अभी हाल में ही ‘ठहरती साँसों के सिरहाने से : जब ज़िन्दगी मौज ले रही थी (कैंसर डायरी)’ किताब प्रकाशित हुई है राजकमल प्रकाशन से।अंग्रेज़ी में यह किताब स्पिकिंग टाइगर प्रकाशन से पहले ही प्रकाशित हो चुकी है। लेखिका अनन्या मुखर्जी का कैंसर से देहांत हो गया। किताब उसकी डायरी के पन्ने हैं, जो उसने उस दौरान लिखे हैं जिस दौरान वह अपनी छोटी सी ज़िंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही थी। वह हारी नहीं उसका शरीर रोग से हार गया। इस किताब के शब्दों में वह अमर हो चुकी है। ज़िंदगी के भरपूर उल्लास से भरे उसके शब्दों में कहीं कोई भय नहीं है, अफ़सोस नहीं है, बल्कि जिजीविषा है। प्रस्तुत है पुस्तक का एक अंश- मॉडरेटर
==============================
की और का
मुंबई में फ़िलहाल मैं जहाँ रह रही हूँ वहाँ बहुत सारे कौवे हैं. यहाँ कई रातें मैंने रोशनी देखते हुए बितायी हैं और सुबह के अजान की आवाज़ के साथ नींद की आग़ोश में चली गई. एक दिन अहले सुबह मैं जब नींद की आग़ोश में जाने ही वाली थी कि एक कौवे ने मेरी खिड़की पर कांव कांव करना शुरू कर दिया. यह अंग्रेज़ी वाला कांव नहीं था बल्कि यह शुद्ध देशी था. वह लगातार दुखी होकर, ज़ोर-ज़ोर से, बिना रुके कांव कांव किए जा रहा था.
कीमो के असर से मेरा सिर भारी हो गया था और मैंने जी भर कर गालियाँ दी. मैंने अपना तकिया उठाकर बहुत ज़ोर से खिड़की की तरफ़ फेंक दिया. हरामज़ादा, हिला भी नहीं। मैंने सोचा की यह ज़रूर कोई पुराने बुज़ुर्ग होंगे जो मुझसे मिलने आए हैं. मैंने का को अच्छी तरह से देखा. उसके बाल बिखरे हुए थे और उसकी आँखें काली थीं. देखने से यक़ीनन वह परिचित लग रहा था, मैंने उसे दूध में डुबाया ब्रेड का टुकड़ा दिया. का ने मुझे देखकर अपनी गोल-गोल आँखें घुमाईं, ब्रेड के टुकड़े को बग़ल करते हुए एक क़दम आगे बढ़ गया (बाद में,एक कबूतर ने उस टुकड़े को खाया, खिड़की के शीशे पर बीट की और वहाँ कुछ अंडे दिए—वे बहुत सम्भव है मेरे पुरखे रहे हों।).
इस बीच, सुबह 8 बजे तक का ने अपना अत्याचार जारी रखा. तब मुझे यह एहसास हुआ कि हमलोग कितना ज़्यादा एक दूसरे के जैसे हैं और फिर मैं उसके प्रति नरम पड़ी। अपनी फटी टीशर्ट और बरमूडा पैंट तथा अपने बालों के साथ जिन्हें देखकर यह नहीं समझा जा सकता है कि उग रहे हैं या झड़ रहे हैं, मैं आजकल बहुत हद तक का जैसा महसूस कर रही हूँ.
अक्सर आज जैसी सुबह की तरह मैं और का दोनों ही खिड़की के सामने खड़े रहते हैं, हम दोनों ही उपेक्षा से संसार की तरफ़ देखते हुए अपने की के वापस आने का इंतज़ार करते हैं.
============
औरतें और स्कैन
कुछ दिन पहले जब मैं पीईटी सीटी (PET CT) स्कैन करवाने के लिए क़तार में लगी हुई थी, मैंने देखा कि चार और औरतें उसी क़तार में खड़ी थीं. वहाँ के कर्मचारी ने सभी के शरीरों में सुई चुभोई और सभी को बिल्कुल चुप रहने का आदेश देकर एक बहुत ही ठंडे कमरे में बंद कर दिया.
लेकिन जब इलाहाबाद, ग्वालियर, पुणे और हैदराबाद एक साथ इकट्ठा हो जाएँ तो कोई भी कर्मचारी उन्हें किसी भी तरीक़े से चुप नहीं करवा सकता है. हम में से उन लोगों ने जो उस विशाल मशीन से होकर पहले भी गुज़र चुके थे, नए लोगों का हौसला बढ़ाया. फिर हमारी बातचीत ट्यूमर से बालों के बढ़ने के तरीक़े से होते हुए स्वादिष्ट खाने से होकर अंत में सबके पसंदीदा विषय “साड़ी” पर जाकर ख़त्म हुई (अंतत: सब्यसाची को संतोष महसूस होगा), उस दिन सुबह में शिफ़ोन, प्रिंट वाले ज़ोर्जेट, कड़क सूती साड़ियों और मुलायम सिल्क की साड़ियाँ हमारे विषय थे.
अंतत: जब वह समय आ गया जब वह विशाल मशीनें हम सभी को एक-एक करके अपने अंदर ले जाने के बाद हमारे बुरे भविष्य के साथ हमें बाहर निकालने लगी, उस वक़्त हम सभी की आँखों में एक प्रकार की चमक थी. मैंने उस गहरे गुलाबी जामदानी के बारे में सोचा जो मेरी माँ ने मेरे लिए कुछ दिन पहले ही 2018 के पूजा में पहनने के लिए ख़रीदा था. इंशाअल्लाह!
The post अनन्या मुखर्जी की कैंसर डायरी के कुछ पन्ने appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..