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युवा कवि शाश्वत की कविताएँ

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बनारस के युवा शाश्वत की कविताओं की तरफ़ युवा कवयित्री अनामिका अनु ने ध्यान दिलाया। ताज़गी से भरी ये कविताएँ साझा कर रहा हूँ-
=========================
 
1.छोड़े गये प्रेमी
 
छोड़े गये प्रेमी……
 
छोड़े गये प्रेमी खूब गज़ब होते हैं ,
उन्हें बिंधती है बड़े भाई की कटीली मुस्कान !
जगजीत सिंह जब गाते हैं, उन्हें बिराते हैं !
छोड़े गये प्रेमी
छोड़ते हैं रंग ,
अपनी ‘बाय थ्री गेट वन फ्री’ वाली टी शर्ट की तरह
कि जिसमें तीन अपने लिये,
एक उनके लिये ,
मात्र छः सौ निन्यानवे में
छोड़े गये प्रेमी
पूछ भी नहीं सकते कि
क्या तुम्हारी वाली टी शर्ट का भी छूट रहा है रंग ?
 
छोड़े गये प्रेमी
गांधी आश्रम के पर्स के मानिंद दोहरी सिलाई वाले होते हैं ! जिनमें होती है भरपूर जगह
भर-भर के प्यार भरा होता है
जिनमें होती है एक चोर पॉकेट
जिसमें छिपा कर रखते हैं
पहले दिन के कुरकुरे के पैकेट
आख़िरी दिन का छोटा रिचार्ज
दिलवाले की टिकट और
होने वाले बच्चों के नाम तक
 
छोड़े गये प्रेमी
जब-तब झिझोड़ते हैं चोर पॉकेट
टूटा दिल छुट्टे पैसों सा खनकता है
जो मोल न पाए
वह भी चुभता है
 
छोड़े गये प्रेमी देख तो चाँद तक सकते हैं
मगर नही देख पाते
बैग के दूसरी तरफ लगे
झन्नाटेदार चेन को भी
 
छोड़े गये प्रेमी
दो माह , तीन ट्यूशन के बाद
चांदी के पायल हो जाते हैं
झनक उठते हैं उसी पायल की तरह
जब भी देखते हैं ,
चालीस किलो की कोई भी झिलमिलाती लड़की ।
 
छोड़े गये प्रेमी
छोड़ते हैं खूब लम्बी साँस
और
पिघल कर महावर हो जाते हैं
 
छोड़े गये प्रेमी
छूटते तो नही हैं….
हाँ मगर,
छोड़ दिये जाते हैं…….!
 
 
 
2.आत्महत्या ऊपर उठती दुनिया की सबसे आखिरी मंजिल है
 
सात आसमानों के पार आठवें आसमान पर
जहां आकर चांद रुक जाता है
सूरज की रौशनी पर टूटे सपनों के किरचें चमकते हैं
दिन और रात की परिभाषायें रद्द हो जाती हैं
कि आत्महत्या
ऊपर उठती दुनिया की सबसे आखिरी मंजिल है
प्यार के भी बाद किया जाने वाला सबसे तिलिस्मी काम।
 
कोई है
जिसके पास बहुत कुछ
सुबहें उम्मीद से जगमगाई
शाम चांदनी की परत लिए हुए
मैं से हम होकर नूर बरसाता ख़ल्क़ पर
 
फिर किसी एक दिन
जब उसकी उम्मीद से जगर मगर सुबह को खींच कर
उसके शाम के चांदनी के परत को उतार कर
उसके मैं से हम हुये अस्तित्व को निथार कर
कोई और
अपनी सुबह शाम और खुद को रचता है
तो जानिए
प्यार के भी बाद किया जाने वाला सबसे तिलिस्मी काम है
आत्महत्या
 
मेरे दोस्त बेशक आपने प्यार किया होगा
प्रेम के गहनतम क्षणों से निवृत्त हो
मृतप्राय पड़े होगे
आपको लगा होगा
क्या यही जीवन है?
जीवन और मृत्यु के इतने करीब जाकर भी आप मरे नही
क्योंकि मरना सबके बस की बात नहीं
यह गले में सुईं चुभा कर थूक के साथ
क्रोध घोंटने की तमीज़ है
यह प्यार से भी आगे की चीज़ है
 
