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मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी ‘नीला घर’

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साल 2024 में प्रकाशित कथा-संग्रहों में जो संग्रह मुझे बहुत पसंद आये उनमें मनीषा कुलश्रेष्ठ का कथा-संग्रह ‘वन्या’ भी है। राजपाल एंड संज से प्रकाशित इस कहानी संग्रह में पर्यावरण प्रेमी की कहानियाँ हैं। उसी संग्रह से पढ़िये एक कहानी ‘नीला घर’- प्रभात रंजन

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“जानती हो ईश्वर जितने द्वन्द्व आपके जीवन के कथानक में डालता है, उतने दुनिया का कोई लेखक अपनी किसी कहानी में नहीं डाल सकता।“ ज़ीरो म्यूजिक फेस्टिवल में मिले वॉयलनिस्ट नाबोम चाके ने यह ज्ञान देते हुए उसे शेर्गाओं में अपने होमस्टे में आकर ठहरने का न्यौता दिया था। अपने भीतर चट्टान की तरह आ धँसे राइटर्स ब्लॉक से परेशान होकर वह तो निकली ही थी आकस्मिक मोड़ लेकर अनजान पड़ावों पर जा टिकने के लिए। वह जो घर से निकली थी, लौट कर वह नहीं होना चाहती थी। वह भटकाव ही क्या जो भीतर कुछ बदल न दे।

तवांग के आस-पास भटकने के बाद उसने तय कर लिया कि गौहाटी लौटते हुए वह जाएगी ‘शेर्गाओं’ बोमडिला दर्रे से कुछ दूरी पर बसा यह गाँव सोलो ट्रेवलर्स के लिए एक छोटा-मोटा स्वर्ग था। नाबोम चाके का होमस्टे ‘ब्लूमून’ एक नीली दीवारों वाला सुंदर घर था, जिसके एक ओर पहाड़ी पर सूरज उगता था और दूसरी ओर थोड़ी  दूरी पर एक झरना बहता था जो नीचे तलहटी में जाकर कामेंग नदी की एक भटक आई धारा में गिरता था।

“बहुत खूबसूरत है आपका होमस्टे।“

“बहुत पुराना है।“

“आपके पिता ने बनवाया था….”

“नहीं! एक कहानी है यह घर, आपको मैंने बोला था ना, सबसे बड़ा राइटर तो गॉड ही है। उसकी लिखी कहानी का कोई एंड नहीं होता…..लोग मर जाते हैं कहानी चलती रहती है। अभी आप आराम करें। कल चोस्कोरोंग झरने पर बैठ कर आपको इस घर की कहानी सुनाएंगे।“

ताज़ा कटे बांस के प्याले में अपोंग (राइस बियर) झरने का संगीत और मिति कथा। उसे नहीं पता नोबाम ने इस कहानी को किन शब्दों में सुनाया और उसमें डूब कर उसने किन शब्दों में सुना। इस कथा की नायिका मिति उसके मन के लूम पर जो बुनकर गई वह कथा आपके सामने है।

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वह समय ही अलग था। मिति चाके गाँव की अन्य किशोरियों से अलग थी। उसकी रंगत चंपई साटिन-सी झलमलाती। प्रकार से खींचे गोल चेहरे पर गोल काली आँखें, ठोड़ी ऐसी कि एक कच्चा छोटा सेब रख दिया हो! कद था कि बढ़ते ही जाता, कपड़े हर छ: महीने में छोटे होते जाते। वह कभी स्कूल नहीं गई थी पर उसका व्यावहारिक और प्राकृतिक ज्ञान असीमित था। जंगल के सभी वृक्षों और तमाम चिड़ियों के नाम, जंगल के रास्तों और पतली खतरनाक पगडंडियों के सटीक नक्शों का अनुमान। उसने पिता से संतरों की खेती के गुर सीखे थे तो माँ के साथ हथकरघे पर नए रंगों का प्रयोग करना….उसको बहुत प्रिय था। आखिर लूम के बिना किसी न्यिशी परिवार का आँगन नहीं सजता। शिकार उसे पसंद न था मगर बहुत जरूरी हो और घर में मेहमान आये हों तो मिनटों में भूरी छाती वाला तीतर मार लाती जिसे उसकी माँ कोमल बांस के टुकड़ों के साथ पका डालती। मिति को आस-पास के जंगल में मटरगश्ती करने, हमउम्र सखा-सहेलियों को जमा करके बौद्ध-मठ के पक्के फ़र्श पर पोरोक पामिन-सिनम ( लगभग लंगड़ी टांग जैसा खेल) खेलना बहुत प्रिय था। बस उसे अजनबियों से बात करने में उसे उलझन होती, पुरुष हों तो और भी।

पहले ऋतुस्त्राव से वह अन्य लड़कियों से कुछ ज्यादा ही परेशान हो गई थी, जैसे किसी ने हिरणी के पैर बांध दिए हों। उस पर माँ ने उसी बरस उसकी सगाई की बात पड़ोस के गाँव के लड़के बाईस साल के याबोम सोरा से चला दी। रस्म के लिए बसंत की प्रतीक्षा थी। सबने कहा उसे उससे अब शर्माना चाहिए। यह सब उसे नहीं आता था, बस गली में याबोम से सामना होने पर उसकी पलकें भारी हो जातीं। वह वहां से सरपट निकल जाती। भाग न पाने की स्थिति में वह मुंह में उंगली दबा कर उसे टुकुर-टुकुर ताकती। वह कुछ कहता तो गूंगी हो जाती। घर आकर दरवाज़ का सांकल लगा लेती और बिस्तर पर पड़ जाती। अगर कोई सहेली छेड़ती तो वह चिढ़ कर उसे जोर से काट लेती और बड़बड़ाती कि – मुझे ये बेकार बातें पसंद नहीं।

