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गांधी के वैष्णव को यहाँ से समझिए

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जानेमाने पत्रकार और लेखक मयंक छाया शिकागो में रहते हैं और मूलतः अंग्रेजी में लिखते हैं। दलाई लामा की आधिकारिक जीवनी उन्होंने ही लिखी है जिसका तर्जुमा चौबीस भाषाओं में हो चुका है.  उन्होंने 2015 में गान्धीज सौंग नामक फिल्म बनाई, जो हिंसा के दौर में गांधी के विचारों की प्रासंगिकता को दर्शाती है फिल्म पर एक सारगर्भित टिप्पणी अमेरिका स्थित लेखिका, हिंदी पेशेवर संगीता ने लिखी है- जानकी पुल.जाने-माने पत्रकार और लेखक मयंक छाया ने हालाँकि गांधीज सॉन्ग नामक फ़िल्म 2015 में ही बनाई थी। इसे एक बार फिर से देखे जाने की ज़रूरत है। हम सब जानते हैं कि “वैष्णव जन तो तेेने कहिए…” गांधीजी का प्रिय भजन था लेकिन हमलोग इस भजन के रचयिता नरसिंह मेहता के बारे में बहुत कम जानते हैं जिन्हें नरसी मेहता या नरसी भगत के लोकप्रिय नाम से भी जाना जाता है। यह भजन सुनने के दौरान हम आसानी से समझ सकते हैं कि गांधी के गांधी होने में इस गीत या भजन का कितना ज्यादा योगदान है। हम सब अपनी पसंदों, अपने मूल्यों, अपने दर्शन के अनुसार ही अपना मार्गदर्शक चुनते हैं और गांधी ने नरसी भगत के इस भजन को न केवल चुना बल्कि उसे जीवन में रचा-बसा लिया और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बना लिया।

पंद्रहवीं सदी के संत कवि नरसिंह मेहता पर मयंक छाया द्वारा बनाया गया करीब पिचहत्तर मिनट का यह वृत्त चित्र अनूठा है। जिस साल यह फिल्म बनाई जा रही थी, उस साल नरसिंह मेहता के जन्म के छह सौ साल हो गए थे। छह सौ साल बाद भी गुजराती भाषा में लिखा गया यह गीत पूरे भारत में कई रूपों में गाया जाता है — स्कूल के एसेंबलियों में, प्रार्थना सभाओं में। नरसी के इस गीत को लोग आज भी इसे गांधी का भजन के रूप में जानते हैं। शायद यही कारण है कि इस फिल्म का शीर्षक गांधीज सॉन्ग रखा गया है।

इस फिल्म में जाने-माने गांधीवादी चिंतक त्रिदिप सुहृद, गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी, नरसिंह मेहता पर महत्वपूर्ण शोध करने जवाहर बख्शी सहित कई लोगों के साथ छोटी-छोटी बात-चीत भी शामिल की गई है। मंयक छाया के द्वारा बनाई गई यह फिल्म वाकई एक दस्तावेज है। करोड़ों लोगों द्वारा बार-बार सुबह-शाम दोहराया जाने वाला यह प्रार्थनानुमा गीत असल में एक जनगीत है जिसमें भारतीयता की बुनियाद छिपी है। इस फिल्म को देखते हुए आप नरसी के गीत को एक बार फिर सुनिए-गुनिए और पड़ताल कीजिए कि हम क्यों नरसी के वैष्णव जन न बन पाए…, हम आज क्यों जाति-धर्म-संप्रदाय के आधार पर बँटे स्वार्थ, अहंकार, घृणा, परनिंदा, वहशीपन, वासना, लोभ, क्रोध, इर्ष्या तथा दरिंदगी से भरे नरभक्षी समाज बनाने को आतुर है। आपको लगेगा कि हम सबके नरसी आज भी गुनगुना रहे हैं, आपसे कुछ कह रहे हैं, अनुरोध कर रहे हैं। गांधीज सॉन्ग नामक इस फिल्म में नरसी हैं, उनके कृष्ण हैं, राधा हैं, रासलीला है, सुंदर समाज का ताना-बाना लिए उनके गीतों को गाते उनके लोग हैं।

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