मुझे कुछ आत्महंताओ का पता चाहिए
मैं उनसे मिलना चाहता हूँ
शायद उन्हें जोड़कर कोई कविता बनाऊं
या फिर
आत्महत्या की भूमिका
नहीं नहीं!
मैं उनके मरने के ठीक पहले की बात जानना चाहता हूँ
यह भी जानना है कि इरादों की यह पेंग
कहां से भरी थी तुमने
 
क्या किसी बदबूदार सफ़ेदपोश की कार का धुंआ
तुम्हारे सपनों कर गया पेशाब
और तुम कुछ नहीं कर सके
 
क्या तुम्हें ऐसा लग रहा था कि
गांव के खेतों में खुल रही फैक्टरी का काला पानी
तुम्हारे बेटे की आंतें निचोड़ लेगा
और तुम कुछ नही कर सकते
 
या ऐसा की तुम्हारी बन्द हुई फेलोशिप
किसी सूट में सोने के तारों से नाम लिखवाने की बजबजाती सोच है
‘तुम कुछ नही कर सकते’ का नारा
जो बजता रहा उम्र भर
तुम्हें मूक होने के लिए उकसा रहा है
 
मैं कुछ आत्महंताओ से मिलना चाहता हूँ
आप मेरे भीतर का शोर दबा दें
आप मेरी सारी कविताएँ फूंक दें
या मुझसे स्तुति गान ही लिखवा लें
मगर मुझे उन आत्महंताओ का पता दे दें
जिनके पास प्यार करने का भी विकल्प था
पर उन्होंने नहीं चुना
 
वह तो चढ़ गये उस आखिरी मंजिल पर
जहां चांद रुक जाता है,
सूरज की रौशनी पर टूटे सपनों के किरचें चमकते हैं
दिन और रात की परिभाषाएँ रद्द हो जाती हैं
और रची जाती है
प्यार के भी बाद के तिलिस्म की भूमिका
सात आसमानों के पार आठवें आसमान पर…
 
 
 
3.ट्रेन साहब जी की बुलेट है।
 
ट्रेन साहब जी की बुलेट है
इसीलिए बस घण्टा घण्टा लेट है
सरापा युग बीता / पिता की पीढ़ी बीती
हफ्ते भर में ट्रेन का समय आंकते
कल समय से थी आज जरा सा लेट है
ट्रेन साहब जी की बुलेट है।
 
आँख आँख में सपने बेचे,
खूब तेज़ फर्राटा भर के
एक साँस में शहर नापेगी
कलकत्ते का जहर काटेगी
ओहि बुलेट रेलिया से धनिया
नइहर की धमकी टाँकेगी ।
क्योंकि भाई
ट्रेन साहब जी की बुलेट है
भले ही घण्टा घण्टा लेट है
 
तुम मूरख हो , घने विधर्मी
कइसे बुलेट ट्रेन बनाएं
कइसे धनिया को बिठलायें
खिड़की से जब पच्छम की
झनक झनक के हवा चलेगी
पल्लू तब सर पर न टिकेगा
बोलो सास बुरा मानेगी
टोला मे बदनामी होगी
कानों कानों बात उठेगी ,
बबुआ बो तो बड़ी ढीठ है
ट्रेन साहब जी की बुलेट है
इसीलिये तो घण्टा घण्टा लेट है ।
 
यू पी ने साहब को है गोद ले लिया
अब विधिवत होगा छठिहार ,
उठेगा सोहर , सजेगा घर
और उसी दिन
रेल खुलेगी फर्राटा
तो इसीलिये हाँ
शुभ शुभ दिन का वेट है
ट्रेन साहब जी की बुलेट है
इसीलिए तो घण्टा घण्टा लेट है
 
 
 
4.घर लौटना
 
त्यौहार में घर जाने वाले बच्चों की तरफ से
यह ख़त तुम्हारे नाम है मेरे गांव मेरे घर….बड़का घर।
 
मैं इस त्यौहार
शहर के किसी किनारे पर बैठ कर
तुम्हारे सपने देख रहा हूँ
मैं बार बार तुमको याद कर रहा हूँ
मुझे तुमसे मिलना है मेरे घर
अभी के अभी मिलना है
मेरे गांव,
तुम तो शहर भी नही आ सकते
शहर ही आ रहा अब तो तुम्हारे पास
 