मिति कभी अपनी माँ को न समझ पाई, इसके लिए वह उन्हें माफ भी नहीं कर पाई। जाने क्या असुरक्षा थी कि भर पेट खाना, ठीक-ठाक जमीन और मेहनती पति और बेटे वाले परिवार के चलते भी उसकी माँ को पैसा महत्वपूर्ण लगता था। हुआ यूं कि योबोम सोरा से सगाई की बात चलाने के छ: महीने बाद ही उनके घर एक रिश्तेदार के साथ तोसिरो – मिफ्यून आया। उसने हाल ही में शेर्गाओं में संतरों के दो बगीचे खरीदे थे। वह उपहार में सिल्क का स्कार्फ और सेबों की पेटी लाया था। मिति की माँ को यह यकीन हो गया कि वही उसकी बेटी के उपयुक्त साथी है। इसलिये किशोरी मिति की सगाई संतरों के फूलों के झरते ही, पेड़ों पर छोटे-छोटे फल आते ही तोसिरो से हो गई। मिति से किसी ने कुछ नहीं पूछा। अब वह घनी उलझन में पड़ गई थी। उसकी समझ में नहीं आया कि अब उसे लंबे-दुबले घने बालों वाले आकर्षक-मेहनती-हंसमुख  युवक याबोम को देखकर लजाना और भागना चाहिए कि नहीं? वह इस कम लंबे मगर चौड़े कंधों वाले, तांबई रंग के गंभीर चेहरे वाले तोसिरो से कहीं अच्छा दिखता है। लेकिन उसे क्या? उसकी माँ बेहतर समझती है। मिति अब भी जंगल में घूमती और सहेलियों संग खेलती। उसकी सहेलियों ने बताया याबोम गुस्से में बौखला चुका है। वह दोनों गाँव के बीच बने शराबखाने में मिति के परिवार और तोसिरो को गालियां देता है। वह डर जाती।

तोसिरो से उसकी शादी होने में अभी दो हफ्ते ही बचे होंगे। तोसिरो ने दिन-रात लग कर, सीमेंट की दीवारों और ढलवां छतों वाला एक सुंदर घर तैयार करवाना शुरू कर दिया। तय किया कि  उसकी दीवारें नीली और छत सफेद होगी। एक सुबह जब माँ धान के सीढ़ीदार खेतों में काम करने गई हुई थी। सूरज कबका सर पर चढ़ आया था, मगर मिति मच्छर और धूप से अपनी मीठी नींद बचाने के लिए तौलिया चेहरे पर डालकर आँगन के तख्त पर सोई पड़ी थी अचानक याबोम सोरो दो ताकतवर जवानों समेत घर में घुसा और मिति को जबरन उठा कर अपने गाँव ले गया, जो पहाड़ी के दूसरे छोर पर कुछ दूर ही बसा था। वह अजनबी घर में पहुँच कर डर के मारे रोने लगी। याबोम ने उसे अपने प्रेम का वास्ता दिया, प्रेम भरे उपहार दिए। उसे मिति की माँ के लालच के बारे में समझाया। तोसिरो की खराब नीयत और छोटे कद पर ताने कसे तो उसका रोना बन्द हो गया। योबोम ने इतनी नरमी बरती कि मिति ने स्थिति को स्वीकार कर लिया।

याबोम ने महीने भर के भीतर ही आस-पास के दोनों गांवों को भोज देकर, कहीं से उधार लेकर मिति की माँ को वधू-मूल्य चुका कर इस अपहरण को जायज़ बना लिया। एक रोज जब मिति  अपने घर के सामने धूप में बैठी, जंगली चूहे फंसाने की बेंत की चूहेदानी की मरम्मत कर रही थी। उसके काले और सीधे रेशमी बाल हवा में उड़ रहे थे। कुछ मुर्गियाँ उसके आस-पास चक-चक कर रही थी, सर पर टंगा सूरज भी मानो वहीं रुक कर कुतूहल से मिति की लंबी पतली उंगलियों को चलते देख रहा था। तभी पता नहीं जानबूझ कर या संयोग से तोसिरो उधर से गुज़रा । वह ठिठक कर खड़ा हो गया और उसकी नज़रें मिति के सुंदर और अनूठे चेहरे पर टिक गईं। मिति  सर झुका कर अपने काम में जुटी रही, लेकिन उसका चेहरा लाल मशरूम सा सुर्ख हो गया। बेंत की खपच्चियाँ आपस में उलझती उससे पहले याबोम की माँ टोकरी भर शलगमें और एक बड़ी मछली लेकर चली आई।

“आज ये पका लेना बेटी, योबोम को शलगम के साथ मछली बहुत पसंद है।“

मिति ने राहत भरी सांस ली। उसे डर था कि वह कोई अटपटा सवाल न पूछ ले या हाथ ही पकड़ ले तो! मगर वह बूढ़ी को देख कर जल्दी-जल्दी ढलान उतर गया। दरवाजे पर लेटा आलसी भूरा कुत्ता पहले तो तोसिरो पर भोंका फिर मछली के टुकड़ों के लालच में अंदर  चला आया।

