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प्रवीण झा की कहानी ‘बूम-बूम’

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आज पढ़िए प्रवीण कुमार झा की कहानी। कहानी छोटी है लेकिन प्रवासियों-आप्रवासियों को लेकर लिखी गई एक दिलचस्प कहानी है। आप भी पढ़िए-

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“बर्फ़ जमने से उसकी पाइप फट गयी। बूम! यह बेवकूफ़ न जाने कब समझेंगे कि ठंडे प्रदेश में रहते कैसे हैं। मुँह उठा कर आ जाते हैं अफ़्रीका से।”, हेनरिक ने उखड़ कर कहा।

“इसमें इनकी क्या ग़लती है? क्या आप सोमालिया की हालत से वाक़िफ़ नहीं?”, मैंने उनके ही लहजे में प्रतिकार किया

“मैं खूब जानता हूँ। अगर मुझे फ़िक्र न होती तो इसे बीस वर्षों से इस मकान में नहीं रखता। यह कोई पहली घटना नहीं। हर साल का नखरा है”, हेनरिक ने उस पिता की मुस्की से कहा जो अपने बेटे को रोज लात मार कर बिस्तर से उठा कर निकम्मा, निखट्टू, दुनिया पर बोझ कहता हो।

“हाँ! यह बात आपने कभी बतायी नहीं कि इन सोमालियाई को आपने अपने मकान में क्यों रखा? यह तो आपके ट्रक भी नहीं चलाते।”, मैंने कौतूहल से पूछा

“कुछ पुराने प्रायश्चित। सभी के होते हैं। तुम्हारे नहीं हैं? तुम्हारी तो आँखों से लगता है कि भारत में कुछ कांड कर के आए हो”, उन्होंने छेड़ते हुए कहा

“ऐसा तो हर प्रवासी की आँखों से लगता है। हम भागे हुए लोग हैं।”, मैंने भी रहस्य में तड़का लगाया

“उन दिनों मैं पुलिस में था। तुमने ओस्लो पैक्ट सुना है?”, उन्होंने मेरे इतिहास-बोध को टटोलते हुए कहा

“हाँ हाँ! आपके लोगों ने बड़ी चालाकी से इजरायल-फिलीस्तीन का झूठा हैंडशेक करा कर नोबेल की लॉलीपॉप पकड़ा दी”, मैंने भी भू-राजनीति पर अपनी पकड़ का इक्का फेंका

“अरे, हम इतने भी बुरे नहीं। खैर, मैं उन दिनों ग़ाज़ा में था। रोज ही लड़ाई चल रही होती। हम शांति स्थापना के लिए गए थे, और यह गिनते रहते कि किसने कितने गोले दागे।”, उन्होंने शांति की पूरी अवधारणा पर कटाक्ष किया

“जैसे हम बचपन में सड़क पर चल रही गाड़ियाँ गिनते रहते, जब हमारे पास अपनी गाड़ी नहीं थी।”, यह कह कर मैं इस अश्लील उपमा से खुद ही झेंप गया

बात बदलते हुए मैंने आगे कहा, “…मगर उससे सोमालिया का क्या?”

“यह तुम्हारी पीढ़ी की समस्या है कि बात पूरी होने से पहले लपक पड़ते हो। फ़िलिस्तीन से लौट कर मैंने अर्ज़ी डाली कि अब मैं अपने गाँव में काम करना चाहता हूँ। अपने पिता की तरह। खेत-पथार, जंगल-झाड़, पहाड़-झरने देखूँ, सँभालूँ।”, उन्होंने चर्चा को अफ़्रीका से और भी दूर ले जाकर कहा

“ठीक है। मगर सोमालिया…”, मैंने इस बार मुस्कुरा कर छेड़ते हुए कहा

“हाँ! अच्छा…सोमालिया। ये कुछ शरणार्थी पहली क़िस्त में हमारे गाँव आए। हमारे गाँव के लोगों ने इससे पहले काले या भूरे लोग सिर्फ़ फ़िल्मों में देखे थे। मैं उस वक्त यहाँ का प्रभारी नियुक्त था।”, उन्होंने यह अति-रंगभेदी टिप्पणी बिना लाग-लपेट के कह दी

