हिन्दी प्रकाशन के क्षेत्र में हाल के वर्षों में जिन कुछ लोगों ने संपादक की संस्था को मजबूत बनाया है उनमें सत्यानंद निरुपम का नाम प्रमुख है। हाल में ही हिन्दी के सबसे बड़े प्रकाशन ब्रांड राजकमल प्रकाशन समूह में संपादकीय निदेशक के रूप में काम करते उनको पाँच साल पूरे हो गए। इस अवसर पर उनकी यह बातचीत प्रस्तुत है। बातचीत नीता गुप्ता ने की है। नीता गुप्ता यात्रा बुक्स की प्रकाशक हैं। आप भारतीय अनुवाद परिषद में जॉइंट सेक्रेटरी हैं और वहां से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका ‘अनुवाद’ की संपादक भी। आप जयपुर बुक मार्क की सह-निर्देशक भी हैं।उनसे निजी तौर पर मैंने और मेरे जैसे अनेक अनुवादकों, लेखकों ने उनसे बहुत कुछ सीखा है। इसलिए इस बातचीत को पढ़कर मुझे कुछ ईर्ष्या भी हुई और गर्व भी हुआ। इस बातचीत के कुछ अंश ब्लूम्सबरी प्रेस से शीघ्र प्रकाशित होने वाली मेघना पंत द्वारा संपादित पुस्तक में भारतीय भाषा प्रकाशन पर नीताजी के एक लेख में उद्धृत है। पूरी बातचीत यहाँ प्रस्तुत है, नीता जी की टिप्पणी के साथ- मॉडरेटर
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सत्यानंद निरुपम से दिसंबर 2008 में नमिता गोखले जी ने पहली बार मिलवाया था। 2009 में निरुपम यात्रा बुक्स से जुड़े और कुछ ही महीनों बाद हमारी सह प्रकाशन योजना के अंतर्गत, पेंगुइन बुक्स इंडिया के एडिटोरियल बोर्ड में शामिल हुए। इसी अगस्त में निरुपम राजकमल में अपने कार्यकाल के पांच साल पूरे कर चुके हैं, और मुझे उतनी ही ख़ुशी हो रही है जितनी कि किसी माँ को होती है। कितनी बातें ऐसी हैं जो मुझे लगता है मैंने उन्हें सिखाई हैं, और कितना कुछ मुझे भी उनसे सीखने को मिला है। उनकी प्रकाशन योजनाओं को लेकर हाल ही में मैंने एक इंटरव्यू लिया था, जिसका मुख्य बिंदु नए लेखकों को उनके द्वारा मौका देने के विषय में था। उसी साक्षात्कार से कुछ अंश आपके लिए प्रस्तुत हैं:- नीता गुप्ता।
1. आप नयी आवाज़ों को कैसे ढूँढ़ते हैं ?
हमारे पास ढेरों नए लेखक अपने प्रस्ताव भेजते हैं. उनमें से जो हमें अपने अनुकूल लगते हैं, उन्हें चुन लेते हैं. यह परम्परागत तरीका अभी भी चलन में है, क्योंकि हिंदी में बहुत लोग अभी भी सोशल मीडिया से दूर ख़ामोशी से अपना लेखन कर रहे हैं और वे चिट्ठियों या फोन के जरिये ही हमसे सम्पर्क कर पाते हैं. इसके बावजूद हम नए पाठकों की जरूरत को समझते हुए, नए तरह के कंटेंट के लिए सोशल मीडिया पर लिख रहे नए लोगों के पोस्ट्स, उन पर आई टिप्पणियों को ठीकठाक समय तक स्कैन करते हैं. अख़बारों और पत्रिकाओं पर भी हमारी नजर रहती है. जैसा कंटेंट हमें चाहिए, उसके हिसाब से लेखक चुन लेते हैं. कई बार ऐसा होता है कि लेखक के पास अपने विषय होते हैं, कई बार हम अपने विषय की तरफ उन्हें मोड़ते हैं. कई बार पहले हम विषय तय करते हैं, फिर उसके लिए कोई सही लेखक ढूंढते हैं. ऐसे मौकों पर नए लेखक ज्यादा ठीक चयन साबित होते हैं.
2. क्या अंग्रेजी की तरह हिंदी साहित्य जगत में भी लिटरेरी एजेंट की गुंजाईश है?
हिंदी में इनफॉर्मल लिटरेरी एजेंट लम्बे समय से हैं. सामने में वे नहीं दिखेंगे, किसी-किसी और पहचान में दिखेंगे, लेकिन हैं. और अगर बारीकी से इस पूरे छुपे तंत्र की गतिविधियों का अध्ययन हो, इनके कंट्रीब्यूशन को आंका जाए तो हैरान कर देने वाली सचाइयां सामने आएंगी. हिंदी पब्लिशिंग इंडस्ट्री की बड़ी कमजोरियों में से एक यह है. इससे बेहतर और स्वास्थ्यप्रद बात यह होती कि हिंदी में अनौपचारिक ढंग से काम करने वाले इन हिडेन एजेंट के बदले औपचारिक तौर पर काम करने वाले लिटरेरी एजेंट सक्रिय हुए होते. लेकिन वह दूर की कौड़ी है. उनके सक्रिय होने से पहले हिंदी प्रकाशन उद्योग में सम्पादक नाम की मजबूत संस्था की जरूरत है.
