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हिन्दी पट्टी में प्रचलित गानों का विश्लेषण

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रूप तेरा मस्ताना प्यार तेरा दीवाना, चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल, तेरे चेहरे में वो जादू है, आँखों में तेरी अजबसी अजबसी अदाएँ हैं’, हिन्दी में प्रचलित ये सारे गाने आपने सुने होंगे। क्या आपने कोई ऐसा गाना सुना है जिसमें स्त्री की बौद्धिकता की कोई बात रही हो? (अगर सुना है तो हम सब ज़रूर जानना चाहेंगे) अमूमन हिन्दी गानों में स्त्री के रूपरंग, आंखें, होंठ इन्हीं सब पर केंद्रित गाने मिलते हैं। ऐसे असंख्य गीत हैं जो हमारी ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं। अनामिका झा का यह लेख ऐसे ही प्रचलित गानों को रेखांकित और विश्लेषित करता है।अनामिका ने हाल ही हैदराबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है।इससे पहले अनामिका द्वारा जानकीपुल परसूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तकनाटक की समीक्षा आप पढ़ चुके हैं। आज हिन्दी पट्टी में प्रचलित गानों पर उनका यह लेख पढ़िएअनुरंजनी

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हिंदी पट्टी में प्रचलित गानों का विश्लेषण

गाना सुनना किसे नहीं पसंद? जिन लोगों की रुचि गाने में नहीं होती उन्हें भी गाना सुनना और गुनगुनाना उतना ही अच्छा लगता है। लोग अक्सर अपना काम करने के साथ–साथ मन लगाने के लिए गाना भी सुनते रहते हैं। सोशल मीडिया के युग में गाने ‘रील्स’ के माध्यम से मिनटों में ‘वायरल’ हो जाते हैं और गानों के बोल तुरंत ही लोगों के ज़बान पर चढ़ जाते हैं। ‘रील्स’ तो खैर आधे–एक मिनट में खत्म हो जाते हैं लेकिन हम पर इन गानों का असर पल भर का नहीं बल्कि गहरा होता है। सामाजिक मूल्यों को गढ़ने में तथा उनके प्रसार में भी गानों की अहम भूमिका होती है।

आज कल जिस प्रकार के गाने प्रचलित होते हैं उनका अध्ययन करने पर जो एक प्रवृत्ति अधिकतर गानों में पाई जाती है वह है ‘सेक्सिज़्म’। गानों में ‘सेक्सिज़्म’ बहुत आम हो गया है। समाज में जिस तरह के गाने प्रचलित होते हैं इससे समाज की मानसिकता का तो पता चलता ही है साथ ही साथ यह भी पता चलता है कि गाना बनाने वालों के पास ‘सेक्सिज़्म’ और स्त्रीद्वेष के अलावा परोसने के लिए और कुछ सामग्री नहीं बची है। फिल्म ‘हिट’ हो जाए इसलिए अक्सर फ़िल्मों में ‘आइटम सॉन्ग’ डाल दिए जाते हैं जिसमें स्त्री को एक यौन वस्तु की तरह प्रस्तुत किया जाता है। आज कल जो गानों के एल्बम निकलते हैं, वे भी तुरंत ही हमारे बीच प्रचलित हो जाते हैं। उनमें से अधिकतर गाने जेंडर–संबंधी रूढ़ियों को बढ़ावा देते हैं। हिंदी पट्टी में प्रचलित गानों के दृश्य या बोल (लिरिक्स) का विश्लेषण करने पर हमें विभिन्न रूपों में ‘सेक्सिज़्म’ और पितृसत्तात्मक सोच नज़र आती है। गानों में अक्सर हमें स्त्री का वस्तुकरण देखने को मिलता है तथा प्यार, सहमति (कंसेंट) और मर्दानगी की गलत अवधारणा का प्रचार मिलता है।

स्त्री का वस्तुकरण

यूँ तो नारी सशक्तिकरण की बात हो तो लोग बहुत बढ़–चढ़ कर इस पर अपनी बात रखते हैं। पर वहीं जब बात ‘आइटम सॉन्ग’ करने की आती है तो कोई भी कलाकार इसे करने से पीछे नहीं हटते। शीला की जवानी, मुन्नी बदनाम हुई, चिकनी चमेली, फेविकॉल से या पिंकी है पैसे वालों की जैसे कई ऐसे गानों के उदाहरण हमें मिल जाएँगे जिसमें बॉलीवुड के दिग्गज से दिग्गज कलाकारों ने हिस्सा लिया है। ‘आइटम सॉन्ग’ में हमें स्त्री का वस्तुकरण मिलता है जो कि ‘मेल गेज़’ का ही नतीजा लगता है। ‘मेल गेज़’ का मतलब है– “दुनिया को मर्द के नज़रिए से देखना जिसमें स्त्री को वस्तु मात्र के रूप में देखा जाता है”। ऐसा मानना गलत होगा कि ‘आइटम सॉन्ग’ तो सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य से बनाए जाते हैं और इसका ‘मेल गेज़’ से कोई संबंध नहीं होता। आइटम सॉन्ग में स्त्री को अक्सर भोग की वस्तु के रूप में दिखाया जाता है। मनोरंजन के नाम पर यहाँ पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी सोच मौजूद है जो महिलाओं के अस्तित्व को सिर्फ पुरुषों के मनोरंजन तक के लिए सीमित करती है।

