Quantcast
Channel: जानकी पुल – A Bridge of World Literature
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1575

हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’के छह गीत

$
0
0
वैशाली जनपद के कवि हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’ का नाम सुना था। सीतामढ़ी के गीतकार रामचंद्र ‘चंद्रभूषण’ उनका नाम लेते थे। कहते थे मंचों पर आग लगा देता है। लेकिन न उनको कभी पढ़ने का मौका मिला न सुनने का। कुछ दिन पहले मेरे फ़ेसबुक वाल पर कर्मेंदु शिशिर जी ने उनका नाम लिया तो पता चला कि कवि सतीश नूतन उनके पुत्र हैं। उनसे आग्रह किया कि वे हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’ जी की कविताएँ पढ़वाएँ। उन्होंने छह गीत भेजे। सच में आग लगा देने वाले गीत हैं। पढ़िएगा- प्रभात रंजन
===============================
1• बैल बिना घर जिसका टूटा
______________________
बैल बिना घर जिसका टूटा
मैं तो उस किसान का बेटा
 
मैं बीमार पड़ा था घर में
बैल गिरा बाहर बथान में
उधर महाजन तौल रहा था
नाज खड़ा होकर दलान में
सूप बजाकर घर को लौटा-
बूढा बाप खाट पर लेटा
 
अपनी उमर सौंपकर मुझको
बैल गया परलोक सज्जनो
और… बैल बन स्वयं ढो रहा
हूँ उसका मैं शोक सज्जनो
जुता जुए में सुखा रहा हूँ
अबतक गाज, नाक का नेटा
जुतकर भी दिन रात जुए में
कभी बैल की नहीं मिटी है
हाथ हो गए खुर, लेकिन
नजरें खूँटी पर जमी- टिकी हैं
महादेव के बिना अंधेरा
किस्मत को न जाएगा मेटा
*
2• खुश्बू चढी नीलाम पर
___________________
हैं दोस्त भी अक्सर मिले
धोखे भरा मौसम लिये
इस हाथ में खंज़र लिये
उस हाथ में मरहम लिये
 
खुशबू चढी नीलाम पर
अहले सुबह के नाम पर
हम ताकते ही रह गए
दिल की कली गमगम लिये
 
था प्यास को जिसने दिया
शर्बत मिलाकर मर्फिया
वो ही दिखे उस मंच पर
उपदेश में गौतम लिये
 
अक्षर न ढाई वक्ष पर
नजरें टिकीं हैं लक्ष पर
दो बूँद खुशियों की दिखीं
दौडे़ सभी हम-हम लिये
 
दिल पर चलाकर बर्छियां
सोखा किए जो सिसकियां
वो ही गवाहों में दिखे
अखबार भर मातम लिये
 
जाली नकद भुगतान पर
वो छा गए अरमान पर
इस ओर से पालम लिये
उस छोड़ से दमदम लिये
 
हारा हुआ संगीत है
अब ठीकरों की जीत है
हम तो खुशी के द्वार से
गमका फिरे हमदम लिये
 
जो गीत में बोएं जहर
उनके लिये सारा शहर
सुबहें खडीं शबनम लिये
शामें खडीं पूनम लिये
 
अब लोग निविदामंद हैं
‘घेराव’ हैं या ‘बंद’ हैं
इस मोड़ पर सरगम लिये
उस मोड़ पर परचम लिये
*
3. जुल्म ढाते रहो दुनियावालो
______________________
 
जुल्म ढाते रहो दुनियावालो
जोर बाजू का सारा लगाकर
हम भी खे लेंगे सातो समुंदर
एक कागज की नैया बनाकर
 
जन्म हमको दिया आफतों ने
प्यार के साथ लहरों ने पाला
अपनी हिम्मत से तूफान को भी
लेंगे दम हम किनारा लगाकर
 
तेरा हर इक नगीना पसीना
मेरा हर इक पसीना नगीना
तू न खुश हो सके लूटकर जो
हमने पा ली खुशी वह लुटाकर
 
शक्ति तेरी, इधर शील मेरा
रोशनी से अधिक ज्यों अंधेरा
फिर भी खोजेंगे हम अपनी मंजिल
आरती का दिया झिलमिलाकर
 
तेरे सर को तो झुकने न देंगे
ये अफीमों के महले दो महले
कुर्क के दिन, मेरी झोपड़ी में
तुम घुसोगे ही सर को झुकाकर
 
झूठ कितना भी चिल्लाए, चीखे
सच की चुप्पी बहुत कीमती है
हम हैं सूरज रहेंगे गगन से
इस अंधेरे का पर्दा हटाकर
*
4• मेहनत के हाथों हथकड़ी
_____________________
इस मुल्क हिन्दुस्तान में
दिल्ली गए सब रास्ते
कोई चमन न चमन रहा
खिलते सुमन के वास्ते
 
