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राजकमल प्रकाशन के सत्तर साल और भविष्य की आवाजें

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राजकमल प्रकाशन के सत्तरवें साल के आयोजन के आमंत्रण पत्र पर सात युवा चेहरों को एक साथ देखना मुझे हिंदी साहित्यिक हलके की एक बड़ी घटना की तरह लगती है. राजकमल प्रकाशन ने एक तरह से हिंदी के कैनन निर्माण में भूमिका निभाई है. निस्संदेह राजकमल हिंदी की प्रगतिशील मुख्यधारा का सबसे बड़ा प्रकाशक है तो उसने हिंदी की नई-नई प्रवृत्त्तियों को भी स्वीकारा है, हिंदी के नए मुहावरों को मंच दिया और नई आवाजों को मुखर किया. यह कहना शायद अतिशयोक्ति न हो कि आजादी के बाद का हिंदी साहित्य का इतिहास बहुत कुछ राजकमल प्रकाशन का इतिहास भी होगा. राजकमल इतिहास भी है, वर्तमान भी और हिंदी के भविष्य के आहटों को सबसे पहले सुनने और समझने का भी काम उसने निरंतर किया है. ऐसे में ‘भविष्य के स्वर’ आयोजन में सात युवा चेहरों को एक साथ देखना यह बताता है कि युवा रचनाशीलता को उसकी सम्पूर्ण विविधता में स्वीकार करके राजकमल ने यह बताया है कि वास्तव में समकालीन युवा लेखन अब तक का सबसे विविधवर्णी युवा लेखन है, वह केवल गल्प नहीं लिखता है, समकालीन युवा लेखन एकांगी नहीं है, नॉन फिक्शन तथा साहित्य की अन्य विधाओं में भी उसकी दखल है, उसकी पकड़ है. वह परंपरामुक्त बदलाव का लेखन नहीं है बल्कि हिंदी की समृद्ध परम्परा के विस्तार का लेखन है, जो बहुत सी विधाएं सिमटती जा रही थीं उनके पुनराविष्कार का लेखन है. वर्तमान में वह उतना स्पष्ट भले न दिख रहा हो भविष्य में उसका रूप शायद और स्पष्ट हो- यही भविष्य के स्वर हैं.

मैं निजी तौर पर इस इस आयोजन को लेकर बहुत उत्सुक हूँ और आप सभी से यह आग्रह भी करता हूँ कि 28 फ़रवरी को इण्डिया इन्टरनेशनल सेंटर के मल्टीपर्पस हॉल में शाम छः बजे आएं- सात आवाजों, सात विचारों को सुनें.

प्रभात रंजन

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