यह साल फिजिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड फ़िलिप्स फ़ाइनमैन की जन्म शताब्दी का साल है. उनके ऊपर एक रोचक लेख लिखा है जानी मानी लेखिका विजय शर्मा ने- मॉडरेटर
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फ़िलिप्स फ़ाइनमैन से मेरा परिचय मेरे एक प्रिंसीपल फ़ादर हेस ने कराया था। फ़ाइनमैन से पहले मैं फ़ादर हेस के विषय में दो शब्द कहना चाहूँगी। कैथोलिक फ़ादर हेस यूँ तो फ़िजिक्स के विद्यार्थी रहे थे लेकिन उनकी रूचि साहित्य में भरपूर थी। ऑफ़ीसियल संबंध के अलावा यह भी हमारी मित्रता का एक प्रमुख कारण था। वे इंग्लिश साहित्य के जानकार थे लेकिन नई-नई प्रकाशित अमेरिकी किताबें खूब पढ़ते थे और दूसरों को उनसे परिचित कराते। टी ब्रेक में हमारी बातचीत का विषय दुनिया भर की तमाम बातें हुआ करती थीं। फ़ोटोग्राफ़ी के शौकीन फ़ादर हेस ने कॉलेज में वीडियोग्राफ़ी के सारे उपकरण एकत्र कर रखे थे। वहीं मैंने वीडियोग्राफ़ी करनी सीखी। उन्होंने मुझे पहले-पहल डिजिटल म्युजिक सुनाया और उन्हीं से मैंने फ़िल्म एप्रीशिएसन का कोर्स किया। उन्होंने ही करीब-करीब जबरदस्ती कम्प्यूटर सिखाया। हालाँकि उस समय मेहनत से सीखी गई बेसिक लैंग्वेज और प्रोग्रामिंग की आज जरूरत नहीं पड़ती है। कॉलेज में वे एंथ्रोपॉलॉजी पढ़ाते थे, मुझे भी इस विषय का चस्का लगा। उन्होंने मुझे इंग्लिश बोलने के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित किया। इंटरव्यू बोर्ड में उनके साथ बैठना एक बड़ा सुखदायी अनुभव हुआ करता था। वे उम्मीदवार को सदा रलैक्स अनुभव कराते और यदि उसे किसी प्रश्न का उत्तर न ज्ञात होता तो उत्तर बता कर भेजते। अपने ज्ञान का रुआब न झाड़ते जैसा कि अक्सर इंटरव्यू बोर्ड में बैठे लोग करते हैं।
लेकिन फ़ादर हेस को यह देख-जान कर कभी-कभी बड़ी कोफ़्त होती थी कि फ़िजिक्स में एमएससी, पीएच डी किए हुए लोग भी फ़ाइनमैन का नाम नहीं जानते हैं, उन्होंने उसका नाम नहीं सुना है। रिचर्ड फ़िलिप्स फ़ाइनमैन, जिसकी इस साल शताब्दी है, और जिसको १९६५ का फ़िजिक्स का नोबेल पुरस्कार मिला था। मूल रूप से बेलारूस (जी हाँ, वही बेलारूस जिसकी पत्रकार स्वेतलाना ऐलेक्सीविच को २०१५ का नोबेल पुरस्कार मिला है) के निवासी, लुथिनियन धर्म मानने वाली यहूदी गृहिणी लूसी फ़िलिप्स तथा इसी धर्म के सेल्स मैनेजर मेल्विल ऑर्थर फ़ाइनमैन के यहाँ ११ मई २९१८ को न्यू यॉर्क में जन्मे फ़ाइनमैन ने क्वान्टम मैकेनिक्स के ‘पाथ इंटग्रल फ़ोर्मूलेशन’, ‘थ्योरी ऑफ़ क्वान्टम एलैक्ट्रोडायनमिक्स’, और ‘फ़िजिक्स ऑफ़ द सुपरफ़्ल्यूडिटी ऑफ़ सुपरकूल्ड लिक्विड हिलियम’ साथ ही ‘पार्टिकल फ़िजिक्स’ के लिए जाना जाता है। उन्हें फ़िजिक्स के दो अन्य विद्वानों के साथ-साथ १९६५ में क्वान्टम एलैक्ट्रोडायनमिक्स के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। कैफ़ेटेरिया में एक