Quantcast
Channel: जानकी पुल – A Bridge of World Literature
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1574

जीवन के तमाम उतार चढ़ावों को दर्शाती एक महत्वपूर्ण फिल्म

$
0
0

कोरियाई फ़िल्म ‘Spring, Summer, Fall, Winter and Spring’ की यह समीक्षा लिखी है सैयद तौहीद शाहबाज़ ने। समीक्षा पढ़कर 2003 में आई किम कू डुक इस फ़िल्म देखने की ख़्वाहिश जाग उठी-

=================

पर्वतों के मनोरम दृश्यों के बीच बसे बौद्ध मठ में आपका स्वागत है। यह मठ अपने आप में खास है, क्योंकि यह दिलकश तालाब के ऊपर रखे एक बेड़े में बसा हुआ है। इस मठ का लोकेशन आपका दिल मोह लेता है। एक वृद्ध बौद्ध भिक्षु अपने अनुभवों और ज्ञान को नई पीढ़ी के प्रतिनिधि यानी बाल बौद्ध भिक्षुक तक पहुंचाने का जतन कर रहा है।

बुज़ुर्ग भिक्षु की शिक्षा चार ऋतुओं के विस्तार में फैली हुई है। प्रकिया जो गुज़रते वक्त के साथ बढ़ती ही जानी है। विद्यार्थी अभी सीख ही रहा है, शिक्षा पूरी नहीं है। ज्ञान को उतना ग्रहण कर नहीं पाया है। उसके व्यक्तित्व में खुरदरे कोने हैं, ज़ाहिर है अनुभवों की कमी है।

बात कोरियाई फिल्म ‘Spring, Summer, Fall, Winter and Spring’ की. जोकि दिलचस्प रूप से चार मौसमों के विस्तार में फैली हुई कथा सामने रखती है। फिल्म के पहले हिस्से वसंत में बालक और बुज़ुर्ग दोनों जंगलों में जड़ी-बूटियां खोजने जाते हैं। ताकि बीमार या तकलीफ होने पर इनका उपयोग किया जा सके। खोज-खोज में बच्चे को एक बदमाशी सूझी।

खेल में वह ज़िंदा मछली को पत्थर के टुकड़े से बांध देता है, मेंढ़क को इसी तरह बांधकर छोड़ देता है। फिर एक सांप को भी पत्थर के टुकड़े से बांध कर सबकी तकलीफ पर मुस्कुराता है। वृद्ध बौद्ध, बालक की इन सब गलतियों को करीब से जान चुका था। वह मन ही मन बच्चे को इसका एहसास कराना चाहता था। अगली सुबह बच्चा पीठ से पत्थर बंधा हुआ पाता है। बुज़ुर्ग उसे उन सभी जन्तुओं को खोजकर रिहा करने को कहता है, जिन्हें पत्थर से बांध छोड़ दिया था उसने। बुज़ुर्ग उसे कहता है,

जाओ उन्हें रिहा करो, ईश्वर ना करे उनमें से कोई मर गया हो। ऐसा हुआ तो सारा जीवन इसका संताप तुम्हारे सीने को जलाता रहेगा। यह कड़ी सीख बच्चे के दिल ओ दिमाग में बैठ जाती है।

गर्मियों का मौसम है, छोटा बालक बढ़कर युवा हो गया है। बाहरी दुनिया को लेकर हमारी रूचियां इसी समयकाल में जन्म लेने लगती हैं। किशोरावस्था बेहद चंचल हुआ करती है। एक माँ अपनी किशोर बेटी को लेकर उस बौद्ध मठ में आती है। दोनों चिकित्सा व परामर्श के लिए यहां आए हैं। एक हम उम्र लड़की को अपने मठ में देखकर युवा किशोर के मन में तरंगें शोर कर रही हैं, वह अति उत्साहित है। ज़ाहिर है वह दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं।

युवती के सम्पर्क में आने से युवक की दबी हुई इच्छाएं प्रबल होने लगती हैं। नतीजतन बांध टूट जाते हैं, अपने किशोर छात्र के इस गलती पर अनुभवी गुरु सिर्फ उसे भविष्य के लिए तैयार रहने को कहता है। क्योंकि मोह माया की गिरफ्त में आने के अपने परिणाम होते हैं। बहरहाल मां-बेटी चिकित्सा उपरांत मठ से चले जाते हैं। युवती के साथ अपनी कहानी पूरी करने के लिए युवा मठ छोड़कर चला जाता है। प्यार की लगन उसका आकर्षण उसे ऐसा करने करने के लिए मजबूर करता है।

