अवचेतन में
हम वापिस लौटते हैं
भौंरे की तरह
ठीक उन असंयत पूर्वनिर्धारित विचारों तक
हम अपनी त्वचा के आवेग और डर को खत्म करते हैं
उसे सुलाकर अपने गददों के नीचे
एक सुस्थापित सी चादर की तरह
बाजारू प्लास्टिक फ्रेम की
हम रोशनी की उम्मीदों पर तारी हो जाते हैं
कब जन्म देने केलिए देनी है रोशनी
हम गपशप करते है
जीरो से गुणा करते हुए अपनी इंद्रियों के साथ
जोते हुए जहरीले खेत दिखें
या गंध आए क्षितिजों पर लिख दिए गए नासूरों की
या स्वाद शब्दों के फलों का
पुनरूपयोग की संभावनारहित साइबर का स्पर्श
बेसुरर सा संगीत हो
हमारी अंतहीन कल्पना के एक खास आने वाले कल का
भूलने की
छः कोणीय दीवार का इंतजार
अवचेतन में करते हैं हम
याद करने की भौतिक संभावानाओं के लिए
ठीक ठीक जुडे हाथ
आपस में
हम जो हैं पहले से उस पर अंकित निशानों के पैटर्न की स्वच्छता पर
भौंरों की तरह हम विश्वास करते हैं
सोम्ब्रो की बूंद पर काम करते हुए
सांस छोडते हैं रसायनों की हैट पर बूंद-बूंद
भूल जाओ कि बिना कुदरत के हम आगे नहीं बढ सकते
कविता अधूरी है अभी
हर बार जब मैं दूसरी तहजीब की जुबान तक आता हूं
ये मुझे रेल तक ले जाता है
कई दिन मैं नहीं जानता बे्रव कॉम्बो
आयरिश और अरब का भेद
कोनो सुर इंडिजेना और एव मारिया का भेद
सेव और केले का भेद
लॉरेंस वेल्क के
रांमांस कंटाडो वाय फलेमेंकों का भी।
जैसे मैं करता हूं भोजन तहजीबों और जुबानों का
वो मेरी पूंछ बन जाते हैं
गार्सिया मार्खेज की पूंछ सा
जीरा नहीं होता हैं अच्छा अकेला
कीडे छछूंदर बना देते हैं उनमें छेद
और हम सब निर्माण की अवस्था में हैं
कैलिफोर्निया
ताजा सलाद सा
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ताजा सलाद सा
वह बैठती है
चुस्त
दुबली देह
नाखून सुधारती है
क्यों वे पहली जीभ से ही कट जाते हैं
ब्यूटी पार्लर में।
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प्लास्टिक सर्जरी
तहजीब के विकास को रोंदती
हमारे हिस्सों को हटाती
जिन्हें हम जानते है बिना किसी शब्दकोश के
वह बैठती है सलाद सी ताजा
कैलिफार्निया औरत और बच्चे
उसके बैजी बटन के पास छेद सोने की रिंग के लिए।
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अगले सप्ताह
उसकी शहरी चमडी पर बना टैटू
एक सफाईवाली महरी की शांत छवि पर
एक खूबसूरत ख्वाब की तरह बाहरी तरफ बहुत काला
भीतरी ओर सिर्फ भित्ती चित्रण
स्लाद सा ताजा
हम किस हद तक भारतीय हो सकते हैं
रात में मरना हमारे बुजुर्गो की परंपरा नहीं है
भविष्य तक थामिए अपने हाथ में शराब
मुझे प्रेम करने दो तुम्हें एक व्यस्क की तरह
हमें प्रेम करना है पिता से
जिसे पा ना सकी एक बच्चे के रूप में
हम छुपाछुपी खेलते रहे
पाश्चात्य संगीत के छठे सुर सा तुम्हारा एहसास
क्या याद है तुम्हें!
मेरे पिता !
कभी नहीं चाहा कोई इनाम तुम्हारी उदासी के लिए
पर तुम पीते रहे तमाम शराब जो थी एज्टेक के उंचे पादरी की
डूरंगों के पहाडों से तुम कहोगे –
हम किस हद भारतीय हो सकते हैं
पर पिताजी आप लगते रहे हो भारतीय भारत के!
आप कैसे भारतीय थे ?
अब मेरे बच्चे कहते हैं, जब हम गुजरते हैें भव्य खानदानी फेहरिस्त से तो
हमारे पुरखों ने बनाया जिन्हें, है ना?
क्यांेकि सिएटल सिटी स्कूलों में जगह नहीं है मेक्सिकंस के लिए, मैं ने कहा
हां, उन्होंने किया, यह और, और भी बहुत कुछ।
जैसे घुलमिल जाते हैं सो भारतीय दूसरे भारतीयों में।
आपने कैसे कोशिश की मेरा चंबन लेने की मेरे पिता!
पर ले नही पाए
चंुबन के खयाल ने धोखा खाया आपके बचपन की परंपरा से
पिता आपको पता नहीं था
पिता आप छोड गए हमें!
आप पलायन कर गए
पेंट की जेब में स्थित हमारी औकात तक जाती जुराब की तरह
विजेता की तरह
कभी ना दिखने के लिए अपने परिचितों को
औकात की तमाम जुराबें क्या ले जाएंगी
वहा तक जहां तुम जाता चाहते हो!