सुबह दस बजे की आखिरी जीप के पेंग में
लोहे की खट्टी गन्ध के साथ
जब से शहर आया हूँ,
रोज़ सपने में कभी रेलगाड़ी आ जाती है,
तो कभी सड़क के मोड़ वाला जनरल स्टोर,
जहां के पटाखों से जले कई बार मेरे हाथ
 
यहां शहर में एक नदी है
लेकिन मछलियां नही हैं मेरे गांव।
यहां शहर में बैठने की जगह है
लेकिन पैर पसारने का सुकून नही है।
यहां शहर में कभी भी कहीं भी जा सकते हैं
लेकिन यह शहर कलमुहाँ,
तुम जैसे हाथ पकड़ कर नहीं ले जाता बाज़ार ।
 
मुझे यहां तुम्हारी याद आती है मेरे घर
त्यौहारों में तो रो देने का मन करता है।
 
सब याद आने लगते हैं
कैसे हर बार डांट पर
तुमने मुझे रोने के लिए सीढियां खोल दीं।
मुझे छुपने के लिए दीवारों में अलमारी गढ़ दी।
और तो और मेरे नवीं क्लास के प्यार में,
मेरे ग्रीटिंग्स तक तुमने ऐसे छुपा लिए अपने छत की गोद में,
जैसे तुम्हारा अपना अनचाहा गर्भ हो।
 
मुझे इसलिए बस इसलिए तुम्हारे पास आना है मेरे घर, मेरे गांव,
कि मैं,
जो तुम्हारे छत से उन उड़ती जहाजों की जलती-बुझती बत्तियां गिन लेता था,
उन जहाजों का ठिकाना जान गया हूँ
वो ठीक इसी शहर में आकर उतरती हैं।
 
मेरे घर,
बस यह त्यौहार तुम मुझ बिन मना लो,
अगले त्यौहार
जहाज से आऊंगा।
ठीक तुम्हारे बगल से जहाज लाकर धप्पा बोल जाऊँगा
तुम डर जाओगे और मैं वैसे ही हंस दूंगा,
जैसे बिन बात हंसते-हंसते तुम्हारी फर्श पर गिर कर
मेरे दांत गये थें टूट
मेरे घर,
आज न मालूम क्यों तुम्हारी बहुत याद आ रही
 
त्योहार में घर जाने वाले बच्चों की तरफ से
यह खत तुम्हारे नाम है मेरे गांव मेरे घर… बड़का घर।
 
 
 
 
5.’स्कॉउट की अनजानी गांठ
 
मेरी बाहें तुम्हारी डोर से सजकर सुंदर,
और
मन समंदर हो गया है ।
 
मेरी बच्ची ,
मुझे याद है अधपके करौंदे ,
जिन्हें बांटते वक़्त हर बार मैं भाई संग
तुमसे करता रहा बेईमानी
चीज़ें बहनों से बराबर बांँटनी चाहिए
समझा अब जाकर
 
मुझे याद है ,
क्या बेजोड़ डांटा था मैंने
जब कॉलोनी के किस्सों को चाव दे रही थी तुम ।
 
मुझे याद है ,
जब उठ रहा था बड़ी बुआ का शगुन,
और तुम नाचते नाचते
धप्प से रुक गई
कि मैं किसी काम से कमरे मे आ गया था ।
 
मुझे याद है ,
मेरी आँख दिखाने भर से….
तुम बाल बांध कर कॉलेज जाती ।
तुम बाइक पर एक तरफ बैठती ।
तुम फोन को हाथ भी नहीं लगाती ।
और ओढ़नी,
ओढ़नी तो जैसे गाय का पगहा !
 
आह !
न जाने हर रोज की कितनी बातें / डांट
मुझे आज पीड़ा रहे हैं
यह
सबके लिये सबक हो .
इन
सबके लिये क्षमा करो मुझे ।
 
पर मेरी बच्ची
आज डोर बांधते वक्त तुमने जिस अदा से हाथ घुमा कर
स्काॅउट की न मालूम कौन सी गांठ लगाई है.
समझो की मैं झूम गया भीतर तक.
 
