अंकिता आनंद का नाम अंग्रेजी पत्र पत्रिकाओं में सुपरिचित है. हिंदी में कविताएँ लिखती हैं. उनकी कविताओं में जो बात सीखने लायक है वह है शब्दों की मितव्ययिता. चुन चुन कर शब्द रखना और भावों को कविता की शक्ल देना. लम्बे अंतराल के बाद उनकी आठ कविताएँ पढ़िए- मॉडरेटर
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1.
असंबद्ध
शिकायत करती इस दुनिया से
सभी गलतियाँ गिनवाती
नाराज़गी जताती
अगर एक-दूसरे के होते हम,
मैं
और दुनिया
2.
बर्थडे पार्टी, 1990
नई फ्रॉक
और आज घर पर ही
बाहर जानेवाली एकमात्र सैंडल
बाल झाड़ लो ठीक से,
कोई आएगा तो क्या बोलेगा कि
ठीक से बाल भी नहीं झाड़ी है
उधार के कैमरे ने
बच्चों के दाँत
अमरूद में गड़े देखे
आँटियों ने कचौड़ियाँ
खाने से पहले बनाईं
हमलोग कोई गेस्ट हैं क्या?
छोले पर जान छिड़कने के लिए
हर थोड़ी देर में
एक जाँबाज़ प्याज़ तैयार
पेपर प्लेट के बाहर
पाँव पसारता केला
सिंघाड़े से अपनी हीनता
छिपाने की कोशिश में,
ट्राईंग टू हार्ड, इफ़ यू आस्क मी
1. केक
2. खीर (दूध ठीक से ओटिएगा और चावल खाली एक मुट्ठी)
3. गुलाबजामुन
बहुत है, और कितना मीठा रहेगा भाई
गुलाबी कागज़ से निकला
गिफ़्ट लंच बौक्स अभी रख दो
नए क्लास में ले जाना
अभी तो तुम्हारा चल ही रहा है
3.
चींटियाँ
आंदोलन और नुक्कड़ नाटक के पहले,
पेडीक्योर को मुँह चिढ़ाती दरारों के पहले,
मेरे तलवों के नरम बचपन ने जाना था
एक के बाद एक कदम आगे रखकर
लंबी दूरी तय की जा सकती है।
गर्वीले पाँव, शीतल ज़मीन,
लगा चींटियाँ मेरा रास्ता काट रही हैं।
उन्हें बताना पड़ेगा, सोचा,
व्यवस्था में किसकी जगह कहाँ है।
धरती से मिलकर चलनेवालों को
धराशायी करने मेरे पैर ऊपर से नीचे आए।
एक पल में इतना विस्तार था,
उसमें तरल लोहे की महक
और उसके स्त्रोत बिंदु की टीस
दोनों समा गए।
मानना तो ये चाहूँगी
ज़िंदगी के सबक जल्दी सीख लेती हूँ।
ईमानदारी की बात ये है
मेरे गुरु निपुण थे।
अब कोई जीवन में कुछ
बड़ा करने की सलाह देता है,
तो सोचती हूँ
सटीक होना काफ़ी है।
4.
अवसरवाद
आप सोचेंगे
कवियों पर डेडलाइन का बोझ नहीं
पर उन्हें भी
शुष्क शहर में हुई
एक कमज़ोर, टपकती बारिश को
निचोड़ लेना पड़ता है
अकालग्रस्त आश्वस्त नहीं हो सकता
दोबारा सरकारी हेलिकौप्टर वहीं से गुज़रेगा
वो और कवि
दोनों आश्वस्त नहीं हो सकते
उनके आसमान में फिर बादल मँडराएँगे
और वे उस पक्षाघाती दुख के न होंगे
जिसमें न पकड़ी जाएगी कलम,
न उठा ही सकेंगे
राहत सामग्री
5.
