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पाब्लो का प्रेमी तथा अन्या कविताएँ: अमृत रंजन

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किशोर कवि अमृत रंजन अब धीरे धीरे वयस्क हो रहा है और उसकी कविताएँ भी अपना रंग बदल रही हैं। ये उसकी सबसे नई कविताएँ हैं- प्रभात रंजन
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पाब्लो का प्रेमी 

कितना प्रेम है?
बहुत ज़्यादा।
कहाँ तक? 
बहुत दूर।
कश्मीर तक?
हाँ।
इटली तक? 
हाँ।
अमरीका तक? 
हाँ।
जन्नत तक?
नहीं।
क्यों? 
 
प्रेम का ग़ुलाम मुझे नरक में खींच लेगा!
 
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सबसे पास का सितारा

आज का दिन सबसे अच्छा है,
तुम्हें बताने के लिए
कि क्या अभी महसूस कर रहा हूँ। 
क्या जानो? 
मेरी धड़कन तुम्हारे बारे में इतनी प्यारी चीज़ें कहती है।
एक मिनट…
अगर तुम्हें ये सारी बातें पसंद नहीं आयी तो?
सबसे पास वाला सितारा निराश हो जाएगा।
 
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 विंसेट की तस्वीर

 
तारों के बारे में लिखना उतना मुश्किल नहीं है।
कभी-कभी चोट पहुँचाने का मन करता है।
मन करता है एक पत्थर उठा फेकूँ।
सारे पत्ते बिछा चुका हूँ
अब और क्या माँगते हो तुम?
ख़ूबसूरत।
एक अकेला तो हो नहीं पाऊँगा तुम्हारा
सबसे पसंदीदा ही बन जाता हूँ इन सब में।
हल्की इज़्ज़त तो छोड़ दो।
 
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 त्रिशंकु

अनगिनत रास्तों का ग़ुलाम
मेरे पैर नोचता है।
कीड़े दौड़ रहे हैं हर जगह
इस जगह को घर कैसे बुलाऊँ।
कोई अपना नहीं है
कोई सोचने का काबिल भी नहीं है।
मौत और जिंदगी में क्या
अंतर रह गया है अब?
बीच में फँस गया हूँ
अपने फ़ोन के वॉलपेपर को भी अँधेरा कर दिया।
अब तो बचा लो।
 
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