ख़लील जिब्रान की किताब ‘द प्रोफ़ेट’ का अनुवाद आया है, अनुवाद किया है नीता पोरवाल ने-
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खलील जिब्रान जैसे भोर की मंद समीरण जैसे मघा नक्षत्र की वर्षा जैसे पुरवाई की मीठी झकोर जैसे रूह को जगाता राग भैरव! जिब्रान जैसे आसमान का निहुरकर आंगन में उतर आना जैसे मन की दीवारों पर हल्दी से मांडने बनाना! कहते हैं न कि सरल होना मुश्किल है तो जिब्रान ने वही लिखा जिससे जीवन सरल हो सके जिसे सहज अंगीकार किया जा सके| वे पारस की तरह हमारे जीवन को कांतिमय बना देते हैं| उनकी सूक्तियां हमें पुकारतीं हैं मानो बिन कहे हमारी हर उलझन समझ लेतीं हैं| उनकी सूक्तियां हमें बतातीं हैं कि वो क्या है जो हमें खुद से और औरों से दूर ले जा रहा है| जिस कस्तूरी के लिए हम जंगल-जंगल भटके उस कस्तूरी की सुवास सूक्तियों से होकर हमारी आत्मा को सिक्त करती है| जिस सुख को हम बाजार-हाट में खोजते फिरे, जिब्रान को पढ़ने के बाद वही सुख हमें हमारे मन-सरोवर के तलछट में धूनी रमाये मिलता है| जिब्रान उलझे धागों को इस सरलता से सुलझाते हैं कि मन-पांखी झरते पत्तों में भी संगीत सुनने लगता है, धूप का नन्हा सजीला टुकड़ा सारे अंधियारे को उड़न छू कर देता है| पुरानी इबारतों की जगह स्लेट पर एक नई इबारत उभर आती है जिसे पढ़ते-गुनते दिन उजले और शामें सुरमई हो उठतीं हैं| हर शय के लिये हथेलियाँ दुआओं में उठ जातीं हैं| मैं, मेरा की जगह जुबान हम, हमारा बोलने लगती है| सतह पर बुलबुले से बनते-बिगड़ते हम लहर-लहर हो उठते हैं| धानी, बैजनी, सुआपंखी, निब्बू पीला.. रंगों से रंग मिलते और मन के पश्चिमी छोर पर एक इन्द्रधनुष बन जाता| हमारी आँखें रंग देखतीं, रंग ही बुनती और रंग ही बांटतीं, रंग घुलते और दुनिया सतरंगी हो उठती| जिब्रान कभी सेवण घास की तरह मन में फैलते मरुस्थल को रोकते हैं तो कभी लेमन घास की तरह हमारी आत्मा को सुवासित करते हैं|
दुनिया में कुछ भी बुरा नही हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है जिब्रान की इस उक्ति को ही देखिये–
“मैंने बातूनी से चुप्पी सीखी, असहिष्णु से सहिष्णुता और निर्दयी से दया|”
इस विरले संगीतकार ने महज कुछ सूक्तियों में प्रेम की ऐसी अनूठी सुर लहरियां भर दीं अगर ये सूक्तियां हमारे मन में जगह पा जाएँ तो जीवन-सरिता कलकल की मधुरिम ध्वनि के साथ प्रवाहित हो उठे| उन्होंने प्रेम और दोस्ती के साथ ज़िंदगी के तमाम पहलुओं पर लिखा है और ऐसा लिखा है कि उनकी हर कहानी, सूक्ति, लघुकथा अपनी से जुड़ी लगती है| और क्यों न हो यह प्रेम ही था जिसने उन्हें कदम-कदम पर सम्हाला था उन्हें संवारा उन्हें जिब्रान बनाया था इसीलिए तो वह कहते हैं—
“प्रेम तुम्हारे शिखर तक पहुँचकर धूप में तप्त तुम्हारी नाजुक टहनियों को चूम सकता है
तो तुम्हें गहरी नींद से जगाने के लिए जमीन से चिपकी तुम्हारी जड़ों तक पहुंचकर उन्हें हिला भी सकता है|”