“आपके हाथ इनकी ज़िम्मेदारी आयी, और आपने उनमें से एक को खाली पड़ा मकान दे दिया…”, मैं बात को निष्कर्ष तक पहुँचा कर कॉफी की दूसरी खेप भरने मशीन तक गया

“कुछ महीनों बाद एक हत्या हुई। दशकों या शायद सदियों में हमारे गाँव की पहली हत्या”, उन्होंने किसी लुगदी उपन्यासकार की तरह सनसनीख़ेज़ पटाक्षेप किया

“आप कब से पुलिंदे बनाने लगे? आपने तो मुझे कहा था कि आप ऐसे पुलिस थे जो बंदूक भी नहीं रखते”, मैंने तर्क से उन्हें ख़ारिज किया

“एक सोमालियाई का सर एक भोथड़े हथियार से फोड़ दिया गया था। यहीं, इसी मकान में।”, उन्होंने कथा को अविश्वसनीय रोमांच दिया, और मैं सहसा फ़र्श पर लगे उस तख़्त को देखने लगा जो तहखाने का दरवाज़ा था

“और उसकी लाश यहीं दीवाल में चुंदवा दी गयी थी? कहिए, कहिए! मैं सुन रहा हूँ”, मैंने अब भी मज़ाकिया लहजे में कहा मगर उनकी आँखें अब छोटी होती जा रही थी, जैसे कुछ याद कर रहे हों

“हमें जाँच में कोई ख़ास समस्या नहीं आयी। हत्यारे ने खुद ही जुर्म कबूल लिया था।”, उन्होंने सिगरेट नीचे फेंक कर जूतों से मसलते हुए रोमांच की आग को यूँ बुझाया जैसे अफ़्रीका के गैंडे जंगलों में अग्निशमन करते हैं

“क्यों मारा?”, मैंने स्वाभाविक प्रश्न किया

“मामूली सी पुरानी बात पर। मरने वाला बिलान का भाई था। बिलान। जो यहाँ रहता है।”, उन्होंने घास के मैदान के उस पार बने लकड़ी के घर की ओर इशारा कर कहा

“मामूली सी बात पर कोई क्यों हत्या करेगा? कहीं उसकी पत्नी से…”, मैंने पुनः लुगदी प्लॉट पर लौटते हुए कहा

“तुम भारतीयों की तो कहानी वहीं घूम-फिर कर आ जाती है। पत्नी या बहन को छेड़ा, गोली चल गयी। मैंने खूब सुना है।”, उन्होंने अखिल भारतीय हिंसा समाजशास्त्र को सरलीकृत करते हुए कहा

“आप कुछ नहीं जानते हमारे देश के विषय में। ऐसे व्यक्तिगत प्रतिशोध तो हॉलीवुड फ़िल्मों में भी लिए जाते हैं”, मैंने कॉफ़ी का प्याला मेज पर थप्प से रखते हुए कहा

“यह कुछ मवेशियों का मामला था। पुरानी रंजिश थी। बात सोमालिया में शुरु हुई, खत्म यहाँ हुई”, उन्होंने यह अजीबोग़रीब कारण दिया

“मवेशियों का? सोमालिया में किसी ने बकरी चुराई, और नॉर्वे में उसका सर फोड़ दिया गया?”, मेरी अश्लील हँसी अनायास थी जैसी आजकल होती है

“हाँ। कुछ ऐसा ही। पूरी बात तो मुझे भी याद नहीं। मगर तीसरी दुनिया इन छोटी-छोटी बातों पर ही तो लड़ रही है….या शायद यही बड़ी बातें हैं, हम छोटी बातों पर लड़ रहे हैं?”, उन्होंने स्वयं को सुकरात का उत्तराधिकारी समझते हुए कहा

“खैर। उस घटना के बाद आपने इस निकम्मे को यहीं रहने दिया, जो आपके मकान और आपके देश के खजाने पर अय्याशी कर रहा है?”, मैंने अश्लीलता का स्तर बढ़ाते हुए कहा

“वह हथियार मेरे पिता के पुराने कसाईखाने से था। मैंने उसे कुछ साफ-सफाई का काम दिया था।”, उन्होंने बाहर एक जर्जर लकड़ी के गोदाम-नुमा घर की तरफ़ इशारा कर कहा