याबोम और तोसिरो अब प्रतिद्वंद्वी थे। भले कहने को वे दो अलग गांवों में रहते हों मगर उन गांवों में दूरी बहुत कम थी। एक घिसी हुई पहाड़ियों के दो विपरीत ढलानों पर बसे गाँव, जिनकी तलहटी में एक दिशा में नदी की धार थी, एक बौद्ध मठ था तो दूसरी ओर सड़क थी, जिस पर सराय और उससे लगा शराबघर था। निचली ढलानों पर संतरों के कई बाग थे। जिनमें से दो बागों का मालिक तासिरो था। याबोम पहले इन बागों के पुराने मालिक की मेटाडोर चलाता था। मेटाडोर अब भी थी मगर उसे कोई नहीं चलाता था। तोसिरो ने सोच लिया था जब फल पकेंगे तब रखेगा कोई नया ड्राइवर। फिलहाल तो याबोम से दूसरा ही हिसाब चुकाना जरूरी है। अवसर मिला तो उसे इतना मारेगा कि वह खड़ा तक न हो सके। उससे पहले एक बार वह ‘मिति’ से मिलना चाहता था। वह बेचारी चाहती उसे थी, उठा कर याबोम ले गया। न्यिशियों में अपहरण की यह प्रथा कबकी बंद हुई, बल्कि अब तो अपराध है।

“हरामखोर लुटेरा।“   

एक रोज शराबखाने में दोनों की भिड़न्त हो गई। तोसिरो खड़ा होकर याबोम को हिकारत से घूरने लगा। उसका चेहरा ताँबे जैसा चमक रहा था, आँखें पहले ही बहुत ही छोटी और गोल थीं। वह जब गुस्से में होता तो लाल-सुर्ख हो जातीं, लगता मानो कोई चीता झपटने के लिये तैयार हो। अपनी ओर देखने वालों को वह बुरी तरह घूरता, इसीलिये लोग उसकी नजर बचाने के लिये मुँह फेर लेते। ठीक यही याबोम ने किया तो तोसिरो बुरी तरह बौखला गया और चिल्ला कर “हरामी लुटेरे” की उपाधि देते हुए उसने ताजे बांस के कटे प्याले में गट-गट अपनी अपोंग (चावल की शराब) पीकर पूरी ताकत से उसकी दिशा में प्याला फेंक कर मारा। याबोम ने सिर इधर-उधर हिला कर उसका वार असफल कर दिया। हंसकर एक आदिवासी गीत गुनगुनाने लगा जिसमें सुन्दर लड़कियों का वर्णन था।

अब यह अक्सर होने लगा कि तोसिरो शराब की दुकान में घुस कर एक कोने में धम्म से जा बैठता और ड्राय जिन लाने का ऑर्डर देता और तीन पैग एक के बाद एक चढ़ाता जाता। जैसे ही याबोम की झलक दिखती और इसकी छोटी-छोटी आँखों से चिंगारियाँ निकलने लगती, इसकी बांह की कडक मांसपेशियों पर बना चीते का टैटू फड़कने लगता । याबोम भी आस-पास के निठल्ले लड़कों से बात करते हुए कुछ जरूरत से ज्यादा हँसता और अपने आकर्षक चेहरे पर गिर आए लंबे बालों को झटकता। उसके लड़कों जैसे इकहरे लम्बे शरीर पर यह उद्दण्डता जमती भी थी। हल्के सुरूर से उसका गोरा चेहरा गुलाबी हो जाता। अपने युवा होने का प्रदर्शन करता हुआ कोई रूमानी फिल्मी गीत सीटी में निकालता और साथ में हाथ से मेज थपथपाता रहता। तोसिरो को अपनी मुद्राओं से दर्शाता रहता, “बड़े चले थे इस इलाके की सबसे सुंदर युवती को पाने के लिए…”

रात ढलते ही वह जरा जोर से जाने का ऐलान करता कि ‘मिति इंतजार करती होगी।“ लड़के उसकी इस नाटकीय बेसब्री पर ठहाके लगाते और वह मुस्कुरा कर तोसिरो को वहीं पीछे एक कोने की टेबल पर पीता छोड़ बाहर निकल आता। तोसिरो मसालेदार भुनी मछली का आखिरी टुकड़ा खाकर वह बाघ की तरह हथेली चाटते हुए उठता और नल की ओर बड़बड़ाता हुआ चला जाता – “एकदिन मेरे दांव की सफेद धार लाल होकर रहेगी इस के लहू से।“

तोसिरो उस रात भी दांत पीसता हुआ अपने नए बने घर में लौट आया। ताजी वार्निश की गंध उसे परेशान कर रही थी, आखिर आनन-फानन में यह घर किसके लिए बनवाया था? उन गोरी बाहों के लिए जिनको मेरे गले में होना था। उन गौरेयों जैसे पैरों को मेरे घर में फुदकना था।

“मिति! तुझे तो मैं तो पाकर रहूँगा….कौनसी तुम्हारी विधिवत शादी हुई है? वधू-मूल्य का क्या? एक बाग देकर भी देना पड़े तो….दूंगा।” वह रात भर उस घायल मिथुन की तरह हुंकारता रहा, जो प्रतिद्वंद्वी से हार कर झाड़ियों में अपने घाव चाटता है। सुबह चार बजे जब सबसे पहले जागने वाली रॉबिन की टुइ टुइट शुरू हो गई तब जाकर उसकी आँख लगी।

