इरफ़ान खान के समय निधन ने सबको आहत किया है। यह छोटी सी मार्मिक टिप्पणी लेखक और राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरुपम की पढ़िए। यह राजकमल द्वारा व्हाटसऐप पर भेजी जा रही ‘पाठ पुनर्पाठ’ ऋंखला की 12 वीं कड़ी का हिस्सा है–
=======================
जाने वाले, तुझे सलाम!
अभिनेता इरफ़ान खान नहीं रहे! 2018 से वे हाई ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से जूझ रहे थे। जब उनकी सामान्य दिनचर्या की कुछ तस्वीरें सार्वजनिक हुई थीं, उन्हें स्वास्थ्य-लाभ करते देखकर लगा था, जैसे मृत्यु के दरवाज़े से टहल कर लौट आए हों। एक नई उम्मीद सामने थी। उनके प्रशंसक राहत और ख़ुशी से खिल उठे थे। आज सब मुरझा गए…उलटी राह अभिनेता अभिनय में स्क्रीन पर नहीं, जीवन में से लौट गया…दुनिया के दरवाज़े के पार शून्य में कहीं खो गया…उसकी आँखों में अभिनय का एक स्कूल था और कंठ में किसी अचूक तीरंदाज की-सी एकाग्रता और बेधकता! वह मौन में बोलता था और बोलने में कहे से ज्यादा कुछ चुप्पी छोड़ जाता था। लेखक को ही नहीं, किसी अभिनेता को भी सामने वाले पर भरोसा करना होता है और उसके-अपने बीच कुछ स्पेस छोड़ना होता है, यह इरफ़ान के अभिनय की बुनियादी ख़ासियत लगती है। वे दर्शक के सिर पर सवार नहीं होते, उसकी नज़रों को चौंध से नहीं भरते, उसे अवकाश और ठहराव देते हैं कि वह उनके साथ कथा-प्रवाह में गोते लगाए।
इरफ़ान ने जून, 2018 में अस्पताल से भेजे एक एक पत्र में लिखा था :
“अभी तक अपने सफ़र में मैं तेज़-मंद गति से चलता चला जा रहा था. मेरे साथ मेरी योजनाएँ, आकांक्षाएँ, सपने और मंजिलें थीं. मैं इनमें लीन बढ़ा जा रहा था कि अचानक टीसी ने पीठ पर टैप किया, ‘आप का स्टेशन आ रहा है, प्लीज उतर जाएँ।’
मेरी समझ में नहीं आया, ‘ना-ना, मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है।’
जवाब मिला, ‘अगले किसी भी स्टॉप पर आपको उतरना होगा, आपका गन्तव्य आ गया।'”
2020 आते-आते हम सब इस चिट्ठी को लगभग भूल गए थे। याद रखना भी नहीं चाहते थे। हम तो उन्हें अभिनय की दुनिया में लौटते देखने को बेताब हो रहे थे। लेकिन..इरफ़ान ने अजय ब्रह्मात्मज से ‘चवन्नी चैप’ के लिए हुई एक अनौपचारिक बातचीत में कभी कहा था :
“मेरे साथ एक अच्छी बात रही है कि जब भी निराश और हताश हुआ हूँ तो कोई नई राह निकल पड़ती है। जिस चीज़ के लिए परेशान रहता हूँ, वह तो नहीं मिलती, कोई और चीज़ मिल जाती है। मेरी लाइफ में यह पैटर्न बन गया है। मुझे लगता है कि हर आदमी अपनी ज़िंदगी के कचरे को हटाकर देखे तो उसे एक पैटर्न दिखाई पड़ेगा। मैंने देखा है कि जब भी मैं कोई दावा करता हूँ तो वह पूरा नहीं होता। यहाँ तक कि बच्चों के साथ खेलते समय भी हार जाता हूँ।”
इरफ़ान मृत्यु से हार गए। सबको हारना होता है। वे समय से पहले हार गए। लेकिन शेष जीवन नहीं मिला तो क्या, उससे बड़ी चीज़ उन्हें हासिल है–अमरता! इरफ़ान मरते हैं, कलाकार इरफ़ान कभी नहीं मरते…वे कई-कई पीढ़ियों की आँखों में ज़िंदा रहते हैं…
सलाम!

The post इरफ़ान मरते हैं, कलाकार इरफ़ान कभी नहीं मरते appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..