“जो लोग यह नहीं समझ पाते कि औरत क्या चीज़ है, उन्हें पहले यह समझने की ज़रूरत है कि औरत चीज़ नहीं है”। मंटो का यह कथन आज भी लोग नहीं समझ सके कि स्त्री ‘चीज़’ नहीं है। ऐसे कई गाने हैं जिनमें स्त्री को ‘चीज़’ ही घोषित कर दिया गया है। जैसे,

• तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त – [‘मशीनफिल्म से]

• तेरी मम्मी की जय, क्या चीज़ बनाई – [एल्बमलड़की पागल है]

• बार बार देखो, हज़ार बार देखो के देखने की चीज़ है हमारी दिलरुबा – [‘चाइना टाउनफिल्म से]

स्त्री को महज़ शरीर/ वस्तु नहीं समझ कर एक मनुष्य समझे जाने के लिए अभी भी बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। इस संघर्ष में ऐसे गाने पितृ‌सत्तात्मक और रूढ़िवादी सोच को ही बढ़ावा देते हैं। आए दिन हमें कई ऐसे घटिया गाने सुनने को मिल ही जाते हैं जिनमें महिलाओं का वस्तुकरण किया जाता है। जैसे–

• मैं तो तंदूरी मुर्गी हूँ यार

गटका ले सैयां अल्कोहल से – [गानाफेविकॉल से, ‘दबंगफ़िल्म से ]

• ठंडे की बोतल, मैं तेरा ओपनर;

तुझे गट गट मैं पी लूँ, कोका कोला तू – [गानाकोका कोला तू, ‘लुका छुपीफ़िल्म से]

• बिजली के खंबे जैसी खड़ी है

तेरे बदन में अग्नि बड़ी है,

मुझे दिखाती किसकी तड़ी है,

तू शोलाशोला फुलझड़ी है – [एल्बमबिजली की तार]

इन गानों में लड़की की तुलना किसी वस्तु– कभी ‘तन्दूरी मुर्गी’, तो कभी ‘ठंडे की बोतल’ और ‘कोका कोला’, तो कभी ‘बिजली के खंबे’, ‘शोला’ और ‘फुलझड़ी’– से की गई है। समाज में स्त्री को महज़ मर्दों के मनोरंजन और उनकी संतुष्टि के लिए यौन वस्तु समझे जाने वाली मानसिकता को इन गानों से मज़बूती मिलती है। इन गानों में स्त्री की तुलना वस्तु से करते हुए स्त्री की छवि को मर्दवादी नज़रिए से प्रस्तुत किया गया है।

बाद‌शाह और हनी सिंह के गाने जितने ही सेक्सिस्ट होते हैं, उतना ही आम लोगों में प्रचलित भी। जैसे–

• चले जब तू लटक मटक, लौंडों के दिल पटक पटक….

बम तेरा गोते खाए कमर पे तेरी बटरफ्लाई

बॉडी तेरी मक्खन जैसी – [एल्बमगेंदा फूल]

यह तो इन पंक्तियों से साफ है कि लड़की की देह के कुछ खास अंग के बारे में ही यहाँ कहा जा रहा है और गाने में कैमरा का फोकस भी उन्हीं कुछ अंग पर रह-रह कर जाता है। आगे लड़की की देह का वस्तुकरण कर उसकी तुलना ‘मक्खन’ से की जा रही है। वहीं एक दूसरे गाने में बादशाह ने लड़की के लिए “टोटा” शब्द का प्रयोग किया है–

• बेबी तू है टोटा – [गानाकोका कोका, ‘खानदानी शफाखानाफिल्म से]

गानों में लड़की को ‘टोटा’, ‘फुलझड़ी’, ‘पटाखा’ इत्यादि जैसे शब्दों से संबोधित करना आम बात है।

• तुझे डायमंड के जैसे संभाल के रखना – [एल्बममखना]

