
आज कविताएँ पूजा प्रसाद की। पूजा पेशे से पत्रकार हैं। फ़िलहाल न्यूज़ 18 ऑनलाइन से जुड़ी हैं। लम्बे समय से इस पेशे में हैं। उनकी कविताओं में देखने का एक अलग नज़रिया लगा और कहन की एक अलग शैली। आप भी पढ़िए-
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अब धैर्य नहीं
उम्मीद, एक फुदकती चिड़िया
कौन साला इंतजार करे
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा
एक दिन वह बिना पिए घर जरुर आएगा
अपने सोते हुए बच्चों के सिर पर स्नेह से हाथ फिरा पाएगा
कहेगा, खाने को दो भूख लगी है
बिना उल्टी किए बिस्तर पर पसरेगा
और जूते उतार कर टीवी ऑन कर पाएगा
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा।
एक दिन नई वाली पड़ोसन भूल जाएगी पूछना
कि कौन कास्ट हो
वो आएगी, बैठेगी, और बतियाएगी
चीनी की कटोरी लेते में यह नहीं भांपना चाहेगी
कि कौन कास्ट हो
वह जान जाएगी कौन कास्ट हूं
और फिर चीनी ले जाएगी
कि एक दिन चीनी की मिठास मेरी कास्ट पर भारी पड़ जाएगी
पर कौन साला इंतजार करे…
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दवा
जख्म हों या खरोंच
उनका ठीक होना जरूरी है
ठीक होने के लिए
माफ करना जरूरी है.
सजा से भी बड़ी होती है माफी
जैसे अपराध पर हमेशा भारी पड़ती है ग्लानि
जो माफ नहीं करते
वो पाप करते हैं
क्योंकि जो जलाता है तुमको
वो जख्म नहीं होता…
क्योंकि जो मवाद होता है भीतर
वो चोट नहीं होती…
जख्म और चोट की एक ही दवा, साथी
माफी… बस माफी
माफी… बस माफी
जो माफ नहीं करते
वो पाप करते हैं
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कमबख्त
अपने सबसे बड़े दुश्मन को गले लगाया
सबसे अच्छे दोस्त को दी तिलांजलि
जब तमाम ऊबड़ खाबड़ रास्ते पार कर
मोहब्बत मुझ तक पहुंची
मैंने गला घोंट दिया उसका
बिना किसी ठहाके के
मैंने देखा खुद को आईने में
और ढूंढनी चाही वीभत्सता
ढूंढे साइकाइट्रिस्ट
और भरे उनके सभी क्वेश्चनेयर
फाड़े उनके नतीजे
और मन ही मन उन्हें धिक्कारा
उनकी डिग्री और डिप्लोमों को आग लगा देने की चाहत लिए
मैंने चाहा कि
कोई मुझे डिप्रेस्ड करार दे दे
कोई साबित कर दे मेंटल इलनेस
स्वाद और अहसास से बेपरवाह
लिए और दिए कुछ गीले, कुछ सूखे चुंबन
मैंने जानबूझकर दीं झूठी दिलासाएं
बोने दिए उन्हें बांझ सपने
मैंने फूंके मन
मैंने तोड़ीं उम्मीदें
उस शाम भी आईने ने
नहीं दिखाई क्रूरता
ओह वक्त, तुम बदलते तो हो
पर बीतते क्यों नहीं, कमबख्त
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राख
सीसीडी के सामने की सड़क पर
माथे पर बल लिए
जब तुम एक सेकंड में तीन बार
दाएं और बाएं और फिर दाएं
देखते हो
तब मैं तुम्हें घोल कर पी जाना चाहती हूं
और साथ ही साथ
ये भी चाहती हूं
कि माथे पर बल लिए
जब बेचैन आवाज में तुम फोन पर कह रहे हो मुझे
‘कहां हो तुम’
ठीक उसी समय
तुम्हारे दाएं हाथ की दो उंगलियों में फंसी बेजुबान आधी जल चुकी
बड़ी गोल्ड फ्लैक की निकोटिन बनना चाहती हूं मैं
चाहती हूं तुम्हारे गले के रास्ते फिसलूं
और समां जाऊं तुम्हारी छाती में
तुम्हें छलनी करने का भी श्रेय
कोई और क्यों ले
मैं हूं न
सीसीडी से दो फुट आगे खड़ी मैं
बस हंसना चाहती हूं
तुमसे मिलने की कोई जल्दी नहीं
मैं तो तुममें घुल जाना चाहती हूं
मुई निकोटिन बन कर
‘खी खी खी खी’
मेरी ‘खी खी खी खी’
जैसे तुमने सुन ली थी
तुम्हारे ललाट पर अब कोई बल नहीं
तुम तेजी से बढ़ रहे हो
सीसीडी की तरफ से होते हुए दो फुट आगे तक
और वो सिगरेट..ओह.. वो सिगरेट
जो सहमी सी उंगलियों में दबी थी
तुम्हारे होठों पर आखिरी बार आखिरी सांस लेने की इच्छा पाले थी
आधी उम्र मात्र में तुमने रोड पर फेंक दी थी!
कितने निष्टुर तुम
ओह कितने बेदर्द
क्या तुम जानते हो
तुम्हारी लत छुड़वाने के लिए
मुझे भी जाना होगा
किसी नशा मुक्ति केंद्र
‘अरे मैं बस आ ही तो रही थी, उस ओर’
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दो औरतें
बहुत प्यार आता है हर उस औरत पर
जो आवाज ऊंची कर
डबल विनम्रता से
शुद्ध मर्दों के घेरे में
घुसेड़ने की कोशिश करती है
बस अपनी थोड़ी सी बात
बस अपनी थोड़ी सी चिंता
बस अपनी थोड़ी सी जानकारी
प्यार तो उस पर भी आता है
जो चुनती है खामोशी
रखती है सिर ऊंचा
और नाक ज़रा ज्यादा ही पैनी
मगर रहती है चुप
करती है केवल खुद पर विश्वास
और करती है खारिज स्साला सारे ढकोसले
दरअसल कभी पढ़ा था उसने
‘मेरी पीठ पर सिर्फ मेरा ही हाथ है….’
औरतों की दुनिया की बातें जब होती हैं
मर्दों की दुनिया मचल मचल उठती है
जैसे कोई फेवरिट डिश
सामने आ पटकी हो
जैसे कोई बचपन की शरारत
बुढ़ापे में जीनी शुरू कर दी हो
बदलता तो वक्त है
बदलते नहीं हैं लोग
जहां होते हैं दलदल
वहां रहते ही हैं दलदल
साल दर साल
दशक दर दशक
मैं इंतजार करती हूं
जल्द से जल्द पीढ़ियां बदलने का
जल्द से जल्द जरूरत हो खतम
इन औरतों से एकस्ट्रा प्यार जताने की
जल्द से जल्द जरूरत हो खतम
ऐसी खामोशी और ऐसी डबल विनम्रता की
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