सीमित साधन वाली नई गृहस्थी में मिति अकसर जंगली सब्जियों की तलाश में पहाड़ी के पिछले अनछुए छोर तक जाया करती थी। जहां फ़र्न की कोमल पांते, कुछ पीली-लाल खुंभियाँ, पेड़ों की छाल में दुबके तितलियों-पतंगों के भूरे-गूदेदार लार्वा मिल जाते..पहाड़ी जंगल इस मामले में बहुत उदार होते हैं। उस दिन उसका मन घर के कामों में जरा नहीं लग रहा था। हथकरघे  पर भी मन उचटा ही रहा, फिरोजी अशर्फियों वाला डिजाइन अधूरा ही था कि उसे याद आया घर में शाम के खाने के लिए कुछ नहीं है। होगा भी कैसे? याबोम उसे पाकर इतना पगला गया है कि पहले भोज में जमा पूंजी लगा दी फिर माँ को वधू-मूल्य में चालीस चांदी की गिन्नियाँ दे दी। काम छोड़ दिया अब बस आवारागर्दी करते हुए घूमता है। अब तो संतरों के मौसम का सहारा है, जब काम मिलेगा, वह भी काम करेगी। वह घर के दरवाजे को भिड़ा कर, अपनी बनायी बेंत की टोकरी लेकर निकली। पहाड़ी चढ़ते हुए उसे तोसिरो का नया, पक्का और चमचमाते आसमानी नीले रंग से पुता घर दिखा। उसके भीतर कुछ हलचल हुई, मगर वह चढ़ाई पर सधे कदमों से जल्दी-जल्दी डग भरने लगी। बीती रात बरसात हुई थी, बीच के समतल हिस्सों पर टिड्डियों के क्षत-विक्षत शरीर फैले थे, खुंभियाँ सर उठाए उगी थीं झाड़ियों के नीचे, गिरे हुए पेड़ों के तनों पर। सुगंधित झाड़ियों की महक से हवा कुछ भारी हो रही थी। मेंढ़क पानी भरे गड्ढों में सामूहिक मंत्रोच्चार सा कर रहे थे। वह घास में लेट गई। ऊपर नीला आसमान था, उसे छू लेने को आतुर । उसके भीतर अनजानी कामनाएं जन्म लेने लगीं। तभी उसे लगा पहाड़ी से ढलकती पानी की पतली धार के किनारे पर वृक्षों के झुरमुट में हल्की सरसराहट हो रही है। उसकी खोई चेतना लौट आई, वह उठ बैठी तभी उसे अपनी गर्दन पर किसी की सांस महसूस हुई। वह झटके से मुड़ी, यह तोसिरो था। उसका तांबई चेहरा उत्तेजना से चमक रहा था, साँसे बेकाबू थीं।

“ मिति तुम वापस मेरे पास लौट आओ…दुगुना वधूमूल्य चुका दूंगा।” तोसिरो हकला रहा था। उसे मन की बात कहना आता ही नहीं था। वह हकला कर रह गया, और छूने लगा, जकड़ने लगा। बेचारे ने अनाथ होने के कारण आधा जीवन चुप रहकर बिताया है या घोड़े की तरह दिन-रात काम करके।

“ मूल्य-मूल्य ! मैं क्या कोई भेड़ हूँ? छोड़ो मुझे…पागल हो चुके हो तुम लोग! ”

“हाँ! नहीं….सुनो न ! मैं ….” कह कर तोसिरो ने उसे चूमना चाहा। वह उससे छुड़ाने को हुई तो बाल बिखर गए…. अपने ऊपर ऐसा गर्म दबाव उसे अटपटा लगा। अलग होने की छटपटाहट में उसके धातु के बटनों से, हाथ में पहनी घड़ी से मिति के गालों पर खराशें आ गयीं। उसने लातें चलाईं, उसकी छाती पर मुक्के भी मगर तोसिरो बलिष्ठ था उसने एक हाथ से धकिया कर उसे धरती पर लिटा दिया, दूसरे हाथ से तोसिरो का मन तो चाहा कि खोल दे झटके से कमर में बंधे ‘गाले’ की गांठ! मगर उसका निर्दोष चेहरा देख कर बस उसके गालों को चूम कर, सीने में भींच कर अंतत: छोड़ दिया। फ़ौरन ही वह तीर की तरह भागने लगी, उसके बाल बिखरे थे उनमें जंगली गोखरू फंसे थे, उसके गालों पर खराशों के निशान थे, जिनमें से खून छलक आया था। रास्ते में सबने पूछा, “क्या हुआ ?” लेकिन वह रोती हुई घर में घुस गई और गुमसुम होकर अन्दर बैठी रही । याबोम को खबर मिली, वह घर लौटा उसने जैसे-तैसे करके मिति के मुँह से सच्ची बात निकलवा ली।

“तुम अचानक गयीं क्यों थीं? तुमने उसे मौका दे दिया मुझसे बदले का। सच कहो उसने कुछ और भी तो नहीं किया था न?” ढेरों सवाल योबोम ने उसके वजूद पर उंडेल दिए थे। आखिरी बात उसने जिस स्वर में कही उससे मिति कांप गई।

