स्टोरीटेल के ऐप पर दो तरह के कंटैंट हैं- एक तो हिन्दी के बड़े प्रकाशकों जैसे राजकमल, वाणी प्रकाशन जैसे प्रकाशनों से प्रकाशित प्रमुख किताबें औडियो बुक के रूप में उपलब्ध हैं। दूसरे, स्टोरीटेल पर धारावाहिक कथा सीरीज भी हैं जो लेखक उनके लिए लिखते हैं। अँग्रेजी, हिन्दी और मराठी भाषाओं के सुनने वालों के बीच यह अच्छी पैठ बना रहा है। आज स्टोरीटेल के कंटेन्ट के ऊपर लिखा है शिल्पा शर्मा ने जो उसके लिए लिखती भी हैं, पुस्तकों का सम्पादन भी करती हैं। आइये उनके अनुभव जानते हैं- मॉडरेटर
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जब भी दादी घर पर हों तो सोते समय उनसे कहानी सुने बिना मुझे नींद जैसे आती ही नहीं थी. अब सोचती हूं तो पाती हूं कि न जाने कितनी पौराणिक कहानियां, कितनी किंवदंतियां, कितनी कहावतें और उनके पीछे की कहानियां, उन्होंने बड़ी आसानी कहानी के रूप में हमारे दिलो-दिमाग़ में उतार दी थीं. जब तक हम बड़े हुए, एकल परिवारों का चलन बढ़ गया, लेकिन फिर भी मैंने अपने बेटे को रात को सोते समय कहानियां सुनाने का क्रम जारी रखा. न जाने कब उसके लिए यह ज़िम्मा मुझसे मेरे पति ने ले लिया और उसे भारत के इतिहास की कहानियां सुनाने लगे. अब आलम ये है उसे देश-विदेश के इतिहास को जानने का चस्का लग चुका है.
पर आज के वर्किंग पैरेंट्स अपने छोटे बच्चों को कहानी सुनाने का वक़्त कहां निकाल पाते हैं? और बात केवल छोटे बच्चों की ही नहीं, बड़ों की भी है. मोबाइल ऐप्स पर ई-बुक्स उपलब्ध होने के बावजूद हम बड़े लोग भी तो साहित्य और पठन-पाठन से दूर होते जा रहे हैं. इसके लिए हम भले ही हम अपनी तमाम व्यस्तताओं को दोष दें, पर इस बात को नकार नहीं सकते कि पठन-पाठन से दूर होने का अर्थ है आत्मिक समृद्धि से दूर होना. ये दोनों बातें जब-तब मेरे दिमाग़ में आती रहती थीं… और इसी बीच एक दिन मेरी लेखिका, चित्रकार और फ़िल्म निर्देशक मित्र इरा टाक ने मुझे फ़ोन किया और पूछा, ‘‘क्या आप एक सप्ताह के भीतर एक कहानी लिखकर दे सकती हैं?’’ जब मैंने पूछा किसके लिए? तो उन्होंने मुझे स्टोरीटेल इंडिया (https://www.storytel.in/) के बारे में बताया, जो स्वीडिश ऑडियोबुक स्ट्रीमिंग कंपनी स्टोरीटेल की भारत में दस्तक थी. उनकी उपस्थिति से अनजान मैं उनके कंसेप्ट को सुनकर अचरज और ख़ुशी से भर गई. स्टोरीटेल अपने ऐप के ज़रिए अपने सब्स्क्राइबर्स को ऑडियो बुक्स और ई-बुक्स उपलब्ध कराता है. यह अंग्रेज़ी और हिंदी के अलावा कई अन्य भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध है. यहां ढेर सारे विषयों की बेस्ट सेलर बुक्स, ऑडियो और ई-बुक के रूप में मौजूद हैं, जैसे-आत्मकथाएं, बच्चों की कहानियां, क्लासिक किताबें, क्राइम, इरोटिका और इकोनॉमी व बिज़नेस… यानी हर एक के लिए अपनी रुचि की एक किताब मौजूद है. आप इसे सफ़र के दौरान, दिन में फ़ुरसत में होने पर या रात को सोते समय सुन सकते हैं. मुझे इस बात ने बहुत सुकून दिया कि अब लोग क़िस्सागोई का आनंद कभी-भी, कहीं-भी और आसानी से ले सकेंगे और ख़ुद को समृद्ध कर सकेंगे. एकल परिवार में रहने वाले बच्चों को अब भले ही दादी-नानी न सही, पर स्टोरीटेल इंडिया तो दिलचस्प, रोचक, रुचिकर और सीख देती हुई कहानियां सुनाकर उनके बचपन को और जीवंत बना देगा.