व्यक्ति को प्लेट हवा में उछालते देख कर उन्होंने फ़िजिक्स के एक सिद्धांत कर काम करना प्रारंभ किया और इसी पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। अपने समय में उन्हें दुनिया के दस फ़िजिसिस्ट में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त था। उनकी ख्याति (मेरे अनुसार कुख्याति) द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एटम बम का विकास करने के लिए भी है। अफ़सोस उन्हें कभी इस बात को ले कर अफ़सोस करते न देखा गया। ‘चैलेंजर’ यान दुर्घटना की सुनवाई के बोर्ड में वे भी शामिल थे और इतना ही नहीं उन्होंने उस यान की गलतियाँ भी गिनाईं। वे अपने लेक्चर तथा किताबों के कारण जनसाधारण में प्रसिद्ध हैं।
मैं थोड़ा-बहुत फ़िजिक्स पढ़ने के बावजूद फ़िजिक्स नहीं जानती हूँ। मेरे फ़िजिक्स नहीं जानने का काफ़ी श्रेय हमारी शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकॊं को जाता है। लेकिन मैंने फ़ाइनमैन की आत्मकथा को खूब इन्जॉय किया है। उनकी दो आत्मकथात्मक किताबें, ‘श्योरली यू आर जोकिंग मिस्टर फ़ाइनमैन’ तथा ‘व्हाट डू यू केयर व्हाट अदर पीपुल थिंक? : फ़र्दर एडवेंचर्स ऑफ़ ए क्यूरियस करेक्टर’ पाठकों के बीच खूब लोकप्रिय रही हैं। वे अपनी किताबों के द्वारा फ़िजिक्स को आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाना चाहते थे। उन्होंने अपने इन आत्मकथात्मक साहित्य के अलावा बहुत और किताबें लिखीं, आज उन पर भी ढ़ेरों किताबें उपलब्ध हैं। इस जीनियस ने जीवन में कई तरह का नशा किया और दिमाग नष्ट न हो जाए इसलिए खुद ही उन्हें छोड़ भी दिया। ब्राज़ील में पढ़ाते समय उन्हें यह देख कर आश्चर्य होता था कि छात्र रट कर पाठ याद करते हैं। परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के बावजूद छात्र विषय को जानते-समझते नहीं हैं। क्लास में कभी प्रश्न भी नहीं पूछते हैं। यदि कोई छात्र प्रश्न पूछता तो उसके साथी उसका मजाक उड़ाते। छात्र फ़ाइनमैन से कहते, वे क्यों इतना विस्तार से समझा कर अपना और उनका समय नष्ट कर रहे हैं। वे भी देख रहे थे कि जो वे पढ़-पढ़ा रहे हैं वह तो विज्ञान है ही नहीं। इसीलिए ब्राज़ील में शिक्षण करते समय शिक्षण विधि तथा पाठ्य पुस्तकों के सुधार का प्रयास भी फ़ाइनमैन ने किया। यह सब पढ़ कर मेरी आँखों के सामने हमारे अपने देश की शिक्षा और शिक्षण की तस्वीर घूँम जाती है। फ़ाइनमैन ने बहुत से छात्रों को पीएच डी करने में भी सहायता दी।