वृद्ध भिक्षुक अपने साथ के लिए एक सुंदर सी सफेद बिल्ली को बेड़े पर लेकर आता है। अपने युवा संगी के चले जाने बाद से वह एकदम अकेले हो गए थेल इसी बीच अपनी खोज में असफल होकर युवा मठ में वापस आ जाता है। वह क्रोध से ग्रस्त लौटा है। दुनिया के मामलों से पीड़ित होकर, पराजित होकर बेचैन लौटा है। युवक के क्रोध को शांत करने के लिए वृद्ध उसे काम सौंपता है। उसे बौद्ध धर्म सूत्रों को तब तक लकड़ी पर उकेरना है जब तक मन की ज्वाला शांत न हो जाए।

वह ऐसा ही करता है लेकिन युवक की खोज में पुलिस मठ तक आ जाती है। शायद वह अपराध करके यहां आया था। पुलिस उसे अपने साथ ले जाती है लेकिन उन उकेरे गए सूत्रों के आदर में काम खत्म होने का इंतज़ार बाद की कार्रवाई करती है। इस पूरे दृश्य में पुलिस का अच्छा किरदार निकल कर आता है। बौद्ध धर्म के उच्च शिक्षाओं का यह प्रतीक सा था।

जाड़ों का मौसम है, वृद्ध भिक्षुक अब केवल यादों में हैl वह हमेशा के लिए दुनिया को खैरबाद कर चुका है। अब मठ की ज़िम्मेदारी उम्र में अनुभवी हो चुके वयस्क नौजवान के कन्धों पर है। वह बरसों बाद मठ को लौटा है। चीज़ों को नए सिरे से शुरू करने का दायित्व उसके उपर है। समय में पीछे छूट जाने के बाद फिर से नई शुरुआत करना बेहद कठिन हुआ करता है लेकिन मठ का नया मुखिया इसका सामना करता है।

हालातों के मुताबिक खुद को ढालने के लिए वह बर्फ की चादर से ढकी हुई तालाब के उपर मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग जारी रखता है। इसी बीच एक चेहरा ढकी हुई महिला अपने नवजात शिशु के साथ मठ के प्रांगण में दाखिल होती है। नवजात को मठ को सौंप कर बर्फ की ढकी चादर में गोता लगाकर जान दे देती है।

जीवन के तमाम अनुभव देख लेने बाद वयस्क भिक्षुक करुणा की देवी की वंदना की ओर आकृष्ट होता है। करुणा की देवी की प्रतिमा को रस्सी से बांध कर पर्वत की चोटी पर स्थापित कर आता है। खुद दूर दूसरे छोर से देवी में ध्यान लगा कर बैठ जाता है। वह तमाम दुखों से मुक्ति के लिए करुणा देवी की शरण में आया है। समाधि से उठने बाद वह वापस मठ को लौट आता है। वह ईश्वर की दी हुई चारों ऋतुओं को फिर से जीना चाहता है, सौभाग्य से ऐसा कर पाता है।

फिल्म शिक्षा-दीक्षा के सतत चक्र पर समाप्त होती है। किरदार बदल गए हैं लेकिन चक्र नहीं बदला, गुरु बदल गए हैं छात्र बदल गए हैं। अब वयस्क स्वयं गुरु की कुर्सी पर हैं जबकि मठ का नया मेहमान उसका छात्र। फिल्म जीवन के सकाात्मक चक्र पर समाप्त होकर जीवन के गतिमान होने का बड़ा संदेश दे जाती है। जीवन के तमाम उतार चढाव को दर्शाती एक महत्वपूर्ण फिल्म जिसे हम सब को देखना चाहिए।

जीवन के अनुभवों का इस किस्म का दस्तावेज़ बहुत कम मिलता है। ऋतुओं की पृष्ठभूमि पर हमारे अनुभव कितने अलग हो सकते हैं फिल्म को देखकर समझ आता है। बौद्ध धर्म की शिक्षा को आत्मसात करने वाली ऐसी फिल्में कम बनी हैं। यह निश्चित ही कोरियाई फिल्मकार “किम कू डुक” का बेहतरीन शाहकार है।

पर्वतों के बीच बसे इस सुंदर मठ का दृश्य मन मोह लेता है, कुछ ऐसा कि हमारा ध्यान वहीं जमा सा दिया जाता है। फिल्म की खूबी है कि सारे घटनाक्रम एक ही फ्रेम में घटित होते हैं। ऋतुओं का आना जाना और जीवन पर उसका प्रभाव बहुत रोचक तरीके से दिखाया गया है। फिल्म अपने पीछे जीवन का महत्वपूर्ण संदेश छोड़ जाती है। पात्र, हालात, कहानी दृश्य संयोजन अदाकारी सबकुछ सटीक हैं. सबसे ज़रूरी बात दर्शकों को कुछ देकर जाने वाली फिल्म ही नहीं जीवन में सीख का महत्व बताने वाली फिल्म है।

passion4pearl@gmail.com

=====================

दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें

https://t.me/jankipul

The post जीवन के तमाम उतार चढ़ावों को दर्शाती एक महत्वपूर्ण फिल्म appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1574

Trending Articles