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पूनम अरोड़ा की कविता सीरीज़ ‘दृश्यों में कनॉट प्लेस’

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पूनम अरोड़ा समकालीन कविता का जाना पहचाना नाम है। यह उनकी नई कविता सीरीज़ है- मॉडरेटर

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दृश्यों में कनॉट प्लेस

(कनॉट प्लेस- दृश्य १)
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संडे पार्किंग

कनॉट प्लेस में पार्किंग नहीं मिलती संडे को
आजकल हवा भी नहीं लहराती बातों के बीच
शनिवार रात के जागे युवकों की आँखों से बहती है स्कॉच की गंध

संडे को कनॉट प्लेस एक घना पेड़ दिखाई देता है
जिसकी शाखों पर कुकरमुत्ते की भीड़ सी लगते हैं दिल्ली के नौजवान
मुझे सुनाई देता है उनकी टूटी हुई हँसी में
एक वर्जिन लड़की को न पा सकने का स्पष्ट दुख

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(कनॉट प्लेस-दृश्य २)
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एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल

वह डी-ब्लॉक के खुरदुरे फर्श पर नाचने की लगभग तैयारी में थी
कैमरे के ऐंगल को सही करती
खुद में थोड़ा जादू भरती हुई वह अपने पति को गालों पर एक चुम्बन देती है
थोड़ा सिकुड़ कर ब्रा में मस्क की खुशबू बिखेरती है

चुम्बन अपना काम करता है
और पति उसी ऐंगल से उसकी तस्वीर उतारता है

पित्ज़ा पर एक्स्ट्रा वर्जिन ऑलिव ऑयल में भूनी पनीर और सोया चंक्स जीभ पर घुल जाते हैं

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(कनॉट प्लेस-दृश्य ३)
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कबीर सिंह बनाम फालतू की बहस

वे एक गोल घेरा बना कर बहस कर रहे थे
कनॉट प्लेस का वह कोना पूरी तरह से आरक्षित था
सरकार की कोई कारस्तानी नहीं थी इसमें

बहस थी कबीर सिंह पर

फ़िल्म का विरोध कर रही नौजवान मंडली एक उजाड़ सत्य से भरी थी
लेकिन शनिवार रात का जागा लड़का अब पूरे होश में था
बहस किसी मुद्दे पर तर्क से परास्त हो जाती है

विरोधी मंडली जून की गर्म शाम में झुलसती हुई अपने चश्मे, जूते और तख्तियों पर एक नज़र डालती है

दिल्ली बारिश से त्रस्त है अभी तक
यह सोच कर कबीर सिंह को बख्श दिया जाता है

बहस पर ‘व्हाट द हेल इज़ दिस’ की तोहमत लगाने वाला शनिवार की अधूरी नींद को पूरा करने के लिए एक बार में घुसता है
रात को सेफ सेक्स के लिए अपनी गर्लफ्रैंड से डॉटेड कंडोम के बारे में पूछता है

‘भाड़ में जाये कबीर सिंह’ कहते हुए मंडली की सबसे उग्र लड़की देखते ही देखते
बिसलेरी संस्कृति को अपने गले से उतार लेती है

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(कनॉट प्लेस-दृश्य ४)
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शुक्ला पान वाला

कनॉट प्लेस के कुछ कोने धुँए का अखाड़ा लगते हैं कभी-कभी
घुटनों और जांघों से फटी
आसमानी पेंसिल डेनिम जीन्स पहने
सिगरेट सुलगाते हुए
लड़की अपनी सबसे हसीन अदा में नहा रही है

सिगरेट के छल्लों में कितने खुशनुमा काल्पनिक मौसम देख रही है वो

साथ खड़ा लड़का किसी सहानुभूति का पक्षधर नहीं
वह आने वाले दिनों में कोई चोट दे सकता है लड़की को
या यह मेरा पूर्वग्रह भी हो सकता है

लड़की साथ खड़े लड़के से कहती है “मुझे नहीं लगता आग से डर”
और शुक्ला पान वाला सीने में गर्व की पुकार भरकर पान में आग जलाता है और कठोरता से ठूस देता है जलता हुआ पान लड़की के मुँह में

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(कनॉट प्लेस-दृश्य ५)
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बेरकोज़ में “रोमियो, जूलियट और अंधेरा”

दृश्य में विदेशी शराब का सन्नाटा था
नाक पर गंध की मछलियाँ उधम कर रही थीं

उन गोल घूमती सीढ़ियों पर से शराब के सन्नाटे को लाँघना था
कॉरपोरेट संसार के लोगों की पतलूनें और इस्त्री से सीधी जमी कमीज़ें शोर की कैंचियों से एक-दूसरे की ज़ुबाने काट रही थीं

रोशनी और अंधेरा
अंधेरा और कुत्ते का बच्चा
कॉरपोरेट संसार की सुंदर लड़की के बगल में ही थे
लड़की कार्ड स्वाइप कर बिल चुकाती है सबका
यह उसके ब्रेकअप का जश्न था

वाइन का एक ग्लास टूटता है
सारे माहौल में बेलगाम ठहाका नीले कालीन पर फैल जाता है

(कनॉट प्लेस-दृश्य ६)
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पैर

पैरों के अपने भय थे
वे कपट को छुपाते हुए चल रहे थे

कभी ये आत्मघृणा में लज्जित हो रहे थे
तो कभी उदात्तता में कबूतरों के झड़े हुए पंख बनकर ज़मीन से थोड़ा ऊंचा उड़ कर चल रहे थे

एल ब्लॉक के एक कोने में
कुछ नौजवान सुरों को धोखा देते हुए
गिटार पर गा रहे थे “साडा हक़ ऐत्थे रख”

यह एक सार्वजनिक बौनापन था या ऊंचाई
इसी का सामंजस्य वे अपनी चीख में बैठाने की कोशिश कर रहे थे

कई जोड़ी पैर एक शब्द ‘अपराध’ में
घुटनों के बल झुक कर सकुचा रहे थे
कनॉट प्लेस शाम तक
किसी अधूरे वाक्य में बदलने लगा था

(कनॉट प्लेस-दृश्य ७)
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सेल्फी और उदास फूल

वे एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे
बीच में कोई भी एक नज़र उठा कर आसमान की ओर देख लेता था

यह एक चुप्पी थी
और इस चुप्पी की जड़ें उनके जाहिर किए गए अच्छेपन में थी

सेल्फी लेने वाली लड़कियों का झुंड छोटी पोशाकों में था
उनके गुलाबी रंगे होठ और शाम के पाँच बजे का साधारण समय एक विरोधाभास बन उनके बीच से चुपचाप निकल गया

फूल किसी उदासी में अपना शिल्प खो रहे थे

‘कौन ही विलय करता है धवल सिंगार की स्मृति’ अपने गुप्त नक्षत्रों में”
फूल वाला यह कविता लिख रहा था

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