आम तौर पर विज्ञान को लेकर आम पाठकों के लिए कम किताबें लिखी जाती हैं. लिखी जाती हैं तो आम पाठकों तक उनकी सूचना पहुँच नहीं पाती हैं. फेसबुक पर भी बहुत लोग यह काम कर रहे हैं. ऐसी ही एक किताब ‘बेचैन बन्दर’ पर यह टिप्पणी लिखी है राकेश सिंह जी ने. वे पेशे से ओर्थोपेडीक डॉक्टर हैं, लेकिन पढ़ते हुए लगता है कि ज्ञान, विज्ञान, दर्शन के गहरे अध्येता रहे हैं. आप यह टिप्पणी पढ़िए और मौका मिले तो बाद में किताब भी- मॉडरेटर
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फेसबुक पर कुछ अच्छी बातें भी होती हैं। उनमें से एक हैं श्री विजय सिंह ठकुराय, जिनके विज्ञान आधारित हिंदी पोस्ट इतने रुचिकर एवम ज्ञानवर्धक होते हैं कि बस पूछिये मत। सर्च कीजिये और खुद परख लीजिये!
तो मित्रों और पाठकों के उत्साहित करने पर उन्होंने एक विज्ञान की पुस्तक लिखी और प्रकाशित की- बेचैन बंदर. विषय-वस्तु हैं ब्रह्मांड, पदार्थ, जीवन का उद्भव व विकास। कहना न होगा कि पुस्तक अमेज़न पर आई और मैंने मंगा ली। तीन दिनों में पढ़ भी ली।
मैंने समीक्षा लिखने का वादा किया था और यह है वह. रिव्यु लिखना थोड़ा मुश्किल काम है क्योंकि मैं पेशेवर नहीं हूँ। तारीफ करने बैठूं तो अन्त न हो। इसलिए तारीफ के अतिरेक से बचूंगा।
शुरुआत पुस्तक के कलेवर से। में सोच के बैठा था पॉकेट बुक टाइप होगी। बच्चों के टेक्स्टबुक साइज की निकली तो सुखद आश्चर्य हुआ। कागज और छपाई ठीकठाक है। आवरण भी। बाइंडिंग भी।
पढ़ने बैठा तो खंड 1 थोड़ा भारी लगा. बीच बीच में ब्रेक लेना पड़ता था सूचनाओं को प्रोसेस कर के जमाने के लिए, ओवर-हीटेड ब्रेन सर्किट्स को ठंढा करने के लिये । गो मैं जीवविज्ञान प्रवाह से हूँ, फिर भी भौतिक विज्ञान और रसायन शास्त्र मेरे लिए अजनबी नहीं हैं। चिकित्सा विज्ञानी होने के बावजूद भी मेरी रुचि विज्ञान के हर क्षेत्र में है। तो, खंड 1 बेहद रुचिकर और आसान है , पर इसे समय देना पड़ा । यह खंड ब्रह्मांड (universe) के बारे में है- उत्पत्ति , प्रसार, बिग बैंग, ब्लैक होल, आकाशगंगा वगैरह। आज तक की उपलब्ध तमाम जानकारियों का सारांश।
इसके बाद के खंड तो सर्र-सर्र करके कब खत्म हो गए पता ही नहीं चला। आखिरी पृष्ठ के बाद यूँ महसूस हो रहा था जैसे बेहद लज़ीज नाश्ता ख़त्म हो गया, न भूख मिटी, न मन भरा।
खैर, पेज 23 —- 2 up +1 down quarks=proton
1down + 2 up quarks = nutron ने उलझाया ।
खंड 2 यानी विकास (Evolution)
कुल सात छोटे छोटे अध्यायों में डार्विन के विकासवाद की रुचिकर विवेचना है।
बेहद रुचिकर , ब्रेन सर्किट्स बिल्कुल गर्म नहीं हुए। हो सकता है मेरे जीवविज्ञान प्रवाह के कारण। पर मुझे लगता है ये खंड मानविकी वालों के लिए भी मुश्किल नहीं।
चैप्टर 1 नेचुरल सिलेक्शन …..प्राकृतिक चयन …….इसे survival of the fittest के नाम से भी जाना जाता है, और यह प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता से नियत होता है। चैप्टर 2 म्युटेशन ——- क्या, कैसे और क्यों बिल्कुल ठीक। मेरी समझ में, इसमें आयोनाइज़िंग रेडिएशन, वायरस एवम स्ट्रॉन्ग केमिकल्स की भूमिका का समावेश होना चाहिए था। चैप्टर 3 में बताने की कोशिश है कि विकास के क्रम में अलग अलग जीव जंतु व उनकी प्रजातियां कैसे बनीं । चैप्टर 4 इस क्रमिक विकास के कुछ प्रमाणों की चर्चा है। एम्ब्रायोलॉजी का पॉइंट और 4 अरब वर्षों का इतिहास बिल्कुल सटीक है- यह मुझे दशावतार की याद दिलाने से कभी नहीं चूकता।