व्यक्ति जब तक प्रश्न पूछता है उसका विकास होता है। बचपन से प्रश्न पूछने में उत्सुक फ़ाइनमैन को उनके पिता ने सदैव प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया। जीनियस बचपन में विचित्र व्यवहार करते हैं। जीनियस फ़ाइनमैन ने तीन वर्ष की उम्र तक एक शब्द न बोला था। सोचा जा सकता है उनके आसपास के लोग कितने परेशान रहे होंगे और उन लोगों की प्रतिक्रिया क्या हुआ करती होगी। इस शरारती बच्चे ने स्कूल में रहते हुए घर के लिए चोर पकड़ने का एलार्म सिस्टम बना लिया था। रिचर्ड फ़िलिप्स के माता-पिता धार्मिक प्रवृति के न थे और स्वयं उन्होंने खुद को नास्तिक घोषित कर दिया था। बहुत साल बाद जब उन्होंने पहली बार यहदी धार्मिक पुस्तक ताल्मुद देखी तो वह उन्हें एक वंडरफ़ुल किताब लगी। रिचर्ड से पाँच साल छोटा भाई हेनरी फ़िलिप्स कुछ सप्ताह बाद ही चल बसा। अपने से नौ साल छोटी बहन जुआन को उन्होंने पढ़ने के लिए खूब प्रोत्साहित किया और आगे चल कर वह एस्ट्रोफ़िजिसिस्ट बनी। बच्चा फ़ाइनमैन स्कूल से अधिक ज्ञान स्वाध्याय से प्राप्त करता था। उन्हें खूब स्कॉलरशिप मिलें। स्कूल में रहते हुए ही उन्हें न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी का मैथ्स चैम्पियनशिप प्राप्त हुआ। और प्रिंस्टन में जब उन्हें स्कॉलार्शिप मिली तो उसकी एक शर्त थी कि वे शादी नहीं कर सकते हैं। भला युवा ऐसी कोई शर्त कब मानता है। वे अपनी प्रेमिका एर्लिन से बराबर मिलते रहे। उन्हे मालूम था कि वह टीबी से ग्रसित है और मात्र दो साल जीवित रहने की आशा थी। फ़िर भी पीएच डी मिलते ही वे उससे शादी करने का इरादा रखते थे। उस समय यह एक लाइलाज बीमारी थी। फ़ाइनमैन तथा एर्लिन ने दो अजनबियों की उपस्थिति में २९ जून १९४२ को सिटी ऑफ़िस में शादी की दोनों के परिवार विवाह में अनुपस्थित थे।
शादी के बाद एर्लिन अस्पताल चली गई जहाँ उसके मिलने वे सप्तांत में जाते रहे। बाद में वे उसे न्यू मैक्सिको के सेनीटोरियम में ले गए। यहाँ भी अपने काम के बाद अपने दोस्त की कार उधार माँग कर वे उसे देखने जाते रहे। द्वितीय विश्व युद्ध काल होने के कारण वे अपनी बीमार पत्नी को जो भी खत लिखते उनको सेंसर किया जाता था, खोल कर पढ़ा जाता। इसलिए वे सेंसरशिप के बहुत खिलाफ़ थे। पत्नी को लिखे पत्रों से ज्ञात होता है कि वे उसे बहुअत प्रेम करते थे। १६ जून १९४५ को एर्लिन की मृत्यु हो गई। इसे पढ़ते हुए मुझे बार-बार हरिवंश राय बच्चन और उनकी पहली पत्नी की याद आती रही। हरिवंश राय बच्चन ने पत्नी की मृत्यु के बाद काव्य रचा। फ़ाइनमैन साहित्यकार नहीं थे उन्होंने अपनी पत्नी के नाम एक पत्र लिखा। १९४६ में पिता की मृत्यु के पश्चात फ़ाइनमैन अवसादग्रस्त हो गए। इसी अवस्था में उन्होंने अपने गहन प्रेम तथा दिल टूटने की भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए एर्लिन के नाम एक पत्र लिखा। पत्र लिख कर उन्होंने उसे सील कर दिया और निर्देश दिया कि उसे उनकी मृत्यु के बाद ही खोला जाए। उन्होंने यह भी लिखा, ‘इसे पोस्ट न करने के लिए कृपया मुझे माफ़ करो, लेकिन मैं तुम्हारा पता नहीं जानता हूँ।’ इसी के साथ यह पत्र समाप्त होता है। अपनी पत्नी से बेइंतहाँ मोहब्बत करने वाले फ़ाइनमैन वेश्याओं को बुलाते थे, छात्राओं के साथ सोते थे और अपने दोस्तों की पत्नियों को भी हमबिस्तर करते थे। उन्हें आश्चर्य था कि लड़कियाँ उनकी ओर क्यों आकर्षित हो जाती हैं। वैसे यह अनहोनी बात नहीं है। जीनियस का अपना आकर्षण होता है। ऐसा नहीं था कि केवल वे लड़कियों का फ़ायदा उठाते थे। लड़कियाँ भी उनका लाभ लेती थीं। कई तो झूठी गर्भावस्था का हवाला देती और कुछ ब्लैकमेल करने से भी न चूकीं।