“किसी हाल में यह बात कोई न जान पाए।“

लेकिन पड़ोसी भाँप गये कि कोई नया अध्याय जुड़ा है ‘योबोम-मिति-तोसिरो’ की कथा में। कई दिनों तक योबोम की त्यौरियाँ चढ़ी रहीं और वह अपनी जैकेट में दो फल वाली खुकरी छिपाये पागल कुत्ते की तरह तोसिरो की तलाश में इधर-उधर भागता रहा। तोसिरो गायब था। नीले घर में ताला लगा था। वह तलहटी वाली बार में जाता और शराब के नशे में चूर हो जाता। उसकी नजरें लगातार दरवाजे पर गड़ी रहतीं लेकिन महीना बीत गया तोसिरो का कहीं नामोनिशान न था। याबोम उन दिनों भले ही प्रतिशोध से भरा हुआ रहा हो। असल में उसका मन मोम का बना था। दुश्मन का सामना वह निडर होकर करता था लेकिन प्यार भरे दो शब्द, कोई अहसान उसे मेमने की तरह निरीह बना देने के लिये पर्याप्त थे। लेकिन आपने उस पर पहला वार किया तो आप चाहे चट्टान हों तो भी वह आप को जड़ से उखाड़ कर ध्वस्त कर देगा। आजकल नशे में उससे लोग चौकन्ने रहते। लोग मांगे न मांगे वह न्याय करने पहुंच जाता। दिल में गुस्सा पेट में तीखी देसी शराब की जलन बने ही रहते। उसकी आहट सुनते ही मिति के हाथ-पैर सुन्न हो जाते। ज़बान खुश्क! वह देर से आने का कारण भी नहीं पूछती। खाना लगाकर वह सहम कर बगल में खड़ी रहती। और तो और छूना-चूमना बंद कर चुका था वह उसे। उल्टा अक्सर उस पर खीज जाता, ‘ठंडी हो गई हो। कैसे रहती हो?’ एक-दो गालियां तक सुना देता। एक-आध बार तो वह शराब के नशे में रो पड़ा लेकिन उसे चुप कराने साहस मिति  में न था। वह जानती थी कि ऐसा करने से उसका गुस्सा फौरन बारिश के बाद की कड़कती धूप में बदल जायेगा।

इन दो युवाओं के इस घातक झगड़े से दोनों गांवों और तलहटी के शराब-घर के खुशगवार वातावरण में तल्ख़ी सी आ गयी थी। दोनों बूढ़े मुखिया कहते – इससे गाँव में आंधी के पहले की सी बोसीदा घुटन का माहौल हो गया है। क्या जाने कब हम इन दोनों में से एक के मरने की खबर सुनें, ऐसा कुछ न हो कि पुलिस गाँव में गश्त लगाए। जल्दी ही संतरों की फसल उतरने और मंडी में पहुँचने का समय आएगा। तीज-त्योहार, मेले जमेंगे। ऐसे में कैसे होगा?

लेकिन संतरों के उतरने के मौसम की शुरुआत ठीक-ठाक हो गई। सब काश्तकारी में लगे थे। किसी को सिर उठाने की फुरसत नहीं थी। वसन्त की सुहावनी धूप में औरतें और बच्चे बागानों  में इकट्ठे हो कर नीले प्लास्टिक के कंटेनरों में संतरे तोड़ कर भरते जाते। दोपहर में सामूहिक भोज होता बागान के मालिक की ओर से। आदमी, औरतों और बच्चों की खूब चहल-पहल रहती, गिटार पर कोई संगीत छेड़ देता, कोई पारंपरिक ढोल उठा लाता, युवतियाँ थिरक उठतीं। ऐसा लगता मानो बागानों में मेला लगा हो । योबोम और मिति भी इस मेले का हिस्सा थे मगर ढलान के दो बाग संतरों से लदे उदास और निर्जन पड़े थे। आसमानी नीले घर की दीवारों पर काई और फफूंद के हल्के रेशे दिखने लगे। अहाते में खड़ी मेटाडोर सबसे खस्ताहाल थी। इस उल्लास और पैसे की कमाई के दिनों में भी योबोम के भीतर क्रोध बना रहा। रंगीन मेला मिति की व्याकुलता दूर न कर सका, न सूर्य की पहली-पहली किरणें ही छिपे हुए तोसिरो का कोई सुराग ला सकीं ।

एक दिन जब यह श्रम, कमाई और आनंद का मेला ढला तो सूर्यास्त के समय आकाश कुछ रक्तरंजित सा लगा। उमस उठ रही थी। आकाश की नीली सरसता को क्षितिज से उठी धूसरता भंग कर रही थी। संतरों के पेड़ सहमे-से अपने नारंगी लट्टुओं को जलाए खड़े थे। ये लट्टू तेज हवा से कभी भी गिर कर फट सकते थे। लोगों ने पेड़ों के नीचे बांस लगाना शुरू कर दिए। ज्यों अंधेरा बढ़ा लालटेनें जला दी गईं। हवा के स्वर जो संगीत लगते थे अब भयावह बन गये थे। जितना मनुष्य के बस में है किया गया। फिर सब घर चले गए थे। गाँव के घर भी तो ज्यादातर कच्चे थे। फूस, बेंत और फट्टों से बने। आधी रात तूफान उठा। तारे खो गये। तेज़ हवा से वृक्ष हिलने लगे लालटेंने बुझ गयी धरती संतरों से नारंगी हो गयी। बरसात ने कहर ढा दिया। पहाड़ी का वह हिस्सा धँसकने लगा जहां बड़ी चट्टानें और बड़े बड़े चीड़ थे। जहां मिति खुंभी बटोरने जाती थी। जहां तोरिसो ने मिति को जबरन पकड़ा था।