मेरी बच्ची
मुझे सिखाओ ,
मै सीखूंगा
फिर
जोर लगाऊंगा
ऐसी ही एक गांठ लगाने की सूरज पर
की छन के आये रौशनी तुम तक.
 
मेरी बच्ची मुझसे नजर मिलाओ
अबकी छोटी बुआ के शादी में हम झमक कर साथ नाचेंगे
कॉलोनी के किस्सों को साथ बाचेंगे.
तो दे ताली !
तीज से कोहबर लिपान तक करो स्वीकार मुझे
मेरी बच्ची
मुबारक हो डोरी का त्यौहार…..
तुम्हारी डोर से मेरी बाहें सुंदर
और
मन समंदर हो गया है……
 
 
 
6.जब दुनिया बनी
 
जब दुनिया बनी
सबसे पहले बने मिठाई बनाने वाले
हाथों में भर भर के
चीनी की परत
परत भी ऐसी वैसी नही
एकदम गूलर का फूल छुआ के,
जितना खर्च हो उतना बढ़े ।
उंगली के पोरों में घी का कनस्तर
कनस्तर भी वही गूलर के फूलों वाला।
आंखों में परख
परख भी एकदम पाग चिन्ह लेने वाली.
ओह्ह
इतने सब के बाद
बोली तो मीठी होनी ही थी
सो भी है.
लेकिन कलेजा ?
मठुस हलवाई कहीं का.
बचपन में ही काले रसगुल्ले की कीमत
आसमान पर रखे था
सात रुपया पीस.
आते जाते स्कूल
मन मार कर साइकिल चलाते लड़कों में
नोकरी की पहली ललक तुम्हारे रसगुल्ले के रेट ने ही तो लगाई
सात रुपया पीस ।
रसगुल्ला है की कलेजे का टुकड़ा तुम्हारे.
और समोसा
वह भी हर साल एक रुपये महंगा.
बहाना तो देखो
महंगाई बढ़ रही.
लौंगलत्ता तो ऐसे
जैसे सोखा का लौंग डाले हो ओझइती करके.
क्या सोचे हो
की शो केश के उस पार की सारी मिठाई तुम्हारी बपौती है?
सो तो हैं ।
लेकिन,
एक दिन जब होंगे लायक
तो जरूर देह में घुल चुकी होगी चीनी की परत
जिंदगी उबले हुए आलू को सोख रही होगी
और ज़बान में लड़खड़ाहट भी होगी
 
फिर भी,
किसी दिन आ कर
तुम्हारे दुकान की सारी मिठाई खा जाएंगे
फिर देह में घुल चुकी शर्करा के पार जा कर
भगवान से आश्वासन लेंगे
कि
अगली बार
लड़की बनाना
जिसके पिता और पति दोनों की
अपनी मिठाई की दुकान हो.
 
 
 
 
7.इजाजत
 
अब इजाजत दे दो मेहरम
इसलिए कि मुझे लग रहा कि
तुम्हारे देश की दिशाओं ने भरम बना दिया है
तुम रोज जिधर से आती हो
वही पूरब है क्या?
 
तुम्हारे देश की सुबह दोपहर शाम बस नीली और गुलाबी
के बीच फंसी जा रही
मौसम सुहाना है या खराब
समझ में आता नहीं मुझे
 
तुम्हारे देश के लीचियों में मुझे स्वाद नही मिल रहा
तुम हो कि उन्हें स्ट्रॉबेरी बता रही हो
 
तुम्हारे देश के लोग अब तेज़ चलने लगे हैं मुझसे
तुम भी तो भागती ही जा रही हो मेहरम।
इसलिए अब इजाजत दे दो।
 
देखो
जाते जाते ही जा पायेगा कोई भी
वैसे भी
एक ही बैग है
कपड़े रखें की यादें सहेजे
समझते समझते कई अनर्गल दिनों से रुके हैं तुम्हारे देश
 
बरसों कहीं रह कर
रच बस कर
लोग कैसे चले जाते हैं मेहरम ?
मुझसे तो बैग भी नही हिल रहा
जबकि इसमें सिर्फ गर्मियों के कपड़े हैं
 
फिर किताबें तो उठने से रही मेहरम।
और उन पुरस्कारों का क्या
जो अभिकल्पन, स्पंदन, अकादमियों में जीते गये हैं।
वो तो टूट जाएंगे स्टेशन से पहले ही।
तुम रख लेना,
घर पर कह देना कि रूपा या सबीना का है
नाम थोड़े लिखा है।
 