फ़ाइनमैन फ़िजिक्स में जितना डूबी हुए थे, राजनीति में भी उनकी पैठ थी। और वे राजनीति का शिकार भी हुए, उन पर कम्युनिस्ट होने का आरोप भी लगा। बाद में, १९५२ में उन्होंने मेरी लुइस बेल से शादी की। वह सदा फ़ाइनमैन के भयंकर गुस्से से काँपती रही और उनका झगड़ा बराबर चलता रहा। झगड़े का एक कारण उनका विपरीत राजनीतिक विचारधार भी थी। भयंकर क्रूरता के आधार पर १९५८ में दोनों का तलाक हो गया। बीच में कई अन्य संबंधों के बाद १९६० में उन्होंने ग्वेनथ हॉवर्थ से शादी की। जिससे उनका एक बेटा कार्ल पैदा हुआ और उन लोगों ने एक लड़की मिशेल गोद ली।
फ़ाइनमैन फ़िजिक्स, अपने लेक्चर, अपनी किताबों के लिए तो जाने जाते हैं, इसके साथ ही वे अपनी चोखी टिप्पणियों के लिए भी खूब जाने जाते हैं। उनकी आत्मकथा ‘श्योरली, तू आर जोकिंग मिस्टर फ़ाइनमैन’ बेस्टसेलर साबित हुई। किताब पर कई लोगों को आपत्ति भी थी। फ़ाइनमैन अपनी विचित्र आदतों के लिए भी जाने जाते हैं। वे अपने दाँत साफ़ नहीं करते थे और दूसरों को भी इसकी सलाह देते थे। लेकिन अमेरिका ने अपने इस विशिष्ट नागरिक के सम्मान में डाक टिकट जारी किए। टिकट पर फ़ाइनमैन के फ़ोटो के साथ ही उनके आठ डायग्राम भी मुद्रित हैं। उनके नाम पर फ़ेरमीलैब में कम्प्यूटर बिल्डिंग है। वे काफ़ी समय से, सत्तर के दशक से ही बीमार थे। उनके पेट से फ़ुटबॉल के आकार का ट्यूमर निकाला गया था। १५ फ़रवरी १९८८ को पेट के कैंसर तथा किडनी फ़ेलैयर से उनकी मृत्यु हुई। उस समय उनके पास उनकी पत्नी ग्वेनथ, बहन जोआन और उनकी कजिन फ़्रांसेस लेवाइन थी। उन्हें विश्वास था कि वे अपनी सुनाई कहानियों के द्वारा जीवित रहेंगे जो वास्तव में सत्य साबित हो रहा है। मरते समय उनके शब्द थे, ‘मैं दो बार मरने से नफ़रत करूँगा। यह इतना अधिक बोरिंग है।’ फ़ाइनमैन से प्रेरित बिल गेट्स ने २०१६ में उन पर एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक है, ‘द बेस्ट टीचर आई नेवर हैड’। इसमें उन्होंने टीचर के रूप में फ़ाइनमैन की प्रतिभा का वर्णन किया है।
उनकी आत्मकथा ‘श्योरली यू आर जोकिंग मिस्टर फ़ाइनमैन’ पढ़ते हुए एक नटखट व्यक्ति की छवि उभरती है। एक-से-एक शरारत करते रहना उनका शगल था। विश्वास नहीं होता है को जो व्यक्ति आइंसटीन और बोर से साथ मिल कर एटम फ़िजिक्स पर गंभीर कार्य कर रहा था वही जूआखोरी पर भी आसानी से अपने विचार रखता है। जो न्यूक्लियर साइंस के रहस्य को भेद रहा है वही तस्वीरें भी बनाता है। न केवल तस्वीरें बनाता है, प्रदर्शनी में