हनी सिंह के कई सेक्सिस्ट गानों में से एक यह गाना है जिसमें लड़की की तुलना ‘डायमंड’ से की जा रही है। डायमंड ऐसी बहुमूल्य चीज़ है जिसका इस्तेमाल हम प्रदर्शन और दिखावा करने के लिए करते हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से स्त्री का अस्तित्व केवल एक प्रदर्शन और दिखावे की वस्तु तक ही सिमट कर रह गया है।

गानों से निर्मितप्यारऔररोमैंसकी अवधारणा

प्रेम के विषय में कई तरह की गलत अवधारणाएँ और गलतफहमियाँ गानों के माध्यम से फैलती हैं। जैसे,

i) एक–दूसरे से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र पहचान नहीं हो सकती। प्रेम करने वाले दोनों व्यक्ति की पहचान और वैयक्तिकता का विलीनीकरण ज़रूरी है– ऐसे कई गाने हैं जिनसे ऐसे ही भाव/ विचार संप्रेषित होते हैं, जैसे–

• जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे [‘सफरफिल्म से]

• अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम

तुम्हें हो पसंद उसको दोबारा हम देखेंगे। [‘ज़हरफिल्म से]

गानों की इन पंक्तियों से यह अर्थ संप्रेषित होता है कि अपने साथी की पसंद के हिसाब से अपनी पसंद– नापसंद रखना ही प्यार है। लेकिन किसी से प्यार करने का अर्थ कहीं भी और कभी भी यह नहीं होता कि हम अपने मन से, अपनी पसंद से जीना छोड़ दें या दूसरे की पसंद को अपनी पसंद बना लें।

• ‘हो गईमैं भी तू

अब रही मुझमें मैं ज़रा….’

दर्द दे, अश्क दे, जो तेरी मर्ज़ियाँ.. सह नहीं पाऊँगी मैं तेरी दूरियाँ’ – [एल्बमनहीं चाइदा]

प्रेम में होने का अर्थ यह भी नहीं होता कि हम दूसरे के प्यार में इतना बदल जाएँ कि हम ‘हम’ ही न रहें। प्यार का अर्थ है एक–दूसरे के अस्तित्व को बरकरार रखना, न कि एक–दूसरे को बदल देना। और इस गाने में तो लड़की साफ कह रही है कि वह ख़ुद में ज़रा सी भी नहीं बची। सच्चा प्यार वह होता है जिसमें व्यक्ति का अस्तित्व न मिटे। गाने की आगे की पंक्तियाँ बहुत ही आपत्तिजनक हैं। हाँ हम जिससे प्यार करते हैं उनसे दूर नहीं होना चाहते पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपने जीवन की डोर किसी और के हाथ में दे दें। वह भी सिर्फ इसीलिए कि वह हमें छोड़ कर न जाए। आज भी लड़कियों की परवरिश ऐसे की जाती है कि वे छोटी से छोटी बात के लिए भी दूसरों (खास कर पुरुषों) पर निर्भर होती हैं। ऐसे में गाने के ऐसे बोल लड़की में– दूसरे पर निर्भर रहना, अपनी अस्मिता की खोज न करना, मानसिक तनाव तथा घरेलू हिंसा को चुप–चाप सहना– जैसे व्यवहारों को बढ़ावा देते हैं।

ii) प्रेम का अर्थ है अधिकार जमाना– गानों में हम देखेंगे कि कई बार प्यार का अर्थ अपने साथी पर अधिकार जमाने से जोड़ा जाता है और अधिकार की भावना (पोसेसिवनेस) को सही भी ठहराया जाता है। बॉलीवुड अपने गानों में अक्सर प्यार में अपने साथी (पार्टनर) पर अधिकार को ‘रोमैंटिसाइज़’ करता आया है लेकिन यहाँ यह नहीं समझ आता कि कोई किसी से प्यार करे या न करे पर किसी व्यक्ति पर दूसरे का हक कैसे हो सकता है? प्रेम का अर्थ किसी का किसी पर अधिकार होना नहीं होता। हम अधिकार किसी वस्तु पर जता सकते हैं, किसी व्यक्ति पर नहीं।

• कभीकभी मेरे दिल में ख़याल आता है..

