वरिष्ठ लेख़क संपादक गिरधर राठी की संपूर्ण कविताओं का प्रकाशन हुआ है। यह प्रकाशन रज़ा पुस्तकमाला के अंतर्गत संभावना प्रकाशन हापुड़ से हुआ है। ‘नाम नहीं’ संग्रह से कुछ कविताएँ पढ़िए-मॉडरेटर
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बुद्धिजीवी
काले दाग़ पर उभरता आता
काला दाग़
जिसे धोया जा सकता है
ग़मज़दा औरतों के बीच
बैठी हुई उठंग
गमगीन औरत अभ्यस्त
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बाइबिल
हम जानते हैं
वे क्या कर रहे हैं
और उन्हें कभी माफ़ नहीं किया जाएगा।
हम क्या जानते हैं
हम जो नहीं कर रहे हैं
और हमें कभी माफ़ नहीं किया जाएगा।
वे जानते हैं
क्या कर रहे हैं
हम जानते हैं
जानने की कोई सज़ा नहीं।
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फ़िलहाल
समय नदी नहीं है
जो बह जाती है
उतनी भी नहीं
जो रह जाती है
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लोरी
कहना चाहता था(कविता में)
‘मैं अब सो जाना चाहता हूँ’
मगर देखा
सोया पड़ा है ज़माने से
लोर्का
कहा नहीं तब
सो ही गया
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रिल्के से
अकेला करने के बाद
दूर तक साथ चला आता है
फिर अकेला नहीं छोड़ता
प्यार
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उसके रोने पर
वे आँखें कभी रोती नहीं
मगर रो पड़ीं अथाह सागर में जैसे
मछलियाँ मर जाती हैं
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