सोचे हैं,
एक बार और आ जाएंगे
बर्तन, पंखा, गद्दे लेने ।
सालों साल सिर्फ तुमसे ही हुई दोस्ती
किस जूनियर को दे देता
मगर कोई है भी तो नहीं
कोई मजलूम भी नही मिला मुझे आज तक तुम्हारे देश में मेहरम।
सब तुम सरीखे किसी दूसरे से प्यार करके खुश हैं
 
खुद से प्यार करने वाले बहुत खुश रहते हैं मेहरम।
मगर जानती हो,
दूसरों से प्यार करने वालों का देश खुश रहता है
 
आह…!
तुम्हारा देश मेहरम।
हम इससे सीख नही पाए दूसरों से प्यार करना
इसलिए इजाजत लेनी होगी
 
जाने को आसान बनाना कोई खेल नही मेहरम
कविता लिखनी पड़ती है
पढ़ो, पढ़ कर विदा दे दो
 
उस मन को विदा दे दो
जिसके चंचलता में तुम्हारे शहर के लड़कपन ने चिंगोटी की है।
उस सपने को विदा दे दो
जिसके पूरा होने पर सबसे सुंदर मंदिर में बिन नहाए गये
 
उस प्यार को विदा दे दो
जो व्हाट्सएप से हाथ की छुवन तक आया और होंठ नही बन सका
उस गुस्से को विदा दे दो
जो तुम्हारे इन्तज़ार से पनपता और
और तुम्हारे सुन्दर मुँह को सोच कर उड़ जाता
दूर अमलतास की टहनियों पर
 
जब सबकी हो रही है विदाई
तो
उस लड़के को भी जाने दो
जिसने
तुम्हारी कल्पना कर के तुम्हें मेहरम माना है
जो तुम्हारे साथ कभी रहा ही नहीं
जो अगले शहर में फिर यूं ही फिदा होगा
खुद पर
क्योंकि उसके शहर में
खुद से प्यार किया जाता है
दूसरों से नही।
 
 
 
 
8.मेरी उम्र के लड़के
 
लड़के जो पढ़ने के साथ सोचते भी हैं
सोचते हैं
दोस्तों में बने रहने का तरीका
या कैसे हाथ मिलाएं की कुर्ते की फ़टी कांख ना दिखे।
तभी तो सहपाठी को भी
हाथ जोड़कर आप कहते जाते हैं लड़के
 
लड़के,
महीने भर का हिसाब लगा कर पैसे वाले दिन
अपनी दोस्त से मिलना चाहकर भी
फोन देखते ही स्क्रीन गार्ड पर आह भरते हैं
मगर फिर ,
टूटी स्क्रीन के साथ साझा सेल्फी ड्राइव में भेजते ही
समय आने पर फ्रेम कराने का सोचते हैं लड़के
 
उठते बैठते,
रंगीनियत आंखों में धँसाकर
लड़के
सपनो में इठलाते हैं
 
वे सोचते हैं अपनी प्रेमिका को किसान
जब गांव मे आलू की मेढ़ काढ़ लेते हैं
कि
पी ओ में सलेक्शन सोच कर प्रेमिका को
महँगी साड़ी में सोचते हैं
 
रोज़ क्लास से लॉज की दूरी में
नौकरी से इंटरव्यू देने तक को सोचते जाते हैं लड़के
 
लड़के
रात तक पूरा डेटा खर्च करने के बाद
अपने सबसे धनी दोस्त को ‘तुम’ में सँवादित कर
खुद में खुश होते हैं
कि
मेरा बेटा भी होगा उसके जैसा ही
सबका दोस्त
और ऐसे ही सहज सीधा ।
 
 
लड़के जो पढ़ने के साथ सोचते भी हैं
 
 
 
 
9.लोरियों के देश में
 
सो जाओ
यहाँ लोरीयों के देश में
चांद अब आरे पारे नही आता
ना तो सोने की कटोरी में दूध भात लेकर आता है कोई
यहां कोई हाथ अब तकिया नही बनता
दादियों ने सारी कहानियां बीच में ही रोक दीं हैं
 