खलील दुनिया के हर देश के लोगों को अपने से लगते हैं| वो उस दोस्त की तरह हैं, जो आपकी छोटी सी छोटी बात को बारीकी से समझते हैं और आपकी बेचैनी को दूर करने की भरसक कोशिश करते हैं|
अगर मैं अपनी बात करूं तो मुझे मेरे कितने ही सवालों के जवाब जिब्रान की सूक्तियों से मिलें हैं| जिब्रान तम को परे कर धरती पर रजत ज्योत्स्ना बिखेर देते हैं| जीवनसाथी के बारे में उनकी सुलझी विरली सोच को ही देखिये —
“अपनी निकटता में कुछ दूरी बनाये रखना जिससे स्वर्ग की हवाएं तुम्हारे मध्य नृत्य कर सकें|”
बच्चों के बारे में यह एक उक्ति तो जैसे मन-दर्पण पर जमी सारी धुंध साफ़ कर देती है मन हर बंदिश से मुक्त हो जाता है शिकवे शिकायतें न जाने कहाँ विला जाते हैं —
“उनकी काया पर तो तुम्हारा हक हो सकता हो पर उनके मन पर तुम्हारा कोई हक नही बनता|
क्योंकि उनका मन तो आने वाले कल में वास करता है जहां तुम सपने में भी नही पहुँच सकते|”
किसी जरुरतमन्द को देते समय हमारा मन दसियों जोड़-घटाव करता है कितने ही दंभ पालता है पर जिब्रान तो जैसे मन में चलते हर बबंडर और हर नन्ही हरकत से वाकिफ़ हैं उनको पढ़ते ही सारी छटपटाहट न जाने कब उड़नछू हो जाती है एक उक्ति देखिये —
“दान दो पर ऐसे जैसे घाटी में मेहँदी अपनी सुगन्धित साँसे अन्तरिक्ष के लिए बिखेरती है|”
जिब्रान की उक्तियाँ अग्नि में तपा हुआ निखालिस सोना हैं, स्वाती नक्षत्र में बरसने वाली ओस की बूंद है जो हृदय रूपी सीपी में समा जाए तो वह सच्चे मोती सा जगमग कर उठे| पर यह तभी मुमकिन है जब हमारा हृदय-प्याला खाली हो| और इसके लिए हमें अपनी उम्मीदों, विचारों और यहाँ तक कि अपने विश्वास की परतों को भी हटाना होगा ताकि हम सच को जान सकें और अपने जीवन को सुंदर, सहज और सार्थक कर सकें|
जिब्रान सुरों के औलिया हैं, वे अपने सुरों से हमारे जीवन-लहरों में चुपचाप शरद की चांदनी घोल देते हैं वे एक ऐसा झरना है जिसकी कुछ बूँदें हमारी आत्मा को निर्मल कर देतीं हैं एक रंगरेज जिसने भी उनकी चूनर एक बार ओढ़ी वो उनका हो गया|
यह चंद पन्नों की एक साधारण किताब नही यह तो गहरे पानी में गोते लगाकर लाये गये बेशकीमती रत्नों का जखीरा हैं|
सुन्दरता
एक कवि ने आग्रह किया: आप हमें सुन्दरता के बारे में बताइये| उन्होंने कहा: *आप सुन्दरता कहां ढूँढेंगे जब तक वह स्वयं आपकी राह और आपकी गाइड न हो आप उसे कैसे पायेंगे? *आप उसके बारे में कैसे कुछ बता सकते हैं जब तक वह आपकी भाषा का ताना-बाना नही बुने? *सुन्दरता के तीर से घायल और चोटिल का कहना है: “सुंदरता मृदुल और सौम्य होती है| एक युवा मां की तरह वह स्वयं अपनी कांति से लजाती हमारे बीच रहती है।” *आतशमिजाज कहते हैं: “नहीं, सुन्दरता प्रचंड और खूंखार होती है। वह आंधी की तरह नीचे धरती को और ऊपर आकाश को कम्पित रखती है।” *सुस्त और उदासीन कहते हैं:”विनम्रता से बोलना ही सुन्दरता है| परछाई के भय से कांपती मद्धम रौशनी सी उसकी