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प्लेन व्हाइटवाश घरों की हरी-भरी बालकनियां!

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युवा लेखिका पूनम दुबे के यात्रा संस्मरण अच्छे लगते हैं। कोपेनहेगन पर उनका यह छोटा सा गद्यांश पढ़िए- मॉडरेटर

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विलियम शेक्सपियर और उनके लिखे नाटक “रोमियो और जूलियट” को कौन नहीं जानता. रोमियो और जूलियट की कहानी एपिटोम है प्यार का! इसी प्ले में एक बहुत ही प्रसिद्ध सीन है जिसमें जूलियट बालकनी में खड़ी हैं और रोमियो उसकी बालकनी के नीचे खड़ा उसके विरह में तड़पता उससे बाते करता है. उस समय पहली बार वह दोनों अकेले होते हैं. बालकनी बनती है उनके मुहब्बत का जरिया जहाँ वह दुनिया और अपने घरवालों की नजरों से छुपकर अपने प्यार का इज़हार करते हैं. यहीं से उनकी कहानी एक नए मुकाम की ओर चलती है. रोमियो और जूलियट के बीच का बालकनी वाला यह सीन एपिक है.

ऐसी कई फिल्में और प्ले है जहाँ बालकनी को रोमांटिसाइज़ किया गया है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि एक ज़माने में बालकनी कितने ही मुहब्बतों और इश्क जरिया बनी होगी. अब का नहीं कह सकती क्योंकि अब तो व्हाट्सएप्प और टिंडर है. लेफ्ट स्वाइप एंड राइट स्वाइप ने बालकनी रोमांस को दुर्लभ (एक्सटिंक्ट) कर दिया है. ख़ैर हमारे देश में छतों और खिड़कियों का ज्यादा योगदान रहा है इन मामलों में!

पहले कभी बालकनी पर इतना ध्यान नहीं दिया था लेकिन जब से कोपन्हागन आई हूँ मेरा ध्यान रह-रहकर यहाँ के घरों की बालकनियों पर ही चला जाता है. यहाँ के लगभग सभी घरों में बालकनी देखीं मैंने. अच्छी खासी बालकनी कम से कम दो लोगों के बैठने और लेटने की जगह हो इतनी बड़ी. समर का मौसम है. लोग अपनी बालकनियों में आराम कुर्सी पर लेटे धूप सेंकते नजर आ जाते है. हाथों में किताब होती है या फिर फ़ोन,लेटे रहते है घंटों-घंटे! कभी कॉकटेल होता है साथ तो कभी चाय, कॉफ़ी. इन बालकनियों को देखकर ऐसा लगता है यहाँ बालकनी कलचर बड़ा स्ट्रांग है. अपनी बालकनियों को खूब सजा-धजा कर रखते हैं लोग. छोटे-छोटे गमले, रंगबिरंगे फूलों के पौधे और लताएं आसपास होती है. कई लोगों को मैंने स्विम सूट में छतरी के नीचे बालकनी में लेटे देखा है. इन्हें सूरज की किरणों से बेहद लगाव है क्योंकि रैशनिंग में जो मिलती है यहाँ. सड़कों पर आदमी बिना शर्ट के साइकिल चलाते या ऐसे ही वाक कर नजर आ जाए तो कोई अचरज की बात नहीं है. अभी कुछ दिन पहले हॉउस हंटिंग के दौरान मैंने कौतुक बस यूँ अपनी हाउस हंटिंग एजेंट जैनेट से पूछा, “एक बात पूछूँ, यह बताओ लोग समर के बाद इन बालकनियों का किस चीज के लिए इस्तेमाल करते है? मतलब समर तो यहाँ ज्यादा से ज़्यादा चार महीने की होती है बाकी के आठ महीने क्या उपयोग है इनका? मौसम भी तो ऐसा नहीं ऐसा होता है कि कोई कपड़े भी सूखा सके! जैनेट ब्लॉन्ड बाल, लंबे कद हेज़ल-ग्रीन रंग की ख़ूबसूरत आँखों वाली क़रीब पचास साल की हंसमुख महिला है. मेरा सवाल सुनकर उसे हंसी छूटी  मेरी तरफ देखकर बोली,  “बात में पॉइंट तो है. समर के बाद बाकी के समय एक्स्ट्रा फ्रिज के स्टोरेज की तरह काम आ जाता है.” यह सुनते ही मुझे भी हंसी आ गई, समझ गई वह मज़ाक कर रही है. मन ही मन डर भी लगा न जाने क्या होगा मेरा सर्दियों में!

सर्दियों में यहाँ लोग ‘हुग्ग’ करते हैं. यानी कि घरों में परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर समय बिताना. एक साथ कोज़ी होकर खाना, टीवी देखना, म्यूजिक सुनना किताबें पढ़ना. हाल ही में एक डेनिश दोस्त ने बताया कि सर्दियों में मौसम इतना ठंडा डार्क और ग्रे होता है कि डेन्स इंडोर ‘हुग्ग’ करना पसंद करते है. जैनेट ने घर दिखाते हुए बताया था कि ‘हुग्ग’  भी एक कारण है कि यहाँ के घरों में बेडरूम छोटे, किचन और ड्राइंग रूम एक साथ होते है ताकि परिवार एक साथ ज्यादा समय बिताए.

फिलहाल तो मौसम है बालकनियों का इसलिए मैं भी कभी-कभी चाय या कॉफ़ी का कप लेकर खड़ी हो जाती हूँ अपनी बालकनी में. देखतीं हूँ आते-जाते साइकल पर सवार और राह चलते राहगीरों को. दिख जाती है आस-पास की और भी बालकनियाँ. उनसे आती हंसी-ठहाके की आवाज़ सबूत देती है घर के ख़ुशनुमा माहौल का! चुप-चाप, शांत रूखे-सूखे पुराने पौधों से तितर-बितर बालकनियां कह जाती है न जाने कितनी अनकही और अनसुनी कहानियाँ!

वो कहते है न “आँखें आत्मा की खिड़की होती है” शायद उसी तरह “बालकनी भी घर के आत्मा की खिड़की होती है.” बहुत कुछ कह जाती है इन प्लेन व्हाइट वाश घरों की हरी भरी बालकनियां!

 

 

 

 

 

 

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