तभी मिति चीख कर अपने घर से बाहर आई – “योबोम का कुछ पता नहीं ! वह बागान से निकल कर बार में गया था। बार कब की बंद हुई।“ बरसात रुकी तो गाँव के पुरुष बाहर आ गए। पहाड़ी के सुरक्षित  हिस्से में जा खड़े हुए जहां पहाड़ी का कच्चा पिछला हिस्सा अब भी धसक रहा था। तभी एक चीख सुनाई दी, जहाँ से एक छोटा झरना गिरता था। लोग उस तरफ भागे। लालटेन के प्रकाश में एक शरीर दिखाई दिया, फिर दूसरा उसे थामने को बढ़ा और दोनों पथरीले ढलान पर नीचे लुढ़कते चले गये।

ऊपर खड़ी औरतों का क्रंदन आरंभ हो गया। मर्द नीचे भागे। जहां दो निश्चल शरीर पड़े थे। दोनों एक दूसरे को थामे थे। उनको पलटा गया। योबोम और तोसिरो!! जरूर ये लड़ते हुए गिरे होंगे। इन दोनों को अचेतावस्था में मिति के घर उठा लाए गांव के लड़के। पहले योबोम को होश आया, उसने चकित दृष्टि से कमरे को देखा, वह अपने घर में था। उसने युवकों के प्रति कृतज्ञता जाहिर की। तोसिरो को होश उसके आधे घंटे बाद आया….उसके होंठ और माथा चोटिल थे। एक बांह छिल गयी थी, पैर में मोच थी। पीठ पर तीखे पत्थर का लगा एक गहरा घाव था जिससे खून निकलता ही जा रहा था। वह उठा तो लड़खड़ा गया फिर भी बोला –

“मैं ठीक हूं, घर जा सकता हूं।“ याबोम उसकी आवाज़ सुन चौंका। मन किया कुल्हाड़ी से वार करे इस आवाज़ पर कि कभी उठे ही न ! मगर उसका मोम मन उसके दिमाग पर हावी रहा।

“चुपचाप, पड़े रहो! अब तुम मेरे कैदी हो। मिति इसे जंगली मुर्गे और खुंभी का गरम सूप दो। लड़के गए हैं मोटरसायकिल पर, अपातिनी  ओझा आता होगा। खून रुक जाएगा।“

तोसिरो मन मार कर फूस के गद्दे पर लेटा रहा। उसके कठोर चेहरे को पढ़ना मुश्किल था। सोचता रहा – “इसे मारकर सुखी होने के सपने देखने वाला मैं एक घंटे पहले इसे बचाने के लिए धसकती चट्टान से कूद पड़ा था? जिसकी जान लेनी थी उसे जान दांव पर लगा कर बचा लाया? किसलिए? किसके लिए? ”

तब मिति एक कोने से निकली और पति के सिरहाने पहुंची, उसे सूप दिया। फिर वह काँपते हुए तोसिरो के पास पहुंची वह अब भी दर्द से गाफ़िल था, बहुत दबा कर भी उसके दबे जबड़ों से भी चीख निकल ही जाती थी। सूप में जो चुनिंदा खुंभियाँ और बूटियाँ थीं वो दर्द कम कर नींद लाने वाली थीं। उसने एक छोटे लड़कों को इशारा किया कि तोसिरो को वह सूप पीला दे। बूढ़ा अपातिनी ओझानुमा चिकित्सक भी तब तक आ गया। उसने हरे-नीले शैवालों के लेप और मदार की पत्तियां बांधकर खून तो रोक दिया था। घाव गहरे थे उनको भरने में महीना लगने वाला था।

सूरज की पहली किरण ने आकर देखा, तूफान तबाही मचाकर थम गया था। मिति  स्टूल पर बैठी प्रार्थना पुस्तक पढ़ रही थी, कमरे में बस पन्ने पलटने की फर्र और ओंठ हिलने की बुदबुद सुनाई दे रही थी। मिति के चेहरे पर बल्ब की रोशनी पड़ रही थी। अब वह अजनबी लोगों को देख गर्दन झुका लेने वाली लड़की नहीं थी। जीवन के कठोर पाठों ने उसे और मौन मगर परिक्व बना दिया था। योबोम ने करवट बदली, मिति को उसका चेहरा अलग लगा। थका मगर शांत। उसे भय था उठते ही उसका मन बदल जाएगा, वह चिढ़चिढ़ाएगा। तोसिरो को बद्दुआएं देगा, उसे उठ कर अपने घर जाने को कहेगा। मगर उसने आंख खोल कर, विनय भाव से कहा “मिति ! रात भर बैठी रहीं तुम? जाकर लेट जाओ, मैं अब ठीक हूं।“

वह बदल रहा था, उसकी आंखें शांत होकर और चमक रही थीं अपनी आत्मा के उजास से। नाश्ते के समय जब वह सूप और थोड़े गर्म चावल लेकर लौटी तो योबोम  दीवार के सहारे बैठा था। तोसिरो जा चुका था। उसने कुछ नहीं पूछा। जंगल की तलहटी में घटी उस घटना के बाद से कभी मिति से याबोम ने इस नर्मी से बात नहीं की थी। वह आश्चर्य में थी। तोसिरो भी अब मिति को देख रास्ता बदल लेता। सर झुकाए रहता…… पैसे वाला होने के बावजूद गाँव के सामूहिक श्रम में हिस्सा बंटाता। लोगों के भरसक काम आता। मिति फिर भी आशंकित और सतर्क रहती। इन पुरुषों का क्या भरोसा? अब ‘बार’ में दोनों ने आपस में गालियां देना भी बंद कर दिया था। तोसिरो शांत भाव से उसे उपेक्षित करता वहीं योबोम कृतज्ञ था मगर उपेक्षा पाकर बगल से चुपचाप निकल जाता। मिति ऊपर से सहज रहती मगर जब हवा में जब वसन्त की मादकता भर जाती, बादलों के छितराने पर नीला आकाश दिखने लगता तो उसे वह जंगली दोपहर याद आ जाती। एक जोड़ा खुले आतुर होंठ उसकी गर्दन पर झुके हैं; किसी चौड़े सीने के नीचे उसकी साँसे उलझ गई हैं। वह घबरा कर अपने हाथ का काम छोड़ गहरी-गहरी साँसे लेने लगती।  