कि ये बदन, ये निगाहें मेरी अमानत हैं – [‘कभीकभीफिल्म से]

गाने के ये बोल काफी आपत्तिजनक हैं। कारण, इसमें अधिकार की भावना को ‘रोमैंटिसाइज़’ किया जा रहा है। प्यार के नाम पर हम किसी व्यक्ति पर अधिकार नहीं जमा सकते। किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति (अमानत) ठहराना प्यार नहीं होता। हम किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति बता कर उसके अस्तित्व का अनादर करते हैं। जादू तेरी नज़र गाने की इस पंक्ति– तू किसी और की हो जाना, कुछ भी कर जाऊँगा मैं दीवाना– से भी दूसरे पर अधिकार जमाने का ही भाव सामने आता है।

iii) प्रेम में ज़बरदस्ती की जा सकती है; ज़बरदस्ती करना रोमैंटिक/ प्यार जताने का तरीका होता है– गानों में यह खूब दर्शाया जाता है कि लड़की से ज़बरदस्ती करना ‘रोमैंटिक’ होता है। ऐसे कई गानों में मैंने देखा है कि लड़की को ज़बरदस्ती चूमा जाता है और यह ‘रोमैंटिक’ माना जाता है। जैसे इश्क फिल्म में इश्क हुआ, कैसे हुआ गाने के ठीक पहले अभिनेता ज़बरदस्ती अभिनेत्री को चूमता है जिसके बाद दोनों को प्यार का एहसास होता है। इसी को आगे गाने में भी फिल्माया गया है। इससे लड़कों को तो यह गलत संदेश जाता ही है कि लड़की से ज़बरदस्ती करना सामान्य बात है पर लड़‌कियों को भी इससे गलत संदेश जाता है कि उनकी सहमति ज़रूरी नहीं है और यह भी कि लड़के का यूँ चूमना ‘रोमैंटिक’ होता है। फलतः ज़बरदस्ती करना लड़कियों को प्यार जताने का तरीका लगने लगता है। उन्हें यह समझ ही नहीं आता कि यह गलत है, यह ज़बरदस्ती है, प्यार नहीं।

गानों से निर्मितसहमतिकी अवधारणा

गानों में अक्सर लड़की की सहमति/ मर्ज़ी (कंसेंट) को पूरी तरह से नकार दिए जाने का प्रचलन दिखता है जिससे इस विचार का प्रचार होता है कि लड़की की सहमति ज़रूरी नहीं है। जैसे–

• जानी नु तू गयी है पसंद बलिये

तपने फिर तेरे कंध बलिये

मेनु सीने नाल ले ले कर नो, नो, नो – [एल्बमक्या बात एय]

यहाँ केवल लड़के की पसंद को ही प्राथमिकता दी जा रही है और लड़की की मर्ज़ी से इसे कोई लेना–देना नहीं है। गाने के ऐसे बोल से यही भाव संप्रेषित होता है कि लड़की की सहमति ज़रूरी नहीं होती है।

• गर्मी कितनी तुझमें

रोटी खाती तू किस आटे की

हाथ लगाओ देखे ऐसे जैसे काटेगी

ये लड़की पागल है – [एल्बमलड़की पागल है]

अगर किसी लड़की को उसकी सहमति के बिना कोई हाथ लगाएगा तो ज़ाहिर सी बात है कि यह उसे अच्छा नहीं लगेगा, और वह गुस्से से ही देखेगी। पर यहाँ लड़की के गुस्से से देखने पर उसे ही पागल कहा जा रहा है।

• चल प्यार करेगीहाँ जी हाँ जी

मेरे साथ चलेगीना जी ना जी

अरे तू हाँ कर या कर तेरी मर्ज़ी सोनिये

हम तुझको उठा कर ले जाएँगे – [‘जब किसी से प्यार होता हैफिल्म से]

यानी लड़की हाँ करे या न करे यह उसकी मर्ज़ी है और लड़के को उसकी मर्ज़ी से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, वह तो वैसा ही करेगा जैसा वह चाहेगा। ऐसा ही कुछ विचार हमें डर फिल्म में जादू तेरी नज़रगाने की इस पंक्ति तू हाँ कर या कर, तू है मेरी किरण से मिलता है। ऐसे गानों से लोगों की यह मानसिकता बन जाती है कि लड़की की मर्ज़ी का कुछ खास महत्त्व नहीं होता, उसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।

• मुझे तू राज़ी लगती है

जीती हुई बाज़ी लगती है – [गानाये तूने क्या किया, ‘वंस अपॉन टाइम इन मुंबई दोबाराफिल्म से]

जब तक कि कोई अपनी राय, अपनी सहमति व्यक्त न कर दे तब तक कोई उसे राज़ी कैसे समझ सकता है? राज़ी लगने और राज़ी होने में बहुत फ़र्क होता है और यही फ़र्क लोग अक्सर समझ नहीं पाते। उनके मन में तो लड़की पहले से ही राज़ी होती है। वे तो यह सोच भी नहीं रहे कि लड़की इनकार भी कर सकती है। और जब कोई लड़की इनकार कर देती है तो उनसे यह स्वीकार नहीं होता। आगे की पंक्ति से यह भाव संप्रेषित हो रहा है कि लड़की पर बाज़ी लगाई गई थी जैसे लड़की बाज़ी (शर्त) लगाने की कोई चीज़ हो! लड़कों में लड़की को हार-जीत के नज़रिए से देखना भी बहुत आम बात मानी जाती है। 