“वह तो पुलिस में थे?”, मैंने चौंक कर कहा

“पुलिस नहीं, लेन्समैन थे। पहले गाँवों में दरोगा नहीं होते थे। मूलतः वह कसाई थे। लेन्समैनी से कुछ और कमाई थी।”, उन्होंने स्पष्टीकरण दिया

“हाँ! हमारे गाँवों में भी पहले चौकीदार ही होते थे। अपराध कम थे।”, मैंने भारत और नॉर्वे को एक तराजू पर रख कर कहा

“खैर, छोड़ो। यह बताओ कि आजकल क्या लिख-पढ़ रहे हो? तुम तो बड़े मशहूर हो चले हो भारत में”, उन्होंने बात बदल कर मेरी इंस्टाग्राम टटोलते कहा

“अब नॉर्वेजियन में लिख रहा हूँ। यहाँ लेखकों की पूछ अधिक है। पैसा अधिक है।”, मैंने अश्लीलता में दो बूँद स्वार्थ गिरा कर कॉफी में शहद की दो बूँद भी मिला दी

“अच्छा? विषय क्या है?”, उन्होंने पूछा

“उत्तरी नॉर्वे में डायनों को ज़िंदा जलाए जाने पर लिख रहा हूँ”, मैंने सहजता से चुस्की लेते कहा

“अच्छा है। रुचिकर है। अब कोई चर्च का लफड़ा भी नहीं होगा…”, उन्होंने कहा

“हाँ! मैं आइसलैंड भी गया। पिछले हफ्ते एक पुराने टीले की खोज में गया। कुछ गिरजाघरों और क़ब्रों की तस्वीर लेकर आया हूँ। एक डायन के वंशज का संपर्क मिला है। यहीं, नोतोदेन में।”, मैंने अपने शोध की डींग हाँकते कहा

“डायन की वंशज? हमें तो खुद पता नहीं कि हमारे पूर्वज कौन थे? तुम्हें वंशज भी मिल गए?”, उन्होंने वाज़िब सवाल रखा

“एक वेबसाइट है, जहाँ आप ढूँढ सकते हैं।”, मैंने आइपैड पर तेज़ी से टिपटिपाते कहा

“अच्छा। ढूँढ कर बताओ। हम तो जर्मन मूल के हैं। हमारे परदादा चाँदी के खदान में काम करने आये थे। अब वह काम बंद हो गया।”, उन्होंने आनुवंशिकता का दायरा बढ़ा कर कहा

“आपके पिता, दादा, दादी, माँ, नाना, नानी….सबसे पुराने पूर्वज जिनके विषय में आप जानते हों?”, मैंने आर्काइव से कुंडली छानते हुए कहा

“मुझे कोई रुचि नहीं। मेरे पिता के तो दर्जनों स्त्रियों से संबंध थे। उनकी ठसक ही ऐसी थी। कहावत है कि गाँव का हर तीसरे बच्चे में लेंसमैन का रक्त होता है। एक दफ़े तो…”, उन्होंने शरारती हँसी हँस कर कहा

“क्या हुआ?”, मैंने अब भी आर्काइव पर कुछ इंट्री करते हुए कहा

“एक बार मैं अपनी एक प्रेमिका के साथ था। जब अगली सुबह उसने अपनी माँ से मिलाया, तो मुझे याद आया कि यह मेरे पिता के साथ…मैंने उसके बाद उससे यह कह कर संबंध तोड़ दिया कि तुममें मुझे अपने बहन की छवि दिखती है। उसकी शक्ल भी बिल्कुल रूने की तरह थी। रूने, मेरा छोटा भाई”, उन्होंने ठहाके लगा कर कहा

“तो क्या हुआ? वह तो सौतेली बहन होती। तुम्हें मालूम है जब पूरी दुनिया में काली मौत आयी थी; कई यूरोपीय गाँवों में इतने कम लोग बच गए, कि ऐसे रिश्ते बना कर ही दुनिया आगे बढ़ी।”, मैंने अपने इतिहास ज्ञान से व्यभिचार को धत्ता बताया