मखमली आवाज़ हमारी आत्मा को सुकून पहुंचाती है।” *अधीरमना कहते हैं: “हमने उसे पहाड़ों और घाटियों में रोते हुए सुना है| उसके करूण क्रन्दन के साथ खुरों की आवाज़, पंखों की फडफडाहट और सिंहों की गर्जना सुनाई देती है।” *रात के पहरेदार कहते हैं:“पूर्व दिशा से सूरज की किरणों के साथ-साथ सुन्दरता की पंखुरियां भी प्रस्फुटित होतीं हैं।” *दोपहर के मेहनतकश और मुसाफिर कहते हैं, “हमने सूर्यास्त के झरोखे से उसे धरती पर झुकते हुए देखा है।” *बर्फीले प्रदेश के लोग कहते हैं, “वह वसंत के साथ पहाड़ियों पर उछलते-कूदते हुए आएगी।” *तपती गर्मी में लुनेरा कहता है, “हमने उसे वसंत के मौसम में पत्तों के साथ नृत्य करते हुए देखा है, उसके केशों में लहराती हुई बर्फ की लड़ियाँ देखी हैं।”
*सच तो यह है कि सबने सुन्दरता के बारे में नही बल्कि अपनी आधी-अधूरी ख्वाइशों के बारे में कहा|
*सुन्दरता हमारी जरूरत नही बल्कि परमानन्द है|
*यह न तो प्यास है और न सामने फैला खाली हाथ है|
*इसका दिल रतनारी और आत्मा जादुई है|
*इसकी कोई छबि नही जिसे आप आँखों से देख सकें न ही यह कोई गीत है जिसे आप कानों से सुन सकें|
*यह तो वह छबि है जिसे आप आँख बंद करके कभी भी देख सकते हैं|
*वह गीत है जिसे आप अपने कान बंद करके भी सुन सकते हैं|
*यह छाल से टपकता अर्क नही, न ही यह पंजे से जुड़ा पंख है|
*यह सदा खिला रहने वाला बागीचा है, उड़ती फिरती परियों और फरिश्तों की टोली है|
*ओर्फिलिस के निवासियों, जिन्दगी जब अपने मासूम चेहरे से घूँघट उठा लेती है, वही सुन्दरता है|
*क्या तुम्हें अहसास है कि तुम ही जीवन और तुम ही वह घूँघट हो?
*दर्पण में स्वयं को शाश्वत निहारना ही सुन्दरता है|
और तुम ही शाश्वत नजर और तुम ही दर्पण हो|
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नीता पोरवाल (Neetta Porwal)
जन्म: 15 जुलाई 1970
शिक्षा: एम. ए. अर्थशास्त्र
प्रकाशन: वियतनाम के जनवादी कवि माई वान फान की प्रसिद्ध पुस्तक ‘एक अस्वीकार्य युग’ और फ़्रांस के जाने-माने लेखक ‘एंटोनी डे सेंट-एक्जुपेरी’ के प्रसिद्ध उपन्यास ‘द लिटिल प्रिंस’ के साथ-साथ आप रबीन्द्रनाथ टैगोर, यूनान के प्रसिद्ध कवि नाजिम हिकमत, यूनानी कवयित्री सप्फो जैसे अनेक महत्वपूर्ण कवियों और कथाकारों की रचनाओं को हिंदी में रूपांतरित कर चुकीं हैं| अनुवाद के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए विगत वर्ष आपको सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया गया| आप बतौर अनुवादक विगत कई वर्षों तक कृत्या पत्रिका के साथ भी जुड़ीं रहीं| 2018 में आपने चीनी कविताओं के एक संग्रह ‘सौ बरस सौ कविताएँ (चीन की कविताओं में आधुनिकवाद)’ में काम किया| जिसके लिए आपकी टीम को चीनी साहित्य के अनुवाद के लिए DJS Translation Award प्राप्त हुआ|
To contact the Translator: neeta.porwal4@gmail.com
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