बॉलीवुड ने अपने गानों के माध्यम से लड़की की असहमति की संभावना को नकारने के साथ–साथ सहमति से संबंधित तरह– तरह की भ्रांतियों का भी खूब प्रचार किया है। गानों में अक्सर यह दिखाया जाता है कि लड़की की ‘न’ में ‘हाँ’ छुपी होती है। जैसे,

• ये उसका स्टाइल होएंगा

होठों पे दिल में हाँ होएंगा – [गानाअपुन बोला, ‘जोशफिल्म से]

• कब तक रूठेगी, चीखेगी, चिल्लाएगी

दिल कहता है एक दिन हसीना मान जाएगी – [गानाहसीना मान जाएगी]

इन गानों के माध्यम से ऐसी सोच का प्रसार होता है जिसके अनुसार लड़की की ‘अस्वीकृति’ केवल उसका ‘अव्यक्त प्रेम’ है। यानी प्रेम लड़की को भी है पर उसे या तो इस प्रेम का आभास अभी नहीं हुआ है या वह अभी उस प्रेम को व्यक्त नहीं करना चाहती।

• इसकी सोई धड़कन में चाहत की आग लगाऊँगा – [गानाहसीना मान जायेगी]

इस पंक्ति से यही लगता  है कि लड़की की चाहत अभी तक सुषुप्तावस्था में थी और वह लड़का उसके भीतर प्यार करने की इच्छा को जगाएगा। लड़की की अस्वीकृति को स्वीकार नहीं करना और लड़की के व्यवहार को इस तरह से दर्शाना जैसे लड़की भाव खा रही है या वह सामान्य से थोड़ी अधिक कठोर है या कठोर होने का नाटक कर रही है और फिर उसके इस व्यवहार और उसके निर्णय को बदलने के लिए नाना उपक्रम करना– इससे लड़की की मर्ज़ी का महत्त्वहीन होने का भाव प्रचार होता है। इसके साथ ही इसके पीछे यह भाव भी निहित होता है कि लड़कियों में अपने लिए सही–गलत का चुनाव करने की भी समझ नहीं होती है। बौद्धिकता के स्तर पर लड़कियों की बुद्धि को शून्य समझना पितृसत्तात्मक मूल्यों की ही देन है।

कई बार गानों में लड़की की अस्वीकृति को एक रणनीति की तरह दर्शाया जाता है। उनके अनुसार लड़कियाँ, अपनी इस रणनीति के तहत, अक्सर अपने प्रेमी की ईमानदारी और दृढ़ता को परखती हैं। इसलिए गानों में लड़के और भी तरह के उपक्रम करते दिखाए जाते हैं जिससे उनके तथा कथित प्यार का महत्त्व स्थापित हो सके। जैसे- 

• रिफ्यूज़ किया सौ बारी, फिर भी करना चाहे यारी

 पैशन तेरे लिए मेरा इंक्रीज हो गया – [गानादिल्ली वाली गर्लफ्रेंड, ‘ये जवानी है दीवानीफिल्म से]

इस पंक्ति से साफ है कि लड़की के बार-बार मना करने पर भी लड़का उसकी बात नहीं मान रहा। बल्कि लड़की का मना करना लड़के को उसके पीछे पड़े रहने के लिए और प्रोत्साहित कर रहा है।

