Quantcast
Channel: जानकी पुल – A Bridge of World's Literature.
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1526

‘अन्नापूर्णी’फ़िल्म में ऐसा क्या है?

$
0
0

तमिल फ़िल्म ‘अन्नापूर्णी’ को सिनेमाघरों से हटा दिया गया, नेटफ़्लिक्स से हटा दिया गया। आख़िर क्या है इस फ़िल्म में? प्रज्ञा मिश्रा ने इसी पर लिखा है-

================================

तमिल फिल्म है “अन्नापूर्णी ” जो बीते एक दिसंबर को सिनेमा घरों में रिलीज हुई और चुपचाप उतर भी गयी और फिर २९ दिसंबर से  नेटफ्लिक्स पर मौजूद थी , लेकिन अचानक गुरूवार ग्यारह जनवरी को नेटफ्लिक्स ने इस फिल्म को प्लेटफार्म से हटा दिया , खबर आयी कि विहिप के समर्थकों ने बुधवार से इस फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिए थे और आखिरकार दबाव में आकर नेटफ्लिक्स ने इसे मौजूद फिल्मों की लिस्ट से हटा दिया है। .. तो आखिर इस फिल्म से मुश्किल क्या है ? दरअसल इन लोगों का कहना है कि अन्नपूर्णा हमारी देवी का नाम है और उस नाम की फिल्म में उस नाम का किरदार न सिर्फ मांस पका रहा है बल्कि खा भी रहा है और यह हमारी धार्मिक भावनाओं को बहुत ठेस पहुंचा रहा है। … फिल्म के निर्माता ज़ी एंटरटेनमेंट का कहना है कि हमारा किसी को चोट पहुँचाने का कोई उद्देश्य नहीं था , हम इस फिल्म को दोबारा एडिट करके ऑनलाइन रिलीज करेंगे

