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मनप्रीत कौर मखीजा की की सात कविताएँ

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आज मनप्रीत कौर मखीजा  की सात कविताएँ। मनप्रीत गांधीनगर की रहने वाली हैं। कविताओं के साथ-साथ कहानियाँ भी लिखती हैं जिनका प्रकाशन विभिन्न कहानी संग्रहों में हो चुका है। उनकी इन कविताओं में व्यवस्था से आम नागरिकों के सवाल भी हैं, व्यंग्य भी हैं, पर्यावरण को लेकर चिंता भी है साथ ही उनमें स्त्री-निर्मिति की समझ भी है।अब यह कविताएँ आप सबके समक्ष प्रस्तुत है – अनुरंजनी

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  1. सवाल 

    कटते जा रहे हैं पेड़
    घटते जा रहे हैं जंगल
    फैलते ही जा रहे हैं शहर

    मोबाइल टावर की तरंगों से डरकर
    बहुमंजिला इमारतों में भी
    एक छोटी सी परछत्ती में
    घोंसले की जगह ना पाकर
    कहीं दूर उड़कर जाती जा रही है चिड़िया सारी

    प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल पर दिख रही
    उस बड़ी ख़बर के बीच
    स्क्रीन के किनारे पर छोटे से संदेश के साथ
    की जा रही है देश से अपील
    पर्यावरण और प्रकृति को बचाने की अपील

    अहा!  कितने विशाल ह्रदयी हैं हम मानव
    क्या सच में!
    क्या हम जागरूक हैं!
    या अब भी सुप्त अवस्था में हैं!
    सवाल, अगले सवाल के इंतजार में है।

    2. प्रेम वाली गली

    शहर में है घनी आबादी वाला इलाका
    जहाँ है एक सँकरी सी गली
    गली में रहते हैं वे लोग
    जो रोज सुबह चंद मिनटों के लिए ही
    खोलते है घर के दरवाज़े

    वे बाहर आते हैं
    एक दूजे से टकराते हैं
    औपचारिकतावश मुस्कुराते हैं
    और फिर घर में सिकुड़ जाते हैं

    गली की दोपहर एक लंबी खामोशी में बीतती है
    और शामें शहर की अव्यवस्थाओं पर
    सरकार को कोसने में

    इस गली के लोग बड़े अजीब हैं
    कोई मुसीबत आ जाए तो
    अजनबी बन जाते हैं
    सटकर बने घरों में रहते हैं
    पर हाथ मिलाने से कतराते हैं

    इसी गली में बीचों-बीच
    लटकी है एक स्ट्रीट लाइट
    जिसका वही काम है जो होना चाहिए
    इतना भर उजाला करना कि गली में कोई
    ठोकर खाकर ना गिरे
    और अंधेरा, इस गली में न हो

    उसके आगे एक बस्ती है
    स्ट्रीट लाइट की रोशनी पाकर एक जोड़ा
    वहाँ से देर रात यहाँ चला आता है
    लाइट के नीचे बैठकर एक दूजे की आँखो में नही
    किताबो में खो जाता है
    रोशनी खुश है किसी के जीवन में प्रवेश करके

    वारदातों के इस शहर में
    गली के लोगों को खबर दिए बिना
    इक्की दुक्की घटना कुछ ऐसी भी घटती है,
    और प्रेम यूँ पनपता है

    3. डर 

    “तुमने डर को देखा है !
    यह जब आँखो में दिखता है
    तब आँखे सूख जाती हैं।”

    मेरे कोचिंग का एक लड़का डर पर चैप्टर पढ़ रहा है
    और मैं… कभी घड़ी देख रही हूँ
    कभी खिड़की से बाहर

    मुझे अँधेरा घिरने से पहले घर पहुँचना है
    जरा भी देर हो तो यहाँ मेरी,
    और वहाँ घर पर मेरी माँ की साँसे घटने-बढ़ने लगती हैं
    धड़कन तेज हो जाती है
    पसीना बहने लगता है

    वह लड़का अब भी चैप्टर पढ़ रहा है
    उसकी आवाज में कोई फर्क नहीं
    मुझमें भीतर कुछ रेंगना शुरू हो गया है
    मेरे चेहरे के भाव बदल रहे हैं
    वो लड़का सिर्फ एक टॉपिक पढ़ रहा है
    मैं और मेरे जैसी कई इस डर के साथ जी रही हैं

    4. चरित्र 

    मेरे शहर के भीतर चलती है हवा
    कि अँधेरा होते ही हम स्त्रियों को रहना चाहिए
    सिर्फ घर के भीतर

    ना खड़े होना चाहिए बालकनी में
    ना दरवाजे पर
    ना गली में
    और ना ही छत पर

    क्योंकि अँधेरा होते ही घूमता है
    एक जानवर
    वो भी चौड़ा होकर
    जो नोंच कर ले जाता है स्त्रियों का चरित्र
    और एक बार ले गया, तो ले गया
    फिर तो टुकड़े टुकड़े गिराता जाता है
    कभी लोगों की बालकनी में
    कभी दरवाजे पर
    कभी गली तो कभी छत पर
    और फिर सब लोग अपने स्वादानुसार चटकारे लगा कर
    अनिश्चित समय तक उसे पकाते हैं और पकाते ही जाते हैं

