकाल की बनी ऐस्ट्रनॉमिकल घड़ी यहाँ हर घंटे अनोखे अंदाज में समय बताती है. पुराने समय में यहाँ बाजार लगा करता था. यहाँ दुकानदार अलग-अलग चीजें बेचा करते थे, आजकल ज्यादातर यहाँ खाने की जगहें हैं. खूब सारे रेस्टारान्ट, फास्टफूड स्टाल और कैफ़े की भीड़ लगी थी.
कई जगह क्लासिकल म्यूजिक के कॉन्सर्ट की टिकटें बेचीं जा रही थी. कहीं बीथोवन तो कहीं मोजार्ट के म्यूजिक शो होनेवाले थे. सोचा देखें लेकिन फिर सोचा क्यों न नाईट लाइफ को एक्स्प्लोर करें प्राग में. मोजार्ट का कॉन्सर्ट एक बार विएना में सुन चुकी थी.
सुना था आधी रात को जब ऐतिहासिक और आर्टिस्टिक प्राग सो जाता है तब जाग उठता है वाइल्ड प्राग. दिन में छुपे हुए चमगादड़ अपने बिल से बाहर निकलकर आस पास की गोथिक इमारतों में फड़फड़ाने लगते है. खैर यह तो मेटाफोरिकल उदाहरण था. लेकिन इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि मौसम, दिन और रात के हिसाब से शहरों के रंग रूप और उनकी तबीयत बदलती है.
हम अपने हॉस्टल से पहले ही चेक आउट कर चुके थे। प्लान था रात इन्हीं गलियों में बिताने का. हॉस्टल चलाने वाला आदमी अज़रबैजान का रहने वाला था. बहुत ही दिलचस्प और बहुत सी बातें करनेवाला हंसमुख आदमी था. जब उसे पता चला कि हम इस्तांबुल में रह चुके हैं और हमें टूटी फूटी टर्किश आती है तो खुशी से उछल पड़ा. अपनी बेटी के अच्छे भविष्य की आस में वह कुछ साल पहले यहाँ प्राग में आकर बस गया. अज़रबैजान को मिस करता है लेकिन वापस नहीं जाना चाहता कहने लगा “रूस बहुत ही करप्ट है”. एक बार लगभग सब कुछ खो चुका हूँ अब नहीं जाना चाहता. बड़ी देर तक बातें हुई थी उससे. अपने देश वहाँ के पहाड़ नदियों और मौसम की कहानियां सुनाता गया. जैसे कि वह हमसे नहीं अपने आप से ही कुछ कहना चाहता हो यह याद दिलाना चाहता हो. अपनी जमीन और लोगों के प्रति उसकी बेकरारी हम महसूस कर सकते थे.
आखिरी दिन था। सुबह चार बजे की फ्लाइट थी हमारी. जैसे-जैसे शाम ढली आसपास के रेस्टारेंट बंद होते गए. शनिवार की शाम थी और मौसम बहुत ही सुहावना था. लोगों अलग-अलग झुंड बनाकर वही टाउन स्क्वायर के मैदान में हाथों में बियर की बोतल लिए बातें कर रहे थे कुछ लोग तो ऐसे ही जमीन पर लेटे थे बेफिक्र कुछ लोकल थे तो कुछ यात्री. हम भी लेट गए. ऊपर आसमान में बादल थे. तारों का कुछ पता ठिकाना नहीं मिल रहा था. आसपास की लंबी गौथिक इमारतों के दीवारों की लाइटें जल उठी थी. लाइटों की सुनहरी रोशनी में गहरे स्लेटी रंग दीवारें चमचमा रहीं थी.
कुछ देर बाद हम आयरिश पब में गए. पब के बाहर एक नीली आँखों वाली ने न्योता देते हुए कहा कि अंदर लाइव म्यूज़िक है. लाइव म्यूज़िक से बेहतर क्या हो सकता है. दो म्यूज़िशियन गिटार बॉस की मदद से बैगपाइपर की आवाज निकाल रहे थे और गा रहे थे. म्यूजिक को सुनकर टाइटैनिक के जैक और रोज के डांस की याद आ गई. कुछ देर बाद पब में आये लोग टेबल्स के चारों तरफ गोल बनाकर तालियां बजाते हुए नाचने लगे. एक लड़की ने मुझे इशारा किया तो हम भी उसी में शामिल हो गए. देर तक नाचे हम. कोशिश कर रही थी उनके स्टेप कॉपी कर पाऊं लेकिन फिर सोचा नाचना तो हमें अपने खुशी के लिए चाहिए. रात के दो बजे थे लोग खूब नशे में थे. पब बंद होने का समय हो चुका था. कुछ ढाई घंटे में हमारी फ्लाइट थी.
मैं आखिरी बार चार्ल्स ब्रिज पर जाना चाहती थी. दिन के मुकाबले में शान्ति थी वहां. केवल दो लड़कियाँ थी वहां मुझे लगा शायद वह भी हमारी तरह यात्री हैं. दोनों बियर और सिगरेट पीये जा रही थीं. न जाने क्या बातें कर रही थीं. तभी दूर से दो आदमी आये उनसे कुछ बातें करने लगे तब समझ में आया कि शायद वह पैसों की बाते कर रहे थे. दोनों उनके साथ चली गई. अब ब्रिज पर कोई नहीं था. रात में उसकी खूबसूरती और भी निखर आई थी.
सोचने लगी कुछ दिन इस शहर में बिताना काफ़ी नहीं. यह शहर अपने घूमने वालों से वक्त मांगता है. मन में ठान लिया वापस जरूर आऊंगी और ज्यादा दिन रहूंगी.
सही कहा है फ्रांज काफ़्का ने “प्राग कभी भी आपको दूर जाने नहीं देता। इस छोटी सी प्यारी माँ के पंजे नुकीले हैं.”
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