3. और बुक स्काउट्स की क्या भूमिका है?
हिंदी में कुछ बुक स्काउट्स बहुत अच्छे रहे हैं, अभी भी हैं. लेकिन इनकी पहचान इनफॉर्मल है. हिंदी के सबसे बड़े प्रकाशन समूह होने के नाते हमें इनकी खास जरूरत रहती है. हम इन्हें फॉर्मल पहचान देना चाहते हैं. इस दिशा में जल्द कुछ ठोस निर्णय लेंगे.
4. आप जाने-माने प्रकाशक हैं, तो आपके पास औसतन कितने मैनुस्क्रिप्ट रोज़ पहुँचते हैं?
रोज औसतन 15 प्रकाशन प्रस्ताव हमें मिलते हैं.
5. एक साल में आप कितनी किताबें छाप लेते हैं? इनमे कितने नए लेखकों को जगह मिलती है?
औसतन कम से कम 150 नई किताबें हम हर साल प्रकाशित करते हैं. पुराने और नए लेखकों का अनुपात औसतन 80-20 का होता है. अब हम नए लेखकों का औसत बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस साल शायद ऐसे लेखक हमारे यहाँ 30% से ज्यादा हों जिनकी पहली किताब हमारे यहाँ से छप रही है.
6. स्थापित बनाम नए लेखकों की पुस्तकों के प्रिंट रन किस हिसाब से नियमित किये जाते हैं?
स्थापित और एकदम नए लेखक- दोनों की नई किताबों के प्रिंट रन बराबर ही होते हैं. हाँ, दोनों तरह के लेखकों की नई पोटेंशियल किताबों का प्रिंट रन रेगुलर से अलग, ज्यादा हुआ करता है.
7. विक्रय सम्बन्धी आंकड़ों पर आपकी राय?
किसी नई किताब की अच्छी बिक्री का मतलब हमारे लिए यह है कि एक साल के अंदर कम से कम उसकी दो हजार प्रतियाँ बिक जाएं. ठीकठाक मतलब हजार प्रतियाँ. लेकिन साहित्य में धीमे और नियमित बिकने वाली किताबें ज्यादा होती हैं और वैसी किताबें हमारे पास बहुत हैं. हम अच्छे साहित्य को तरजीह देते रहे हैं, भले वह कम बिके.
8. अप्प किसी किताब को बेस्टसेलर कब घोषित करते हैं ?
10 से 12 हफ्ते में जिस किताब की कम से कम 10,000 प्रतियाँ बिक जाएं, उसे बेस्टसेलर कह लेते हैं. साल भर में 5000 प्रतियाँ बिकने वाली नई किताबें भी हमारे यहाँ से कई हैं, लेकिन हमने उन्हें बेस्टसेलर नहीं कहा. बहुत सारी पुरानी किताबें हैं, जिनकी अब साल भर में 20,000 से ज्यादा प्रतियाँ बिकती हैं, उन्हें भी बेस्टसेलर नहीं कह कर, पाठकप्रिय किताबें कहते हैं.
9. आपके कार्यकाल में क्या नए लेखक भी बेस्टसेलर बने हैं?
ऐसा कम होता है. ‘इश्क में शहर होना’ की सफलता हिंदी की रेयर सफलता थी. 20 दिनों में 3000 प्रतियों की अमेज़न से प्री बुकिंग. 3 माह में 10000 प्रतियों की बिक्री. यह वाकई अलग अनुभव रहा. लेकिन उसके पीछे पीछे ऐसी कई किताबें अब आ चुकी हैं जिनकी साल भर में मजे मजे में 5000 प्रतियाँ या उससे अधिक बिक गईं हैं.
10. क्या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आप अपने लेखकों को रिप्रेजेंट करते हैं ?
हाँ, हम रिप्रेजेंट करते तो हैं. और बेहतर ढंग से करने की जरूरत महसूस हो रही है. करेंगे.
11. क्या आपके लेखकों को फिल्म और डिजिटल मीडिया में प्रवेश मिल पाया है?
हमारे यहाँ से कई किताबों पर फिल्में बन चुकी हैं. कुछ सफल भी रही हैं. आजकल और ज्यादा दिलचस्पी बढ़ी है लोगों की. हमलोग उनके साथ सकारात्मक ढंग से बातचीत आगे बढ़ा रहे हैं.
12. मार्केटिंग के लिए आपका प्रकाशन समूह सोशल मीडिया पर कितना विश्वास रखता है ?
यह हमारे प्रकाशन समूह का सबसे कारगर माध्यम साबित हुआ है. इससे रेवेन्यू पर सीधे असर पड़ा है. हमारे पास अब पूरी टीम है इसके लिए और हर दिन, हर महीने की योजना के साथ काम हो रहा है.
नए लेखकों के लिए कोई ख़ास सुझाव ?
अपनी भाषा के क्लासिक और पॉपुलर-दोनों तरह के लेखकों की बहुचर्चित किताबें पढ़ें. धैर्य और तैयारी से लेखन में उतरें. नए अनुभव क्षेत्र को अपने लेखन का विषय बनाएं.