सो जाओ
इसलिए भी,
कि कहानियों के बीच में रुकने से
मामाओं के घर का रस्ता भूल गये हैं हम
 
मैं तुम्हे वीडियोकॉल पर
इधर उधर की बातें कर के सुला रहा हूँ
सो भी जाओ अब
 
मैं कमजोर भाग्य का नवजवान
जिसने लोरीयां तो खूब सुनी हैं
खूब सुनी है कहानियां भी
मगर याद कुछ भी नही।
फिर भी मुझे पूरा यकीन है
कि
उस सफेद बाल वाली
बूढ़ी महिला की आवाज में एक जादू था
उसके बाहों में रुई के फाहे रहे।
उसके थपकियों में नींदघर की दस्तक थी
जिसने किसी भी कहानी का अंत नही होने दिया।
हर शाम
वह उसी कहानी को नए किरदार गढ़ के आगे बढ़ाती रही
तो
इसलिए भी
कि जिंदा रहे किरदार तुम्हारा
 
यहां लोरीयों के इस देश में
तुम वीडियो कॉल पर
मेरी बातें सुन कर
उधर इधर की
सो जाओ।
 
 
 
 
10.सुनो कवि एक कविता लिखो
 
सुनो कवि,
एक कविता लिखो.
सबके किये पर लिखना
शाम के छींटाकशी पर कुछ लिखना सबसे पहले
फिर,
भोर में जागे रहे,
उसका साफ़ साफ़ कारण.
किसी लिखे को पढ़ कर बढ़ी धड़कन
का सबसे पहला जवाब जब छाप लेना काग़ज़ पर
तो कवि,
सबसे ज़रूरी शख़्स को लिखना दिल की बातें
उसको गलियाना मन में.
उसका मुँह नोच लेना ले जा के नींद के वन में.
उसको भाग्यहीन कहना.
फिर धीरे धीरे,
उसपे आ रही दया को दुआ करना.
उसपे आ रहे ग़ुस्से को कपूर समझ कर हवा कर देना
और आख़िरी में
सबको माफ़ कर देना.
क्यूँकि,
 
बड़ी लड़ाईयों में,
सच के साथ रहना होता है.
सच कह कर चुप हो जाना होता है,
साबित नहीं करना होता.
 
 
 
 
11.मुट्ठी भर माटी
 
आदमी को गढ़ते-गढ़ते
एक रोज़ थक कर ईश्वर ने
मुट्ठी भर मिट्टी एक तरफ रख दी
 
रोज़ थकने के बाद वह ऐसा करता रहा
रोज आदमी गढ़ता
थकता और मिट्टी किनारे रखता
 
आदमी गढ़ता है ?
हां ,
सुबह नहा धो कर
 
जैसे चाय वाला बनाता है चाय
स्कूल जाता बच्चा जैसे सजाता है बैग
या आकाशवाणी पर
राम चरित मानस सुनने बैठते हैं जैसे बाबा
आदमी ही गढ़ना तो काम है ईश्वर का
 
रोज के कुम्हारी में बना मैं
उसी में बने चांद सूरज
बल्कि उसी में बने मम्मी , पापा और
वह नेता भी जिसके कुर्ते पर कई दाग है।
 
लेकिन तुम सभी बच्चे
तुम सब के सब
किनारे की मिट्टी हो
उसी से बने हैं किनारे
समय के सहारे
 
लेकिन तुम सब ढूंढ़ते क्या हो ?
क्या तुम्हें टूटी केन में वही मिठास मिलती है ,
जिसकी कड़वाहट के साथ एक पीढ़ी रसहीन हो गयी
या
खोजते खोजते
प्लास्टिक के बीच शीशा
तुम गढ़ते-गढ़ते कचकड़ होते जा रहे
 
ओह्ह
अब समझे
तुम मीर हो
और तुम्हारी बहन मीरा
दोनों मिल कर ‘भगवान’ को खोजते हैं
ढेरों – ढेर, घरों – घर, दुकानों – दुकान।
 
अब तो ज़रूर
पृथ्वी पर ही है देवता.
वही रखता है
किनारे मुठ्ठी भर मिट्टी,
वहीं चढ़ती जाती है परतें
वहीं बनती है लोई
कभी वह नेता
कभी पापा
कभी कोई
 
कभी कोई ..
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