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‘ठाकरे’ फिल्म की एक ही खूबी है नवाजुद्दीन की अदाकारी

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बाला साहेब ठाकरे की बायोपिक आई है जिसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने ठाकरे की भूमिका निभाई है. उसी फिल्म पर नवीन शर्मा की टिप्पणी- मॉडरेटर

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आजकल हिंदी सिनेमा में बायोपिक का दौर चल रहा है। इसकी लेटेस्ट फिल्म है ठाकरे। इसके कुछ हफ्ते पहले ही मनमोहन सिंह पर द एक्सिडेंटल प्राइमिनिस्टर आई थी। बाला साहेब ठाकरे का नाम लेते ही उन सारे विवादों की तस्वीरें और उनके विवादास्पद बयानों की गूंज सुनाई देने लगती है।

ठाकरे फिल्म के निर्माता और सहलेखक शिवसेना के नेता संजय राउत हैं। यह बात ही इस फिल्म को एक बेहतरीन बायोपिक बनने की राह में रोड़ा बन जाती है। फिल्म के रिलीज के पहले आजतक को दिए इंटरव्यू में नवाजुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं की संजय राउत चाहते थे कि ठाकरे फिल्म एटनबरो की गांधी के लेबल की बने, लेकिन संजय राउत यह भूल गए कि जब एक शिव सैनिक इस फिल्म को लिखेगा तो वो निरपेक्ष होकर बाला साहेब के बारे सब कुछ साफ साफ नहीं लिख पाएगा। यही बात ठाकरे फिल्म को एक शानदार बायोपिक बनने से रोक देती है। ठाकरे में बाल साहेब की छवि को सुपर हीरो की तरह से दिखाया गया है।  ठाकरे को एक हीरो या मराठियों का मसीहा के तौर पर पेश किया गया है।

फिल्म में ठाकरे के रूप में नवाजुद्दीन सिद्दीकी छाए रहते हैं, हर सीन में उनका दमदार अभिनय दिखता है. वे कहीं कमजोर नहीं पड़े। बाला साहेब के जैसा दिखने, चलने और बोलने में उन्होंने काफी मेहनत की है। उनके जैसा ही बेबाक और दमदार वक्ता के रूप में भी खुद को पेश करने में सफल रहे हैं। ठाकरे  फिल्म की सबसे बड़ी खूबी नवाजुद्दीन की बेहतरीन अदाकारी है।  उनके तल्ख अंदाज को पकड़ने की कोशिश की। फिल्म के प्रभावी संवाद इसमें चार चांद लगाते हैं। अमृता राव को ठाकरे की पत्नी मीना ठाकरे के रूप में स्क्रीन पर जितना स्पेस मिला, उससे उन्होंने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई।

बाला साहब ठाकरे कमाल की शख्सियत थे । एक तेज तर्रार कार्टूनिस्ट। अच्छे संगठनकर्ता और बेबाक वक्ता। जो बात कह दी उससे पीछे नहीं हटनेवाले। नवाजुद्दीन ने उनके इन रूपों को.दिखाने की कोशिश की है। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना सरकार का रिमोट कंट्रोल हमेशा बाला साहब के पास ही रहता था। महाराष्ट् की सत्ता खोने के बाद भी मुंबई पर उनका राज चलता था। लेकिन उन्होंने अपने को संकीर्ण सीमाओं में बांध लिया था। वे मराठी मानुष के हित की बात करते थे जो काफी हद तक स्वभाविक है। जो व्यक्ति जिस समुदाय का होता है उसके हित  की बात सोचे तो कोई बुरी बात नहीं है लेकिन वे अपने समुदाय का हित करने के चक्कर में दूसरे समुदायों के हितों पर चोट करने लगते थे।