चैप्टर 5 is icing on cake —I totally vouch for it . We are very very good , very complex , but not the best specimen , not without fault . एक चिकित्सक होने के नाते मैं इनसे प्रतिदिन रूबरू होता हूँ ।
चैप्टर 6—— वानर से कब हम मानव हो गए? कम से कम प्राइमेट्स में सारी वर्तमान प्रजातियां समानांतर रूप से विकसित हुई और हो रही हैं। Bonobo की कमी खली ।
चैप्टर 7 मीनिंग ऑफ लाइफ- जीवन का उद्देश्य ——प्रकृति ने सिर्फ एक उद्देश्य नियत किया है—- जीवन को आगे बढ़ाना । Propagation-Continuation of life. Either through preservation of community, or preservation of self OR even at the cost of destruction of self. इसके आगे की सारी बातें हम इसलिए कर पाते हैं क्योंकि विकास के क्रम में हमारे मस्तिष्क ने एक, बल्कि दो वर्चुअल आइडेंटिटीज बना लीं जिन्हें हम दिमाग और मन के नाम से जानते हैं।
खंड 3 पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में बताता है । चार अध्यायों में बंटा यह खंड लाजवाब है । RNA, DNA, राइबोसोम, प्रोटीन, SEMIPERMEABLE मेम्ब्रेन, PROKARYOTE, EUKARYOTE, inclusion of one cell in another …….chloroplast & mitochondria……गागर में सागर।
Montmorillonite से मुझे Archeans की याद आ गई जब पहली बार उन्हें खोजा गया था। काफी नई चीजें मैने भी सीखी ।
चैप्टर 4 एक जटिल विषय को सरल बनाने की अच्छी चेष्टा है।
खंड 4 विज्ञान के विकास की बात करता है ।पहला अध्याय है विज्ञान का प्रारंभ- शीर्षक होना चाहिये था आधुनिक विज्ञान का प्रारंभ। जब आदि-मानव ने पहला पत्थर का औजार बनाया, तब वह भी विज्ञान था। और आग को न भूलें, और ये भी कि आदि-मानव ने जल-स्रोतों (water bodies) के साथ क्या और कैसा तादात्म्य बनाया ये हम बिल्कुल नहीं जानते, पर ये जरूर जानते हैं कि उसने दरियाओं को सर किया। उसमें भी कुछ विज्ञान रहा होगा।
दूसरा अध्याय है विज्ञान-विकास/इतिहास के मील के पत्थर, और कुछ बेहद रोचक प्रसंग यहां उद्धरित हैं जो मुझे बहुत पसंद आये ।
तीसरा अध्याय क्वांटम भौतिकी और चौथा अध्याय स्ट्रींग सिद्धांत- आधुनिक भौतिकी का सबसे चर्चित और आज की तारीख का आखिरी पड़ाव. कठिन विषय है लेकिन लेखक का प्रयास इसे सरल बनाने का रहा है, काफी हद तक सफल भी है। मूलतः इसमें पदार्थ के इलेक्ट्रान प्रोटोन नेत्रों से भी कुछ सूक्ष्मतर कणों/ऊर्जा-दोलनों से बने होने के सिद्धान्त को समझाया गया है। यदि आपको सर्न हैड्रन कोलाइडर जरा भी सुना सुना सा लगता है तो आप इन अध्यायों का आनंद उठा पाएंगे।
अध्याय 5 और 6 समानांतर आयाम की चर्चा करते हैं – कल्पना करने में ही मुश्किल होती है. एक सामान्य मष्तिष्क-क्षमता वाले मानव के लिए तो बहुत ही मुश्किल। एक राज की बात बताता हूँ …..हम डॉक्टर लोग पढ़ाई की शुरुआत में मुर्दा इसलिए चीरते हैं ताकि हम हर अंग को देख सकें और उनका एक त्रिआयामी चित्र अपने दिमाग में बिठा सकें। वरना, किताबों से तो सिर्फ दो- आयामी तस्वीर बन पाती है । पर 9 आयामों की कल्पना- बाप रे बाप !!!
खंड 5 के बारे में अंत में लिखूंगा।
खंड 6
मानव अस्तित्व संकट में है।
बिना शक!
सवाल यह है कि इस बारे में कितने लोग सोचते हैं?
