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लेखिका वंदना टेटे को पांचवां शैलप्रिया स्मृति सम्मान

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राँची से दिए जाने वाले प्रतिष्ठित शैलप्रिया स्मृति सम्मान की घोषणा हो गई है। पाँचवाँ सम्मान झारखंड की प्रसिद्ध लेखिका वंदना टेटे को देने की घोषणा की गई है- मॉडरेटर

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पांचवां शैलप्रिया स्मृति सम्मान झारखंड की सुपरिचित लेखिका वंदना टेटे को देने का निर्णय हुआ है। इस सम्मान के तहत वंदना टेटे को 15,000 रुपये की राशि प्रदान की जाएगी। सम्मान के निर्णायकों अशोक प्रियदर्शी, महादेव टोप्पो और प्रियदर्शन ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है। निर्णायक मंडल ने अपने वक्तव्य में कहा है, ‘पिछले तीन दशकों से झारखंड के साहित्यिक-सांस्कृतिक मोर्चे पर सक्रिय वंदना टेटे लगातार लहूलुहान की जा रही आदिवासी अस्मिता के पक्ष में एक मज़बूत आवाज़ की तरह उभरी हैं। उनका लेखन इतिहास और सभ्यता के चक्के तले कुचली जा रही और हाशिए पर डाली जा रही संस्कृतियों की धुकधुकी से बना लेखन है। यह इतिहास की मुख्यधारा की शक्तियों के ख़िलाफ़ उस जनजातीय प्रतिरोध का साहित्य है जिसने हाल के दिनों में दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हर तरह के शोषण का विरोध, बराबरी और सामाजिक न्याय इस लेखन के लिए राजनीतिक मुहावरे भर नहीं हैं, इससे जुड़े समाजों के जीवित रहने की अपरिहार्य शर्त भी हैं। वंदना टेटे ने इसे एक व्यक्तिगत प्रयत्न से ज़्यादा एक सामूहिक संघर्ष में बदला है- यह उनकी संपादित पुस्तकों की सूची बताती है। विलोप के खतरे से जूझती भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण की लगातार एक मुहिम उनके रचनात्मक अवदान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। शैलप्रिया स्मृति न्यास द्वारा नामित चयन समिति पांचवें शैलप्रिया स्मृति सम्मान के लिए वंदना टेटे के नाम की अनुशंसा करते हुए इस बात को रेखांकित करना चाहती है कि यह झारखंड में आदिवासी अस्मिता के लिए जारी सांस्कृतिक संघर्ष में शामिल एक महत्वपूर्ण लेखिका का सम्मान है।‘

वंदना टेटे का परिचय

जन्मः      13 सितम्बर 1969

शिक्षाः     मास्टर इन सोशल वर्क (महिला एवं बाल विकास),

            उदयपुर स्कूल ऑफ सोशल वर्क, राजस्थान विद्यापीठ (राजस्थान)

महिला, आदिवासी भाषा-संस्कृति व साहित्य, पत्रकारिता और कला, रंगमंच एवं सिनेमा के क्षेत्र में विगत तीन दशकों से निरंतर सक्रिय. अनेक राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय अकादमिक व साहित्यिक और सांस्कृतिक सेमिनारों में भागीदारी. आदिवासी भाषा, साहित्य, इतिहास और संस्कृति संरक्षण,  दस्तावेजीकरण और विकास में अगुआ भूमिका. आदिवासी भाषाओं में पत्रकारिता का पुनर्जीवन और विस्तार. आदिवासी दर्शन, साहित्य और सौंदर्यबोध की सैद्धांतिकी की स्थापना में नेतृत्वकारी भूमिका. आदिवासी भाषा-संस्कृति और महिलाओं के सवाल पर सशक्त बौद्धिक हस्तक्षेप और आंदोलनों में सक्रिय सघन अगुआ भागीदारी.

पत्रकारिता:

  • हिन्दी एवं आदिवासी भाषा ‘खड़िया’ में लेख, कविताएं, कहानियां स्थानीय एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी रांची (झारखंड) से लोकगीत, वार्ता व साहित्यिक रचनाएं प्रसारित.
  • झारखण्ड आंदोलन की पत्रिका ‘झारखण्ड खबर’ (1990-92, रांची) का उप-संपादन.
  • झारखण्ड की पहली आदिवासी बहुभाषायी (आदिवासी, क्षेत्रीय एवं हिन्दी सहित 11 भाषाओं में) त्रैमासिक पत्रिका ‘झारखण्डी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा’ का नियमित प्रकाशन एवं संपादन 2004 से.
  • झारखंड की आदिवासी-देशज भाषा ‘नागपुरी’ में मासिक पत्रिका ‘जोहार सहिया’ का प्रकाशन एवं प्रधान संपादक फरवरी 2007 से.
  • खड़िया मासिक पत्रिका ‘सोरिनानिङ’ का संपादन-प्रकाशन 2008 से.
  • ‘आदिवासी’ रांची (झारखण्ड सरकार) की साप्ताहिक पत्रिका की संपादक मंडल की सदस्या.
  • दिल्ली से प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘आदिवासी साहित्य’ की मुख्य परामर्शी और संपादक मंडल की सदस्या.