गानों के माध्यम से लिंगआधारित हिंसा को बढ़ावा

लड़की की अस्वीकृति को अस्वीकृति के रूप में स्वीकार न कर के कैसे उसका निर्णय बदला जाए इसकी कोशिश के लिए गानों में तरह–तरह के उपाय/ हथकंडे भी मिलते हैं, जिसका इस्तेमाल कर लड़का लड़की की ‘न’ को ‘हाँ’ में बदल सकता है। चूँकि लड़के यह मान चुके रहते हैं कि लड़की की ‘न’ का कोई मतलब नहीं होता, इसलिए वे उनके ‘न’ को ‘हाँ’ में बदलने के लिए तरह-तरह के हथकंडे- जैसे उनका पीछा करने (स्टॉकिंग), उनकी निजी ज़िंदगी में करीब से ताक– झाँक करने (वॉयरिज़्म), सड़क पर उनके साथ यौन उत्पीड़न करने (स्ट्रीट सेक्सुअल हरासमेंट), या किसी और तरह से परेशान करने के तरीके इत्यादि– अपनाते हैं जिससे लड़की का “पत्थर–दिल” पिघल जाए। लड़के के इन हरकतों के बावजूद भी गानों/ फिल्मों में लड़की का निर्णय बदल जाना समाज में ऐसी मानसिकता फैलाती है कि यह सब करने से लड़की असलियत में भी खुश होती है और यही सोच आगे चल कर उत्पीड़न तथा बड़े–बड़े अपराधों को जन्म देती है। ऐसे तो कई गानों के उदाहरण हमें मिल जाएँगे जिसमें लड़की को मनाने के लिए लड़‌का उसका पीछा कर रहा है। जैसेलव डोज़गाने में लड़का पूरे गाने में लड़की का पीछा करता है और सब के सामने लड़की का रास्ता ज़बरदस्ती रोकता है। और कई बार गाने के बोल ऐसे होते हैं जो ‘स्टॉकिंग’ और ‘वॉयरिज़्म’ को बढ़ावा देते हैं। जैसे–

• बीड़ी पी के नुक्कड़ पे वेट तेरा किया रे – [गानागंदी बात ]

• तेरी गली में भी आना स्टार्ट कर दिया – [गानादिल्ली वाली गर्लफ्रेंड ]

इन पंक्तियों में ‘स्टॉकिंग’ और ‘वॉयरिज़्म’ को लड़की को मनाने के लिए उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। किसी का पीछा करना या उसपर नज़र रखना उसकी निजी ज़िंदगी में दखल देना हुआ जो कि कानूनन अपराध है, पर गानों में अक्सर यह प्यार जताने का तरीका के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। गानों से ऐसी सोच का प्रसार होता है कि लड़की के इनकार को स्वीकार करने के बजाय उसको मनाने की कोशिश करनी चाहिए।

• घर से भगा के ले जा, समझेगी तेरी बात को – [गानाअपुन बोला, ‘जोशफिल्म से]

इस गाने में तो लड़की को अगवाह कर लेने तक की सलाह दी गई है। इन सभी गानों में पीछा करने या नज़र रखने या लड़की को घर से भगा कर ले जाने को एक प्रयास के रूप में दिखाया गया है जिससे लड़की की ‘न’ ‘हाँ’ में बदल जाए। लड़की की अस्वीकृति को नकारना तथा इसे उनका अव्यक्त प्रेम समझना अंततः पीछा करने जैसी गतिविधियों को सही ठहराता है।

• तेरा रस्ता जो रोकूँ चौंकने का नहीं

तेरा पीछा करूँ तो टोकने का नहीं। – [गानातू  मेरे अगल बगल]

• तुझको ज़माने के आगे मैं छेड़ूँगा छोड़ूँगा

आँखें चुराएगी भी तो मिलाऊँगा

झूठे मूठे वादे सुना के फसाऊँगा – [गानाबचना हसीनों]

किसी का पीछा करना कहीं से भी उचित या जायज़ नहीं है। लेकिन इन पंक्तियों में लड़की का पीछा करने को लड़के के अधिकार के रूप में दर्शाया गया है जिसपर कोई लड़की प्रतिकार नहीं कर सकती।

गानों में लड़की का पीछा करके उसकी ‘न’ को ‘हाँ’ में बदलने की अवधारणा बहुत प्रचलित है। फिल्म/गानों के दृश्य/ बोल देखने/सुनने के बाद जब कोई लड़का इन फिल्मों/ गानों में दिखाए गए व्यवहार की नकल करता है, जैसे अपनी ‘लव इंटरेस्ट’  का पीछा करना (स्टॉकिंग), या उनपर नज़र रखना (वॉयरिज़्म) या सड़क पर उनके साथ किसी प्रकार का दुर्व्यवहार करना, फब्ती कसना, टिप्पणी करना (स्ट्रीट सेक्सुअल हरासमेंट)– तो ज़ाहिर सी बात है कि किसी भी लड़की को यह अच्छा नहीं लगेगा। असल ज़िंदगी में लड़की का प्रतिकार, फिल्मों या गानों में दिखाए गए उनके व्यवहार से विपरीत होता है। इस तरह लगातार फिल्मों/ गानों में एक ही प्रकार के व्यवहार को देखते रहने के कारण लड़कों में ‘सहमति’ के विषय में यह गलत अवधारणा इस तरह से बैठ जाती है कि उनसे किसी लड़की की अस्वीकृति स्वीकार नहीं होती। फलतः लड़कों में प्रतिशोध लेने की भावना जगती है जिसके तहत लड़के धमकी देने, एसिड हमले, या बलात्कार आदि जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं। कई बार गानों में सीधे तौर पर यौन उत्पीड़न को बढ़ावा दिया जाता है, जैसे–

