लुई फ़िशर की किताब के हिंदी अनुवाद ‘गांधी की कहानी’ से कुछ प्रासंगिक अंश चुने हैं भाई परितोष मालवीय। आप भी पढ़िए- मॉडरेटर
==============
गाँधी की आलोचना ठीक है और ज़रूरी भी, लेकिन इधर लोग गाँधी की आलोचना नहीं, गोडसे का गुणगान कर रहे हैं। पूरा एक विचार-तंत्र प्रचारित और प्रायोजित है, जिसमें उसे भगवान बताया-बनाया जा रहा है। ऐसे लोगों में कुछ उन्मादी हैं, तो कुछ अधपढ़े। उन्मादियों की दवा कुछ अलग ही है, लेकिन बाकियों के लिए सच रखना ज़रूरी है। जनवरी 1948 को शुक्रवार जिस दिन महात्माजी गांधी की मृत्यु हुई, उस दिन वह वही थे, जैसे सदा से रहे थे- अर्थात् एक साधारण नागरिक, जिसके पास न धन था, न सम्पत्ति, न सरकारी उपाधि, न सरकारी पद, न विशेष प्रशिक्षण-योग्यता, न वैज्ञानिक सिद्धि और न कलात्मक प्रतिभा। फिर भी, ऐसे लोगों ने, जिनके पीछे सरकारें और सेनाएँ थीं, इस अठहत्तर वर्ष के लंगोटीधारी छोटे-से आदमी को श्रद्धांजलियाँ भेंट की। भारत के अधिकारियों को विदेशों से संवेदना के 3441 संदेश प्राप्त हुए, जो सब बिन माँगे आए थे, क्योंकि गांधीजी एक नीतिनिष्ठ व्यक्ति थे, और जब गोलियों ने उनका प्राणांत कर दिया, तो उस सभ्यता ने जिसके पास नैतिकता की अधिक संपत्ति नहीं है, अपने-आपको और भी अधिक दीन महसूस किया। अमरीकी संयुक्त राज्यों के राज्य-सचिव जनरल जार्ज मार्शल ने कहा था-’’महात्मा गांधी सारी मानव जाति की अंतरात्मा के प्रवक्ता थे।’’ फ्रांस के समाजवादी लियो ब्लम ने वह बात लिखी जिसे लाखों लोग महसूस करते थे। ब्लम ने लिखा-’’मैंने गांधी को कभी नहीं देखा। मैं उनकी भाषा नहीं जानता। मैंने उनके देश में कभी पांव नहीं रखाः परंतु फिर भी मुझे ऐसा शोक महसूस हो रहा है, मानो मैंने कोई अपना और प्यारा खो दिया हो। इस साधारण मनुष्य की मृत्यु से सारा संसार शोक में डूब गया है।’’ पोप पायस, तिब्बत के दलाई लामा, कैंटरबरी के आर्कबिशप, लंदन के मुख्य रब्बी, इंग्लैंड के बादशाह, राष्ट्रपति ट्रू मैन, च्याँगकाई शेक, फ्रांस के राष्ट्रपति और वास्तव में लगभग सभी महत्वपूर्ण देशों तथा अधिकतर छोटे देशों के राजनैतिक नेताओं ने गांधीजी की मृत्यु पर सार्वजनिक रूप से शोक प्रदर्शन किया। गांधीजी की मृत्यु पर संसारव्यापी प्रतिक्रिया स्वयं ही एक महत्वपूर्ण तथ्य था। उसने एक व्यापक मनःस्थिति और आवश्यकता को प्रकट कर दिया। न्यूयार्क के ’पीएम’ नामक समाचारपत्र में एल्बर्ट ड्यूत्श ने वक्तव्य दिया। ’’जिस संसार पर गांधी की मृत्यु की ऐसी श्रद्धापूर्ण प्रतिक्रिया हुई। उसके लिए अभी कुछ आशा बाकी है।’’ प्रोफेसर अल्बर्ट आइन्स्टीन ने दृढ़ता से कहा है-’’गांधी ने सिद्ध कर दिया कि केवल प्रचलित राजनैतिक चालबाजियों और धोखाधडि़यों के मक्कारी-भरे खेल के द्वारा ही नहीं, बल्कि जीवन के नैतिकतापूर्ण श्रेष्ठतर आचरण के प्रबल उदाहरण द्वारा भी मनुष्यों का एक बलशाली अनुगामी दल एकत्र किया जा सकता है।’’ संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने अपनी बैठक की कार्रवाई रोक दी ताकि उसके सदस्य दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें। ब्रिटिश प्रतिनिधि फिलिप नोएल-बेकर ने गांधीजी की प्रशंसा करते हुए उन्हें ’’सबसे गरीब, सबसे अलग और प्रथभ्रष्ट लोगों का हितचिंतक’’ बतलाया। सुरक्षा परिषद के अन्य सदस्यों ने गांधीजी के आध्यात्मिक गुणों की बहुत प्रशंसा की और शांति तथा अहिंसा के प्रति उनकी निष्ठा को सराहा। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपना झंडा चुका दिया। उपन्यास लेखिका पर्ल एस. बक ने गांधीजी की हत्या को ’ईसा की सूली’ के समान बतलाया। जापान में मित्रराष्ट्रों के सर्वोच्च सेनापति जनरल डगलस मैकआर्थर ने कहा- ’’सभ्यता के विकास में, यदि उसे जीवित रहना है। तो सब लोगों को गांधी का यह विश्वास अपनाना ही होगा कि विवादास्पद मुद्दों को हल करने में बल के सामूहिक प्रयोग की प्रक्रिया बुनियादी तौर पर न केवल गलत है बल्कि उसीके भीतर आत्मविनाश के बीज विद्यमान हैं।’’ सर स्टैफर्ड क्रिप्स ने लिखा था-’’मै किसी काल के और वास्तव में आधुनिक इतिहास के ऐसे किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं जानता, जिसने भौतिक वस्तुओं पर आत्मा की शक्ति को इतने जोरदार और विश्वासपूर्ण तरीके से सिद्ध किया हो।’’ न्यूयार्क में 12 साल की एक लड़की कलेवे के लिए रसोईघर में गई हुई थी। रेडियो बोल रहा था और उसने गांधीजी पर गोली चलाए जाने का समाचार सुनाया। लड़की, नौकरानी और माली ने वहीं रसोईघर में सम्मिलित प्रार्थना की और आँसू बहाए। इसी तरह सब देशों में करोड़ों लोगों ने गांधीजी की मृत्यु पर ऐसा शोक मनाया, मानो उनकी व्यक्तिगत हानि हुई हो। गांधी जी के लिए शोक करने वाले लोगों को यही महसूस हुआ। उनकी मृत्यु की आकस्मिक कौंध ने अनंत अंधकार उत्पन्न कर दिया। उनके जमाने के किसी भी जीवित व्यक्ति ने, महाबली प्रतिपक्षियों के विरुद्ध लंबे और कठिन संघर्ष में सच्चाई, दया, आत्मत्याग, विनय, सेवा और अहिंसा का जीवन बिताने का इतना कठोर प्रयत्न नहीं किया और वह भी इतनी सफलता के साथ। वह अपने देश पर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध और अपने ही देशवासियों की बुराइयों के विरुद्ध तीव्र गति के साथ और लगातार लड़े परंतु लड़ाई के बीच भी उन्होंने अपने दामन को बेदाग रखा। वह बिना वैमनस्य या कपट या द्वेष के लड़े।
श्री लुई फिशर की पुस्तक ’’गांधी की कहानी’’ के अंश।
The post गांधी की आलोचना से गोडसे के गुणगान तक appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..