    मैं फुटबॉल पर किक की तरह उछालती रही ऐसी बेतुकी बातों को
    मैं तो आज के जमाने की पढ़ी लिखी आधुनिक और आत्मनिर्भर महिला हूँ
    मैं तो अपनी मर्जी से अपने नियमों से
    अपने कायदे से रहूँगी, खूब हँसूँगी
    जिधर मर्जी होगी जाऊँगी

    मगर एक दिन….
    घर वापसी पर मैंने देखा
    मैंने भाँप लिया और पाया भी
    मेरे अपनों के बीच ही एक टुकड़ा भी पड़ा था
    शायद बकैती से स्वाद लेने वालो को
    मेरे घर का भी पता पता था

    मैंने एक पल न गँवाया
    सामान बाँधा और निकल पड़ी
    रात के अँधेरे में भी

    शहर की उस हवा तक का दम घुट रहा था
    जानवर के नाखून उखड़ चुके थे
    स्वाद लेने वालों की जबान कसैली हो गई
    मेरा चरित्र, कोई टुकड़ा थोड़े ही था
    कोई साथ दे न दे, मेरा चरित्र तो मेरे साथ है
    मेरी सोच का आइना है
    और .. और एक नई परिभाषा भी है

    5. फर्क है 

    फर्क है
    अकेलेपन और एकांत में
    एक वह है जो दुनिया ने आपको दिया है, हार जाने के लिए
    और एक वह जिसे आपने स्वयं चुना है, हार के भी जीत जाने के लिए

    फर्क है
    चुप रहने और मौन होने में
    एक के लिए प्रयासरत रहना पड़ता है
    और एक के लिए साधनारत

    फर्क है
    समय कटने और  समय काटने में
    एक में व्यक्ति मन से नैनों तक मुस्कुराता है
    सुकून पाता है
    और एक में  बोझिल व उदास हो जाता है

    6. कंडीशनिंग 

    वो जब लड़कर थक जाएगी
    तो जिंदगी साइड रख एक गहरी नींद सो ही जाएगी
    वो फिर नहीं उठेगी
    तुम झल्लाना चिढ़ना क्रोध दिखाना,
    और हो सके तो पछतावे का फिल्टर भी लगाना
    ज़ोर से आवाज लगाना
    तब तुमसे टकराने को तुम्हारे घर में
    सिर्फ तुम्हारी आवाज़े होंगी
    अपनी शिकायतें, अपना मान और तुम्हारी फ़िक्र में घिसा हुआ शरीर लेकर वो जा चुकी होगी
    लेकिन तब तक..
    तब तक उसे अपने ही अस्तित्व की खोज में
    अपनी बसाई सजाई चार दीवारों से सिर फोड़ लेने दो
    दर्द जब हद पार होगा
    बर्दाश्त से बाहर होगा
    खुद ब खुद टूटकर गिर जाएगी
    वो जब लड़कर थक जाएगी
    बस चुप हो जाएगी
    उसे चुप रहना ही सिखाया गया है

    7. वे औरतें 

    कहाँ जाती होंगी वे औरतें
    जिन्होंने स्वाभिमान चुना
    जिन्होंने रिश्ते में स्वयं का दम नहीं घुटने दिया
    क्या हुआ होगा
    कहानी कुछ यूँ रही होगी

    देखा होगा जब मायके की तरफ़
    तब  “नसीब यही है तुम्हारा”  सुनकर
    झटाक से बंद दरवाजे महसूस किए होंगे मुख पर
    और “हाथ झटकना” मुहावरे का अर्थ तब समझ पाई होंगी

    देखा होगा जब समाज की तरफ़
    तो दी जाती होगी नसीहत  “एडजस्ट करने की”
    और एक दमघोंटू गैस घुल जाती होगी वातावरण में

    देखा होगा जब आईने में
    तो  “क्या ही कर सकती हो तुम!” जैसे वाक्य
    अट्टहास की गूंज के साथ चुभ जाते होंगे
    शरीर के भीतर बसी रूह के भी सबसे भीतरी परत पर
    और लहूलुहान हो जाता होगा अस्तित्व
    फिर दिखाई देते होंगे अपने ही आप के अनेकों टुकड़े
    इधर-उधर, टेढ़े-मेढ़े, औंधे मुंह गिरे हुए

    देखा होगा और सोचा होगा जब
    अपने ही जैसी अनेकों को, और
    उनके जीवन भर की खपत को
    तब यकीनन ख्याल आया होगा कि

    स्वयं पर भी खर्च किया जा सकता है जीवन
    और इस खर्च से कुछ अर्जित भी किया जा सकता है
    उस अर्जित से खुद को भी बचाकर रखा जा सकता है
    बस … एक कदम उठाने भर की तो बात है

    तब अपने अस्तित्व के टुकड़ों में से
    वे चुनती होंगी आत्मविश्वास का नन्हा टुकड़ा
    जिस पर स्वाभिमान की परत चढ़ाकर वे रचती होंगी
    एक नए स्व को

    अब जान गई हूँ मैं
    यही रही होगी कहानी
    उन्होंने ही रचा होगा इस संसार में एक नया संसार
    जिसका नाम रखा होगा,  ‘दुनिया पुनर्जन्म वालो की’


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