जब आपकी पहली किताब पर जाने माने लेखक-लेखिकाएँ लिखने लगें तो समझ लीजिए कि आपको बहुत गम्भीरता से लिया जा रहा है, आपको बहुत उम्मीदों से देखा जा रहा है। अनुकृति उपाध्याय के पहले कहानी संग्रह ‘जापानी सराय’ की यह समीक्षा प्रसिद्ध लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने लिखी है- मॉडरेटर
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अनुकृति उपाध्याय का भला हिंदी में यह पहला संग्रह हो, जिसका शीर्षक है ‘जापानी सराय’ लेकिन यह एक सिद्धहस्त कथाकार की कहानियां हैं। अनुकृति अंग्रेज़ी में लिखती आई हैं, लेकिन हिंदी फिर भी उनका पहला प्रेम है। मुझे बहुधा मीठी जलन होती है उन लोगों से जो दो या अधिक भाषाओं में समान अधिकार से कलम चला सकें। अनुकृति उनमें से एक हैं, दोनों भाषाओं को वे बखूबी बरतती हैं। मगर सच तो यह है कि भाषा मेरे हिसाब से एक औज़ार मात्र है, साहित्य तो साहित्य है…. कहानी और उसका शिल्प कथाकार का है।
‘जापानी सराय’ हिंदी में अपनी तरह का पहला कथा-संग्रह है, क्योंकि संसार घूम लेने पर लेखक के पास एक विस्तृत कहन और अंदाज़ आ ही जाता है। ठीक वैसे ही जैसे निर्मल जी के यहां अनूठे परिवेश मिलते हैं। जापानी सराय भी परिवेशों को लेकर एक ताज़गी लेकर आपके समक्ष आता है। पहली ही कहानी ‘जापानी सराय’ आपकी हथेली थाम लेती है और नए संसार में लिए जाती है। एक बिज़ी दिन के आखिर में जापान में काम करने वाली एकाकी भारतीय लड़की बार कम रेस्तरां में एक मैरीन ज़ूलोजिस्ट से मिलती है, मेरा तो मन लेखिका बस यहीं जीत लेती हैं। बार में नीली रोशनियों का सैलाब है। दोनों बातें कर रहे हैं। और अजनबियों से बेहतर कौन होता है, मन का ग़ुबार निकालने को। बानगी देखिए दृश्य उकेरने में, संवाद रचने में सिद्धहस्त लेखिका के।
“तुमने पूरी शाम में पहली बार वकीलनुमा बात की है। अच्छा है। मुझे शक होने लगा था।”
वह मुस्कुराया और चॉप स्टिक्स से अनायास नूडल्स के धागों को उठा कर खाने लगा।
“जहाँ मैं जा रहा हूँ, वहाँ शार्क नहीं है वहाँ क्रस्टैशियंस की बहुतायत है। उन पर शोध कर रहा हूँ। बहुत दिलचस्प हैं ये खोलधारी जीव। कैम्ब्रियन पीरियड से, यानी कि अरबो वर्षों से इस धरती पर हैं। जब सबकुछ नष्ट हो जाएगा तब हो सकता है यही प्राणी एक नया आरम्भ करें, ऐसे ही अपनी कड़ियल टांगों और जबड़ों और खोलों से लैस।”
“और दिमाग़ और दिल से लैस नहीं? दिमाग़ और दिल का तुमने कोई ज़िक्र नहीं किया।”
“दिमाग़ और दिल की वजह से ही तो सब नष्ट होगा। जिनके दिमाग़ और दिल नहीं होंगे वही बचे रहेंगे।
अनुकृति की कहानियों में आज की कॉर्पोरेट में काम करने वाली अतिव्यस्त या बहुत प्रतिभावान महिलाओं के काम से अवकाश लेकर बैठने का बहुपरतीय मनोविज्ञान बहुत सांद्र होकर आता है। चैरी ब्लॉसम, शॉवर्मा ऐसी ही दो कहानियां हैं। रेस्टरूम दो अजनबी स्त्रियों के दुख एक हो जाने की कहानी। अनुकृति जो दृश्य गढ़ती हैं, वे अब तक हिंदी कथा साहित्य में नहीं आए हैं, मसलन एयरपोर्ट का रेस्टरूम, जापान का कोई छोटा ग्रामीण बार, पच्चीसवें माले का होटल रूम, मल्टीनेशनल कॉर्पोरेट की दुनिया, मैनहट्टन का दफ्तर, चमगादड़ का घर पेड़, सकूरा ब्लूमिंग।
