
जैसे गर्मी में बारिश से राहत मिलती है वैसी ही राहत दिल कि बेचैनी को शायरी पढने से मिलती है. संजू शब्दिता के शेर आप सब फेसबुक पर पढ़ते रहे हैं. आज उनके सौ शेर एक साथ पढ़िए
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१
मैंने बस प्यास संभाले रक्खी
ख़ुद ब ख़ुद दरिया मेरे पास आया
२
किस भरोसे जियेगा दरवाज़ा
कोई उम्मीद तो हो दस्तक की
३
आज दरिया बहुत उदास लगा
एक कतरे ने फिर बग़ावत की
४
अचानक से बदलने लग गई हूँ
मेरे अंदर का बच्चा मर रहा है
५
मैं सबब हूँ किसी उदासी का
कितनी बेचैन करने वाली बात
६
नाख़ुदा हाल जाने दरिया का
लोग तो नाव में सवार हैं बस
७
साथ चलना है उनकी मजबूरी
दो किनारों की एक मंज़िल है
८
इतने मामूली हैं कि पूछो मत
हम किसी को नज़र नहीं आते
९
मेरा कुछ भी कहाँ सुना उसने
सीधे सूली चढ़ा दिया उसने
१०
उसकी ख़ामोशी जान लेवा थी
वैसे तो कुछ नहीं कहा उसने
११
हमें सैलाब का इम्कान समझो
बहुत से गम अभी रोये नहीं हम
१२
हिज्र का रोना लेके बैठ गए
वस्ल में भी अज़ाब होते हैं
१३
गुम थे हम चाँद में सितारों में
और जमीं पांव की खिसकती रही
१४
एक ही नाव में सवार हैं लोग
एक दिन एक साथ डूबेंगे
१५
जाने क्या ख़ो गया है हम सबका
जाने क्या फेसबुक में ढूंढ़ते हैं
१६
तुझे जो चाहिए तू मांग ले ऐ ज़िन्दगी मुझसे
है अच्छा मूड मेरा आज तुझसे ख़ुश बहुत हूँ मैं
१७
हम तो ख़ुद ही ग़ुलाम थे उसके
फ़िर भी उसने हमें क़फ़स में रखा
१८
उसने रक्खा हमें अज़ाबों में
हमने उसको मगर नफ़स में रखा
१९
फिर वही सिलसिले दलीलों के
फिर वही मुद्दआ बहस में रखा
२०
दे दी परवाज़ उस परिन्दे को
और फिर हद को दस्तरस में रखा
२१-
नदी ख़ामोश रहने लग गयी है
सफ़ीने पार होते जा रहे हैं
२२-
मैं ख़ारिज हूँ जहाँ से
अभी अवसाद में हूँ
२३-
तलब इतनी ज़्यादा है कहने की कुछ
मुनासिब यही है…. मैं चुप ही रहूँ
२४-
उम्र गुज़री जो इम्तेहानों में
उसके सारे नतीजे थे जाली
२५-
वस्ल की रस्म हम समझते जब
तब तलक दूर जा चुका था वो
२६-
फ़ासला एक ही क़दम का था
मेरी दुनिया बदलने वाली थी
२७-
हज़ारों चाहने वाले थे उसके
जिसे तन्हाइयों ने मार डाला
२८-
ख़ुशी रक़्स करने लगी धुंध में
नए साल का जश्न भी ख़ूब है
२९-
इतनी शिद्दत से मुझे चाहे वो
मुझको नफ़रत का गुमाँ होता है
३०-
हाँ चलो ठीक है…नहीं रोती
क्या सितम है कि मुस्कुराऊँ भी
३१-
हर क़दम सोच कर उठाते हैं
बेख़ुदी का हमें कहाँ हक़ है
३२-
आज चुपचाप हमें रोने दो
ऐसी हालत में कोई शेर नहीं
३४-
मैंने हालात दिल के लिख तो दिए
अब इन्हें बज़्म में सुनाऊं भी.. ?
३५-
इश्क़ में आज ऐसे मोड़ पे हैं
हम जहाँ रूठ भी नहीं सकते
३६-
हमारे साथ बहुत देर तक रहे कल तुम
हमें भनक न लगी तुम नहीं हो दुनिया में
३७-
क्या बताते तुम्हें पता अपना
एक मुद्दत से हैं मुहाज़िर हम
३८-
कहा जो उसने कोई मसअला नहीं उसका
रुका जो कहते हुए बस कसक उसी की है
३९-
जब कि दरिया मेरी निग़ाह में था
रूह सहराओं में भटकती रही
४०-
चाहिए था कि ख़ुद को बदलूँ मैं
मैं मगर आईने बदलती रही
४१-
मुक़ाबिल देखकर नन्हा दिया
बड़े हैरान हैं सूरज मियां
४२-
बचा रक्खे थे हमने गम के आँसू
हमें ख़ुशियों में रोना ख़ूब आया
४३-
हमारी दस्तरस में था कहाँ वो
मगर जब हाथ आया ख़ूब आया
४४-
हक़ीक़त तो मेरी सहरा है लेकिन
मेरे हिस्से में दरिया ख़ूब आया
४५-
गुमाँ में चूर है दरिया का पानी
किनारे पर जो प्यासा ख़ूब आया
४६-
इतना ज्यादा सफ़र तवील हुआ
मुझको मंज़िल की याद ही न रही
४७-
ज़िन्दगी सुन तुझे जियेंगे हम
और कोई विकल्प भी तो नहीं
४८-
उम्र के आख़िरी पड़ाव पे हम
दोस्ती चाहते हैं बचपन की
४९-
ये जो ख़्वाबों की एक दुनिया है
इसके बेताज बादशाह हैं हम
५०-