लोग मधु पीकर मिति, योबोम और तोसिरो के त्रिकोणात्मक रिश्ते की मसालेदार चर्चा करते। लोग कहते, योबोम को क्या हुआ! पहाड़ी से गिर कर उसके अहम का गुब्बारा पिचक गया है! मगर योबोम को देखते ही तोसिरो की तनने वाली उसकी मुट्ठी निढाल कैसे हो गयी? उसकी बांह का चीते वाला टैटू चोट से छिन्न-भिन्न हो गया है! एक युवक कहता – उस घने सीधे बालों वाली सुंदर मिति ने कुछ तो मंत्र फूंका है दोनों के कान में, दोनों को मूर्ख बना रही है।

एक बूढ़ा मनोविज्ञान झाड़ता – लगता है मिति मां बनने वाली है, योबोम  में ज़िम्मेदारी का भाव आ गया है। तोसिरो ने यह जान हथियार डाल दिये हैं। मुखिया का पढ़ा-लिखा बेटा कहता – नशे में धुत्त योबोम को तोसिरो ने झरने में गिरने से, मरने से बचाया है तब से वह अपनी अकड़ छोड़ बिछ गया है, अब जमीन पर बिछे हुए आदमी पर कौन वार करता है? शराबघर में घंटों यही चर्चा चलती।

तोसिरो के बाग में संतरे तूफान में बिखरने के बावजूद अब भी खूब फले हुए थे। बसंत के अंत में पूरे उसकी जेब में पर्याप्त पैसा था। फसल पूरी अच्छे दामों में बिकी। तूफान में टूटे संतरों को भी ठीक भाव में मार्मलेड और जूस वाली कंपनियों ने खरीद लिया। गांव के बाकी लोग भी अब आनंद मगन थे। एक शाम तोसिरो अपने देनदारों से पैसे वसूल कर लौट रहा था। उसकी जेब नोटों के दबाव से फूली जाती थी। रास्ते में वह बार पड़ती थी जिसका चपटे मुंह वाला मालिक दोरजी अपनी दहलीज पर बैठा मजे में गाँजा फूंक रहा था। ढलते सूरज की लाल रोशनी में चितकबरी बटेर के चूजों का एक झुण्ड उसके पाँव के आस-पास फुदक रहा था। एक चूजे ने अभी-अभी एक कीड़ा खोज लिया था, और वह चिल्ला-चिल्ला कर सबको बता रहा था।

“हमने ताजी-ताजी अपोंग मंगवाई है।“ दोरजी ने तोसिरो को देखकर कहा।

“तुम्हें देखे तो एक जमाना गुजर गया। आओ, देखो यह बड़ी तेज है।“ लेकिन तोसिरो का मन डाँवाडोल नहीं हुआ। हालाँकि वह बार के दरवाजे पर रुक गया था। “अन्दर आ भी जाओ !” अधेड़ दोरजी ने मनुहार के स्वर में कहा। “पैसों को बक्से में रखने की बजाय उड़ाना भी चाहिए। वरना वो गलत रास्ते पेंदे में छेद करके उड़ जाते हैं।

उसने नौकर को आवाज दी, “काओ, तोसिरो भाई के लिये एक बोल भर कर फ्राइड राइस ले आ। इसकी कौन सी घरवाली बैठी है जो पका कर खिलाएगी।“ तोसिरो व्यंग्य और सहानुभूति में फर्क नहीं कर पाता था। वह दुनियादार कम ही था। भूख के कारण वह वहीं जम गया, तीन प्याले अपोंग पीने के बाद उसे तीन पैग रम पीने में कोई झिझक न रही। रात के पहले पहर तक वह नशे की झोंक में रहा। फिर अपनी लड़खड़ाते कदमों से घर जाने के लिये उठ खड़ा हुआ। पेट में खालिस शराब यूं लग रही थी किसी ने आग पर तेल छिड़क दिया हो। उसकी तेज लपटें टांगों से उठ कर सर की ओर बढ़ रहीं थीं। उसका सर घूम गया और सड़क पर लगे एक बल्ब की जगह सैकड़ों बल्ब नाचने लगे। घर के सामने पहुँचने पर उसे लगा कि योबोम उसे देख हंस रहा है, उसके पैसों का बैग लेकर उसे चिढ़ा रहा है।

“कितना गिरेगा, क्या-क्या छीनेगा?” उसने हवा में प्रहार किया और खुद नीचे जमीन पर चित्त जा गिरा।  

