अणुशक्ति सिंह की यह कहानी स्त्रीत्व-मातृत्व के द्वंद्व को बहुत संतुलन के साथ सामने रखती है। पढ़कर बताइएगा- मॉडरेटर
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कभी दायीं ओर, कभी बायीं… चर्र-मर्र करते उस बिस्तर पर उसका करवटें बदलना ज़ारी था. लेटते वक़्त ऐसा लगा था जैसे नींद पलकों पर बैठी हो, फट से आगोश में आ जायेगी.
यूँ लेटे हुए उसे दो घंटे से ज़्यादा हो चुके थे. अब पीठ भी अकड़ने लगी थी. इस बीच कई दफ़े मोबाइल फ़ोन को ऑफ कर देने की बात सोच चुकी थी. हर बार यह ख़याल दिमाग में ही मर जा रहा था. बजाय फोन को ऑफ करके किनारे रख देने के वह तमाम चीजें कर रही थी जो करना नहीं चाह रही थी.
सोशल मीडिया का नोटिफिकेशन, आधी रात के बाद भी कौन बैठा है मेरे पोस्ट पर लाइक का बटन दबाने को… फ़िर सोने से कुछ देर पहले देखे गये बेवकूफ़ाने टीवी सीरियल का स्पॉइलर अपडेट देखने की कोशिश. कितना फ़ालतू लिखते हैं टीवी वाले. मैं ऐसा सीरियल बनाउंगी कि लोग नाम लेंगे. एक आध बार नज़र व्हाट्सएप पर भी चली जाती. आजकल फेसबुक पर एक लड़के से ख़ूब बात होती है, इतनी कि उसे व्हाट्सएप करने की छूट भी हासिल हो गयी है.
इन सब के बीच नींद कहीं गायब है. पाँव में तेज दर्द हो रहा है. आज पूरे दिन भागती रही थी. उसे माँ की याद आ गयी.
ऐसे ही किसी थके हुए दिन के बाद जब वह करवटें बदलती रात काटती तो न जाने कैसे माँ को आभास हो जाता. वह तेल की कटोरी लिये कमरे में चली आतीं और उसके लाख मना करने के बावज़ूद दोनों पैरों की तेल मालिश कर देती. माँ का हाथ लगते ही नींद न जाने कहाँ से भागती चली आती.
अंकुर बिल्कुल उस पर गया था. वह भी यूँ ही पाँव पटकता था, करवटें बदलता था जब भी पाँव के दर्द से परेशान होता. बेबी ऑइल की हल्की मालिश और गहरी नींद में चला जाता.
पिछले हफ़्ते मधुप की तस्वीरों को देखते हुए अंकुर की तस्वीर दिखी थी. पूरी तरह माँ का बेटा दिखता है. तस्वीर में अंकुर भूरे जर्मन शेफ़र्ड के साथ खेल रहा था. ‘माय बॉयज़’ मधुप ने फ़ोटो को कैप्शन दे रखा था.
इतना खेलने के बाद अब अंकुर थकता नहीं होगा क्या?
उसके पाँव अब नहीं दुखते होंगे? मधुप उसके पांवों की मालिश बिल्कुल वैसी ही कर पाता होगा, जैसे वह करती थी? अंकुर रात में मधुप से चिपट कर सोता होगा?
उसकी आँखें धुँधला गयी थी. चार साल पहले पाँच साल के अंकुर को उसने हाथ उठाकर मधुप को सौंप दिया था.
एक बेहद भयानक रात में अचानक आयी झपकी के मध्य देखे गये सुंदर सपने सा अंकुर उसकी और मधुप की शादी की इकलौती निशानी था, जिससे उसे बेहद प्यार था.
इसी प्यार को जब मधुप ने उसकी कमज़ोरी बनाने की कोशिश की तब यकायक समझ नहीं आया था उसे कि कौन सा क़दम उठाये. अंकुर को लेकर भागती फिरे या फिर जिस रास्ते उसकी चौखट से बाहर निकल आयी थी, उसी पर वापस चल कर यातनाओं के उस गेह में खो जाये.
माँ, पापा, अन्नी सब उसके फ़ैसले के ख़िलाफ़ थे. जान से प्यारे अंकुर को उसके पिता को सौंपने का उसका फ़ैसला किसी को भा नहीं रहा था. पापा अनशन पर बैठ गये थे. कानून बहुत पुख़्ता है औरतों के लिये. तू लड़, कोई अंकुर को तुझसे छीन नहीं सकता.
मैं अब लड़ना नहीं चाहती पापा.
फ़िर क्या चाहती है तू? अंकुर को उसके हवाले कर के जी पायेगी?
तब शायद जी भी लूँ पापा पर अब अपने आत्म-सम्मान को मार कर जीना मुश्किल होगा.
अरे, तो कौन कह रहा है तुझसे कि वापस वहाँ जा. अंकुर के लिये लड़.
पापा, यह लड़ाई अंकुर के लिये नहीं है.
अंकुर तो बस एक तरीका है. उसे लगता है कि मैं औरत हूँ, मेरी ममता मुझे भागने को मजबूर कर देगी. मैं भागती जाऊँगी और वह मुझे भगाता जायेगा.
क्या इसी लुका-छिपी के लिये उस घर को छोड़ा था मैंने?
पापा चुप थे. माँ और अन्नी भी. सबकी आँखें धुँधली हो रही थीं. बोल बस वह रही थी.
‘मैं कुंती नहीं हूँ पापा पर अगर मुझे सिर्फ़ इसलिये निशाना बनाया जा रहा क्योंकि औरतें ममता से आगे अपने भविष्य को नहीं रखतीं, तो मैं भी कुंती की तरह अपने कर्ण का परित्याग करने को तैयार हूँ.’
सन्नाटे में उसकी आवाज़ सांय-सांय बह रही थी.
‘अब यह लड़ाई मधुप और मेरी नहीं है. इस लड़ाई में मधुप ने एक औरत में सामने एक माँ को खड़ा किया है. औरत और माँ की लड़ाई क्यों? इस बार औरत का जीतना ज़रूरी है पापा.’
पापा सुन्न थे.
वह दृढ़ थी. अंकुर को मधुप के हवाले करते हुए भी.
मधुप चुप था, बिल्कुल चुप. शायद अब भी सब कुछ उसके लिए अविश्वसनीय था…
यह सब सोचते-सोचते उसकी आँखों में नींद घुलने लगी थी कि अचानक फ़ोन बजा. हेड ऑफिस से एक मेल आयी थी, उसकी तारीफ़ के बाबत. उसके पाँव का दर्द अब कम हो गया था. होठों पर एक अजीब सी मुस्कान तिर गयी थी. नींद वापस आ चुकी थी और उसे लेकर स्वप्नलोक में डूब गयी थी. सपने की इस दुनिया में अंकुर और वह फुटबॉल खेल रहे थे. अंकुर ने गोल करने की कोशिश की थी जिसे उसने डाइव मार कर रोका था…