दिल को तन्हाई में ग़ज़लों की तलब होती है
और तो ख़ास कोई इसको जरूरत ही नहीं
५१-
जिन्दगी भर ज़मीन का खाया
मरने तक आसमान को सोचा
५२-
हमको दरिया ने कई बार किनारे पटका
जब तलक डूबे नहीं हार नहीं माने हम
५३-
मैंने सहरा में घर बना तो लिया
पर समन्दर ख़िलाफ़ है मेरे
५४-
तैर कर हमने पार की दरिया
लोग आए मगर सफीने से
५५-
वो परिंदा हवा को छेड़ गया
उसने क्या खूब ये हिमाक़त की
५६-
वक़्त मुंसिफ़ है फ़ैसला देगा
अब ज़रूरत भी क्या अदालत की
५७-
तेरी आँखों पे पर्दा है जो मुंसिफ़
कोई मासूम सूली चढ़ न जाए
५८-
कहानी ख़त्म तो हम कर ही देते
मगर किरदार सारे रो पड़े थे
५९-
हमारा तो किरदार सादा ही था
कहानी जो बदली,बदलना पड़ा
६०-
किनारे तक तो बहकर आ गए हम
अगर तूफां न आता डूब जाते
६१-
मैं घर से ही नहीं निकली अभी तक
मेरे अशआर दुनिया घूम आए
६२-
जैसी हूँ मैं इक़दम वैसी दिखती हूँ
लोग इसे मेरी कमज़ोरी कहते हैं
६३-
दिन,कई दिन छिपा रहा जैसे
कोई उसको सता रहा जैसे
६४-
सुब्ह, सूरज को नींद आने लगी
अब्र चादर उढ़ा रहा जैसे
६५-
हम मुसाफ़िर हैं एक जंगल में
खौफ़ रस्ता दिखा रहा जैसे
६६-
उलझा-उलझा सा एक चेहरा ही
सौ फ़साने सुना रहा जैसे
६७-
बढ़ गया आगे काफ़िला मेरा
मुझको माज़ी बुला रहा जैसे
६८-
बचपना तो अभी गया भी न था
जाने कब आ गया बुढ़ापा भी
६९-
उम्र सस्ते में ख़र्च कर डाली
हाथ आया नहीं ख़सारा भी
७०-
ज़िन्दगी जैसे रेल का हो सफ़र
छूटते जाते हैं…….हसीं मंज़र
७१-
लोग नज़रें टिकाए बैठे थे
बस उसी दम सितारा टूट गया
७२-
इतनी खुशियाँ हैं मेरे दामन में
सारी दुनिया को रश्क हो जाए
७३-
जो परिन्दे हैं शोख़ गुलशन में
वो हैं सैयाद के निशाने पर
७४-
हटा ही देगा मुझे रास्ते से इक दिन वो
सफ़र में दूर तलक रहनुमा का काम ही क्या
७५-
सितारे का चमकना तो सभी ने देख लिया
सितारा टूट कर गया कहाँ,किसे मालूम
७६-
बीच दरिया में फंसी नाव बचे भी कैसे
हाथ पर हाथ धरे बैठा है माझी मेरा
७७-
सितमगर के सजदे में मशग़ूल हैं वो
हमें क्या मिला जो मसीहा हुए हम
७८
हमें जो डूबना मंजूर हो जाता
तो दरिया से समन्दर हो गए होते
७९-
तीर सारे निकल गए आख़िर
कब किसी ने कमान को सोचा
८०-
आज शालीन पेश आया वो
हमने उसके गुमान को सोचा
८१-
वो जमीदोंज हो गया तबसे
जबसे हमने उड़ान को सोचा
८२-
एक हीरे ने ज़िन्दगी अपनी
पत्थरों की तरह गुज़ारी है
८३-
एक लम्हा युगों से है ज़िन्दा
कौन कहता है दुनिया फ़ानी है
८४-
मंज़िलों के सफर में रस्ते भर
जान जाती है जान आती है
८५-
हम बदलते रहे पता अपना
ज़िन्दगी आई और लौट गई
८६-
ज़िन्दगी ने हमें हवस में रखा
यों सराबों के दस्तरस में रखा
८७-
किसी गलती की माफ़ी ही नहीं दी
कि रब बेह्तर बनाना चाहता था
८८-
कहाँ तक रोकते पहरे से उसको
रिहाई दे ही दी पिंजरे से उसको
८९-
उसे आवाज़ से ही जानते थे
कहाँ पहचानते चेहरे से उसको
९०-
जा रही हूँ इस जहाँ से या ख़ुदा
छोड़ कर सारे तमाशों का हुजूम
९१-
मुझको मालूम है वो मेरा नहीं
है तसल्ली कि वो किसी का नहीं
९२-
बुझ गए सारे दीप आँगन के
क्या यही शक़्ल है क़यामत की
९३-
बहुत तेज रफ़्तार कदमों की थी
मगर हमको दर – दर पे रुकना पड़ा
९४-
हमें मंज़िलों का पता था मगर
मिले ऐसे रस्ते भटकना पड़ा
९५-
मुझपे किस्मत जो मेहरबान हुई
मुझको इक बारगी यकीं न हुआ
९६-
किनारे पर वो आ जाता मगर
उसे फ़िर बीच में जाना पड़ा
९७-
ख़ुदकुशी से वो बच भी सकता था
कोई सूरत निकलने वाली थी
९८-
एक मुद्दत से मेरी उम्र अंधेरों में कटी
इन उजालों में मेरी रूह सहम जाती है
९९-
देख रफ़्तार मेरे कदमों की
झुक गया आसमां मेरे आगे
१००-
उम्र गवां कर मंज़िल तक तो आ पहुंचे
फिर हम समझे मंज़िल एक छलावा है
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