वंदना राग के उपन्यास ‘बिसात पर जुगनू’ पर यह टिप्पणी राजीव कुमार की ने लिखी है। उपन्यास राजकमल से प्रकाशित है-
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“हम सब इत्तिहाद से बने हैं। हम सबमें एक दूसरे का कोई ना कोई हिस्सा है। इंसान इस सच से रू – ब – रू हो जाए तो नक्शों में बनी सरहदों के बावजूद न कहीं जंग होगी न कोई नफ़रत और लालच की इंतेहाई दास्तान।”
नक्शे, सरहदें, शांति, लघु जीवन और कला की एकरूपता से सजी है नई पुस्तक “बिसात पर जुगनू” और इन सूत्रों से एक महाकाव्य का औेदात्य लिए उपन्यास का कथा – संसार रचा है वंदना राग ने।
बिसात पर जुगनू इतिहास का होकर भी किसी खास कालखंड के बड़े नायकों की दास्तां नहीं है। काल अवधि जो बताई गई, उस अवधि का इतिहास नहीं, बल्कि उस दौर का जीवन है। जीवन करीब – करीब साधारण वर्ग का प्रतिनिधित्व करनेवाले छोटे सरदारों का। ऊंचा प्रबुद्ध और शासक वर्ग कहानी में आता तो है लेखिका उसे अपना स्नेह नहीं देती । उसका इस्तेमाल सिर्फ कथा प्रवाह बनाए रखने और कथा के विस्तार के लिए किया जाता है। जीवन दो बड़े देशों हिंदुस्तान और चीन के दो सुदूर और औपनिवेशिक कोलाहल से दूर शहरी जीवन में फैला है ।
बड़े नायकों का निषेध और जुगनुओं की चमक से बड़ी कहानियों को औपनिवेशिक अंधेरे में कह सकने की सामर्थ्य लेखिका के प्रयास को अनायास ही बड़ा आकार दे देती है। हिंदुस्तान और चीन दोनों एक ही साम्राज्यवादी शासक ब्रिटिश सत्ता से शासित हैं। अफीम युद्ध, ताईपिंग विद्रोह, हिंदुस्तान का सिपाही विद्रोह की पृष्ठभूमि रखी गई है और मंझोले और छोटे शासकों में शामिल उनके मुलाजिमों का जीवन। यही जीवन ब्रिटिश शासन का प्रतिनिधि आम जीवन भी था। धीरे धीरे आपकी धमनियों में जागीरदार और छोटे कश्कारों का जीवन , उनके सपने, उनकी हार, उनका अधूरा त्रासद रिश्ता छोटे वर्गों के लोगों के साथ, उतरता चला जाएगा और उपन्यास एक त्रासद युग को आपके सामने खोलता जाएगा।
महत्त्वपूर्ण स्त्री पात्र
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स्त्री पात्र इस उपन्यास की जान हैं। वे कहानी की नायिका ही नहीं, कहानी पर अपनी पकड़ कहीं कमजोर नहीं करती हैं। खदीजा बेगम का किरदार वंदना राग की नायाब शाहकार हैं जो कला, प्यार और इंतजार में चुपचाप किस्सों की बली चढ़ गईं। “खदीजा बेगम बहन के दुलार भरे स्पर्श से संभल गई और कुछ दिन और जीने की दौड़ में शामिल हो गईं। ज़िन्दगी इंतजार का ही तो सबब है। बहादुर खदीजा बेगम, शंकर लाल की हमकदम, अमर लाल की मां, सज्जन लाल की दादी, चित्रकार खदीजा बेगम, उस्ताद खदीजा बेगम। कमरे में बेतरतीबी से रखी गई मुसव्विर खाना की हर तस्वीर ने खदीजा बेगम को चुमकारा, पुचकारा, दुलारा और कहा ” हम भगोड़े मर्दों की क्या जाने ? हमारे लिए तो तुम ही मां और तुम ही बाप।”
जिस आम जीवन का प्रतिनिधित्व यह उपन्यास करता है उस आम जीवन में औरतों की सामाजिक स्थिति दोयम दर्जे की होती है। पर वंदना राग के नारी पात्र ऐतिहासिक अवसरों के दोहन का भव्य उदाहरण पेश करते हैं।
स्त्रियों को इतिहास के उस कालखंड में उन क्षेत्रों में दखल देती हुई सिरजती हैं लेखिका जो परंपरा से पुरुषों के अधिकार क्षेत्र रहे। पेंटिंग जैसी कला में बेपर्दा स्त्री का मुसव्विर खाना में प्रवेश युग प्रवर्तक उपलब्धि है:
