आज मलयालम की प्रसिद्ध लेखिका कमला दास की पुण्यतिथि है। 31 तारीख़ का उनके जीवन में अजब संयोग था। 31 मार्च 1934 को उनका जन्म हुआ और 31 मई 2009 को अपने पीछे विपुल साहित्य और असंख्य विवादों को छोड़कर दुनिया से कूच कर गई। उनकी इस मार्मिक कहानी का अनुवाद किया है युवा कवयित्री-लेखिका-अनुवादिक अनामिका अनु ने- मॉडरेटर
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रत्नअम्मा गहरी नींद से चौंक कर उठी। उसने सपने में देखा कि उसका बच्चा उसके दूध के लिए रो रहा है। मगर बच्चा उसके बगल में नहीं था। जेल की चौंधियाती रोशनी ने रात को भी दिन बना दिया था। वह फ़र्श पर और दो औरतों के साथ लेटी हुई थी। दोनों वेश्याएं थीं, साधारण सी वेश्याएं।
उसने कल एक पुलिसवाले को कहते सुना था कि उन वेश्याओं को एक हफ्ते के भीतर छोड़ दिया जाएगा।
“लेकिन रंडी तुम बाहर नहीं जा पाओगी।” रत्नअम्मा के बालों को बेरहमी से दबोचते हुए वह पुलिस वाला गरजा।
“नेता हो न? एक महीना यहाँ गुजारो तब जान जाओगी तुम्हारी राजनीति कितनी गन्दी है…
रत्नअम्मा को आधी रात में गिरफ्तार किया गया था। भला हो उस भगवान का, रात में गिरफ्तार हुई! नहीं तो पुलिस की गाड़ी में जाते देखकर पड़ोसी अपमानजनक बातें करते- ”हमने तो शुरू में ही कह दिया था जिस रास्ते पर तुम आगे जा रही हो, वह तुम्हें जल्द ही बर्बाद कर देगा।”
इसके अलावा, अगर दिन में गिरफ्तारी हुई होती तो उसका नन्हा बच्चा जाग रहा होता और उसे जाते हुए देखकर जोर -जोर से रोने लगता। उसे जागते ही मेरे दूध की जरूरत होती है। उसके दोस्त अक्सर उससे पूछा कि नौ महीनों के बाद ही उसने बच्चे को अपना दूध पिलाना बंद क्यों नहीं किया? उन दिनों उसने अपने बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उसे जेल की हवा खानी पड़ेगी। यह बात सही है कि उसने कई जगहों पर जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर आमसभाओं में भाषण दिये थे। लेकिन वह हिंसा और क्रांति में विश्वास नहीं रखती। फिर भी हिरासत में उसे निर्वस्त्र कर प्रताड़ित किया गया। अपमानित किया गया। उसने सुना है कि ये प्रताड़ना तब खत्म होगी जब वह कोई राज़ खोल देगी। लेकिन उसके पास क्या खुफिया जानकारी है? कुछ भी तो नहीं। अगर बेरहमी से डंडे मार मार कर उसके घुटने तोड़ दिया जाए, तो भी वह क्या बता पाएगी? उसके सिर पर बार-बार लाठियाँ बरसायी जाती। बार-बार और कई बार वह बेहोश तक हो जाती। काली बर्बर रातें कभी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं ।दूसरी तरफ जेल की रौशनी जो दिन-रात एक ही तीव्रता से जलकर उसे जलाए जा रही थी।
“तुम सोयी नहीं?” बगल में लेटी दोनों महिलाओं में से एक ने पूछा।
वह अपने सिर को जोर-जोर से खुज़ला रही थी।
“ये साली जूँए भी न।” वह बोली।
