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दीप्ति कुशवाह की कविताएँ

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आज पढ़िए दीप्ति कुशवाह की कविताएँ। समकालीन संदर्भों से युक्त इन कविताओं का अलग ही आस्वाद है। आप भी पढ़िए-

1, ओ एल एक्स

बेच दे
उंगलियाँ गोंच-गोंच कर
कहा जा रहा है हमसे, बेच दे
यादों के धागे से बुने वस्त्र
वह आईना जिसमें अब तक ठहरा है बचपन का अक्स
सब कुछ बिकाऊ है

रंगा सियार बाजार
वह सामने, हम पीछे हैं काउंटर के
हमारे विवेक को ट्रांजैक्शन में बदलना उसकी जीत है

बाजार खरीद रहा है स्थायित्व
बिकवा रहा है जड़ें
जो टिक सकता था सालों तक, बेच दिया गया
पुरखों के हाथों गढ़ीं चौखटें मय किवाड़ों के विदा हो रही हैं
स्मृतियाँ भी बारकोड में संचित की जा सकती हैं

हमारे पास बचेगा सिर्फ वही
जो यूज़ एन थ्रो के मुफीद होगा।

2, बम्पर लॉटरी

उम्मीदों से भरे अंधे कुएँ की जगत पर
खड़ी है भीड़
हाथों में कागजी सपना लिए
संख्या मिलाओ, भविष्य उठाओ
अंकों के बहेलिए ने फेंक दिया है छलावे का जाल

हर मोड़ पर भाग्य के दलाल बैठे हैं
गली-गली में खुल गई हैं ईश्वर की नई शाखाएँ
जहाँ प्रसाद की जगह
मेगा जैकपॉट के टिकट बिकते हैं

कोई नहीं पूछता, जो नहीं जीते वे कहाँ गए
वे बस एक आँकड़ा हैं

एक दिन हम जानेंगे
कि बाजार भगोड़े ने किसी को नहीं जिताया
जीतने का भरम बेच गया बस
और हम सदा की तरह
हारी हुई जमात हैं।

3, स्टेटस

स्टेटस नाम, काम या विचार से नहीं
लोगो और लेबल से तय होता है यहाँ

जूतों, सूटों, टाइयों पर लगे चमकते ब्रांड चिन्ह
रुआब के प्रमाण-पत्र हैं

मोबाइलों की लकदक बैरोमीटर है रुतबे का
घड़ियाँ समय नहीं, शानोशौकत का बैकअप स्टेटमेंट हैं
क्लास दिखाती हैं डिज़ाइनर साड़ियाँ
एक्सक्लूसिव सिलाई से लिखी जाती है परिचय पत्र की इबारत

स्टेटस नया माई-बाप है
जो सोशल मीडिया पर डाली गई तस्वीरों से,
गाड़ियों के बैकड्रॉप से
प्रदर्शित होता है

इज्ज़त तो इन्वैन्ट्री में रखी है
प्रीमियम, लिमिटेड एडिशन और आउट ऑफ स्टॉक जैसी श्रेणियों में

एक दिन आएगा
जिंदगी हमारी होगी
पर चेहरा डुप्लीकेट।

4, फो मो

कक्षा में पहाड़े अधूरे हैं
पर कंपनियों की सूची याद है बच्चों को
होमवर्क से ज्यादा जरूरी है
नया गेमिंग कंसोल
नोटबुक के कवर पर होने चाहिए ट्रेंडिंग कैरेक्टर

अब खिलौने मिट्टी से उगते नहीं
टपकते हैं टीवी स्क्रीन से
दोस्तियों के पैमाने नए मॉडल की साइकिलों से मापे जाते हैं
छोटे-छोटे पैर भाग रहे हैं हर नए ट्रेंड के पीछे
न भागने वालों को लूज़र कहलाने का डर है

लंचबॉक्स में माँ की मेहनत कम
रेडीमेड का कर्ज़ ज्यादा है
स्कूल बैग में किताबों से अधिक हैं एनिमे

अब बच्चों के आदर्श हैं सुपरहीरो
परी-कथाएँ आउट डेटेड
और बचपन!
अपनी बारी के इंतजार में
अनजिया बीत जाता है।

5, ओ टी टी

रिमोट पर अँगूठा रखते ही
घेर लेती हैं लपटें फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की
संवादों में से संवेदना निचोड़ कर
हर संभव जगह पर वापरी जा रही हैं मादाएँ
पिक्सलों की धड़कन के साथ
मर्यादा की हत्याओं का जश्न गुत्थमगुत्था है