“इस मनःस्थिति में उसे पता भी नहीं चला कब एक नई घटना ने इतिहास के पन्नों पर अपनी जगह बना ली थी —— उस दिन जब मुसव्विर खाना के शागिर्दों ने अपने बीच एक बेपर्दा औरत को तन्मयता से चित्र बनाते साथी शागिर्द के रूप में स्वीकार किया था। मुसव्विर खाना का यह सुनहरा दौर था। और कला बाजारों के कानों में कोई मुसाफिर चुपके से कह रहा था, यह मानीखेज सच।”
खदिजा बेगम का उस्ताद, प्रेमी और पति जो पटना कलम को ज़िंदा रखता है, उसकी अंततः अमानवीय समाप्ति की दास्तां विचित्र है। आप पूरे उपन्यास से गुजरते हुए इस स्थिति की कल्पना नहीं करते और यह भयावह घटना जिस तरह से घटती है वो आपको उस युग में सीधे लेे जाकर पटक देती है, जहां कला किस तरह औपनिवेशिक ताकत के सामने निरूपाय हो जाती है।
कैंटन में एक चीनी व्यापारी पटना में बनाए चित्रों की मांग करता है। शंकर लाल जो पटना कलम का मुख्य सचेतक और चित्रकार है, अपनी प्रेमिका और शागिर्द के जीवन – डोर से बंधी त्रासद मृत्यु की तरफ बढ़ता है। जहां अपने ही बनाए चित्रों की तस्करी का आरोप उस पर लगता है और कारागार में उसकी मौत होती है। उसका रोम रोम तक झल्ला देनेवाला पत्र उपन्यास को शीर्ष देता है। जहां युगों तक परिश्रम से संजोई कला दुखद अंत को प्राप्त होती है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण स्त्री पात्र है परगासो दुसाधन। जंगल की कठोर ज़िन्दगी में पली, सब्जी बेचकर गुजारा करती उसकी तमाम रिश्तेदार औरतें , तलवार की धार पर मौत और ज़िन्दगी से सामना। लेखिका का दिल बसता है परगासो में। भरपूर जगह मिली है इस नायिका को पूरे कथा – वितान में । यह स्त्री पात्र गहरी छाप छोड़ती है अपनी अंत तक की निभाई गई वतन परस्ती और प्रेम के अद्वितीय निर्वहन में । भरोसा परगासो के लिए कई देवताओं से बड़ा ईश्वर था, जिनके गीत भगत चाचा गाता था और जिन्हें बचपन में ही दफन कर दिया था उसने। सुमेर सिंह, जागीरदार, जिसे वो तकदीर और इतिहास के जबड़े से अपने लिए छीन लेती है का भरोसा ही उसका ईश्वर है।
परगासो ने एक तरफ जंगल की लड़ाई सीखी है तो दूसरी तरफ उसने मिट्टी खोदी है, बचपन से। पौधे उगाए हैं। जीवन को पनपते देखा है। खुरदरी मिट्टी से एक एक कोमल हरे पत्ते का निकलना देखा है। वह दोनों की तासीर जानती है।
फतेह अली खान जो नक्शा नवीश है और ‘बिसात पर जुगनू’ का सबसे महत्त्वपूर्ण पुरुष पात्र उसका पूरा जीवन और कारुणिक अंत परगासो के किरदार को सहयोग देने के लिए ही है। परगासो को पुत्र भी वही चीन से लाकर देता है, वह परगासो के पति सुमेर सिंह के जीवन के लिए अंत तक प्रयास करता है, गढ़ी जो जागिर दारी व्यवस्था का बेहतर वर्णित मेटाफर है, की बेहतरी की दुआ करता है और परगासो को पूरे फिरंगी शोषण तंत्र जो हिंदुस्तान और चीन में फैला हुआ है के बारे में भी बताता है। चाय और रेशम पर उनकी गिद्ध निगाहें थीं और फिरंगी नोचने में बहुत उस्ताद थे। 1870 के पत्र में फतेह अली खान परगासो को कैंटन से लिखे पत्र में कहता है ” अब चीनी अफसरों से ज़्यादा अंग्रेजों को अपने व्यापार की बाबत मनाना पड़ता है, वरना वह जहाज से माल उतरने ही नहीं देते हैं।”
