Quantcast
Channel: जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1477

प्रवीण झा और उनकी किताब ‘कुली लाइंस’

$
0
0

‘कुली लाइंस’ पढ़ते हुए मैं कई बार भावुक हो गया। फ़ीजी, गुयाना, मौरिशस, सूरीनाम, नीदरलैंड, मलेशिया, दक्षिण अफ़्रीका, युगांडा, जमैका आदि देशों में जाने वाले गिरमिटिया जहाजियों की कहानी पढ़ते पढ़ते गले में काँटे सा कुछ अटकने लगता था। इसीलिए एक साँस में किताब नहीं पढ़ पाया। ठहर-ठहर कर पढ़ना पड़ा। सोचता हूँ कि क्या कारण था कि इन गिरमिटियाओं की कहानी पढ़ते हुए मेरा दिल भर आया। मैं तो ऐसे इलाक़े का हूँ भी नहीं जहाँ से लोग जहाज़ बनने के लिए दरबदर हुए। असल में लेखक ने इसको ग्रेट इंडियन डायस्पोरा से जोड़ा है, हिंदुस्तान के बिखरने और दुनिया भर में पसर जाने की कहानी। पुरबियों के विस्थापन की कहानी। आख़िर मैं भी तो एक विस्थापित पुरबिया हूँ। इतिहास को लेकर लिखी गई किसी किताब को आँकड़े महत्वपूर्ण नहीं बनाते, उसका इतिहासबोध मायने रखता है। उन आँकड़ों के पीछे की जो दृष्टि होती है वह। ‘कुली लाइंस’ दोनों लिहाज़ से बहुत मायने रखती है। इसीलिए नौर्वे प्रवासी डॉक्टर प्रवीण झा की पुस्तक ‘कुली लाइंस’ इस साल की सरप्राइज़ पुस्तक है। सरप्राइज़ इसलिए क्योंकि मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि प्रवीण झा इतनी अच्छी शोधपूर्ण पुस्तक लिखेंगे। वे डॉक्टर हैं, शोध में प्रशिक्षित हैं लेकिन इतिहास की किताब लिखना तलवार की धार पर चलना होता है।

अब सवाल यह है कि अभिमन्यु अनत का ‘लाल पसीना’ या अंग्रेज़ी के उपन्यासकार अमिताव घोष के इबिस त्रयी को पढ़ने के बाद भी गिरिमिटियाओं के बारे में पढ़ने को और क्या रह जाता है। यहाँ यह ध्यान दिला दूँ कि प्रवीण झा की किताब ‘कुली लाइंस’ नॉन फ़िक्शन है यानी इसमें जो भी लिख गया है सभी के संदर्भ मौजूद हैं। किताब दो तरह के पाठकों के लिए है- एक वे जो गिरिमिटिया जीवन के बारे में कुछ नहीं जानते हों- उनके लिए यह इतिहास पुस्तक है। लेकिन जिन्होंने उनके जीवन के बारे में अभिमन्यु अनत, अमिताव घोष के उपन्यास पढ़ रखे हों तो उनके लिए यह किताब पृष्ठभूमि का काम करती है। अगर इस उपन्यास को पढ़कर आप अमिताव घोष के उपन्यासों को पढ़ेंगे तो वह आपको अधिक समझ में आएगी। प्रवीण झा इसके लिए बधाई के पात्र हैं।

प्रवीण झा की पुस्तक को पढ़ने के पहले मैं यही समझता था कि गिरमिटिया बनकर केवल पूरबिए जहाज़ों में सवार हुए। किताब से यह पता चलता है कि दक्षिण से भी लोग बड़ी तादाद में गए। बल्कि इसी किताब से पता चला कि कुली वास्तव में तमिल भाषा का शब्द है, हिंदी का नहीं। इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है कि ‘कुली’ नाम से सबसे सफल फ़िल्म हिंदी में बनी हो।

किताब में अरकाटी के बारे में पढ़ने को मिलता है यानी वे एजेंट जो लोगों को बहला फुसला कर विदेश जाने के लिए राज़ी करते थे और बदले में उसको कमीशन मिलता था। ए के पंकज के उपन्यास ‘माटी माटी अरकाटी’ का ध्यान आया। प्रसंगवश, इस उपन्यास में झारखंड से बाहर गए आदिवासी मज़दूरों की कहानी है जिनको हिल कुली कहा गया।

ख़ैर, ‘कुली लाइंस’ किताब से यह भी पता चलता है कि केवल ऐसे ही लोग गिरमिटिया नहीं बने जिनको बहला फुसला कर ले जाया जाता था बल्कि कई बार लोग लड़-झगड़कर भी घर से भाग जाते थे। स्त्रियाँ भी जहाज़ी बनकर जाती थीं। याद आया कि अमिताव घोष के उपन्यास ‘सी ऑफ़ पॉपीज’ में कोलकाता से इबिस नामक जहाज़ पर दीठि भी नाम बदलकर सवार हो जाती है। सब इस सपने के साथ जहाज़ में सवार होते थे कि एक दिन पैसे कमाकर घर वापस लौट आएँगे। लेकिन वापस लौट पाना इतना मुश्किल कहाँ होता है। वे जहाँ गए अधिकतर वहीं के होकर रह गए, जो लौटकर आए वे अपनी धरती पर आकर भी विस्थापित ही रहे।

किताब के अंत में एग्रीमेंट का एक नमूना भी दिया गया, जिसके कारण उन लोगों को गिरमिटिया कहा जाने लगा। कुंती की चिट्ठी का हवाला भी आता है जो फ़ीजी गई थी और जहाँ उसका शोषण करने की बार बार कोशिश की। उसका पत्र 1913 में ‘भारत मित्र’ में प्रकाशित हुआ था, जिसमें कुंती ने भारत सरकार से यह अपील की थी कि किसी को गिरमिटिया बनाकर फ़ीजी ना आने दिया जाए।

किताब ऐसी नहीं है कि आप पढ़ें और भूल जाएँ। यह शेल्फ़ में सजाकर रखने वाली किताब है।

किताब का प्रकाशन वाणी प्रकाशन ने किया है।

प्रभात रंजन 

The post प्रवीण झा और उनकी किताब ‘कुली लाइंस’ appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1477

Trending Articles