![]() हरिशंकर परसाई के निबंध ‘वैष्णव की फिसलन’ पर युवा लेखिका-प्राध्यापिका राजकुमारी का लेख-
प्रस्तुत निबंध परसाई जी के मेरे रुचिकर निबंधो में से एक हैं । आधुनिक युग के व्यंग्य निबंधकारों में परसाई जी का नाम मुख्य रूप से आता हैं साहित्य के पुरोधा हरिशंकर परसाई जी के इस निबंध की खास बात ये हैं कि वो शाश्वत लिखने वालों को सच्चा साहित्यकार भी मानते हैं शाश्वत लिखने वाला तुरंत मृत्यु को प्राप्त हॊता हैं अपना लिखा रोज़ मरता देखता हैं । वहीअमर हॊता हैं । उनके निबंधों की पृष्ठभूमि सत्य पर टिकी हैं । ब्राह्मण परिवार में जन्मे लेखक उस वर्ग की सत्यता को छुपाते नहीं बल्कि स्पष्ट शब्दों में बयां करते हैं वैष्व्णो के धनी होने के तमाम रहस्योद्घाटन उनके इस निबंध में मिलते हैं किस प्रकार वैष्णव मंदिर के धन को व्यापार के लिए उपयोग ला धर्म को धंधे से जोड़ ऐशोआराम की ज़िन्दगी बसर करते हैं । धर्म और धंधा माने योग । दो घंटे की पूजा वारे -न्यारे कर देती हैं । निर्धन को जनता के पैसे से ही ब्याज पर कर्ज़ दिया जाता हैं । पैसे के साथ पैसा चिपक आता हैं । दो नंबर के पैसे को नाम देना बोझिल सा हो गया । विष्णु पिता का नाम हॊता तो उन्हीं के नाम वसीयतनामा गढ़ देते । दो नंबर का हो या एक नंबर का धंधा प्रभु की मर्ज़ी से हॊता हैं । बहकावे में चेप दो लाइन कि ईश्वर की मर्ज़ी बिन तो पता भी ना हिला धंधा रजामंदी से हुआ हैं तो संदेह गुंजाइश खत्म । प्रभु लीला उन्हीं पर बरसती दो घंटे पेटी भर माल उनसे जुड़े बाकी धंधे लीला उनकी वही फूंकेगे रात के सन्नाटे में कान में इस अपार सम्पति का क्या बिजनेस किया जाये अरे बता भी दिया देर थोड़ी हैं । एक वही तो जाति हैं जिनको प्रभु सृष्टि रचते ही गुफ्तगू , सीधे सम्पर्क के माध्यम से सब राज बताते हैं । धन्य हैं प्रभु । आदेश उस अधम माया के धन को वैष्णव ढाबा खोला जायेगा । शुद्ध शाकाहारी वैष्णव ढाबा ।इतना कम नहीं आँखों के अंधों के लिए और ब्लैक मनी धंधों के लिए । माल की ओर खपत तो बड़ा होटल , वातानुकूलित कमरे , धुलाई वाला , हेयर कट वाला , टैक्सी वाला इयादी और खाद्य पदार्थों की लिस्ट भी बना दी शुद्ध देसी घी की दाल , फुल्के , पापड़ सभी कुछ नहा धोके बने ना बने । दाल की गुणवत्ता , टमाटरों की क्वालिटी कोई सवाल नहीं चूंकि भरमाने को ये वैष्णव नाम ही काफ़ी हैं । कारीगर नाक में उँगली डाल रोटी बनाये या बाल खुजलाते दाल । वैष्णव हैं तो नो डाऊट । अब लिपटे गाँधी जी लो सबसे बड़े वैष्णव ऐसा निबंधकार कहते हैं मैं नहीं । भजन सुमिरन करो वैष्णव जन तो तेण कहिये , जे पीर पराई जाने दे। ये वैष्णव बिजनेसमैन के शुद्ध मन की आवाज़ आई कि होटलवासियों की पीर ना समझे तो कैसे वैष्णव हो भाई । सो मालिक का आदेश कस्टमर्स की दुखती आत्मा के चलते