उपन्यास का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
चीन का एक ऐतिहासिक सत्य अपनी त्रासदी के साथ वर्णित है। मंचू शासकों ने अपनी बेवकूफी और बुजदिली से फिरंगियों को इस देश पर कब्ज़ा दे दिया था। समूची कौम गुलाम हुई जा रही थी। चिन का यह विकराल ऐतिहासिक सच वहां के जीवन को खत्म कर देता है।
‘बिसात पर जुगनू’ की पृष्ठभूमि में चीन के दो अफीम युद्ध, तायपिंग विद्रोह और हिंदुस्तान का 1857 का गदर या सिपाही विद्रोह है। कथा इन्हीं बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के इर्द – गिर्द घूमती है। नायक और नायिका और सहयोगी चरित्र के रूप में वे किरदार हैं जो इन घटनाओं में सक्रिय भाग लेनेवाले लोगों, या उन लोगों में से हैं जिनके ऊपर इन घटनाओं का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है।
पहला अफीम युद्ध 1839 में शुरू हुआ। यह युद्ध अफीम के गैरकानूनी व्यापार के मुद्दे पर लड़ा गया । कैंटन जो कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का मुक्त व्यापार केन्द्र था यहां से चीनी तस्कर इसे चीन के अंदर के भूभागों और प्रांतों में पहुंचाते थे। 1833 के चार्टर एक्ट में ईस्ट इंडिया कंपनी का अफीम व्यापार करने का अधिकार छीन गया। चीन के शासक ने कैंटन से सारे अफीम के गोदामों को ज़ब्ती के आदेश दे दिए। यह आदेश भी पारित हुआ कि अफीम के व्यापार में हुए हर्जाने की भरपाई के लिए उन्हें चाय दे दिया जाय। दोनों तरफ से सैन्य अभियान करने का दवाब बढ़ता जा रहा था जिसके फलस्वरूप 1840 में युद्ध हो ही गया जिसमें ब्रिटिश समुद्री जहाजों और जंगजुओं ने विजय प्राप्त की। युद्ध की समाप्ति पर नानकिंग की संधि हुई। अंग्रेजों ने इस संधि से अपार धन संपदा मुआवजे के तौर पर पाई और ब्रिटिश राज्य की शक्ति में भारी इजाफा हुआ। द्वितीय अफीम युद्ध 1856 में लड़ा गया। इसमें भी चीनी सेना को जबरदस्त पराजय मिली। तेंतसिन की संधि (26 जून 1858 ) से चीन के सम्राट को बहुत अधिक मुआवजा देना पड़ा और अफीम का पूरा व्यापार जो वैसे भी अंग्रेजों के ही आधिपत्य में था उस वैधानिक मान्यता देनी पड़ी।
इन ऐतिहासिक घटनाओं की पृष्ठभूमि में चीन का तत्कालीन जीवन शामिल किया गया है। अफीम, मछली, नक्शा, कॉन्ट्रैक्ट लेबर, साम्राज्यवादी शोषण की अलोम हर्षक कहानी, बंदरगाहों का व्यापार, विद्रोह के आदर्श, सौन्दर्य और धर्म के प्रति आग्रह, स्त्रियों की स्थिति आदि चीन की कहानी को नया आयाम देते हैं। लेखिका का वर्णन सजीव है और वह बारीकियों में गई हैं। चीन के जीवन का वर्णन उपन्यास के उत्कर्ष स्थल हैं।
ताइपिंग विद्रोह चीन में 1850 से 1864 तक हुआ। इसका नेतृत्व होंगे जिंकुआन ने किया। उपन्यास की एक महत्त्वपूर्ण स्त्री पात्र होंगे कि सहयोगी और प्रेमिका के रूप में दिखाई गई है। जो अपना पुत्र चिन फतेह अली खान को सौंपती है। ताईपिंग विद्रोह किंग राजवंश के विरुद्ध था। कहते हैं इसमें दो करोड़ लोग मारे गए। बाद के कम्युनिस्ट विद्रोह और छापामार बगावतों की प्रेरणा ताईपिंग विद्रोह से ही प्राप्त हुई है। हर नागरिक को सैन्य प्रशिक्षण दिया गया था और हर ने इस हैं विद्रोह में हिस्सा लिया। विद्रोह का नायक होंगे कहा करता था कि उसने स्वप्न में देखा है कि वह इस मसीह का छोटा भाई है। हॉन्ग ने ताईपिंग नैसर्गिक साम्राज्य की नींव डाली और नानजिंग को इसकी राजधानी बनाया।सन यात सेन और में जेडोंग के लिए ताईपिंग विद्रोह के क्रांतिकारी आदर्श हैं। विश्व इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी के यह सबसे बड़े युद्धों में से एक है ।