मुंबई को उन्होंने मराठियों की जागीर बनाना चाहा वो भूल गए कि बंबई को बनाने औऱ उसे आगे बढ़ाने में मराठियों से कहीं अधिक योगदान गैर मराठियों जैसे अंग्रेज, पारसी, गुजराती, सिंधी, मारवाड़ी, दक्षिण भारतीय और उत्तर भारत के भईया जी लोगों का है। उनका पूरी तरह बस चलता तो वे गैर मराठियों को मुंबई से निकाल बाहर करते। फिल्म में इस बात को जस्टिफाई करने के लिए यह दिखाया है कि गैर मराठा लोगों ने मराठियों को उनका उचित हक नहीं दिया। उनकी रोजी रोटी पर गलत ढंग से काबिज हो गए। यह बात काफी हद तक गलत है। जो समुदाय ढंग से शिक्षित नहीं होगा और उचित कौशल प्राप्त कर उद्यम नहीं करेगा उसक पीछे रहना तय है। फिल्म में दिखाया गया है कि पहले तो ठाकरे ने दादागिरी कर मराठियों को नौकरी दिलाने की कोशिश की फिर. बाद में उनका कौशल बढ़ाने की भी कवायद की थी।

 यह भावना कहीं से उचित नहीं है। भारत के नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में जाकर बसने व रोजगार करने का अधिकार है( कुछ राज्यों व क्षेत्रों को छोड़कर)।

पाकिस्तान को लेकर उनके विचार भी गौर करने लायक हैं वहां से संचालित हो रही आतंकवादी गतिविधियों के कारण उस देश से हम ज्यादा बेहतर संबंधों की उम्मीद नहीं रख सकते। खासकर तब जब उस देश की सरकारी एजेंसी आईएसआई सीधे तौर पर आतंकियों की मदद कर रही हो। संसद पर हमला और मुंबई पर आतंकी हमले के बाद उस देश से हम सामान्य दोस्ताना संबंध नहीं रख सकते। इस भावना को ठाकरे ने भुनाया यहां तक की पाकिस्तान के.साथ मुंबई में क्रिकेट मैच से.पहले शिवसैनिकों ने पिच तक खोद दिया था।

बाल ठाकरे ने खुद ही अपने लिए सीमा रेखा खींच दी थी वे महाराष्ट से आगे कि नहीं सोचते थे। वे भले जय भारत , जय महाराष्ट्र नारे में जय भारत. पहले बोलते हों पर उनके कार्यकलापों में  महाराष्ट्र ही सबसे ऊपर रहा है।  जहां उन्होंने अपना मुकाम तय किया था वहां वो जरूर पहुंचे , लेकिन गैर मराठियों के लिए वे और उनके भतीजे राज ठाकरे विलेन बन गए। ये लोग ये छोटी सी बात समझ नहीं पाए कि केवल मराठियों के बल पर मुंबई तो महज एक छोटा सा शहर ही रहता उसे देश कि आर्थिक राजधानी बनाने में पूरे देशवासियों का हाथ है इसलिए भी मुंबई भारत में है तो सारे भारतवासियों की है। केवल मुंबई ही नहीं सारा भारत ही भारतवासियों का है। इस बात को सभी क्षेत्रिय मानसिकता रखनेवाले लोगों को समझन होगा।

इस फिल्म की एक और बात खास है कि हर विवादास्पद मुद्दे पर.बाला साहेब की बेबाकी और साफगोई स्पष्ट दिखाई गई है। उन्होंने अपने निहित स्वार्थों की वजह से इमरजेंसी का समर्थन तक किया था। ठाकरे में बाल साहेब के जीवन की क्रोनोलाजी अच्छे ढंग से दिखाई गई है। फिल्म का फर्स्ट हाफ ब्लैक एंड व्हाइट है और इंटरवल के.बाद रंगीन हो जाती है। दोनों में सिनेमेटोग्राफी अच्छी है।

बाला साहेब के अयोध्या के विवादास्पद ढ़ाचे को गिराए जाने के मामले में भी बेबाक विचार थे। वे अदालत में भी उस पर कायम रहे। वे साफ स्वीकार करते रहे की शिवसैनिकों ने ही ढांचा ध्वस्त किया था और वे इसे गलत नहीं मानते थे। इसके पक्ष में भी वे कोर्ट में मजबूती से अपनी राय रखते हैं। खैर मेरी एक जिज्ञासा है कि पता नहीं नवाजुद्दीन सिद्दीकी बाला साहेब की इन विचारों से कितना इत्तेफाक रखते हैं। हो सकता है कि वे उसे बस महज एक रोल निभाने के लिए बड़े ही प्रोफेशनल ढंग से उस किरदार को निभा कर गुजर गए।

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