दुर्गा के बहाने कुछ कविताएँ लिखी हैं कवयित्री विपिन चौधरी ने. एक अलग भावबोध, समकालीन दृष्टि के साथ. कुछ पढ़ी जाने वाली कविताएँ- जानकी पुल.
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1
एक युग में
ब्रह्मा, विष्णु, शिव थमाते है तुम्हारे अठारह हाथों में अस्त्र शस्त्र
राक्षस वध की अपूर्व सफलता के लिये सौंपते हैं
शेर की नायाब सवारी
कलयुग में
पुरुष थमाते है
स्त्री के दोनों हाथों में अठारह तरह के दुःख
स्त्री, क्या तुम दुःख को तेज़ हथियार बना
किसी लिजलिजे सीने में नश्तर की तरह उतार सकती हो
इस वक़्त तुम्हें इसकी ही जरुरत है
2
अपने काम को अंजाम देने के लिये
दुर्गा अपना एक-एक सिंगार उतार
साक्षात् चंडी बनती है
ठीक वैसे ही
एक समय के बाद सोलह सिंगार में लिपटी स्त्री को
किसी दूसरे वक़्त रणचंडी बनने की जरुरत भी पड़ सकती है
3
बेतरह रोने वाली
लड़की रुदालियाँ हो जाया करती हैं
प्रेम करने वाली प्रेमिकायें
हंसती, गाती, ठुमकती स्त्री, बिमला, कमला ऊषा
हो सकती हैं
और किसी सटीक फैसले पर पहुंची स्त्री
बन जाती है
‘दुर्गा’
4
जब मैं अपने प्रेम को पाने के लिए
नौ दिशाओं में भटक रही थी
तब तुमने ( दुर्गा माँ )
लगतार नौ दिन
नौ मन्त्रों की कृपा कर डाली
आज भी जब -तब उन पवित्र मंत्रो को
अपनी आत्मा के भीतर उतार
एक नयी दुनिया आबाद करती हूँ
पर क्या हर प्रेम करने वालों को
इस आसान हल के बारे में मालूम है ?
5
कलयुग में दुर्गा
हंसती, गाती नाचती स्त्रियाँ उन्हें रास नहीं आ रही थी उन्हें घुन्नी स्त्रियाँ पसंद थी
साल में एक दिन वे दुर्गा को सजा कर उन्हें
नदी में विसर्जित कर आते थे
और घर आ कर अपनी स्त्रियों को ठुड्डे मार कहते थे
तुरंत स्वादिष्ट खाना बनाओ
यही थे वे जो खाने में नमक कम होने पर थाली दीवार पर दे मार देते थे
बिना कसूर लात-घूस्से बरसाते आये थे
वे महिसासुर हैं
ये तो तय है
पर स्त्रियों
तुम्हारे “दुर्गा “होने में इतनी देरी क्यों हो रही है
6
कुम्हार टोली और गफ्फूर भक्त
कुम्हार टोली के उत्सव के दिन
शुरू हो जाते है
तब फिर सूरज को इस मोहल्ले पर
जायदा श्रम नहीं करना पड़ता
न हवा यहाँ ज्यादा चहल- कदमी करती है
यहाँ दिन कहीं और चला
जाता है
और रात कहीं और
स्थिर रहते हैं तो
दुर्गा माँ को आकार देने वाले दिन
बाकी दिनों की छाया तले
अपना गफ्फूर मियाँ
ताश खेलता
बीडी पीता और अपनी दोनों बीवियों पर हुकुम जमाता दिखता है
पर इन दिनों अपने दादा की लगन और पिता का हुनर
ले कर बड़ा हुआ गफ्फूर भक्त
दुर्गा माँ की मूर्ति में पूरा सम्माहित हो जाता है
सातवें दिन दुर्गा माँ की तीसरी आँख में काजल लगाता हुआ गफ्फूर मिया
कोई ‘दूसरा’ ही आदमी होता है
इन पवित्र दिनों न जाने कितने ही मूर्तियाँ कुम्हार टोली के हाथों जीवन पाती है
बाकी लोग दुर्गा माँ को नाचते गाते प्रवाहित कर आते हैं
और सब भूल जाते हैं
लेकिन गफ्फूर भक्त
कई दिन अपनी उकेरी माँ को याद करता है
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