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फियर एंड लोथिंग इन अ हिंदी क्लासरूम

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नमन नारायण बीए मासकॉम के छात्र है और एक उभरते हुए लेखक। उनका यह लेख पढ़िए जो स्कूल में हिंदी पढ़ने के अनुभवों को लेकर है। व्यंग्य की शैली में किस तरह गम्भीर सवाल उठाए जा साकते हैं वह इस लेख में दिखाई देता है। आप भी पढ़िए-

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उस दिन सुबह से ही मेरे सर में दर्द था। शुक्रवार को आखिरी दो क्लास हिंदी की होती थीं। मेरा आज क्लास में जाने का थोड़ा भी मन नहीं था, पर फ़िर भी मुझे जाना पड़ा। इसके दो कारण थे – एक, मैम आज प्रश्नोत्तर लिखवाने वाली थीं और दो, हिंदी क्लास हमारे लिए रीडिंग और डिक्टेशन के अभ्यास के साथ मस्ती का भी एक बड़ा स्त्रोत थी। क्लास की शुरुआत उस दिन बिल्कुल आम हुई। मैम हमे नागार्जुन की कविता “चंदू मैंने सपना देखा” के प्रश्नोत्तर लिखवा रही थीं। मैं पहली बेंच पर अपने दो दोस्तों के साथ बैठा था। हाई स्कूल के क्लासरूम में लड़कों के रो की एक ख़ास बात होती है, पीठ पर मुक्का और एक घातक जोक कब कहाँ से आ जाए ये बताना असंभव होता है। आखिरी बेंच पर बैठे किसी महापुरुष ने दबे ज़ुबान ऐसा ही एक जोक कह दिया और पहली बेंच पर बैठे हम तीनों लड़को की हंसी किसी लैंडमाइन की तरह अचानक ही फट पड़ी। पूरी क्लास हमे घूरने लगी। मैम बहुत क्रोधित थीं, उनका “फ्लो” टूट गया था।

मैम गुस्से में अपनी कुर्सी से उठकर हमारे सामने आकर खड़ी हो गईं। हम अभी भी अपनी हंसी क़ाबू करने में लगे थे। उन्होंने पहले हमें बहुत घूरा अंग्रेजी में इसे “डेथ स्टेयर” कहते है और फ़िर हमसे पूछा, “क्या हुआ?”, मेरी हंसी अचानक ही ग़ायब हो गई। मैं मैडम तुस्सॉड्स के किसी पुतले की तरह स्थिर हो गया। मेरे बग़ल में मेरा एक दोस्त बैठा था जिसके गोरे रंग, छोटे कद और गोल-आकार के कारण हम उसे प्रेम से “पांडा” बुलाते थे। पांडा ने अचानक ही खड़े होकर मैम पर एक गज़ब सवाल दाग दिया। उसने बड़ी ईमानदारी से पूछा, “मैम, कवि बिहारी का पूरा नाम क्या है?”, भगवान जाने उसके दिमाग़ में ये सवाल कहाँ से आया था क्योंकि हमारी क़िताब में दिए चार लाइन वाले “कवि परिचय” में इसका कोई ज़िक्र नहीं था, न ही आज हम बिहारी के दोहे पढ़ रहे थे। पांडा अपनी मसखरी के लिए मशहूर था। मैम ने इसे उसका एक और मज़ाक समझते हुए उसे क्लास के बाहर जाने का आदेश दिया। पांडा ने पहले इस आदेश का थोड़ा विरोध किया पर अंत में उसे बाहर जाना ही पड़ा। हालांकि बाहर जाने से पहले उसने मैम से उनकी मेज़ पर रखी “बिजय हिंदी गाइड” में अपने प्रश्न का उत्तर देखने का निवेदन किया परन्तु इससे मैम और भी क्रोधित हो गयी। बड़े दुःख की बात है कि “बिजय हिंदी गाइड” लिखने वाले वेद व्यास के पास भी पांडा के इस तुच्छ प्रश्न का उत्तर नहीं था तो मैम ने इस प्रश्न को अर्थहीन घोषित कर दिया। अब आपको भी ऐसा लग सकता है लेकिन अगर मैं इसी प्रश्न को कुछ ऐसे लिखूँ –

कवि बिहारी का पूरा नाम क्या है? (1)