फिल्म निर्माण:

प्यारा मास्टर (2003), गुरु गोमके (2003), तेलेंगा नदनीः (2006), आदिवासी दर्शन (2015) आदि डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण एवं पटकथा लेखन. 2014 में आदिवासी फिल्म कंपनी ‘बिर बुरु ओम्पाय मीडिया एंड इंटरटेनमेंट’ की स्थापना और फीचर फिल्म ‘सोनचांद’ का निर्माण कार्य.

सामाजिक कार्यः

  • आदिवासी, महिला, शिक्षा, साक्षरता, स्वास्थ्य, भाषा-संस्कृति, साहित्य और बच्चों के मुद्दों पर पिछले 30 वर्षों से राजस्थान व झारखंड में लगातार सक्रिय. भारत ज्ञान-विज्ञान समिति (रांची), महिला जागृति केन्द्र (गोमिया), सेवा मंदिर (उदयपुर), महिला जन अधिकार समिति (अजमेर), तथा प्यारा केरकेट्टा फाउण्डेशन (रांची) के साथ कार्य.
  • 2004 में आदिवासी व देशज लेखकों, भाषाविद्, संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार और बुद्धिजीवियों के संगठन झारखण्डी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की स्थापना.
  • ‘महिला गरिमा अभियान, झारखण्ड’, ‘नेशनल एलायंस ऑफ विमेंस आर्गनाइजेशन (नावो)’ ‘आदिवासी महिला नेटवर्क’ आदि राज्य एवं राष्ट्र स्तरीय महिला संगठनों, सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्य और विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी समितियों में मनोनीत.

शैक्षणिक कार्यः

  • सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थानों के लिए सर्वेक्षण, शोध, अध्ययन, लेखन, रिपोर्टिंग एवं संपादन.
  • महिला सवालों एवं सामाजिक, शैक्षणिक व स्वास्थ्य विषयों पर नुक्कड़ नाटकों में अभिनय, विभिन्न नाट्य संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी तथा कई नाट्य कार्यशालाओं का निर्देशन-संचालन.

प्रकाशित पुस्तकें:

  1. ‘पुरखा लड़ाके’ (आदिवासी इतिहास-संपादित) 2005
  2. ‘किसका राज है’ (आदिवासी समुदाय के सामाजिक-आर्थिक सवालों पर विमर्श) 2009
  3. ‘झारखंड: एक अंतहीन समरगाथा’ (बच्चों के लिए झारखंड के इतिहास पर सचित्र पुस्तिका-संपादित) 2010
  4. ‘असुर सिरिंग’ (असुर लोकगीतों का संग्रह-संपादन सुषमा असुर के साथ) 2010
  5. ‘पुरखा झारखंडी साहित्यकार और नये साक्षात्कार’ (संपादित) 2012
  6. ‘आदिम राग’ (आदिम आदिवासी समुदायों का पहला काव्य संकलन-संपादित) 2013
  7. ‘आदिवासी साहित्य: परंपरा और प्रयोजन’ (सैद्धांतिक) 2013
  8. ‘आदिवासी दर्शन कथाएं’ (सहलेखन) 2015
  9. ‘आदिवासी दर्शन और साहित्य’ (आलोचना-संपादित) 2015
  10. ‘कोनजोगा’ (हिंदी कविता संग्रह) 2015
  11. ‘एलिस एक्का की कहानियां’ (संपादित) 2016
  12. ‘वाचिकता: आदिवासी साहित्य एवं सौंदर्यबोध’ (सैद्धांतिक) 2016
  13. ‘लोकप्रिय आदिवासी कहानियां’ (संपादित) 2016
  14. लोकप्रिय आदिवासी कविताएं’ (संपादित) 2016
  15. ‘प्रलाप’ (1935 में प्रकाशित भारत की पहली हिंदी आदिवासी कवयित्री सुशीला सामद के प्रथम काव्य संकलन का संकलन-संपादन) 2017
  16. ‘कवि मन जनी मन’ (आदिवासी स्त्री कविताओं का ंसकलन-संपादन) 2019

सम्मान:

  • महिला सशक्तिकरण और विकास तथा आदिवासी भाषा-साहित्य के लिए विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों, संस्थाओं सहित झारखण्ड सरकार द्वारा आदिवासी पत्रकारिता के लिए तथा महिला कार्यों के लिए राज्य महिला आयोग, झारखंड द्वारा सम्मानित.
  • संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की सीनियर फेलो (2012-13).

संपर्क:

            द्वारा रोज केरकेट्टा, चेशायर होम रोड, बरियातु, रांची 834009 झारखंड

            दूरभाष: 9234678580

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