• राजा बेटा बन के मैंने जब शराफ़त दिखाई

तूने बोलाहट मवालीभाव नहीं दिया रे

बी सी डी पढ़ ली बहुत, ठंडी आहें भर ली बहुत

अच्छी बातें कर ली बहुत

अब करूँगा तेरे साथ गंदी बात – [‘आर. राजकुमारफिल्म से]

वहीं कुछ गाने ऐसे होते हैं जो फिल्म के साथ बिल्कुल सही बैठते हैं पर अगर उन्हीं गानों को अलग से सुना जाए तो उसका अर्थ ही दूसरा निकलता है। जैसे–

• ठुकरा के मेरा प्यार

मेरा इन्तकाम देखेगी – [‘शादी में ज़रूर आनाफिल्म से]

ऐसा ही कुछ इस गाने के साथ हुआ है। यह गाना श्रोताओं को अपनी ‘लव इंटरेस्ट’ को शारीरिक और भावनात्मक रूप से नुकसान पहुँचाकर बदला लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।

कई बार गानों के माध्यम से ‘विक्टिम ब्लेमिंग’ जैसे स्त्रीद्वेषी विचारों का भी प्रचार देखने को मिलता है जिसमें लड़के की हरकतों का ज़िम्मेदार लड़की को ही ठहराया जाता है। जैसे–

• नी तेरा काजल करदा पागल हिप्नोटाइज़ करे जट नू – [एल्बमक्या बात ]

• ब्लू आइज़ हिप्नोटाइज़ तेरी करदी हैं मैनु – [एल्बमब्लू आइज़]

• नीली नीली अँखियों में दिल्ली वाला कजरा मैनू इनवाइट करदा

तेरे कोल किवें आवाँ तेनु झप्पी किवें पावाँ थॉट ये एक्साइट करदा – [गानामैं तेरा बॉयफ्रेंड, ‘राबताफिल्म से]

इन सभी गानों में लड़के का खुद पर काबू न होने का कारण लड़की को ही बताया जा रहा है। गानों की इन पंक्तियों में यह भाव निहित है कि अगर किसी लड़की को देखकर किसी लड़के का ‘मन मचल’ जाए और लड़का खुद पर काबू पाने के बजाय लड़की के साथ कुछ गलत कर बैठता है तो लड़के को दोष नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि उसे ऐसा व्यवहार करने के लिए लड़की ही आमंत्रित करती है। ऐसा कर के हम लड़की के साथ हुए उत्पीड़न का दोष  लड़के को दोषी ठहराने के बजाय लड़की पर ही आरोपित करने लगते हैं। इस तरह के गाने न केवल लिंग–आधारित हिंसा (जेंडर बेस्ड वायलेंस) को सामान्यीकृत करते हैं और उचित ठहराते हैं बल्कि विक्टिम ब्लेमिंग का भी समर्थन करते हैं– जो कि स्त्रीद्वेष का ही एक और रूप है।

गानों से निर्मितमर्दानगीकी अवधारणा

ऊपर के गानों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि ‘लड़की के इनकार’ को अस्वीकार करने को बार-बार मर्द की मर्दानगी से जोड़‌कर दिखाया गया है। इस अवधारणा का विवेचन यह दर्शाता है कि किसी महिला द्वारा अस्वीकार किया जाना सामाजिक रूप से मर्द की मर्दानगी के विरुध्द समझा जाता है। और यह भी कि “असली” मर्द से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ‘लड़की के इनकार’ को स्वीकार करने के बजाय, ‘लड़की के इनकार’ का इनकार करे। इस तरह की मान्यताएँ सदियों पुराने पितृ‌सत्तात्मक मूल्यों के प्रतिफल हैं जो विषाक्त मर्दानगी (टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी) को बनाए रखने और उसे बढ़ावा देने केलिए ज़िम्मेदार हैं।

इसी तरह के विषाक्त मर्दानगी के विचारों का प्रचार–प्रसार हमें बॉलीवुड/ एल्बम के गानों में मिलता है जो लड़कों को लड़की की सहमति को महत्त्व नहीं देना, उनका पीछा करना या उनपर भद्दी टिप्पणियाँ कसना, इत्यादि सिखाता है। ऐसे–ऐसे गानों में संगीत कुशल संगीतकारों द्वारा दिया जाता है और गाने वालों की आवाज़ भी अच्छी लगती है। इसलिए जाने–अनजाने में गाने के बोल का अर्थ समझे बिना ही हम गाना गुनगुनाने लगते हैं और गाने पर नाचने–झूमने लगते हैं। संगीत, सुर और धुनों पर इनकी इतनी अच्छी पकड़ रहती है कि अगर इसके साथ वे गाली का भी इस्तेमाल करें तो वह भी हमें अच्छा ही लगता है। जैसे बादशाह और हनी सिंह के इन गानों के बोल कुछ इस प्रकार हैं-