तो आखिर ऐसा इस फिल्म में है क्या ?? सही मायनों में तो फिल्म दोयम दर्जे की ही है , फिल्म में नयनतारा (जवान वाली ) के किरदार का नाम अन्नपूर्णी है जो बचपन से शेफ बनना चाहती है , लेकिन उसका परिवार जो ख़ास ब्राह्मण परिवार है जो भगवान् के लिए ख़ास  प्रसाद बनाने का ही काम करता है वहां शुद्ध शाकाहारी खाना ही खाया जाता है , ऐसे परिवार में होटल की शेफ कैसे रह सकती है , क्योंकि होटल में तो उसे न सिर्फ मांसाहारी खाना पकाना ही नहीं चखना भी पड़ेगा। ..
खैर लड़की ज़िद की पक्की है और शेफ बनने की राह पर निकल पड़ती है , और फिर वही सब कुछ है जो एक लाख एक बार ऐसी फिल्मों में देख चुके हैं , डायरेक्टर ही जाने बीच बीच में एनीमेशन के कुछ सीन क्यों डाले हैं क्योंकि न तो उनसे कहानी को कोई मदद मिलती है और एनीमेशन भी औसत ही है। .. खैर बात तो यह है कि इस फिल्म में अन्नपूर्णी नाम की किरदार ने अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए परिवार को छोड़ दिया , ज़िन्दगी दांव पर लग गयी लेकिन उसकी लगन , उस लड़की की मेहनत का कोई मोल नहीं रहा , हासिल हुआ तो यह कि लोगों को नाम और चिकन खाने से पेट में मरोड़ उठ गयी। ..
पिछले दिनों डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा की एनिमल फिल्म आयी , जबसे यह फिल्म आयी है तब से ही चर्चा में है , शुरूआती दिनों में देखने वाले इस मुद्दे पर बहस कर रहे थे कि अच्छी है या बुरी है , रणबीर कपूर का काम दोनों दलों को बेहतर लग रहा था लेकिन फिल्म को लेकर मतभेद बढ़ते ही जा रहे थे। .. पिछले दिनों जावेद अख्तर ने एक इंटरव्यू में इस फिल्म का नाम लिए बिना यह कह दिया कि ऐसी फिल्में बन रही हैं और हिट हो रही हैं यह चिंता की बात है। .. यहाँ तक तो बात सम्भली हुई थी और इस बात पर उनसे सहमत हुआ जा सकता है कि ऐसी फिल्में हिट हो रही हैं और यह चिंता की बात है। .. लेकिन वो यहाँ ही नहीं रुके और आगे बढ़ते हुए कह गए कि यह तो जनता की भी जिम्मेदारी है कि कैसी फिल्में बनें और क्या देखा जाए। ..
और इस बात से इत्तेफ़ाक़ हो ही नहीं सकता क्योंकि देखने वाले की मर्ज़ी से न फिल्में बन सकती हैं न ही कला की किसी भी दूसरी विधा में देखने सुनने वाले की मर्ज़ी चल सकती है। .. हाँ दर्शक और श्रोता यह पूरा हक़ रखते हैं कि वो क्या सुनें , क्या न सुनें , किस फिल्म को बार बार देखा जाए और किसे आधी में ही छोड़ कर उठना है यह दर्शक तय कर सकता है लेकिन दर्शक यह तय नहीं कर सकता कि डायरेक्टर कैसी फिल्म बनाये। …
अन्नपूर्णी न तो पहली फिल्म है और न ही आखिरी जिसे दर्शकों की आहत भावनाओं के चलते नुकसान , विरोध, तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। .. हालिया दौर में ऐसी फिल्म की तादाद में इजाफा ही हुआ है जिन्हें अपनी शूटिंग के समय से लेकर रिलीज तक अलग अलग वजहों से दर्शकों की आहत भावनाओं का शिकार होना पड़ा है। .. जावेद अख्तर खुद ही कई कई बार कह चुके हैं कि हमने जैसी फिल्में लिखी और जैसे डायलॉग लिखे वैसे तो आजकल सोचे भी नहीं जा सकते वरना बैन लग जाएगा , लेकिन उस दिन वो यह भूल गए और ऐसे ही हाथों में फैसले लिखने की कलम पकड़ा दी जो सिर्फ हंगामा करने को ही अपना मक़सद मानते हैं। .
फिल्म हो या किताब , पेंटिंग हो या मूर्ति , अगर नहीं पसंद आये तो दोबारा उस गली न जाएँ लेकिन कलाकार इस तरह से कभी भी कुछ भी नहीं बना सकेंगे जब उनके सर पर आहत भावनाओं का भूत मंडरा रहा हो। .. मक़बूल फ़िदा हुसैन को अपनी कला की वजह से देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है और इस  दौर में मौजूद हर इंसान पर इस बात की जिम्मेदारी है कि इस शर्मनाक हादसे से कुछ सीखें और ऐसा दोबारा न हो इसकी पूरी पूरी कोशिश करी जाए। … एनिमल हो या अन्नपूर्णी , दोनों को बनाये जाने का हक़ फिल्म की टीम को उतना ही है जितना हक़ पठान या जवान या डंकी की टीम को। … ख़ास तौर पर ऐसी फिल्में जो कुछ कहना चाहती हैं , किसी मुद्दे पर ध्यान लाना चाहती हैं उन्हें तो बिना रोक टोक के बनाया ही जाना चाहिए। .. क्योंकि शायर ने लिखा है ” अपने चेहरे के किसे दाग नज़र आते हैं , वक़्त हर शख्स को आइना दिखा देता है ” और कला ही वो आइना है जो हर दौर में समाज को उसके दाग दिखाने का काम करती आयी है। .. देखने वाले की मर्ज़ी की सूरत अगर आईने में दिखने लगेगी तो इससे बदसूरत  और कुछ नहीं होगा। ..

The post ‘अन्नापूर्णी’ फ़िल्म में ऐसा क्या है? appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1526

Trending Articles