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मेरी तस्वीर
इसे कुछ समय पहले ही खींचा गया था
पहली बार देखो तो तस्वीर में अस्पष्ट व धुंधली रेखाएँ
और धूसर रंग ही दिखते हैं
फिर ज़रा ध्यान से देखो तो
बाएँ हाथ के कोने पर
देवदार की शाख़ उभरती सी नज़र आती है
दाईं तरफ अधरस्ते में ढलान पर जड़ा हुआ सा एक
घर दिखता है।
पृष्ठभूमि में है एक झील
उसके पार हैं कुछ छोटी छोटी पहाड़ियाँ
(यह तस्वीर दरअसल मेरे डूबने के दूसरे दिन ली गई थी)
तस्वीर के बीचोंबीच झील की सतह से ज़रा सा ही नीचे मैं हूँ
वैसे निश्चित तौर पर तो कहना कठिन है कि
मैं कितनी छोटी या कितनी बड़ी हूँ
क्योंकि पानी पर प्रकाश का असर छलावा है
फिर भी अगर तुम ज़रा देर तक ग़ौर से देखोगे
तो अंततः मुझे ढूंढ ही लोगे.
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वह पल
वह पल जब कई सालों की मेहनत मशक्कत और लंबी यात्राओं
से लौटने के बाद
तुम अपने कमरे, घर, ज़मीन, टापू या देश के बींचोबीच खड़े होते हो तो
जानते हो कि अंततः तुम यहाँ तक कैसे पहुंचे और
फिर कहते हो कि यह सब मेरा है।
यही वह पल है जब पेड़ अपनी नर्म शाखें हौले से तुमसे अलग करते हैं
चिड़ियाएँ अपनी भाषा वापस ले लेती हैं
चट्टानें दरक कर टूट जाती हैं
और हवा तुमसे परे हो लहर की तरह लौट जाती है
फिर तुम सांस भी नहीं ले पाते।
ये सब आपस में फुसफुसाते हैं –नहीं, तुम्हारा यहाँ कुछ भी नहीं है
तुम तो एक यात्री भर थे जो बार बार पहाड़ पर चढ़
अपना झण्डा गाढ़, दावे से कहते कि
हम तो तुम्हारे कभी थे ही नहीं और
न ही तुमने हमें खोजा
सच तो यह है कि हमेशा से इसका उल्टा ही रहा है।
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आवास
विवाह एक घर या तम्बू भर ही नहीं है
यह तो उससे भी पहले का और बेहद ठंडा है
जंगल, रेगिस्तान और
पिघलते पीछियाते ग्लेशियर के किनारों से होते हुए
पिछवाड़े की बिना पुती सीढ़ियों पर पालथी मारे पॉप कॉर्न खाते हुए
इतनी दूर तक बचे रहने पर दुखी और हैरान से
हम आग जलाना सीख रहे हैं।
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अनुवादक –प्रतिमा दवे
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