1857 का सिपाही विद्रोह और उससे जुड़े जीवन संघर्षों की दास्तां इस उपन्यास का हृदय है। कुंवर सिंह का जगदीशपुर छांव देता है और चांदपुर की रियासत पूरी कहानी के केंद्र में है। पटना का कमिश्नर और नक्शा नवीसी, पटना कलम आदि संस्थाएं उपन्यास की सिर्फ पृष्ठभूमि है नहीं बनाती हैं बल्कि उपन्यास की आत्मा वहीं बसती है।
पात्रों की जद्दोजहद
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नक्शा नवीस फतेह अली खान का गढ़ी, परगासो और यू – यान के लिए समान रूप से मानसिक आग्रह अद्वितीय ढंग से वर्णित है। हिंदुस्तान और चीन दोनों जगह दो महत्त्वपूर्ण पात्रों के जीवन उसका किरदार गूंथा हुआ है।
“मैं कैसे बदल दूं इबारतें? कैसे बताऊं दुनिया को की मुल्क में एक परगासो बीबी होती हैं और चीन में एक यू – यान बीबी। दोनों की ज़मीन कितनी अलहदा और फितरत कितनी एक सी। ये बहादुर औरतें जंग में कितना कुछ हर गई है, लेकिन फिर भी मुल्क की बेहतरी की चिंता करती है। मैं इनकी तरह फिक्र क्यों नहीं कर पाता हूं? मेरे लिए मुल्क के मायने वहीं क्यों नहीं, जबकि सरहदों की जुबान मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता। क्या मैं यतीम रहा इसलिए? क्या मैं कायर हूं?”
ली – ना , जो कथा को आधुनिक संदर्भों से जोड़कर अलग मायने देती है, पटना आर्ट कॉलेज में रखे हुए चित्रों को देखने की इजाज़त मांगते हुए वक़्त गंवाती है। समर्थ लाल, जो पटना कलम के आज के खानदानी वारिस हैं, उसे बता नहीं पा रहे थे कि इस देश में कितनी लालफीताशाही है, कितनी धांधली और चोर बाजारी। बहुत दिन गुलाम रहने से यह सब हो जाता है। एक गैरजरूरी चालाकी सबके जेहन में ऐसे समा गई है कि क्या किया जाए।
ली – ना ही वह सूत्र जोड़ पाती है जो कैंटन के संग्रहालय में रखे चित्र और पटना के आर्ट कॉलेज में रखे पेंटिंग में संबंध स्थापित कर पाता है। दोनों जगह चित्र चिन का है जिसे फतेह अली खान ने बनाया था। ली – ना समर्थ लाल के माध्यम से इस संबंध को साबित करने में कामयाब होती है। फतेह अली खान ने एक ऐसा सूत्र दिया आनेवाली पुश्तों को , जिसने रिश्तों की कई परतों को धूप से उजाले में साफ किया। उपन्यास अपनी पूर्णाहुति कला , प्रेम और शांति में पाती है। उपन्यास की यज्ञ वेदी दो मुल्कों में फैली अनुभूतियों को हवि के रूप में ग्रहण करती है। लेखिका की साधना अपना प्राप्य फलीभूत के निकस पर पहुंचती है।
मैंने अपने बचपन के शहर की कला – शैली पटना कलम की तर्ज पर यह तस्वीर बनाई है फतेह अली खान कभी यह जीता है। फतेह अली खान के किरदार की बनावट यतीम खाने के जीवन से। लेखिका का अली खान के किरदार को अनूठे ढंग से साधना। यतीमखाने की बगल में ही था वह मुअज्जिज मुसव्वीर खाना जहां फिरंगी भी तालीम पाने आते थे।