‘प्रेज़ेन्टेशन’ कहानी भी एक कामकाजी सफल स्त्री के दो फ़्रंट पर लड़ी जाती लड़ाई की कहानी है। जिसमें बीच में स्त्री देह की विडंबना आ जाती है, जब मातम पसरे घर में घर का ही एक युवक उसे महज देह समझ लेता है। यह एक सशक्त संदेश देती कहानी है। ठीक इसके विपरीत है कहानी ‘हारसिंगार’ लगभग विरोधाभासी मगर उतनी ही सशक्त कहानी। पिता की मृत्यु के दुख में, तन से थकी मन से बिखरी मौना की मन:स्थिति की कहानी जहां वह अपने विवाह से पूर्व के प्रेमी के सान्निध्य में अंतिम शरण पाती है। मनोविज्ञान की महीन परतों से खेलना अनुकृति को बखूबी आता है। कहानी गुंजलों में उलझती है किंतु अंत में बहुत सधे ढंग से बाहर भी निकल आती है। इस कहानी में दृश्य- विवरणों की बानगी देखने लायक है।
“पापा ने पिछले सालों में लॉन में तरह-तरह के पेड़ लगाए थे- आँवला, सीताफल, अमरूद, अनार. घास तो व्यर्थ पानी पीती है और रेगिस्तान में इस क़दर पानी वन्ध्य घास पर पानी बर्बाद करना?अब इन पेड़ों में देखो चिड़ियों की कैसी बस्ती है, बच्ची. ये छोटी मुनियाएँ नैना और तुम्हारी तरह झगड़ती- बतियाती हैं, और बुलबुलें और मैनाएँ तुम्हारी माँ से ज़्यादा उठाया-धरी करती हैं. वह बूढ़ा कौवा एकदम मेरे जैसा है, नीम पर बैठा सबका मुजरा लेता है! पापा के हरसिंगार से सुगंध उड़ रही थी. ओस से शॉल जब एकदम भीग गया तब मौना उठी. आकाश के छोरों पर सुबह के घाव रिस रहे थे. परछाइयाँ फीकी पड़ गई थीं. “
इनसेक्टा इस संग्रह की विचित्र कहानी है, माता – पिता के बच्चों पर चट्टान सी भारी उम्मीदों के रखने की कहानी, एक भ्रमित किशोर मस्तिष्क और उसके दारुण अंत की कहानी है। इस संग्रह की विशेषता है कि संजोग इसमें कुछ कहानियों के साथ जो अगली कहानी है, वह पिछली कहानी के ठीक विपरीत कहानी है। ‘इनसेक्टा’
और ‘छिपकली’ कहानी ऐसी ही दो कहानियां हैं। यहां बच्चा एक घरेलू छिपकली तक को मारने नहीं देना चाहता।
इस संग्रह की मेरी सबसे प्रिय कहानी है ‘जानकी और चमगादड़’
अनुकृति और मुझे जीव-जंतु प्रेम एक डोरी से जोड़ता है। हम दोनों ही जीवों की मूक भाषा समझ पाने का दावा तो नहीं मगर कोशिश करते हैं। यह मार्मिक कहानी एक क्लासिक का दर्ज़ा रखती है। भीषण कुरूप दिखने वाले चमगादड़ जैसे जीव भी दोस्ती निभाते हैं, यह हर कोई नहीं जान सकता, लेकिन कहानी को पढ़ कर शायद समझ सके।
‘डैथ सर्टिफिकेट’ रोचक कहानी है, एक मर्डर मिस्ट्रीनुमा जिसे पाठक को खुद पढ़ कर देखना चाहिए।
कॉरपोरेट संसार के आधुनिक चित्र, घटनाएँ इस कथा संग्रह को समसामयिक बनाते हैं। रिश्तों के हैरत करने वाले गुंजल। प्रेम, त्याग, घात-प्रतिघात, अवसान और बेज़ुबान मित्रताएं हर कहानी में अनूठे शेड्स हैं। दृश्यांकनों में नए संसार के झरोखे खुलते हैं, रोज़मर्रा का जीवन जीते – जीते ….. अनुकृति के पात्रों से जिस औचक ढंग से कहानी आ टकराती है…..वह बहुत अनूठा है।
‘मैं यह पूरी दमदारी से कहूंगी कि ‘जापानी सराय’ संग्रह अपनी अनूठी भाषा और नए मुहावरों के लिए भी रेखांकित होना चाहिए। लेकिन कहीं – कहीं भाषा अनूदित सी प्रतीत होकर अजनबी भी लगने लगती है। अगर भाषा महज औज़ार है तो यह बात अखरती नहीं क्योंकि इस भाषा से वे बेहद महीन कार्विंग्स करती हैं।
निसंदेह यह संग्रह समकालीन हिंदी कथा जगत में एक ताज़गी भरा झौंका है।
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‘जापानी सराय’ राजपाल एंड संज प्रकाशन से प्रकाशित है।
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