Quantcast
Channel: जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1485

अंकिता आनंद की नौ नई कविताएँ

$
0
0

आज बहुत दिनों बाद अंकिता आनंद की कविताएँ पढ़िए। अंकिता जी कम लिखती हैं लेकिन शब्द-शब्द जिस बारीकी से जोड़कर कविता का साँचा गढ़ती हैं वह बहुत अलग है, उनका नितांत अपना शिल्प है कविताओं का। कुछ छोटी छोटी कविताएँ पढ़िए- मॉडरेटर

============

1.
अन्यमनस्क
नदी के कटान ने
मिट्टी में रहते हुए
घमंड से बचाए रखा,
इरादा ह्ल्का-ह्ल्का
पकता रहा भट्टी में.
आज है
ईंट-सीमेंट का आश्वासान,
दालान में प्लास्टिक कुर्सी,
मन लेकिन
कुछ कच्चा-कच्चा लग रहा है.
 
2.
बेमेल
मैं तुमसे, एक लड़के से, मिली
और चाहने लगी.
तुमने मुझसे प्यार किया
वो पुरुष बन कर
जो तुम्हें लगा तुम्हें होना चाहिए.
 
बात नहीं बनी.
 
 
3.
गतांक से आगे
 
जब हमारे सारे
“याद है जब . . . ?”
ख़त्म हो जाएंगे,
अपना बाकी बचा वक़्त
हम किस कदर निभाएंगे?
 
 
4.
गटरगूँ
“हम सब गटर में हैं,
पर हममें से कुछ की नज़र
तारों पर है.”
-ऑस्कर वाइल्ड
xxx
ऑस्कर,
अगर हम सब गटर में होते
तो हम सबको सितारे नज़र आते
गर्दिश में.
फ़िलहाल सब नहीं,
कुछ लाख हैं
गटर में,
हमारी बनाई गंद में तैरते,
उसे साफ करते.
 
उनके सरों पर हैं
हमारे बूट,
इन दोनों के बीच का
एकतरफ़ा दलाल,
गटर का ढ़क्कन,
हमें शिष्ट, सभ्य कह
पुचकारता हुआ.
कभी-कभार खिसक जाता है
ये ढ़क्कन,
और पहुँचती है हम तक
हमारी सड़ाँध,
नज़र आ जाते हैं
तारे,
भरी दुपहरी में.
 
 
5.
जुगाड़
अपनी कमज़ोरी को गरियाओ मत,
मेरे दोस्त,
याद रखो
किसी के पेट के गड्ढ़े ने
रोटी को आकार दिया होगा.
किसी के अँधेरे से निखरा
ब्रेल का उभार.
तलवे में घुसी कील ने
चप्पल बनवाई, यात्रा नहीं रोकी.
रेगिस्तान ने नीम से सीख लिया
सराहना सच का स्वाद.
तुम तो इस बात का पता लगाओ
वो कौन सी रौड है
जिसके निकले हुए मुँह में फँस कर
हर बार
चर्र से फट जाता है तुम्हारा कुरता
क्या उसे दीवार से निकाल
बाज़ार में बेचा जा सकता है?
क्या उसके लोहे से
बिना किसी की ज़मीन छीने
स्टील बना सकते हैं?
या फिर
क्या वो इतना भारी है
कि दिन में दस बार उठाने से
घर में ही हो जाए तुम्हारी वर्जिश
और अपनी पेशियाँ देख
तुम फूले ना समाओ?
6.
खारिज
 
स्फूर्ति के लिए प्रेम का प्रबंध किया गया
फिर ऊर्जा की निरंतरता थकान बनने लगी.
कौल सेंटर आँखें डूबती चलीं गड्ढ़ों में
ठहराव की भटकन लिए,
विरक्ति को फिर से बुलाया गया
आराम मुहैया कराने के लिए.
 
बहना एक बात है,
पर पानी को कब पसंद था
कोई लगातार गेंद मार
उसकी स्थिरता भंग करे?
 
 
7.
मस्तिष्क परिवर्तन
युवावस्था के दंभ में
नास्तिक थी,
धीरे-धीरे
देश को देखते-समझते
तनिक परिपक्वता आई.
हो गया भरोसा
भगवान पर
जब देखा
इतना सब कुछ चलते
केवल भगवान भरोसे.
 
 
8.
प्रकृति का सृजन
 
बरगद के पेड़ ने खूब लांछन सहे
कि वो नई पौध को उगने नहीं देता.
 
पर कभी चाय की ‘झाड़ियाँ’ भी
जंगल निगल जाती हैं,
आदि काल से उनमें रह रहे वासियों के साथ.
 
चीड़ को नतमस्तक होना पड़ता है
बंजर मैदानों के आगे
जिनमें बोंसाई बंगलों की खेती होती है.
 
फिर उनमें रहनेवाले ख्वाहिश करते हैं
कि खिड़की के साथ कुर्सी लगा जब वे चाय पी रहे हों
तो उनकी आँखें के सामने हरीतिमा बिछी रहे.
 
तब उनके लिए एक विस्तृत वाटिका
व एक लघु वन का निर्माण किया जाता है.
 
 
 
9.
समाधान
 
ये निहायत चिंताजनक विषय है
इतना वक्त होने को आया
और न तुमसे मेरी, न तुम्हारी मुझसे
कभी कोई नाराज़गी हुई
मुझे कुरते के बटन टाँकने नहीं सिखाए गए
जो तुम्हारे करीब खड़ी
दाँतों से धागा तोड़ती
आँखों में झाँकती फिरूँ
समझने को तुम्हारे आशय
जिन्हें बतलाने की तुम ज़हमत न करोगे
न अपनी जान की बेपरवाही है
जो मलमल बिछ जाऊँ पैरों तले रौंदे जाने को
चुप रहकर सिर्फ़ एक आँसू ढ़लकने दूँ
कि फिर तुम रो दो और मैं चाहे-अनचाहे
माफ़ करने को बाध्य हो जाऊँ
ताकि तुम क्षमा कर सको अपनेआप को
इन सारे अनुष्ठानों के परे
हम सरल तरीकों से भी
इस कमी को दूर कर सकते हैं
जैसे सीधे पूछ लेना कि मेरे मुस्कुराने
पर तुमने मुझे खाली आँखें क्यों लौटा दीं
या तुम्हारे खाने के लिए पूछ्ने पर
मैंने बिना तुम्हारी ओर देखे “हूँ” क्यों कर दिया
और इस तरह बिना जान जलाए चंद घड़ियों में
हम ले सकते हैं एक-दूसरे पर अपने अधिकार
 

The post अंकिता आनंद की नौ नई कविताएँ appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1485

Trending Articles