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त्रिपुरारि की कुछ नई ग़ज़लें

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आज युवा शायर त्रिपुरारि की कुछ नई ग़ज़लें पढ़िए- मॉडरेटर
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ग़ज़ल-1
तिरा ख़याल है या गुनगुना सा पानी है
मिरी निगाह में जो अनकहा सा पानी है
हमारी सम्त नज़र जब पड़ी तो उसने कहा
उदासियों में घिरा ख़ुशनुमा सा पानी है
मैं ख़ल्वतों में जिसे हम-सुख़न समझता हूँ
बहुत हसीन मगर ग़मज़दा सा पानी है
बदन की क़ैद से जो आज तक रिहा न हुआ
हयात धुन पे ज़रा नाचता सा पानी है
तमाम रंग उड़े हैं तमाम चेहरों के
ये क्या हुआ था कि अब तक बुझा सा पानी है
हँसी के होंट को छूकर मैं लौट आया हूँ
वहाँ भी तह में अजब टूटता सा पानी है
हमारी रूह में कुछ अधजली सी लाशें हैं
हमारे जिस्म में कुछ अधमरा सा पानी है
ये नींद क्या है कोई भुरभुरी सी मिट्टी है
ये ख़्वाब क्या है नया अधखिला सा पानी है
ग़ज़ल-2
जिस्म के ख़्वाब सजाते हुए दम घुटता है
उसके नज़दीक भी जाते हुए दम घुटता है
उसका दावा है कि वो इश्क़ बहुत करती है
सो तअल्लुक़ को निभाते हुए दम घुटता है
तुमने इक उम्र तलक ज़हर पिलाया है क्या
किसलिए जाम पिलाते हुए दम घुटता है
जिस गली में थी कभी ख़ाक उड़ाई हमने
उस गली से ही तो आते हुए दम घुटता है
शाख़ वो जिसपे परिंदों ने बनाया हो घर
हाँ वही शाख़ हिलाते हुए दम घुटता है
फूल-तितली से कोई रब्त नहीं है लेकिन
फूल से तितली उड़ाते हुए दम घुटता है
लोग जो प्यार में धोका भी नहीं दे सकते
रूह में उनको बसाते हुए दम घुटता है
ग़ज़ल-3
ज़िंदगी दर्द बना दो तो मज़ा आ जाए
मुझ को मरने की दुआ दो तो मज़ा आ जाए
प्यार से जाम बढ़ाओ मिरी जानिब लेकिन
जाम में ज़हर मिला दो तो मज़ा आ जाए
तुम ने लिक्खा है मिरा नाम लब-ए-साहिल पर
लहर से पहले मिटा दो तो मज़ा आ जाए
जिस ने ये इश्क़ बनाया है, ख़ुदा है शायद
तुम ख़ुदा को ही सज़ा दो तो मज़ा आ जाए
मुझ में इक आग है रह रह के भड़क उठती है
आग को और हवा दो तो मज़ा आ जाए
तुम मिरे ख़ून से अब लिख दो किसी ग़ैर का नाम
हैसियत मेरी बता दो तो मज़ा आ जाए
चाँद की तरह मैं रातों को जला करता हूँ
चाँद सीने का बुझा दो तो मज़ा आ जाए
क्या? गुज़रता ही नहीं एक भी पल मेरे बिना
यूँ करो मुझको भुला दो तो मज़ा आ जाए
गर मुझे डूब ही मरना है किसी दरिया में
अपनी बाँहों मे डुबा दो तो मज़ा आ जाए
मैं जो इतराऊँ कभी अपनी हुनरबाज़ी पर
मुझ को आईना दिखा दो तो मज़ा आ जाए

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