स्टोरीटेल से मेरा परिचय वर्ष 2017 के आख़िरी सप्ताह और 2018 की शुरुआत के बीच कहीं हुआ था, जब मैंने उनके लिए पहली ऑडियो बुक ‘चलती रहे ज़िंदगी’ लिखी, जो एक फ़ैमिल ड्रामा था. इसी दौरान स्टोरीटेल इंडिया की सौम्य मुस्कान और मधुर स्वभाव वाली चीफ़ एडिटर प्रियंवदा रस्तोगी के ज़रिए मेरी मुलाक़ात स्टोरीटेल इंडिया के संस्थापक योगेश दशरथ और उनके सहकर्मियों से हुई. ऊर्जा से लबरेज़ उनकी टीम जिस तरह ऑडियो बुक्स के ज़रिए क़िस्सागोई को अपने सब्स्क्राइबर्स के जीवन का हिस्सा बना रही है, वो तारीफ़ के क़ाबिल है.

सबसे पहले मैंने स्टोरीटेल ऐप पर मुंशी प्रेमचंद की किताब ‘गोदान’ को सुना. वॉइस ओवर आर्टिस्ट्स की आवाज़ ने तो कहानी में जैसे जान ही फूंक दी थी. यूं लगा जैसे होरी और धनिया मेरे सामने खड़े अपनी दिनचर्या की बातचीत कर रहे हों. उन क़िरदारों से जुड़ाव और भी गहरा हो गया. इसके बाद मैंने इरा टाक की लिखी ऑडियो बुक ‘पटरी पर इश्क़’ सुनी. सुंदर कहानी और प्रभावी वॉइस ओवर… दोनों ने मिलकर कहानी को मानस पटल पर साकार कर दिया. फिर मैंने बच्चों के सेक्शन की ऑडियो बुक ‘फंस गई किन्नू’ सुनी. चुलबुली और प्यारी छोटी बच्ची किन्नू कब मेरे दिल में उतर गई पता ही नहीं चला. मैं उसके साथ जैसे अपना बचपन जीने लगी.
इसके बाद जब मैंने अपनी लिखी कहानी को ऑडियो बुक के फ़ॉर्म में सुना तो यह बात पूरी तरह महसूस कर सकी कि कहानी को कहने का अंदाज़ अच्छा हो तो उसमें मौजूद संवेदनशीलता दिलो-दिमाग़ में कहीं गहरे रच-बस जाती है. इस सिलसिले में एक बात का उल्लेख बहुत ज़रूरी है और वो है, वॉइसओवर आर्टिस्ट्स और कहानी में उनके जान फूंक देने की. मुझे बताया गया कि सुनीता शर्मा, जिन्होंने मेरी कहानी को आवाज़ दी थी, कहानी के एक क़िरदार को आवाज़ देते समय कहानी की भावुकता में इतनी बह गईं कि उनका गला भर आया और उन्होंने उस हिस्से की रिकॉर्डिंग पांच मिनट के ब्रेक के बाद दोबारा शुरू की… तो सोचिए, कितने गहरे उतरकर ये आर्टिस्ट इन कहानियों और कथानकों में सजीवता डाल देते हैं.
कुछ समय बाद प्रियंवदा ने मुझे अपने एडिटर्स के पैनल में शामिल किया और मैं अब तक इस ऐप के लिए तीन ऑडियो बुक्स एडिट कर चुकी हूं. इन बुक्स को एडिट करने के दौरान मैंने पाया कि स्टोरीटेल इंडिया की टीम अपने कॉन्टेंट को बनाने के लिए छोटी-छोटी से लेकर बड़ी-बड़ी बातों तक बहुत संजीदगी से काम करती है. किसी विषय को चुनने से लेकर उसे अंजाम तक पहुंचाने के दौरान हर बात का बारीक़ी से ध्यान रखा जाता है, तभी तो अंतिम प्रोडक्ट ऐसा आता है, जिसे ई-बुक्स के रूप में पढ़कर आपकी आंखों के सामने जैसे उसके चित्र खिंचते जाते हैं और ऑडियो बुक्स के रूप में सुनकर यूं लगता है कि जैसे आपके ज़हन में उसके क़िरदार साकार रूप में मौजूद हैं.
मुझे पता है, जल्द ही स्टोरीटेल इंडिया अपने ऐप स्टोरीटेल के ज़रिए देश के हर घर में और हर सदस्य के दिल में भी जगह बना लेगा. क्योंकि इनका कॉन्टेंट सामयिक, रुचिकर और विविधता लिए हुए है, जो हर उम्र के पाठक और लिसनर की पसंद का ख़्याल रखता है. स्टोरीटेल के होते यदि कुछ ही दिनों में लोग एक-दूसरे से ये पूछने लगें कि ‘इन दिनों कौन-सी बुक सुन रहे हो?’ तो मुझे बिल्कुल अचरज नहीं होगा.
संपर्क- +919967974469
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