पांचो विषयों पर बेहतरीन जानकारी दी गयी है, संक्षिप्त, सरस, सरल। ओजोन परत में छिद्र, ग्लोबल वार्मिंग, परमाणु बम युद्ध के परिणाम …….ये मानव निर्मित खतरे हैं। तो खतरे ब्रह्मांड से भी आ सकते हैं- उल्का , धूमकेतु , एस्टेरॉयड, और हमारे छोड़े गए उपग्रह भी।
और आखिरी खंड है सारांश ।
बहुत पहले एक किताब पढ़ी थी the naked ape- पूर्णतः जीवविज्ञान । इसमें भी मानव- उद्भव व विकास की ही बातें थीं । सटीक है शीर्षक the restless ape। पर सवाल यह है कि कितने apes रेस्टलेस, क्यूरियस हैं? मेरी समझ में काफी कम। एक बहुत ही नगण्य अल्पसंख्यक। जबकि फ्लेवर ऑफ द लास्ट टू सेंचुरीज डेमोक्रेसी ( = MOBOCRAZY )है।
अब खंड 5 पर आता हूँ। विज्ञान बनाम भगवान।
इस पर बहस करके आप और मैं जीत नहीं सकते। अध्याय बिल्कुल सरल, और सही, तर्कपूर्ण हैं। पर यहां मुकद्दमा न्यूटन बनाम मैक्स प्लान्क नहीं है। जब आस्था का प्रश्न आता है तो अच्छे भले जिज्ञासु भी जिज्ञासा भूल जाते हैं।
कभी पढ़ा था कि प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद से सबसे ज्यादा छपाई धार्मिक साहित्य की हुई है न कि वैज्ञानिक साहित्य की। आप एक विद्वतापूर्ण लेख लिखकर किसी आस्थावान को वैज्ञानिक नहीं बना सकते। और आज के समय में पक्ष-विपक्ष के तर्क सिर्फ न्यायालय (?) और विद्यालयों की वाद-विवाद प्रतियोगिता तक सीमित रह गए हैं। आज कल अर्थपूर्ण बहस-मुबाहिसे की जगह हिंसा और मुद्रा-हस्तांतरण ने ले ली है।
एक मुद्दा उठाया गया था धर्म के अनादर का। तो भैया, मुझे तो ये अनादर कहीं दिखा नहीं । किसी भी धर्म विशेष का। वैसे मैं ताली ठोक के कहता हूँ कि मैं विज्ञान में विश्वास करता हूँ और मेरा ये वक्तव्य ही अपने आप में सभी धर्मों का अनादर है। परंतु इस पुस्तक में, इस सामान्य धर्म विरोधी भावना के अतिरिक्त किसी धर्म विशेष या किसी धार्मिक-ऐतिहासिक व्यक्ति विशेष के बारे में कोई अपमानजनक उल्लेख नहीं दिखा। मुझे सोचना पड़ा कि ये आपत्तिकार पुस्तक को पढ़ के बोल रहे थे, या अफवाह फैला रहे थे?
अध्याय 1 बताता है कि मानव जाति ने विभिन्न भगवान और देवता कैसे रचे । ( बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ , हमने संतोषी मां को गढ़ दिया , साईं बाबा को देवता बना दिया और यह फिल्मी सितारों के मंदिर बनाने से सर्वथा भिन्न परिघटना है ) । अध्याय 2 वर्तमान-भूत -भविष्य बताने वाले ज्योतिष की पड़ताल करता है।
इस खंड में Behavioural science से जुड़ा एक मुद्दा है hallucination ….(अध्याय 3)……. और मुद्दे भी जुड़ने चाहिए …… Illusion , delusion , mass illusion , mass delusion , mass hysteria , mob psychology/mentality . गूगल का जमाना है, इनके बारे में पढ़िए और स्वयं चिंतन मनन कीजिये।
Hallucinogenic drugs जैसे कि गांजा, भांग। इनसे मिलती जुलती कई चीजें अलग अलग देशों में, प्राचीन एवं वर्तमान सभ्यताओं में उपयोग की जाती रही हैं धर्म के प्रचार प्रसार के लिए।
एक और मुद्दा है कि भगवान की परिकल्पना मनुष्य के लिए कितनी आवश्यक है ? (अध्याय 5) जवाब इन दो वक्तव्यों के बीच कहीं है ……डूबते को तिनके का सहारा (मेरा) और ……religion is opium for masses (Marx) . साथ ही इस बात को ध्यान में रखें कि बात जनमानस की हो रही है , intelligent brilliant geniuses की नहीं ।और जीनियस का दिमाग भी ज्यादातर एक दिशा में ही काम करता है । द विंची बहुत कम पैदा होते हैं।
बुद्धि की सीमा है,
इसलिए अनजाने का डर है,
इसलिए भगवान और आस्था हैं,
इसलिए धर्म हैं,
इसलिए धर्म के ठेकेदार हैं।
आगे कुछ कहने की आवश्यकता शेष नहीं।
विज्ञान, धर्म एवं दर्शन
सिर्फ इतना कहूंगा कि
सारे दर्शन सत्य की खोज में एक कदम हैं
विज्ञान एक दर्शन है
धर्म दर्शन नहीं है, न हो सकते हैं।
(अध्याय 4 का सार, मेरी तरफ से )
{एक दु:ख की बात ये है कि दर्शन शब्द सुना सभी ने है, परिचय बहुत कम लोगों का है }
अंत में, 33 अध्यायों की इस पुस्तक को कम से कम 33 दिनों में पढ़ें। अपने मनोमष्तिस्क की सीमा का आदर करें । विषय दुरूह है, और लेखक ने सरस बनाने की पूरी चेष्टा की गई है। फिर भी द्रुत-पठन में ओवरडोज़ और मदरबोर्ड के फायर हो जाने का खतरा है। आवश्यकतानुसार pleasure-break लें।
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