I am the badass motherf**ker – [एल्बमगेंदा फूल]

• मैं हूँ womanizer मुझे अकेले में मत मिल – [एल्बममखना]

• बन मित्रा दी whore, I mean मित्रा दी हो – [एल्बमब्राउन रंग]

खुद को वुमनाइज़र या स्टड कहना अब अपनी मर्दानगी साबित करने का मापदंड हो गया है। ऐसा बोलना या बनना लड़कों को ‘कूल’ और ‘माचो’ बनाता है। लड़की की इज़्ज़त करना, उसकी मर्ज़ी की इज़्ज़त करना मर्दानगी के उसूल नहीं हैं! ऐसे ही खानदानी शफ़ाखाना फिल्म के शहर की लड़कीगाने में बादशाह ने जो जैकेट पहनी है उसके पीछे ‘गबरू घातक’ लिखा रहता है। अब खुद को ‘घातक’ (हानिकारक) बताने में कौन सी गर्व की बात है यह बात समझ से परे है। इसी गाने की एक पंक्ति के बोल कुछ ऐसे हैं– फ़िगर पे तेरी सारे मरते हैं, स्कैन पूरा तुझे करते हैं। अगर कोई “स्कैन” नहीं भी कर रहा होगा तो उसे भी यह सिखाया जा रहा है कि लड़की को ऊपर से नीच तक घूर कर देखना चाहिए । फिर देसी बॉय्ज़ गाने में हमें पुरुषों का भी वस्तुकरण मिलता है। इस गाने में लडकों का प्रवेश बिना कमीज़ के होता है और पूरे गाने में ही लड़के हमेशा लड़कियों के झुंड से घिरे रहते हैं। यह गाना पुरुषत्व के अस्वास्थ्यकर और विषाक्त विचारों को बढ़ावा देता है।

इन गानों-उदाहरणों को देखते-समझते हुए  में यह कहना ज़रूरी लगता  है कि गाने न केवल मनोरंजन के साधन हैं बल्कि समाज में प्रचार–प्रसार के भी साधन हैं जो कि लोगों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालते हैं। हम फिल्मी सितारों को अपना आदर्श मानते हैं, स्क्रीन पर दिखने वालों की तरह बनना चाहते हैं। हम उनकी नकल करते हैं, उनके व्यवहार को दोहराते हैं, सीखते हैं। इस तरह देखकर सीखना यानी अवलोकन अधिगम (ऑब्जरवेशनल लर्निंग) बहुत प्रभावशाली और प्रबल होता है, जो हमारे व्यक्तित्व के विकास को बहुत हद तक प्रभावित करता है। इसलिए आर्थिक लाभ के लिए गाना बनाने वालों को समाज के मुद्दों से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए क्योंकि गानों का प्रभाव जितना दिखता नहीं उससे कहीं अधिक हमारी संवेदना, हमारी समझ, हमारे मन–मस्तिष्क पर पड़ता है। गाना बनाने वालों को जब इन मुद्दों पर घेरा जाता है तो वे अक्सर यह कह कर बचना चाहते हैं कि जनता जो देखना/सुनना चाहती है वे उन्हें वही दिखाते/सुनाते हैं। और इसी तर्क की आड़ में वे अपनी सेक्सिस्ट सामग्री हमें परोसते रहते हैं। लेकिन अपनी गलती का सारा भार जनता पर लाद कर वे अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। हमारे जैसे (अत्यधिक पितृसत्तात्मक) समाज में– जहाँ स्त्री को महज़ वस्तु समझा जाता है, आए दिन पुरुषों द्वारा विभिन्न प्रकार की हिंसा की खबरें मिलती हैं वहाँ– ऐसे गानों के बनने से और हर जगह बार–बार यही देखने और सुनने से सेक्सिज़्म को बढ़ावा मिलता है। इससे समाज में पितृसत्तात्मक मूल्य और स्त्रीद्वेषी मानसिकता और सशक्त होती है। इसलिए यह ज़रूरी है कि ये लोग अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए ऐसे गाने न बनाएँ जो स्त्रीद्वेष, रूढ़ियों, पितृसत्ता के मूल्यों तथा लिंग–आधारित हिंसा को बढ़ावा दे।


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