जत्था
मुझे भागती हुई औरतों के सपने आते हैं
दीवारों को फाँदते, लगातार हाँफते
थाने के सामने दम भर ठहरते
और फिर से भागते,
याद करके, “ओह, इनसे भी तो भागना था”
ये वो सपना नहीं
जिससे उठकर कहा जाए
“शुक्र है, बस एक सपना था,”
ऐसा सच है
जो कई सपनों को लील गया
मैं जानती हूँ मैं वो सब औरतें हूँ
जानती हूँ वो मुझे बचाने के लिए भागती हैं
अब मैं उनके भीतर से लपक
उनके सामने आ जाना चाहती हूँ
देना चाहती हूँ उनको विराम
चाहती हूँ वो मेरी पीठ और कंधों पर
सवार हो जाएँ
मैं उनको लेकर उस दंभ से चलूँ आगे
जिसके खिलाफ़ हमें चेताया गया था
हर बार जब हमने दृढता दिखाई
एक-एक कदम पर हिले धरती
जगाती उन सभी को
जो उसमें ठूँसी गई थीं
उन के दिल पर रखा एक-एक पत्थर फूटे
फाड़ता हुआ कानों पर पड़े परदे
हमारे दाँत मुँह से कहीं आगे तक निकले हों
गर्भावस्था के दौरान किसी कमज़ोरी से नहीं
इस बार
अधिकार से गड़ने को हर लूटे गए निवाले में
आँखों का काजल फैल चुका हो
नज़रबट्टू बन उन गालों पर
जिन पर कालिख फेंकने वो बढ़े थे
जब उनकी दी गई लाली पोतने से
हमने मना कर दिया था
हम अट्टहास करें, भयावह दिखें, औक्टोपस बनें
शरीर से छोड़ते स्याही की पिचकारियाँ
उन पर साधे
जो संग होली खेलने को व्याकुल थे
6.
मंच निर्देशन
मैं चाहती हूँ तुम वाक्य की शुरुआत
“सुनो” से करो, जिससे साफ़ हो जाए
ये कहानी मेरे लिए है,
वैसे तो तुम दफ़्तर के जूनियर्स और पार्टियों में
कितना ही ज्ञान बाँच देते हो
उन लोगों से फ़र्क करने के लिए
मुझसे पूछो मेरे काम के बारे में बिना राय दिए,
मेरी मदद माँगो, और अपनी घबराहट का खुलासा करो
लगेगा कुछ बात हुई हमारी,
कि सिर्फ़ बातें बनाकर नहीं चले गए तुम
हमारे मामूली मर जाने के डर से
कितने ही खयाली महल बना डाले हमने
उधर इतने दिनों से टपकता नल
आहत नजरों से मुझे बींधे जा रहा है
आज उसके लिए किसी को बुलाकर ही आते हैं
उसके बाद जाकर कुछ देर पार्क में बैठ जाएँगे
फिर शायद तसल्ली हो
सब कुछ देख ही लिया हमने आख़िर
ज़िंदगी यूँ ही हमारे हाथों से छूटती नहीं जा रही
7.
नियम और शर्तें
अगर तुम दोस्ती के लिए भी
गहरी आँखों की शर्त रखो
तो ये समझे रहना
बहुत सीढ़ियाँ उतर तुम पहुँचोगे
उसके घर तक
फिर वहाँ आकर
ऐसी कोई बेवकूफ़ाना हरकत मत कर देना
“लाईट औन कर दें क्या?”
या “तुमने अँधेरा क्यों कर रखा है?”
बैठे रहना जैसे पूरी दुनिया में यही होता आया है
और जैसे तुम समझते हो कि अँधेरे में ही
लोग एक-दूसरे से बात करना सीखते हैं
फिर ये मत कहना, “कहीं बाहर चलें?”
भात और जल्दी में गरम पानी डाल बढ़ाई गई
पनसोर आलू की सब्ज़ी खा लेना
और सो जाना
घड़ी से मत गिनना सुबह होने तक के घंटे
जब वो वापस सीढ़ियाँ चढ़ ऊपर जाने लगे
तुम हल्के से दरवाज़ा लगा
चुपचाप उसके पीछे निकल आना
8.
सामग्री
एक उदास कहानी मुझसे छेड़े गए सभी अभियान भुलवा सकती है
हींग के छौँक की महक मुझे कृतज्ञ आँसू रुलवा सकती है
पिछ्ले खोए के लौटने की उम्मीद जगा
मौसम से लड़ कर खिला एक फूल हाथ पकड़ मुझे उठा सकता है
बंद जाली के कोने से घुसा दुष्ट कबूतर
मुझे ढिठाई, बेहयाई के फ़ायदे गिनवा सकता है
लड़के के रोने से मैं दुनिया के खिलाफ़ तलवार साध सकती हूँ
लड़की के हँसने पर मेरी रुकी साँस आज़ाद हो जाती है
दोस्त की माफ़ी मुझे फिर से जिला देती है
टटोलने भर से इनमें से कुछ तो हाथ लग ही जाता है
एक और खेल के लिए मैं फिर तैय्यार हो जाती हूँ
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