अब इस प्रश्न में नवयुवकों के सपने तोड़ने और उन्हें साकार करने दोनों की ताक़त है। जब तक किसी प्रश्न को इस तरह किसी प्रश्नपत्र पर न छापा जा सके तब तक वो “अर्थहीन” ही रहता है।  उसमे अर्थ उसकी दाईं तरफ़ लिखे अंक ही जोड़ते है। बचपन से हमारे दिमाग में ये बात डाल दी जाती है कि हिंदी में किसी भी रचना को पढ़ने का लक्ष्य परीक्षा में आने वाले १,२,५ या १० अंक के प्रश्नों का उत्तर लिखना ही है। रचना की रीडिंग करने के बाद हमें कुछ प्रश्नों के उत्तर लिखा दिए जाते और अगर परीक्षा स्कूल में ही है तो टीचर उसके बाहर के प्रश्न देते ही नहीं है परन्तु अगर परीक्षा बाहर है अर्थात बोर्ड परीक्षा है तो उसके लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी होती है। आपको गाइड बुक में दिए कुछ प्रश्नों के उत्तर “अल्पविराम-पूर्णविराम सहित” याद करने होते है, उद्देश्य, व्याख्या आदि। फिर जो भी सवाल आए आप घुमा फिरा के उसे इन्हीं रटे हुए उत्तरों पर ले आते है। इस तरह हिंदी आपको रीसाइक्लिंग का महत्व समझाती है।  स्कूल में मैंने प्रश्नों के उत्तर लिखना सीखा है, चर्चा करना नहीं। चर्चा करने के लिए आपके पास अपना एक दृष्टिकोण होना चाहिए परन्तु स्कूल में हिंदी के छात्रों का ज्ञान “बिजय हिंदी गाइड” में दिए “अधिकतम 200 शब्द” वाले उत्तरों तक ही सीमित रहता है।

मैम कल क्लास में देर से आईं थीं तो “चंदू मैंने सपना देखा” की रीडिंग उन्होंने स्वयं ही की। रीडिंग शुरू करने से पहले उन्होंने कहा, “चंदू मैंने सपना देखा को हम कोई कविता नहीं समझते” फिर उन्होंने इस कविता का खूब मज़ाक बनाया और मेरे सहपाठी भी खूब हँसे। मुझे ये कविता रोचक लगी थी, ऐसी शैली की कविता हमने पहले कभी नहीं पढ़ी थी तो मैं चुप ही रहा। आज मैम उसी कविता के प्रश्नोत्तर लिखवा रही थीं। उत्तरों में वो इस कविता की संवेदनशीलता की  तारीफ़ के पुल बांध रही थीं। मेरे सहपाठी सर झुकाए अपनी नोटबुक में ये उत्तर लिख रहे थे। मुझे ये भी पता था कि मेरे सहपाठी यही उत्तर परीक्षा में भी लिखेंगे और फिर उन्हें इन्हीं उत्तरों के आधार पर अच्छे अंक भी मिलेंगें। लेकिन इन उत्तरों का महत्व क्या है? क्या ये उत्तर मुझे ये बताते है कि “चंदू मैंने सपना देखा” के बारे में मेरे सहपाठी क्या सोचते है या ये उत्तर मुझे ये बताते है कि “बिजय हिंदी गाइड” लिखने वाला वेद व्यास इस कविता के बारे में हमसे क्या लिखवाना चाहता है। अगर ये उत्तर हमारे अपने  दृष्टिकोण को दुनिया के सामने नहीं रखते तो इनसे मिले अंकों का अर्थ क्या है?

मैम के बोले हुए उत्तर छापते समय मेरा मन इसी उथल-पुथल से गुज़र रहा था कि मेरी कलम ही जाम हो गयी। मेरे पास दूसरी कलम नहीं थी और मैम अपने उत्तर के साथ आगे बढ़ते जा रहीं थीं। लेकिन अब मुझे मैम के शब्द समझ नहीं आ रहे थे, मुझे ऐसा लग रहा था कि वो हिंदी नहीं बाइनरी भाषा में बात कर रहीं  हैं, सिर्फ 0 और 1 सुनाई दे रहे थे। मेरे सर में दर्द भी बढ़ता ही जा रहा था। थोड़ी देर में सब कुछ जैसे “ब्लैक एंड वाइट” हो गया। मैंने अपने सहपाठियों की तरफ़ देखा। एक से दूसरे का फ़र्क़ करना असंभव था। एक से चेहरों पर एक से भाव, बदन पर एक से कपड़े, एक सी मेज़ो पर रखीं एक सी नोटबुक जिनमे लिखा एक-एक शब्द एक सा। मेरे सामने इंसान नहीं हाड़-मांस की ज़ेरॉक्स मशीनें थीं। इनमें मैं भी एक था।

ये विचार  मन में आते ही मैंने अपनी नज़र उनसे हटा ली और खिड़की के बाहर देखने लगा।  मैम शायद मुझपर चिल्ला रहीं थीं। क्या बोल रही थीं ? नहीं पता। मैं किसी सोच में डूबा हुआ था। क्या सोच रहा था ?

कवि बिहारी का पूरा नाम सोच रहा था।

शायद मैंने स्कूल-भर इसी अर्थहीन प्रश्न का उत्तर तलाशा है।

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