Quantcast
Channel: जानकी पुल – A Bridge of World Literature
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1574

ईद पर सुहैब अहमद फ़ारूक़ी की ग़ज़लें

$
0
0
आज ईद है। मुझे कल चाँद दिखते ही ईदी मिल गई थी। भाई सुहैब अहमद फ़ारूक़ी ने अपनी ग़ज़लें ईद के तोहफ़े में भेजी। आप लोगों को भी ईद मुबारक के साथ साझा कर रहा हूँ- मॉडरेटर
==============
 
1
 
रफ़्ता रफ़्ता ख्वाहिशों को मुख़्तसर करते रहे
रफ़्ता रफ़्ता ज़िन्दगी को मुअतबर करते रहे
{मुख़्तसर= संक्षिप्त, मुअतबर=विश्वसनीय}
 
इक ख़ता तो उम्र भर हम जानकर करते रहे
फ़ासले बढ़ते गए फिर भी सफ़र करते रहे
 
ख़ुद फ़रेबी देखिए शम्एं बुझाकर रात में
हम उजालों की तमन्ना ता सहर करते रहे
{ख़ुद फ़रेबी=स्वयं को छलना, ता सहर= प्रातः तक}
 
हम सफ़र जा पहुँचे कब के मंज़िल-ए-मक़सूद पर
हम ख़यालों में तलाश-ए-रहगुज़र करते रहे
{मंज़िल-ए-मक़सूद=गंतव्य, लक्ष्य रहगुज़र= मार्ग}
 
वो भी कुछ मसरूफ़ था ए दोस्त कार-ए-ज़ीस्त में
हम भी अपनी ख़्वाहिशों को दरगुज़र करते रहे
{मसरूफ़=व्यस्त, कारे ज़ीस्त=जीवन-कर्म, दरगुज़र=अनदेखा कर देना}
 
पुर्ज़े पुर्ज़े करके उस ने यूँ दिया ख़त का जवाब
मुदत्तों तक उसका मातम नामाबर करते रहे
{नामाबर=संदेशवाहक}
 
चारागर तो कुछ इलाज-ए-दिल न कर पाए सुहैब
हम मरीज़-ए-दिल, इलाज-ए-चारागर करते रहे
{चारागर=चिकित्सक, यहाँ प्रेमी}
**************************
 
2
 
दिलों के राज़ सुपुर्दे हवा नहीं करते
हम अहले दिल हैं तमाशा बपा नहीं करते
(अहले दिल=दिलवाले, बपा=बरपा करना. हंसी उड़वाना)
 
कभी गुलों की वो ख़्वाहिश किया नहीं करते
जिन्हें अज़ीज़ हैं काँटे गिला नहीं करते
(गुल=फूल, अज़ीज़=प्रिय, गिला=शिकायत)
 
हमारे नाम से ज़िन्दा है सुन्नत-ए-फ़रहाद
हम अपने चाक-ए-गिरेबाँ सिया नहीं करते
(सुन्नत-ए-फ़रहाद=फ़रहाद(शीरीं प्रेमी-युगल) की परम्परा/उसका तरीक़ा, चाक-ए-गिरेबाँ=फटा हुआ गिरेबान)
 
दिलों में आए कहाँ से यक़ीन की तासीर
दुआ तो करते हैं, दिल से दुआ नहीं करते
(यक़ीन की तासीर= विश्वास की प्रभावशीलता)
 
यह इश्क़ विश्क़ का चक्कर फ़क़त हिमाक़त है
ज़हीन लोग हिमाक़त किया नहीं करते
(फ़क़त=मात्र, हिमाक़त=मूर्खता, ज़हीन=मनीषी,प्रबुद्ध)
 
हमारे तीर को तुक्का कभी नहीं कहना
हमारे तीर निशाने ख़ता नहीं करते
(ख़ता=चूकना)
 
ये फूल इन पे चढ़ाते हो किस लिए लोगो
शहीद ज़िन्दा हैं उन का अज़ा नहीं करते
(अज़ा=शोक)
 
वो ख़ुशनसीब हैं रब ने जिन्हें नवाज़ा है
ख़ुदा का शुक्र मगर वो अदा नहीं करते
 
दिलों के दाग़ से रोशन है आलम-ए-हस्ती
दिलों के दाग़ कभी भी छुपा नहीं करते
(आलम-ए-हस्ती=संसार का अस्तित्व)
 
जहाँ में उनको मिलेगी न मंज़िल-ए-मक़सूद
जो रस्म-ओ-राहे मुहब्बत अदा नहीं करते
(मंजिल-ए-मक़सूद=अभीष्ट/लक्ष्य, रस्म-ओ-राहे मुहब्बत= प्रेममार्ग की परम्परा)
 
सुहैब ढूँढिये शायद कि राह निकले कोई
फ़क़ीह-ए-शहर तो सब से मिला नहीं करते
(फ़क़ीह= धर्मशास्त्री, फ़क़ीह शब्द के उत्पति अरबी शब्द फ़िक़ा से है)
********************************
 
 
3
 
ये कैसा तग़ाफ़ुल है बता क्यों नहीं देते
होंटों पे लगा क़ुफ़्ल हटा क्यों नहीं देते
(तग़ाफ़ुल=उपेक्षा, क़ुफ़्ल=ताला)
 
जो मुझ से अदावत है सज़ा क्यों नहीं देते
इक ज़र्ब मेरे दिल पे लगा क्यों नहीं देते
(ज़र्ब=घात, वार)
 
दुश्मन हूँ तो नज़रों से गिरा क्यों नहीं देते
मुजरिम को सलीक़े से सज़ा क्यों नहीं देते
 
किस वास्ते रक्खे हो इसे दिल से लगाए
चुपचाप मिरा ख़त ये जला क्यों नहीं देते
 
माना कि यहां जुर्म है इज़हारे मुहब्बत
ख़ामोश निगाहों से सदा क्यों नहीं देते
(सदा=आवाज़)
 
इस दर्दे मुसलसल से बचा लो मुझे लिल्लाह
जब ज़ख्म दिया है तो दवा क्यों नहीं देते
(मुसलसल=निरन्तर)
 
नफ़रत तुम्हें इतनी ही उजालों से अगर है
सूरज को भी फूंकों से बुझा क्यों नहीं देते
 
शोलों की लपट आ गई क्या आपके घर तक
अब क्या हुआ शोलों को हवा क्यों नहीं देते
 
अब इतनी ख़मोशी भी सुहैब अच्छी नहीं है
एहबाब को आईना दिखा क्यों नहीं देते
(एहबाब=मित्र, सम्बन्धी)

The post ईद पर सुहैब अहमद फ़ारूक़ी की ग़ज़लें appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1574

Trending Articles