रियलिज्म का तमगा सजा है
द्विअर्थी अभिव्यक्ति के बीच कामुकता के ठिकाने
हर दृश्य के सिरहाने सस्पेंस की बेल उगी है

पर्दे की परिभाषाएँ बदल चुकी हैं
सवाल मत उठाइए
संस्कृति की सँकरी होती गली में शोर मना है।

6, सेल

हर वस्तु की खरीद पर भारी छूट
मूल्य सूची में दर्ज हैं भावनाएँ भी
फ्लैश सेल में आधे दाम पर सहानुभूति
सोच का एक लॉट क्लियरेंस स्लॉट में उपलब्ध है

सीज़न है सेल का
हर चीज की कीमत कम है
ईमानदारी पर 20% छूट
नैतिकता के साथ लागू है बाय वन-गेट वन
आत्मा का विनिमय भी
टर्म्स एंड कंडीशंस के साथ लागू है

यहाँ तक कि हम स्वयं
किसी नीलामी की आहट पर कान लगाए
अपने वज़ूद की कीमत आँकते,
बिकने को तैयार खड़े हैं।

7, मॉल

गली की दुकानें
जहाँ सामान मिलता था भरोसे के रैपर में लिपटा हुआ
अपनेपन का गिफ्ट वाउचर
उधारी, हमदर्दी की गलबहियाँ डाले हुए
और चुकता करने की तारीख आगे बढ़ सकती थी
साँप-सीढ़ी के खेल की तरह

अब वहाँ शीशे का किला खड़ा है
आलीशान
निर्विकार

मॉल का स्वामी पर्दे के पीछे
कैशियर के ओंठों पर औपचारिकता वाली मुस्कान है
सामान पर लगे टैग तक पूछताछ सीमित है
स्कैनर आपको पहचानते हैं
आपको कोई नहीं जानता

छोटी दुकानें अब तस्वीरों में बचेंगी
उधार डिजिटल लॉन में दफ्न
आत्मीयता की भाषा कॉर्पोरेट मीटिंगों में अनुवाद खोज रही है।

8, एडवरटाइज़मेंट

नाप-तौल कर गढ़ी जा रही हैं
सुंदरता की नई परिभाषाएँ

शरीर अब पहचान नहीं
प्रोडक्ट कोड है
त्वचा एक डिस्प्ले स्क्रीन
जिस पर चमक अनिवार्य है
कंपनियों के मानक वाली

फेयरनेस, फिटनेस, फर्मनेस
मंत्र हैं आज के
हर दोष पर रियायत का प्रलोभन
हर असमानता पर डिस्काउंट उपलब्ध
रंग, बनावट, आकार
सब कुछ बाजार तय कर रहा है

आईनों को पसंद नहीं हैं दाग
सफेदियों में आपस में होड़ मची है
मन का मैलापन
स्क्रीन पर झलका रहा है चमकार

अब कोई हमें देखता है
हम तलाशते हैं
उसकी नजरों में छपे मूल्य सूचक अंक।

9, फ्री

हर ऑफर है लोभ का आमंत्रण
मुफ्त की कौंध में ढँक जाती है कीमत

फ्री वाई-फाई के लिए पासवर्ड माँगते चेहरे
फ्री सैम्पल के लिए लंबी कतारें
कूपन के कारण जरूरत से ज्यादा भरते थैले

ज़ीरो इन्ट्रेस्ट की स्कीम में
अनदेखा कर दिया जाता मिश्रधन का सूत्र
छूट की ट्रे में लाए गए
ब्याज दरों के छुरी-काँटे

पता चलता है बाद में
कि जो मुफ्त में लिया था
सबसे महँगा वही पड़ा।

10, एलीट

भद्रता के मुखौटे के पीछे तनी रहती है
गाली की दुनाली
स्टैंड-अप के बीच भाषा का लहू टपकता है
इसे इंटेलेक्चुअल लिबर्टी कहते हैं

शब्दों के श्लेष से
अर्थ का चीरहरण किया जाता है
ठी-ठी दरबारों में

ग्लासों से छलकते हैं सिद्धांत
बौद्धिकता अब मनोरंजन की करंसी है

अभिव्यक्ति की नई प्रयोगशालाओं में
शालीनता विसंगति और कटाक्ष नया शिष्टाचार हैं
तालमेल बिठाइए या इतिहास हो जाइए।


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