ताईपिंग विद्रोह के बाद चीनी मर्द अमेरिका रेल बिछाने के काम में मजदूरी के लिए लेे जाए गए थे। कैंटन से फतेह अली खान लिखते हैं चारों ओर फिरंगी और फ्रांसीसी हैं। कल तक एक दूसरे को देखना नहीं चाहते थे। व्यापार में कट्टर दुश्मन बने हुए थे लेकिन आज साथ साथ हो गए हैं। पूरी तरह से। बच्चे चिन की मां तायपिग विद्रोह जो मानचू राजा के खिलाफभुआ था और जिसमें हांग लड़ा था, उसमें यू – यान शामिल थी। उसका बच्चा वो हिंदुस्तान लाना चाहता है।
यू यान नहीं चाहती उसका बच्चा अमेरिकी मजदूर या चीन में ही अफीम पीता हुआ एक बीमार आदमी बने। वह फतेह अली खान को अपना बच्चा हिंदुस्तान ले जाने के लिए सौंपती है। वो डरती है या तो राजा के आदमी इसे मार देंगे या अंग्रेज़ इसे अफीम का आदि बना देंगे। अंदर ही अंदर संगीत सा बजता हुआ, दबा हुआ सौन्दर्य और प्यार का तिलिस्म यू – यान ने अपने बेटे चिन को अपने मौन प्रेमी को सौंपा। वो लेे जा रहे हैं हिंदुस्तान में चीन का एक टुकड़ा। उधर सुमेर सिंह का बच्चे को देख उपजा आह्लाद पूरी गढ़ी को रोशन कर रहा था। और पर्गासो बीबी का आंचल यूं ही नहीं भिंगा जाता था। बरसों से संचित ममता आंखों के रास्ते नमक बन बह रही थी।
स्मृतियां ली – ना की ताकत है। उसने अपनी इस ताकत को कम उम्र में पहचान लिया था और पृथ्वी को सहेजने की मुहिम में लग गई थी। वह कोंग्जी के देश से अाई थी, बुद्ध को प्यार करती थी और पृथ्वी को बचाने की बात करती थी।
कथा में एक जहाज “सूर्य दरबार” बार बार उद्धृत होता है जो इन छोटे छोटे जीवंत नायकों के बहिर्गमन की उम्मीद है। यह जहाज चांदपुर रियासत का है।
रुकनुद्दीन और विलियम दो पात्र हैं मुसव्विर खाना के। समलैंगिक संबंध की अभिव्यक्ति है। विलियम कला का पुजारी रुकनुद्दीन प्रेम का। संदेह की विचित्रता अजीब ढंग से वर्णित। रुकनुद्दीन मार देर है विलियम को। विलियम में उसे क्लाइव फिरंगी दिखता है जिसने सिराजुद्दौला को मार दिया था। पलासी के युद्ध में हारकर भागते हुए सिराजुद्दौला को पूर्णिया के नवाब शौकत जंग के सैनिकों ने फिरंगियों के साथ मिलकर खींचकर तब मार दिया जब वह अपनी औरतों के साथ छुपा हुए था। रुकनुद्दीन को यह स्मृति प्रतिशोध की आवृति से परेशान करती है और वह विलियम को मार देता है। कलात्मक और अचंभित करनेवाला हादसा।
नए शिल्प का प्रयोग
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कहानी कहने का त्रिस्तरीय नया शिल्प प्रयोग में लाया गया है। फतेह अली खान के पत्र और रोजनामचा, दूसरा कलकत्ता जर्नल और गजेटियर का तत्कालीन परिदृश्य को स्पष्ट करती हुई खबरें और तीसरे स्तर पर हैं कथाकार का वर्णन और पात्रों की उक्तियां। लेखिका के इन महती प्रयासों और स्वगत कथनों के जरिए कहानी कई पुराने संदर्भों से वर्तमान घटित को जोड़ती रहती है और किस्सागोई मजबूत होती रहती है। इस प्रविधि का प्रयोग करते हुए लेखिका ने उपन्यास के बहुत उलझे और बहुत फैले विस्तार को साधा है। काल के कई छोरों पर बहुत दूर तक फैला कथानक का कोई भी टुकड़ा अचानक आपके सामने खड़ा हो जाता है। शिल्प के इस प्रयोग से रुचि बाधित नहीं होती है।
“बिसात पर जुगनू ” हिंदी साहित्य के लिए सुखद घटना है जो बहुत बाद तक याद की जाती रहेगी।
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