तुम किस हद तक भारतीय थे मेरे पिता!
आपने दिया अपना प्रेम मुझे
और नहीं लिया वापिस भी।
आजादी की प्रतिमा दरअसल एक औरत है
क्या आपने महसूस किया है कभी
कि
दोहराव के जंग को।
वह औरत वो नहीं है
क्या कभी भौतिकता की सुंदरता से चकित हुए हो !
वह औरत वह नहीं है
वह औरत के केशरहित पांवों पर पडती
वो प्रताडित, टूटे हुए प्रकाशपुज का रेजर नहीं है।
ना ही वह टाइसाइकिल जो नहीं दी गई है
और बाइसाइकिल को बीच तक ले जाया नहीं जाता
और तश्तरी कभी मुक्त नहीं होती
वह औरत कुंठा के अक्षमा भाव सी नहीं है
डबलयू डबलयूआईआई कैंप के जापानी आदमी के अंधे उत्साह सी भी नहीं है वह औरत।
पिकनिक की टोकरी बिना पेंदे की
खुशी से भरतूर वह औरत
वह बेचती है किताबें
जो घर भेजती है किताबें हर रोज
कोर्ट के लिए कर्म के साथ।
वह औरत एक शोर करने वाली पेडल बोट है
जो एक बच्चो को अनंत तक ले जाती है
वह पचास के दशक का बाग है
एक जापानी आदमी का लगाया हुआ
जब उसको आखिरकार महसूस हुआ कि उसके ग्रीनहाउस मेंं है
उसका आने वाला कल।
ठीक इस आजादी की प्रतिमा के समान
वह औरत ले जाएगी तुम्हें उस जगह तक
जहां तुम कभी नहीं गए
अपने ही घर के भीतर।
वह कई तहजीबों में यकीन रखने वाली तस्वीर है
जिसके पेज हैं जातियां
और गुलामी की जुबान बोलकरे जीते तमगे हैं
झील जैसे दोस्त
पारदर्शिता से जो तुम्हें बेहतर बनाता है
वह यहां थी जब नारीवाद हिप्पी सा था
बैंगनी तकिए थे सत्ताओं के खिलाफ निरंतर।
वह औरत अब भी यहीं है
और नारीवाद उपस्थित है
बुद्धिज्म के उथले जल में तैर रहा है
एक अच्छे दिन
पोप के आलिंगन में
वह आजादी का इंटरनेट है
जब कि वह है आजादी की प्रतिमा भी।
मेदुसा
उसके बाल घंुघराले थे
और सवाल अनंत
केवल उसके सामान्य पहाडी बाल ही ही नहीं
बल्कि तमाम बाल
उसकी मंूछ अच्छी थीं
जंगली सी आखें के साथ
सांस और नजर एक साथ
बोलते हुए एक लंबी पंक्ति
अपने कवच की, रेजर की, मोम की और चिमटी की
क्यों आखिर हम हमेशा
अपने विकास को कई जगह जोडते हैं
उस औरत ने पूछा
अपनी आवाज मिलाते हुए
अपनी ही दूसरी आवाज से
केशरहित आवाज
आवाज जो है बहुस्तरीय कार्बनों की
जांे हैं शीत और जरूरतमंद
वह सोचती है कि
बाल
शरीर के विरामक हैं दरअसल।
वह छिडकती है नीट
या अन्य कोई कीटनाशक
अपने विचारों पर।
धरती के हरे लॉन पर वह
घास काटने में मशगूल थी
क्या वह प्लास्टिक को कर रही थी खराब
और जहर को हटा रही थी खुद को बेदखल करते हुए।
क्या वह वाकई धरती माता है!
तुम्हें वाकई मेरी जरूरत है
वो सारे साल जिन्हे मैं बुरे कर्मो वाले गिनता हूं
मैं तुम्हें खत लिखूंगा
तुम अनजाने मेंं थे शाकाहारी अश्वेत
तुमने कभी नहीं पसंद किया खाना
जानवरों के खास अंग
कोई सूप या उबला हुआ कुछ भी
नहीं मजबूर कर सका
तुम्हें उसको खाने से
गुर्दे को भी नहीं खाते तुम
पखों में बुरी सी गंध
लीवर में आॅक्सीजन से युक्त कुछ टॉक्सीन
तुमने कभी नहीं खाया उनका पिछला भाग
सूअर का गाय का
या फिर स्वाद से भरपूर तुर्की गुप्तांग भी
मेरी मां ले आई थी
पॉन्ड या डालर के दसवे हिस्से से
एक न्यूबैरिज।
तुम गाल भी नहीं खाते हो
उनके चुंबनों को बचाने के लिए
उनकी आत्माओं के प्रेम जीवन को
खत्म होने से बचाने के लिए
ना ही अचार बनी हुई त्वचा को
तुम चाहते हो कि मैं रक्षा करूं
तुम्हारे बुद्धिस्ट होने को
मैं जानता हूं तुम अच्छे हो
क्यांकि तुम को पसंद नहीं है
सूबर की चर्बी भी मेरी तरह से।