जब उसकी आंखें खुली तो सूरज सर तक चढ़ आया था। पथरीली सख्त जमीन पर पड़े रहने से उसका उसका सारा शरीर अकड़ गया था। वह उठ बैठा और चारों तरफ़ नजर दौड़ाई उसे मालूम हुआ कि उसके पैसों का बैग उसकी छाती पर रखा है, खोलकर पैसे गिने सब कुछ ज्यों का त्यों। “अजब बात है ।“ उसने पिछली घटनाओं को याद करने की कोशिश की, लेकिन दोरजी की बार से निकलने के बाद की सब बातें धुंधली थीं। अगले ही दिन उनके समूह का प्रकृति देव का उत्सव था। सबकी जेबों में पैसे थे सो उत्सव उल्लास से मनाया गया। सब दरवाजों पर आर्किड की खिली टहनियां लटकाई गई। दीवारों और खिड़कियों पर कागज के बने बंदनवार सजाये गये । सब लड़कियों ने मरून और काले धारीदार गाले के ऊपर हल्के हरे रंग की कुर्ती पहनी, चांदी के जेवर और बालों में मोनाल पंछी के पंख खोंसे। और पुरुष जब नये कढ़ाईदार बैल्ट और जूते पहन नाचने उतरे तो उनका उत्साह देखते ही बनता था।

मिति भी सुंदर कपड़े पहने, त्यौहार के लिए लाल चावल रांध रही है। योबोम ने भी नीले रंग की नई सूती वास्कट पहनी थी, दोनों बस दिन का भोजन करके नृत्य के लिए बाहर जाने को तैयार थे। तभी तोसिरो ने दरवाजे पर दस्तक दी। उसके हाथ में एक सुंदर कढ़ाईदार थैली में चांदी के दस सिक्के थे और शहर से लाया बढ़िया केक, एक बोटल विदेशी रम थी।

“याबोम, उस रात क्या हुआ था? माफ करना मैं….। ”

“मैं जानता था, तुम्हें नशे में पता तक न होगा कि कब दोरजी ने काओ की मदद से तुम्हारी जेब से नोटों का बैग निकाल लिया। मैं संयोग से उसे वक्त वहाँ पहुँचा था। उसे और उसके नौकर काओ को दो मिनट में डरा-धमका कर बैग ले लिया। तुमसे पहले तुम्हारे घर पहुँच कर इंतजार करता रहा। तुम लड़खड़ाते हुए बीस मिनट बाद यहाँ पहुंचे और मुझे देख हवा में हाथ हिला कर चीखते हुए कि ‘कितना गिरोगे?’ तुम खुद गिर गए थे। बैग को मैंने तुम्हारे सीने पर रख दिया और वहीं बैठा रहा- सुबह होने तक।“

“माफ! माफ करना…शुक्रिया याबोम…क्या कहूँ।“ तोसिरो से कुछ कहते न बना। बड़बड़ाता रहा …“हरामी दोरजी, उसकी बार न बंद करवा दी तो!”

“इतने तैश में मत आओ। सुनो कोई किसी से कुछ नहीं छीन सकता। भीतर आओ। तुम आज हमारे मेहमान हो। मिति उनकी बातें सुनती हुई रसोई में चावल पका रही थी और उसके हाथ कांप रहे थे। योबोम के हंसने की आवाज़ आई –

“मिति आज हमारे घर मेहमान आए हैं। थोड़ा बढ़िया और ज्यादा पकाना।“ दूसरी पतीली में उबलती सोयाबीन की फलियां नाचने लगीं। मिति शर्माकर कोने में दुबक जाती अगर पहले वाला समय होता तो! उसने पतीली ढांपी और बाहर चली आई। तोसिरो के सौजन्य भरे अभिवादन का जवाब पलकें उठा कर अभिवादन से दिया।

उस रोज बांज के उस उम्रदराज पेड़ की कोटर में ‘पागा’ (ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल) के जोड़े ने तीन चमकीले अंडे दिए थे।

०००००००

“………” कहानी जब खत्म हुई तो देर तक मौन बना रहा। एक मौन में डूबी वह लौट आई। शाम को जब अलाव जला तो ब्लूमून में ठहरे तीन विदेशी भी बाहर चले आये। नोबोम ने वायलिन पर बाख का ‘सोनाटा’ डी माइनर बजाया तो वे सब झूम उठे।

“ फिर तोसिरो कहाँ हैं?” उसने औचक ही पूछ लिया, नोबोम तब तक चुप रहा जब तक वह वायलिन को सहेज कर भीतर न रख कर आ गया। वह अलाव के पास रखे बेंत के काउच पर धँसी कुछ पढ़ रही थी।

“ऑगस्ट, ट्वेंटी-ट्वेंटी में मेरे बूढ़े दादा ने दादी की मौत के दिन एक नहीं दो अंतिम संस्कार किए थे। एक मिति का दूसरा तोसिरो का। इस नीले घर में ताउम्र अकेले रहने वाले तोसिरो जब दादी की मौत की खबर सुन कर भी बाहर नहीं निकले…तो लोगों को लगा उन्हें गहरा दु:ख पहुँचा है। लेकिन अंतिम प्रणाम के लिए जब लोग उन्हें बुलाने पहुंचे तो वे इसी कमरे की खिड़की जहां से पहाड़ी दिखती है, उसके पास वाली कुर्सी पर सर झुकाए बैठे थे,…जब दादा ने उन्हें हिलाया तो वो…. मतलब वह केवल उनका जिस्म था, वे मिति के पीछे-पीछे जा चुके थे…अपने रकीब को अकेला छोड़।“

“योबोम अब कहाँ हैं?”

“आज बौद्धमठ के पास हैंडलूम शॉप में जिससे तुमने यह जैकेट खरीदी थी….वही! मेरा दादा।“

‘ब्लूमून’ होमस्टे की नीली दीवारों पर एक लंबी, सतर, सजग मगर बूढ़ी देह उभर आई….जिसकी कांपती उंगलियों का स्पर्श लेखिका की मरून जैकेट पर छूट गया था, जिसे वह उस वक्त पहने हुए थी।

मनीषा कुलश्रेष्ठ


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