उन्हें बेचता भी है। सच में हर मेधाशाली व्यक्ति सनकी होता है। इस किताब को पढ़ कर उनकी उच्च बुद्धि, गुस्से और असीम जिज्ञासा का पता चलता है। वे जानना चाहते थे क्या वे अपने कुत्ते और अपने पद चिह्नों को कुत्ते की तरह सूँघ कर जान सकते हैं, और इसके लिए वे चौपाए की तरह जमीन सूँघते फ़िरते। अगर और मुसीबतों का अंदेशा न होता तो शायद वे नोबेल पुरस्कार भी ग्रहण नहीं करते, कई विज्ञान संस्थानों को तो उन्होंने ठेंगा दिखा ही दिया था।। कितनों की हिम्मत होती है नासा के इंजीनरों की गलती निकाल पाने की? किताब पढ़ कर लगता है, वे सच में मजाक कर रहे हैं। असल में जब वे मजाक कर रहे होते हैं, वे बहुत गंभीर बात कह रहे होते हैं।
फ़ाइनमैन एक अच्छे किस्सागो हैं। क्या कोई नोबेल प्राप्त व्यक्ति, फ़िजिक्स का प्रोफ़ेसर झूठमूठ को अगड़म-बगड़म बोल कर विदेशी भाषा बोलने का अभिनय कर सकता है? फ़ाइनमैन यह किया करते थे। मिमिक्री में उनका जवाब नहीं था। वे ड्रम बजाने में कुशल थे। अपने ड्रम बजाने वाले साथी राल्फ़ लिघटन को बोल कर ही उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखवाई है, वह उनका सह-लेखक है। वे ड्रम बजाना जानते थे, म्युजिक सुनते-बजाते थे लेकिन उन्हें अफ़सोस था कि वे म्युजिक पढ़ नहीं सकते थे। क्या चाहते तो वे यह नहीं कर सकते थे? उनके जैसे जीनियस के लिए यह कठिन न होता। वे सदा तरह-तरह की अनोखी बातें सीखने के लिए तत्पर रहते थे। लेकिन जिंदगी ऐसी ही होती है, आदमी चाह कर भी सब कुछ नहीं कर पाता है। जीवन के बहुत सारे, छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण गुर हम उनसे, उनकी किताब से सीख सकते हैं। निर्णय लेने में दिमाग की बहुत शक्ति खर्च होती है और वे अपनी दिमागी शक्ति महत्वपूर्ण कामों के लिए बचा कर रखना चाहते थे अत: कई महत्वहीन बातों के लिए उन्होंने निर्णय लेना जानबूझ कर छोड़ दिया। एक उदाहरण काफ़ी होगा, ‘कौन-सी आइसक्रीम खाई जाए?’ इस बात पर उन्होंने दिमाग खपाना छोड़ दिया और हर बार मजे से केवल चॉकलेट आइसक्रीम खाने लगे। इसी तरह उन्होंने तय कर लिया कि वे ‘कैलटेक’ संस्थान नहीं छोड़ेंगे, बहुत आकर्षक प्रस्ताव मिलने पर भी उन्होंने इस पर दोबारा न सोचा। एक और बहुत महत्वपूर्ण निर्णय उन्होंने लिए और उस पर अमल किया। उन्होंने तय किया की दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नहीं जीएँगे।
अपनी सफ़लता का उन्हें भान था लेकिन अपनी असफ़लता भी वे स्वीकारते हैं। उनमें कई कमियाँ थीं और इसे वे अपनी किताब में बताते हैं। वे स्वीकारते हैं कि उन्होंने ‘क्वांटम थियोरी हॉफ़-एडवाँस, हाफ़-रिटार्डेड पोटेंशियल’ पर बरसों काम किया लेकिन इसे वे न सुलझा सके। उन्हें यह बताने में कोई शर्म न थी कि वे बार से लड़कियाँ ले आते थे। किताब पढ़ने पर लगता है हम कोई कार्टून केरीकेचर पढ़ रहे हैं। बड़ी-से-बड़ी बात वे चुटकियों