“मैंने सुना है कि तुलसी से निचोड़े गए रस को बालों में लगाने से जुएँ गायब हो जाती हैं।” रत्नअम्मा बोली।
वह महिला उठकर बैठ गयी। उसने गोल छापे वाली साड़ी पहन रखी थी। पान सुपारी के खाने से उसके दांत काले पड़ चुके थे।
“तुम जरूर पढ़ी लिखी हो। तुम पढ़ी लिखी और अच्छे घर की लगती हो।”
रत्नअम्मा ने मुस्कुराने की कोशिश की। उसके होंठ घायल और सूजे हुए थे।
“सुना है तुम्हें भाषण देने के कारण यहाँ लाया गया है।” महिला ने कहा।
“गलत है अगर तुम भाषण देती हो,गलत है अगर तुम भूख से तड़प उठती हो और किसी पुरूष के बुलाने पर उसके पास जाती हो। सब ग़लत है, औरतें जो भी करती है सब ग़लत है।
“मर्दों को भी गिरफ्तार किया है। पिछली रात मैंने एक आदमी को लम्बे समय तक रोते हुए सुना था। उसे जरूर प्रताड़ित किया जा रहा होगा।” रत्नअम्मा बोली।
“इन्हें मर्दों को तंग करने में मजा नहीं आता है। इनको हमें नंगा करने और प्रताड़ित करने में आनंद आता है।”
“मैंने सुना है कि तुम दोनों को ये अगले हफ्ते छोड़ देंगे। तुम बच गयी।” रत्नअम्मा बोली।
“बच गये।” वेश्या बड़बड़ाई।
“हम यहाँ साल में पाँच या छः बार तंग करने के लिए लायी जाती हैं। फिर छोड़ दी जाती हैं। मैं यहाँ कई बार आ चुकी हूँ। क्या किया जाय? तीन बच्चे घर पर हैं… क्या उन्हें दिन भर में एक बार भी भोजन नहीं मिलना चाहिए? इसलिए रात में जब कोई बुलाता है तो मैं निकल जाती हूँ। यह मैं अपनी खुशी के लिए नहीं करती।” वेश्या बोली।
रत्नअम्मा कराह रही थी। उसके सिर पर गहरे जख्म थे। तेज रौशनी की तरह उसने एक गहरी पीड़ा महसूस की।
“क्या मैं तुम्हारा सिर थपथपा दूं?” महिला ने पूछा।
रत्नअम्मा ने ‘न’ में सिर हिलाया। फिर भी उस अधेड़ उम्र की वेश्या ने उसका सिर अपने गोद में रखा और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। रत्नअम्मा की आँखें भर आयी।
“मत रोओ मेरी बच्ची।अगर औरत के रूप में जन्म लिया है तो तुम्हें सब कुछ बर्दाश्त करना होगा। दर्द होता है,लेकिन हम क्या कर सकते हैं? बस उन्हें कह दो कि तुम फिर कभी भाषण नहीं दोगी।” वेश्या बोली।
रत्नअम्मा के ब्लाउज का अगला हिस्सा स्तन के बहते दूध से भींग गया था। इसे देखकर वेश्या बहुत मर्माहत हुई और बोली- “आह! तुम्हारा अभागा बच्चा भूख से रो रहा होगा। ये राक्षस हैं, भगवान करे इन शैतानों को चेचक हो जाए।ये बेरहम लोग।” वेश्या बोली।
“मेरे माथे और घुटने में दर्द है। मगर यह दर्द मैं बर्दाश्त कर सकती हूँ पर इस पीड़ा को नहीं, बिल्कुल नहीं।” रत्नअम्मा बोली। अपने दोनों स्तनों को हाथ से दबाते हुए वह दर्द से कराह उठी।
“तुम्हारे बच्चे का क्या नाम है?”
“मोहनन, मैं उसे उण्णि बुलाती हूँ।” रत्नअम्मा बोली।
“मेरे भी छोटे बेटे का नाम उण्णि है।” मुस्कुराते हुए वेश्या ने कहा।
लेखिका कमला दास
अनुवाद- अनामिका अनु
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