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युवा कवि मिथिलेश कुमार राय की कविताओं में गाँव का दैनन्दिन जीवन इतनी सहजता से दर्ज होता है पढ़कर आप हैरान रह जाते हैं। उनकी कविता उनके जीवन से गहरे जुड़ी कविता है। उनके कविता संग्रह ‘ओस पसीना बारिश फूल‘ की प्रकाशन के बाद अच्छी चर्चा हुई है। उनके इसी संग्रह पर कवि यतीश कुमार की अपने अन्दाज़ में यह काव्यात्मक टिप्पणी पढ़िए-
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ओस पसीना बारिश फूल
1)
पिता अपनी परछाई से भी
दूर भगाते रहते हैं और
उनको डर है कि उनके आस-पास
कांटे उगते हैं
जबकि
मेरी परछाई उनकी परछाई से
भिन्न होने से इंकार करती है
पिता गेहुआ रंग लेकर
गुलाबी शहर जाते
और स्याह रंग में वापस लौटते
हीमोग्लोबिन भी
शहर और गाँव देख रंग बदल लेता है
पर रंग बदलती दुनिया में
गाँव से गुजरती सड़क पर
मेरी नींद में पिता अक्सर
किसी दूर देश की कहानी सुना जाते हैं
कि सड़क भी एक कब्रिस्तान है
गोबर से लीपे कितने घर
दफ़न हो गए यहाँ
अब मदहोश नींद आती है मुझे
जगाने भी कोई नहीं आता
2) तुम तो जादूगरनी हो
खिलखिलाहट के मंत्र मुझे सबसे प्रिय है
और बस यही सच काफी है
मेरे पसीने को पी जाने के लिए
तुम तो हरियाली हो
हँसती हुई खेतों को देखता हूँ
तो तुम्हें कविता में ढ़लते देखता हूँ
कविताएँ आप ही सोंधी हो जाती हैं
जब-जब गाँव से गुजरती हैं
3)
चाहने, न चाहने से
फर्क पड़े या न पड़े
चाहना दर्ज होना जरूरी है
यह पता होना भी इतना ही जरूरी है
कि दुनिया चाहने वालों से भरी है
अपनी नहीं
चिड़िया की प्यास बढाना चाहता हूँ
वसंत की उम्र भी
थोड़ी और बढ़ाना चाहता हूँ
नींद नहीं उम्मीद की
जरूरत है
बारिश और साहूकार दोनों
दो आंखों की उम्मीद हैं
4)
बच्चियाँ आपस में बतियाती हैं
पहली पुलिस तो दूसरी डॉक्टर बनना चाहती हैं
तीसरी थोड़ी गुमसुम है
जो बड़ी होकर
लड़का बनना चाहती है
चाहती है कि घर में सब उससे
भाई जितना प्यार करें
बहनें मेरे स्कूल तक मुझे छोड़ आती थीं
फिर समय के साथ
किसी अनजान रास्ते पर
उन्हें धकेल दिया गया
तब तक उनके हिस्से में शब्दों की नहीं
मौन की, पकवान की, झाड़ू की भाषा रही
मेरा स्कूल अब खत्म हो गया
अब उस पार
बस दुलार की नदी बहते हुए
टकटकी लगाए ताकता रहता हूँ
5)
आग तसले को काला कर देता
राख फिर से उसे चकमक
आग का काम काला करना है
आग से बुझ कर
बने राख का काम-चकमकाना
मन के भीतर भी
कुछ ऐसा ही घटता रहता है
कटाई का मौसम
रोपाई का मौसम
छोडाई का मौसम
कमाई का मौसम है
पढ़ाई का मौसम नहीं
बच्चे बाकी सभी मौसमों में
खिलखिलाते भी हैं
वह बच्चा बहुत खुश था
फिर अचानक से चुप हो गया
दिन भर के बाद
शाम उसने कुछ तुतलाया
कि बकरी रो रही थी
खून बह रहा था
और बिना दूध पिये उस दिन वह सो गया
6)
देखते देखते उनके सपनों में
खेत,खलिहान,फसल,हरियाली
बारिश,फूल,चिड़िया,गीत के बदले
कर्ज,बीमारी,खांसी और मृत्यु ने जगह बना ली
अब कोई बुलबुल गाता है
तो रोने जैसा सुनने लगता हूँ
नदी के पेट पर मेरा गाँव सोता है
उसी पेट पर नींद अपने घर नहीं बनाती
वह अक्सर भूख को
दो लोटा पानी के नीचे दबा देता है
जिसके सपनों में
सपने सिर्फ मरने के लिए आते हैं
हँसना सिर्फ सपने में हो पाता है
दिन में सूर्य उसकी मुस्कान सोख लेता है
रात के अंधेरे में वो मुस्कराता है
किसी को नहीं पता
उसे अभी भी हरी दूब से प्यार है
दरअसल उन्हें झूठ का पता नहीं था
उन्हें सच का भी पता नहीं था
रोटी का पता ढूंढते-ढूंढते
भूख का पता भी वे भूल गए
अब किस पते पर हैं वे लोग
यह कलकत्ता को भी नहीं पता
उन्हें यह भी नहीं पता कि इंतजार में
ऐसा भी हो सकता है
कि तुम मर जाओ
और इंतजार जिंदा रहे
यतीश 21/2/2020
The post ‘ओस पसीना बारिश फूल’ पर एक काव्यात्मक टिप्पणी appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..