में कह डालते हैं। चुटकी बजाते उन्होंने लॉस एलामोस की गुप्त अलमारी खोल डाली, जहाँ एटम बम से संबंधित जानकारी रखी हुई थी। इसका जिक्र वे बड़े मजे में करते हैं। अंतरविषयी सेमीनार को वे ‘रोशे टेस्ट’ से भी बुरा मानते थे। वे अनुमान लगाने में खूब कुशल थे और कई बार अनुमान से ही कई समस्याओं को हल कर डालते थे। उन्हें मालूम था कि समस्या हल करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है, साथ ही विभिन्न तरीके भी आजमाने होते हैं। ताला खोलने में उन्हें महारत हासिल थी। गैब्रियल गार्षा मार्केस कहते थे अच्छा होता कि वे साहित्यकार न हो कर आतंकवादी बनते, फ़ाइनमैन यदि फ़िजिसिस्ट न बनते तो शायद चोर बनते। लेकिन सुरक्षित लैब की गुप्त अलमारी खोल कर उन्होंने सुरक्षा, कर्मचारियों से बातों को छिपाने और सेंसरशिप की पोल खोल दी। लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब वे फ़िजिक्स से चिढ़ गए और उन्हें आश्चर्य होता कि भला वे कैसे फ़िजिक्स का मजा लेते थे। वे इसका मजा लेते थे क्योंकि वे इससे खेलते थे।
ब्राज़ीलियन साम्बा बैंड में ड्रम बजाने वाले, जापानी भाषा सीखने का प्रयास करने वाले इस व्यक्ति की आदत वहाँ पहुँच जाने की थी जहाँ उसे होना नहीं चाहिए था। इतना ही नहीं वहाँ पहुँच कर वे मुँह बंद नहीं रखते, जो काम हो रहा होता उसमें पूरी रूचि लेते और उत्सुकता दिखाते। उन्हें स्वप्न विश्लेषण में भी खासी रूचि थी और काया पार जाने को भी वे अनुभव करना चाहते थे। गणित उनका एक प्रिय विषय था और वे चींटियों की चाल में भी रूचि रखते थे इसके लिए उन्होंने घंटों चीटियों का अध्ययन किया। वे जानना चाहते थे क्या चींटियों को ज्यामिती की समझ है। जाहिर है चींटियों का यह अध्ययन वे टेबल-कुर्सी पर बैठ कर नहीं करते थे। इसके लिए जमीन पर वे घंटों बैठे या लेटे रहते थे। वे वास्तव में चीजों को जानना चाहते थे। मौज के लिए उन्होंने फ़िलॉसफ़ी और बॉयोलॉजी भी पढ़ी। सामाजिक तौर-तरीकों की वे बहुत चिंता नहीं करते थे और इसी तरह के एक वाकये से उन्हें अपनी इस किताब का शीर्षक मिला। सम्मानित प्रिंसटन शिक्षा संस्थान के डीन की पत्नी ने एक बार उनसे पूछा, वे अपनी चाय नींबू के साथ लेंगे अथवा क्रीम के साथ। फ़ाइनमैन का तत्काल उत्तर था, दोनों के साथ। इस पर डीन की पत्नी ने हँसते हुए कहा, ‘श्योरली यू आर जोकिंग मिस्टर फ़ाइनमैन।’ उसकी हँसी से उन्हें मालूम हुआ कि उन्होंने कोई सामाजिक गलती कर दी है।
उनकी अन्य किताबें भी बहुत महत्व की हैं, खासकर फ़िजिक्स पर उनके लेक्चर। मैं जरूर कहूँगी कि अगर आपने ‘श्योरली, यू आर जोकिंग मिस्टर फ़ाइनमैन’ नहीं पढ़ी है तो अगली फ़ुरसत में अवश्य पढ़ लें।
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डॉ विजय शर्मा, 326, न्यू सीताराम डेरा, एग्रीको, जमशेदपुर – 831009
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