मांसाहार के विशेष प्रबंध हुए । ग्राहक की जीभ लपलपाई और ग्राहक बढ़ गये । धंधा चंगा हो गया । ऐसे में देवदूत बन आते एक्जीक्यूटिव आइडिया निकल पड़ा पर एक ओर चीज़ जिससे पाचन क्रिया दुरुस्त रहे । उत्सुकता से वैष्णव वो क्या ? लवणभास्कर चूर्ण मंगा दूँ ? भोले से बिचारे कितने सीधे जलेबी माफ़िक । प्रस्ताव आता मदिरा का ,राम राम राम अपवित्र कर दी बिचारे की आत्मा गंगाजल से धोना पड़ेगा । कहाँ चरणामृत का बनाने वाला कहाँ मदिरा की डिमांड । ये प्रभु भी ना वैष्णव को दुखी नहीं देख पाते भक्त जो ठहरे इनके प्रभु तो प्रभु हैं बोले धंधा ठप हो जाएगा । कोनो बड़ी बात हैं सोमरस पान तो देवताओं की मंडली भी करती थी । लो जी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होने लगी धन धन से बिना गुरुत्वाकर्षण के खींचा चला आया । अब कौन सा चैन की बंसी बजा ली लो जिंदा गोश्त भी माँगते अब ये किस चिड़िया का नाम । गऊ मानस वैष्णव भला क्या जाने । कैबरे डांसर देखा देखा हुई ना अनुभूति अप्सराओं की सही पकड़ा हैं कस के । खूब नाचते थे इन्द्र दरबार में , सुरा सुंदरी से सृष्टि के सृजको का गहरा या ये कहूँ चोली दामन का साथ रहा हैं गलत नहीं होंगा । आधा नंगा या पूरा नंगा ? ये वास्तविकता की परतें उघाड़ रहे परसाई जी कृष्णा अवतार गोपी लीलाएँ बनाम एक मर्द कई औरतें देवालय देवदासियां अनेक उदाहरण बिखरे समझे । चीरहरण इस बात की गवाही देता कि देवताओं की निगरानी में भी स्त्रियों को कोई सुरक्षा नहीं थी । कैबरे की नारी कमरे में भी नारी भोग चाहिए । वैष्णव ठहरे पक्के वाले भक्त सो फ़िर पहुँचे निवारण को । ऊपर वाला सब देखता ही हैं सुनता तो उन्हीं की हैं भगवान के नाम पर इस सेक्स रैकेट चलाने के धंधे को चला मोहर ईश्वर कि लगा दी स्त्री पुरुषों संयोग का ठप्पा लगा । बैरा ज़मात को 25फीसदी भगवान भेंट का लोभ दिखा ललचा इन्तजाम किये गये । धर्म खूब निभ रहा धंधा खूब चल रहा । धर्म धंधा हैं । कोई शक ? धर्म बाज़ार की अनैतिकता , धर्म के नाम पर चल रहे गलत धंधे ,धर्म की आड़ में स्त्री शोषण , धर्म और अनैतिक कार्य । धार्मिक स्थल के धन का दुरूपयोग गलत रास्ते पर जाते लोगों की कतारें लगातार बढ़ रही हैं । कथ्य की रोचकता निबंध को अधूरा छोड़ने की इजाज़त नहीं देती । साधारण भाषा में भी शिल्प उत्कृष्ट बन पड़ा हैं । वैष्णव शब्द के प्रभाव की महिमा के पीछे छिपे सच को निबंधकार ने बड़ी आसानी से पाठक के समक्ष खोल दिया हैं । आधुनिक युग में इस प्रकार के धार्मिक स्थलो , आश्रमों को व्यवसाय के साथ साथ ऐय्याशी के अड्डे भी बना दिया गया हैं । हरिशंकर परसाई जी का ये निबंध उत्कृष्ठ श्रेणी का धर्म संदर्भ में प्रासंगिक निबंध हैं ।
डॉ .राजकुमारी
प्रवक्ता हिन्दी
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