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एक भुला दी गई किताब की याद

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धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ को सब याद करते हैं लेकिन उनकी पहली पत्नी कांता भारती और उनके उपन्यास ‘रेत की मछली’ का नाम कितने लोगों ने सुना है? असल में यह उपन्यास टूटते-बिखरते दांपत्य को लेकर है. कहा जाता है कि आत्मकथात्मक भी है. आज उसी उपन्यास पर सपना सिंह जी ने लिखा है. यह उपन्यास राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है और अभी मैंने देखा कि अमेज़न पर उपलब्ध भी है.

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मै शायद तब बीए प्रथम वर्ष की छात्रा थी ।कोर्स के बाहर का सबकुछ पढ़ना एक बुरी आदत के तौर पर मेरे व्यक्तित्व का स्थाई हिस्सा बन चुका था ।बहुत कुछ अच्छा बुरा पढ़ने के बाद हाथ आई थी ‘गुनाहो का देवता ‘। ज्यादातर लोगों का साहित्य प्रेम इस किताब को पढ़कर अंखुआता है पर मुझे ये काफी बाद मे मिली। किताब का असर और स्वाद आकंठ मुझपर तारी ।मदहोशी के उस आलम मे नीबू पानी सी कोई फुसफुसाहट’ रेत की मछली ‘जरूर पढ़ना।