“मैं तुम्हें ईमेल करता हूँ डिटेल्स। पता तो चले कि मेरे पूर्वजों ने क्या गुल खिलाए हैं”, उन्होंने कहा

अगले कुछ महीनों तक मैं इलाक़े का कुंडली-वाचक ज्योतिषी बनने में व्यस्त हो गया। जैसे यह कोई कंप्यूटर गेम हो। शराबखानों से लेकर गोल्फ़-कोर्स तक बातों-बातों में कुंडली निकाल लेता। किसी के पूर्वज बर्गन में, किसी के  फिनमार्क में, और किसी के मिले ही नहीं।

बर्फ़ गिरने से पूर्व शिकार के महीनों में हम जंगल की ओर गए। मैं, हेनरिक और हेगेरुड। हमेशा की तरह। उनके पास बंदूक की लाइसेंस थी, जिससे वह जानवरों को मार कर, पका कर, किसी आदिम मानव की तरह खा जाते।

“हमारे पास तुम्हारी तरह कोई धान के खेत तो हैं नहीं? अगर हमें ताज़ा भोजन चाहिए, तो शिकार ही एक साधन हैं। इसमें ग़लत क्या है?”, हेगेरुड ने कहा

“पता नहीं, ग़लत क्या है। और सही क्या”, मैंने दार्शनिक अंदाज़ में कहा

“तुम्हारा वह वंशावली का काम कैसा चल रहा है? मुझे जवाब नहीं मिला तुम्हारा”, हेनरिक ने कहा

“खामखा माथापच्ची है। न आधे नाम समझ आते हैं, न स्थान।”

“फिर भी। कुछ तो मिला होगा। तुम्हारी कोई डायन?”

“एक डायन थी रानहिल। उससे यहाँ कई लोग जुड़े हैं। उस पर आरोप था कि उसने अपने एक दूर के भाई से प्रेम किया था, और उसके विवाह में जादुई अड़चन डाली थी”, मैंने गाड़ी को किनारे लगा कर जंगल की ओर मुँह कर कहा

“कैसी अड़चन? रानहिल नाम तो कभी नहीं सुना”

“उसने विवाह के समय कुछ मंत्र पढ़ते हुए एक हरे तने को मोड़ते हुए कहा कि उसके प्रेमी का लिंग हमेशा के लिए सिकुड़ जाए, और वह कोई संबंध नहीं स्थापित कर सके”, मैंने हाथ में एक तना लेकर उसे रॉल करते हुए कहा

“हा हा हा! यह खूब तरकीब है। इस तरह तो लिंग का आकार भी मंत्र पढ़ कर बढ़ाया जा सकता है”, हेगेरुड ने उंगली से अश्लील इशारा कर कहा

“हाँ। ऐसा उत्तर के सामी मानते थे। वह उनकी शामन पद्धति थी”, मैंने गंभीरता से कहा

“फिर क्या हुआ?”

“होना क्या था? रानहिल को जिंदा जला दिया गया। चर्च के आदेश पर”

मैं वापस गाड़ी में बैठ सीट-बेल्ट लगाने लगा।

मैंने आगे कहा, “फ़र्ज करो कि तुम हेनरिक रानहिल के वंशज निकले, और यह हेगेरुड उस पादरी का। तो तुम क्या करोगे?”

हेनरिक ने हँस कर कहा, “मैं इसे गोली मार दूँगा…इसकी लाश को अपने पिता के कसाइखाने में काटूँगा…इसके टुकड़े-टुकड़े कर…..”

हेगेरुड भी उसके साथ ठहाके लगाने लगा। चौदहवीं सदी में बेबुनियाद आरोपों पर जलायी गयी रानहिल का आनुवंशिक प्रतिशोध उन ठहाकों में कहीं खो गया। मैंने गाड़ी में बज रहे ‘थ्रिल इज गॉन’ गीत का स्वर तेज कर दिया।

“अगर वह मेरी पूर्वज निकली तो मैं तुम्हें आगे खाई में धक्का देकर गिरा दूँगा…तुम्हारे गिरते हुए शरीर के खोपड़ी पर निशाना साधूँगा…बूम!”, हेगेरुड कह रहा था

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