रेखा सेठी हिंदी की सुपरिचित आलोचक हैं। हिंदी की स्त्री कविता पर उनकी किताब आई है ‘स्त्री कविता पहचान और द्वंद्व’ तथा ‘स्त्री कविता पक्ष और परिप्रेक्ष्य’।राजकमल से आई दोनों किताबों का कल दोनों का लोकार्पण है। फ़िलहाल आप एक अंश पढ़िए जो अनामिका की बातचीत का एक अंश है- मॉडरेटर
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पुस्तक अंश–स्त्री-कविता : पहचान और द्वंद्व
रेखा सेठी
अनामिका की कविता की शक्ति उनके बिंब हैं और उन्होंने अनेक कविताओं में स्त्री जीवन की विडंबना व अंतर्विरोध को बखूबी उभारा। इनमें स्त्री जीवन की वंचना और पीड़ा के बिंब एक नई करवट लेते हैंI अनामिका ने ‘स्त्रीत्व का मानचित्र’ लिखकर स्त्रीवादी आलोचना की शुरुआत भी की और कविता में भी स्त्री के सामाजिक जीवन के लिए नया सौंदर्यशास्त्र प्रस्तुत कियाI
रेखा सेठी : स्त्री-कविता जैसा अभिधान क्या केवल पाश्चात्य सन्दर्भों से अनुप्रेरित है या भारतीय-दृष्टि भी उसके निर्माण का आधार है ?
अनामिका : स्त्री-कविता का सबसे बड़ा योगदान यही है कि उसने एक चटाई बिछाई है और पर्सनल-पोलिटिकल, कॉस्मिक-कॉमनप्लस, में माइक्रो-मैक्रो, इहलोक-परलोक, इतिहास और मिथक, शास्त्र और लोक, पौर्वात्य और पश्चिमी के बीच का पदानुक्रम तोड़कर उन्हें एक चटाई पर बिठाया है |
हमें जिधर से ताज़ा हवा मिलेगी––हम उधर से खिड़की खोलेंगे | एशियाई दर्शन और प्रपत्तियाँ, अफ्रीकी लोक, ऑस्ट्रेलियन एबोरिजन्स का लोक, अमरीकी-यूरोपीय उद्योग, लातिन अमरीकी लोक—सबका सार हम चलनी से चालकर, सूप से फटककर समदुख-योगियों के बृहत्तर हित साधने का सपना दिखाने वाले समवेत गीत गाएँगे, कविताएँ लिखेंगे ! यही है बहनापा | यही है मध्यममार्ग !
स्त्री-कविता या स्त्री-दृष्टि पर पश्चिमी प्रभावों के अतिरेक का अभियोग लगाने वालों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि ‘कोलोनियल’ और ‘कैनोनिकल’ दोनों पर पहला प्रहार इसने ही किया, इसी ने पहली बार घरेलू चिट्ठी-पत्री और अंतरंग देशी दस्तावेज़ों को ज्ञान-प्रत्याख्यान के प्रामाणिक स्रोत के रूप में मान्यता दिलाई और अपने सर्जनात्मक लेखन में इनका भरपूर उपयोग किया |
रेखा सेठी : पिछले बीस वर्षों में—कविता, गद्य एवं शोध—सभी क्षेत्रों में स्त्री-कविता एवं स्त्री- विमर्श आपके चिंतन के केंद्र में रहे हैं | आपने अंग्रेज़ी में भी स्त्री लेखन का संकलन संपादित किया और एक तरह से हिंदी में स्त्री विमर्श को विश्व वातायन से जोड़ने का कार्य किया | इसके पीछे आपकी क्या दृष्टि रही ?
अनामिका : मेरे मन में यह रहता है कि पूरब और पश्चिम में जो भी साझा है उसके बीच एक पुल बना दूँ | सोचने में भी मुझे लगता है कि यह दुनिया और वह दुनिया कैसे जुड़ जाए झपाके से… वहाँ सखी भाव से आपसी गपशप होती रहे | मैं चाहती हूँ कि सबका सबसे अंतरंग बातचीत वाला रिश्ता बने और अगर उसे जोड़ने में मैं पुल बन सकती हूँ तो मुझे अच्छा लगता है |
रेखा सेठी : लेकिन क्या आपको लगा कि इससे एक समस्या भी पैदा हो गयी, स्त्रीवादी मुहावरा आपकी कविताओं की पहचान बन गया यहाँ तक कि स्त्री विमर्श की स्थापनाओं पर आपकी कविताओं के उदाहरण चुन-चुनकर चस्पां कर दिए गये | इससे आपकी रचनाओं का स्वतंत्र मूल्यांकन बाधित होता है | क्या आपको भी ऐसा लगता है ?
अनामिका : इस तरह से मैंने अपनी कविताओं के बारे में सोचा नहीं लेकिन जो भी मैं देखती हूँ, स्त्री तो मैं हूँ ही, स्त्री की आँख से संसार भी देखती हूँ और स्त्री कविता के बारे में भी मेरा यही नज़रिया है कि व्यक्ति का लोकेल कहीं भी हो उसकी आँखें तो अपने आस-पास के पूरे संसार को देखती हैं, जैसे पेड़ का तना—अपने होने के वजूद में एक जगह स्थित होकर भी उसकी टहनियाँ बाहें फैलाकर बाहर की ओर जाती हैं | व्यक्ति भी भीतर अपने वजूद में स्थित होकर बाहर की ओर देखता है | मैंने भी केवल स्त्रियों को ही देखा हो ऐसा नहीं है | मैंने वृहत्तर संसार को देखने की कोशिश की है, स्त्री दृष्टि से | यह सब जान कर नहीं हुआ, ऐसा कैसे हुआ यह तो आलोचना ही बताएगी | मुझे नहीं मालूम मैं तो जैसी थी वैसी ही रही लेकिन देखने की खिड़की वह हो गयी, क्योंकि वह ऐसा समय था जब स्त्री स्वर को लोग अलग से देख रहे थे, पहचानने की कोशिश कर रहे थे उसी तरफ से यह खिड़की खुली होगी | इस बारे में मैंने कोई सचेत प्रयास नहीं किया |
रेखा सेठी : एक आखिरी सवाल स्त्री कविता की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है ? क्या हमारा समाज ‘जेंडर सेंसेटिव’ होने की जगह कभी ‘जेंडर न्यूट्रल’ हो सकेगा यानी आप स्त्री हैं या पुरूष इससे कोई अंतर न आये और आपकी पहचान व्यक्ति रूप में हो ?
अनामिका : अंतरंग स्पेस में जेण्डर-सेंसिटिव करना ! प्रकृति ने सिर्फ दो जातियाँ बनाई हैं—स्त्री- जाति, पुरुष-जाति ! इनकी देह-मन-भाषा का जो अंतरंग पक्ष है—उनकी जरूरतें थोड़ी अलग हैं, इसी हिसाब से इनकी दैहिक-मानसिक-भाषिक आवश्यकताएँ भी थोड़ी विशिष्ट हैं जिनके प्रति दोनों को संवेदनशील होना चाहिए !
जहाँ तक पब्लिक स्पेस का सवाल है, आदर्श स्थिति है जेंडर-न्यूट्रल होना ! सारे नागरिक अधिकार और कर्त्तव्य समान अवसरों और संसाधनों का बराबर बँटवारा —- इसमें कोई कोताही नहीं होनी चाहिए क्योंकि स्त्री, स्त्री होने के सिवा मनुष्य भी तो है !
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