‘रेत की मछली ‘? ये क्या बला है ? ये ‘गुनाहो का देवता ‘की बात के बीच मे ‘रेत की मछली कहाँ से आ गयी।बात करने के लिए तो ‘गुनाहो का देवता’ ही काफी है ।बहुपठित, बहुचर्चित, लोकप्रिय, आलोचकों के आँख की किरकिरी फिर भी क्लासिक ।अब ऐसी किताब को छोड़ कर’ रेत की मछली  ‘की बात  करना और वो भी ‘गुनाहो का देवता का संदर्भ लेकर?
फिर पीछे चलते है ।’रेत की मछली ‘ जरूर पढ़ना , नहीं पता ये बात किसने मेरे कानों तक पहुँचाई पर उसी दिन से मै ‘रेत की मछली’ की तलाश मे जुट गयी थी।अपने शहर की हर लाइब्रेरी मे हर साहित्य प्रेमी के घर तलाशा।बस स्टेशनों से लेकर रेलवे के व्हीलर पर खोजा ।इलाहाबाद के ‘लोकभारती पर हर बार इलाहाबाद जाने पर गयी पर वहाँ भी आउट ऑफ स्टाॅक का जवाब  इन्तजार करता ।
जून 2010 मे इलाहाबाद एक शादी मे शामिल होने जाना पड़ा ।हर बार की तरह इस बार भी लोकभारती गयी ।आश्चर्य कि इस बार मुझे निराश नहीं लौटना पड़ा । लोकभारती ने अपनी कुछ पुरानी किताबों को पुनः प्रकाशित किया था ।उन्हीं मे ‘रेत की मछली’ भी एक थी ।किताब मेरे हाथ मे थी लगभग बाइस तेइस वर्ष के इन्तजार के बाद।वहीं कोई किसी से कह रहा था -कान्ता जी नहीं रहीं । कान्ता जी यानि कान्ता भारती! डा.धर्मवीर भारती की पूर्व पत्नी और शायद इस एकमात्र किताब की लेखिका ।
जाहिर सी बात है , वर्षो से जिस किताब को मै खोज रही थी , मिलते ही उसे आद्योपांत पढ़ा. बीस वर्ष पूर्व अगर ये किताब मिली होती तो इसका अनुभव अलग होता ।बीच के गुजरते वर्षों ने जिन्दगी और साहित्य की समझ को मेच्योर किया था ।पाठक के तौर पर भी लम्बा वक्त गुजर चुका था ।आश्चर्य बहुत कुछ पढ़ने के बावजूद (नयी कहानियाँ , कहानी , सारिका जैसी पत्रिकाएँ अपने बंद होने तक नियमित हमारे यहाँ ली जाती थी ) मैंने रेत की मछली ‘ पर लिखा हुआ कुछ भी नहीं पढ़ा ।शायद इसके प्रकाशन वर्ष के आगे पीछे इस पर कुछ लिखा गया हो पर आज के पाठक उस सबसे अनजान ही थे।
इस किताब और इसकी लेखिका पर साहित्य जगत की इतनी लम्बी चुप्पी की वजह शायद शायद ये भी हो कि लेखिका देश के एक ख्यात लेखक/संपादक की पूर्व पत्नी द्वारा अपने कड़वे दाम्पत्य पर लिखी गयी है और इसका महत्व’ भावुक भड़ास से ज्यादा नहीं समझा गया ।
साहित्य जगत मे लगभग हाशिए पर डाली जा चुकी इस कृति के लिए मेरा इतना सब करना (पहले ढूँढना फिर पढ़ना और फिर हद ये कि उसपर लिखना भी) शायद कुछ लोगों को अनावश्यक लगे पर अगर आपने 18-20 की उम्र मे गुनाहो का देवता पढ़ी हो , होश संभालने के साथ घर की बहुत जरूरी चीजों मे ‘धर्मयुग’ की आमद को शामिल पाया हो , इलाहाबाद की एक रोमानी छवि आपके ख्यालो मे भी कभी रही हो ,’आपका बंटी ‘ की भूमिका आपने पढ़ी हो ,’गालिब छूटी शराब’, और नंदन जी का ‘कहना जरूरी था ‘पढ़ा हो ।पुष्पा भारती और पद्मा सचदेव जी के स्नेह पगे आत्मीय धर्मयुगी संस्मरण, जो यदा कदा आज भी किसी न किसी पत्रिका मे विशेष आकर्षण के तौर पर छपते रहते है , आपकी नजरों से भी गुजरे हो तो ‘डा.धर्मवीर भारती जी ‘आपके लिए भी साहित्य के सूपरस्टार की हैसियत रख सकते है ।अब, सुपरस्टारो के प्रति आमजन मे कैसी जिज्ञासा या दीवानगी होती है यह कहने बताने की चीज नहीं ।बस वही आमजन मै भी थी ।
अब कुछ बाते ‘रेत की मछली की कथावस्तु के विषय मे -साहित्य के बिल्कुल नये पाठको को शायद यह एक साधारण उपन्यास लगे ।आत्मकथात्मक शैली मे लिखा गया यह उपन्यास वस्तुत: कान्ता जी की आत्मकथा ही माना गया ।’प्रेम’  ।परिवार के विरूद्ध जाकर किया गया विवाह ।जटिल और त्रारण दाम्पत्य, विवाह विच्छेद और अंत मे आजीविका के लिए दर दर की भटकन. जीवन के इन महत्वपूर्ण पडावों  पर शायद बहुत सारे पन्ने भरे जा सकते  थे, पर ये सब कुछ इस छोटी सी किताब मे समेट लिया गया है ।
प्रेमल दाम्पत्य के बीच अचानक कंटीली झाड़ सी उगी मीनल अपनी उपस्थिति से कुन्तल और शोभन का आपसी प्रेम ही नही सोखती , शोभन को कुन्तल के प्रति अतिशय निर्मम भी बना देती है।मीनल के प्रेम मे पागल शोभन का अपनी गर्भवती पत्नी के सामने उसी के बिस्तर पर सहवास करना नृशंसता की पराकाष्ठता है ।ये विवरण पढते हुए आप अपनी नसों मे कुन्तल की यातना को महसूस कर सिहर उठते है ।पाठक का गहरी वितृष्णा से भर उठना स्वाभाविक है।शोभन और मीनल का आचरण  ‘एवरी थिंग इज राइट इन लव एण्ड वार’ की युक्ति को सार्थक करता है पर जस्टीफाई नही कर पाता ।
यहाँ प्रेम अपने विध्वंस रूप मे सामने आता है ।येन केन प्रकारेण अपने काम्य को पा लेना ।छीन कर झपट कर किसी भी दूसरे की सत्ता को अस्वीकार कर, सिर्फ पा लेना ।शोभन कवि है , साहित्यकार है पर अपनी पत्नी के साथ उसकी असंवेदनशीलताउसके सामान्य मनुष्य होने पर भी संदेह जगाती है ।कोई प्रबुद्ध व्यक्ति इतना अन्यायी और हृदयहीन हो सकता है ये इस उपन्यास को पढकर जाना जा सकता है ।
‘रेत की मछली’ को पढ़ना कई अर्थो मे एक यातना से गुजरना है ।ये यातना तब और असहनीय हो जाती है जब इसे पढ़ते हुए आपके आदर्श ध्वस्त हो रहे हो ।इसमें संदेह नहीं कि ये रचना एकपक्षीय हो ।कोई भी विवाह अकारण या सिर्फ एक व्यक्ति की वजह से नहीं टूटता ।पति पत्नी दोनों का आपसी व्यवहार इसका जिम्मेदार होता है ।शोभन के व्यवहार का बारीक वर्णन है किन्तु कुन्तल की प्रतिक्रिया बिल्कुल संतुलित तटस्थ ।एक निर्विकार दृष्टा की तरह शोभन और मीनल की उच्श्रृंखलता को देखते रहना और इसे संस्कार का नाम देना समझ नहीं आता।
लेखक पत्नीयों ने जब भी अपने महान पतियो के संदर्भ मे कुछ लिखा है , साहित्य जगत मे उसे हाथों हाथ लिया गया है पर कान्ता जी की ये रचना शायद इसी कारण वश अंडर स्टीमेट की गयी ।बिना किसी पूर्वाग्रह के अगर इस रचना को पढ़ा जाये तो भी ये एक सम्पूर्ण रचना है ।आश्चर्य, इतनी महत्वपूर्ण रचना साहित्य जगत मे इस कदर उपेक्षित रही और रचनाकार चुपचाप दुनिया से कूच कर गया ।बिल्कुल वैसे ही जैसे कुन्तल चली गयी शोभन और मीनल के जीवन से ।
इस उपन्यास को पढ़ने के बाद जाने क्यों जब भी किसी ने कहा मैंने ‘गुनाहो का देवता ‘ पढ़ी है  ।मैंने पलट कर जरूर कहा , अच्छा ! ‘रेत की मछली ‘ भी पढ डालो।

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सपना सिंह
‘अनहद’  , 10/1467 ,
अरूण नगर, रीवा (म.प्र.)
486001
मोबाइल-9425833407

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