अलगाव बो कर फलवती
है, मंथरा उत्तरशती
गुमसुम कहीं वर्धा खड़ी
रोती कहीं साबरमती
भय से न अब ‘दशरथ ‘ कहीं
‘हे राम’ शब्द उचारते
इस मुल्क हिन्दुस्तान में
दिल्ली गए सब रास्ते
 
कुछ देवताओं के लिये ही
था, समुन्दर का मथन
हमको मिली बस वारुणी
उनको मिले चौदह रतन
कर जोड़ ‘वामन’ आज
तीनों काल छल से मापते
इस मुल्क हिन्दुस्तान में
दिल्ली गए सब रास्ते
 
क्या खूबसूरत तंत्र है
हिस्से पड़ी है मधुकरी
मिहनत के हाथों हथकड़ी
कुर्सी डटाए तस्करी
थाली सजी जनतंत्र की
धनतंत्र करते नाश्ते
इस मुल्क हिन्दुस्तान में
दिल्ली गए सब रास्ते
 
संजीवनी कहकर चुभोयी
है गयी विष की सुई
घाली गयी इंसानियत
पाली गयी है गुण्डई
उद्दंडता सामंतिनी
सब शीलवंत गुमास्ते
इस मुल्क हिन्दुस्तान में
दिल्ली गए सब रास्ते
 
भगवान, चाहो देखना
जो राष्ट्र का नैतिक पतन
सीधे चलो, सीधे चलो
सीधे चलो संसद भवन
हैं ‘राम’ भी झुककर जहाँ
‘दशकंध’ को आराधते
इस मुल्क हिन्दुस्तान में
दिल्ली गए सब रास्ते
*
5. वैशाली का रुदन गीत
___________________
मैं नहीं गणतंत्र की अब आदिमाता
नर्तकी केवल बची हूँ- आम्रपाली
 
छिना तीर्थंकर जनम के बाद मुझसे
और, गौतम दे गए उपदेश केवल
भिक्षुणी बनकर रही मैं बाँटती ही
जगत के कल्याण का संदेश केवल
 
किंतु मेरे घुंघरुओं के बोल में थी
दर्द की जाती उसे किसने चुरा ली?
 
लग रहे मेले हजारों साल से हैं
नाम पर मेरे कुहकते आम्र वन में
रूप मेरा सोम-रस में ढल गया है
किसी संघागार में एकांत क्षण में
 
स्नेह मेरा चुक गया सब दीप लौ पर
पर नहीं बीती अभी तक रात काली
 
चींटीयां भी थीं सुरक्षित जिस डगर पर
आज हिंसा के वहीं पहरे कड़े हैं
जिन विजय के अश्रु से हैं ताल पूरे
वृज्जियों के आठ घोड़े चुप खड़े हैं
 
कलँगियों वाले हजारों राज कुअँरों
की लुगाई मैं, अभागिन नाचवाली
*
6• नारों की खेती को सारा हिन्दोस्तान
___________________________
 
गीतों की खेती के लिये नहीं भाईजान
नारों की खेती को सारा हिन्दोस्तान
 
हिंसा का उर्वरक, अहिंसा की धरती
भरती है स्वांग कोखवाली की परती
नवयुग की सखी हरित-क्रांति की चहेती
सुन -सुनकर राष्ट्र-गान ब्या बैठी रेती
 
स्वार्थ की फसल उन्नत हँसिए का संविधान
ओठ चाटते बोलो-” जय जवान, जय किसान “
करिश्मा दिमागों का लख लम्बा- चौड़ा
मुट्ठी भर दिल को क्यों पडे़ नहीं दौरा?
 
नीचे का पेट हुआ ऊपर को हावी
गंगा को अब गंगाजल देती रावी
छप्पर से छत तक को, कर लो ऊँचा मचान
वहीं कभी उतरेगा ‘उनका’ पुष्पक विमान
 
झूठी हो गई सरेशाम सरफ़रोशी
चितकबरे मन की चमकी सफेदपोशी
निज का शुभ-लाभ हुआ सामूहिक दर्शन
कहीं फली पद्मश्री, कहीं पद्मभूषण
 
यह नया तहलका है, देश का नया उठान
दर्जा़ पाकर रिश्वत बन गई पवित्र दान
देश बड़ा इतना हो राजनीति छोटी?
भला किस दिमाग़ की परत इतनी मोटी?
गाँधी के रुतबे में रंँगी हर लँगोटी
दिल्ली का स्वाद कहे मक्के की रोटी
 
विज्ञापन में लेकर हाथों गीता- कुरान
फीके पकवानों की ऊँची कर ले दुकान
 
भरा- भरा मन, तन के खाली हैं साँचे
दो ध्रुव का औसत बन फिरते हैं ढाँचे
अब क्या कुछ शेष फर्क- दक्षिण हो या कि वाम
इनको आदाब अर्ज, उनको भी राम-राम
 
गजलों से ज्यादा वजनी सरकारी बयान
लालकिले में गालिब खोज रहे कद्रदान
*
==========================================दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें

https://t.me/jankipul

The post हरिहर प्रसाद चौधरी ‘नूतन’ के छह गीत appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1575

Trending Articles