‘ज़िंदगी 50-50’ जैसे चर्चित उपन्यास के लेखक भगवंत अनमोल का अगला उपन्यास ‘बाली उमर’ राजपाल एंड संज से इस महीने के आख़िर में आने वाला है। फ़िलहाल उसका एक छोटा सा अंश पढ़िए और ‘बाली उमर’ को महसूस कीजिए- मॉडरेटर
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भगवंत अनमोल बेस्टसेलिंग युवा लेखक हैं . वह उन चुनिन्दा युवा लेखको में है, जिन्हें हर वर्ग के पाठकों ने हाथोहाथ लिया है. लेखक उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार-2017 से भी सम्मानित हो चुके है. आपकी पुस्तक ‘ज़िन्दगी 50-50’ पर कई विद्यार्थी शोध कर रहे हैं.
पोस्टमैन:- (बंटी)
आइये, सबसे पहले आपको मिलवाता हूँ पोस्टमैन से. राजा महाराजाओं के जमाने में प्रेमी-प्रेमिका का ख़त पहुंचाने का काम पक्षी किया करते थे. उन पक्षियों में भी कबूतर को इस काम का विशेषज्ञ माना जाता था. लेकिन मनुष्यों का प्रकृति पर हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है. जिसका परिणाम यह हुआ कि कपूर के जन्म लेते ही यह जगह भी पक्षियों से मनुष्यों ने हथिया ली थी. अब कबूतर बेरोजगार रहने लगे थे. उनका काम बस मनुष्यों के सर पर एवं कपड़ो पर मल-मूत्र त्यागना भर हो गया था. शायद यह उनके विरोध करने का एक तरीका था. अब लव लैटर पहुचाने का काम मोहल्ले के छोटे बच्चो को मिल गया था. खुदा ने भी दुनिया बनाते हुए किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है. उसने हर जगह पर समान तरह के लोग और बराबर अवसर उपलब्ध कराए है. हर मोहल्ले में एक बच्चा जरुर ऐसा होता था, जो बचपन से ही पोस्टमैन के काम को बखूबी संभालता था. किसी को सिखाना नही पड़ता था, मानो उसे ईश्वर ने सिखा कर ही भेजा हो, जैसे गॉड-गिफ्टेड हो. वह बच्चा मोहल्ले में जवानी की दहलीज पर कदम रखते प्रेमी प्रेमिकाओं को एक दूसरे की चिट्ठियाँ पहुचाने का काम करने लगता. बंटी भी तो आजकल पोस्टमैन का ही काम किया करता था. वह कपूर और इति के ख़त एक दूसरे तक पहुंचाता. उसके साथी उसे पोस्टमैन कहा करते थे, पर वह इस बात से कतई इत्तेफाक नहीं रखता था. वह अपने इस कार्य को समाज सेवा का नाम देता. बंटी का मानना था कि अगर दो प्रेमियों की भावनाओं को वह एक दूसरे तक पहुंचा देता है तो यह समाज सेवा ही तो है. उसका समाज सेवा मानने के पीछे दूसरी बहुत बड़ी वजह भी थी. हुआ कुछ यूं, एक बार कपूर ने एक पत्र उसे थमाया था. बंटी बहुत पाजी* किस्म के थे. उन्होंने रास्ते में उस ख़त को पढ़ लिया था, उसमे लिखा हुआ था कि अगर मयूरी ने फलां बात नहीं मानी तो वह ट्रैक्टर के नीचे दबकर जान दे देगा. पर बंटी रहे बड़े होशियार, पढ़ते कक्षा तीन में ही थे लेकिन बुद्धि बहुत पा गए थे. वैसे भी यह बात पूरी तरह ठीक बैठती थी कि गाँव में समय से पहले सारा ज्ञान उस पोस्टमैन लड़के को ही मिलता है. सच कहते है ज्ञान कागज़ से ही मिलता है, भले ही वह पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त हो या लव लैटर के माध्यम में. यह समय से पहले बच्चो को बड़ा बना देता है.
उसके मन में तुरंत ख्याल आया, भला कोई ट्रैक्टर के नीचे भी दबकर जान देता है? उसने अभी तक तो यही सुना और देखा था कि लोग ट्रेन, ट्रक तथा बस के नीचे दबकर हाथ पैर तुड़वाते है पर आज उसने पहली बार ट्रैक्टर के नीचे दबकर जान देने की बात सुनी थी. इससे पहले कि यह बात उसके मन में अधिक हावी होती, उसका मन दूसरी तरफ चला गया- बात यहाँ प्रैक्टिलिटी में जाने की नहीं है, बल्कि भावनाओं को समझने की है. प्रेम में ऐसा ही होता है व्यक्ति खतो में ही चुम्बन देकर उसे महसूस कर लेता है, यहाँ तक जो भोजन खाया जाता है, वह भी ख़त के माध्यम से भेज दिया जाता है और सामने वाला उसका स्वाद ले लेता है. फिर? मतलब यह कि ट्रैक्टर के नीचे भी दबकर जान दी जा सकती है. अब पोस्टमैन साहब ने मान लिया था कि कपूर ट्रैक्टर के नीचे दबकर जान दे सकता है. इसलिए उन्होंने एक तरकीब निकाली. जैसा कि आप सभी जानते है पोस्टमैन रहे बहुत होशियार, इति के पास कान में जाकर बोले- “ अगर कपूर की बात न मानी तो तुरंते जाके पूरे गाँव मा तुम्हारी पोल खोल देबे. पहिली बात तुम्हारे बाबू की कौनो इज्ज़त है नहीं आए, फिर भी जोन बची खुची है भी वहो मिटटी पलीद हुई जाई “
उधर कपूर से जाके बोल आए “अगर तुम्हरे पिछवाड़े में सच मा पोटास* है तो ट्रैक्टर या साइकिल के नीचे दबे की कोशिश भर करके देख लियो, हम तुम्हरे बाप से बता देंगे. मरोगे तो है नहीं, इलाज करावे का बाबू पैसा भी न देहें और तुम्हरे ऊपर चली- दे गन्ना दे गन्ना!! मार एतनी पड़ी कि पोट लाल हुई जैहैं और कहूं बैठे से पहिला दस बार सोचिहौ. “
असल में यह एक तरह का ब्लैकमेल था, परन्तु उसने अपने इन हरकतों से होने वाली संभावित दुर्घटना को घटित होने से रोका था. ऐसा उसने एक दफा नहीं किया, बल्कि कई बार किया था. इसलिए वह अपने इस काम को समाज सेवा ही माना करता था. इस काम के बदले उसकी धाक जमती थी. उसके इस समाज सेवा के अनेक फायदे थे. जैसे- दूसरे मोहल्ले का कोई भी लड़का उससे झगड़ने की कोशिश नहीं करता था. वर्ना वह तुरंत कपूर को ले जाया करता था. दूसरा यह कि जेब खर्च के लिए बाबू से ज्यादा घिघियाने की जरुरत नहीं पड़ती थी. बाबू से मांगने के बजाय वह कपूर से जेब खर्च खींच लिया करता था. तीसरा और सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि वह दोस्तों के बीच अपने नए नवेले उस ज्ञान की धमक जमाए रहता था जो उसे लव लैटर के माध्यम से प्राप्त होता था.
बंटी को यह नही पता था कि वह मोहल्ले का आखिरी बच्चा है जो पोस्टमैन बना. क्योंकि जब तक वह अपना काम अगली पीढ़ी के बच्चो के लिए हैण्ड ओवर करेगा तब तक मोबाइल फोन ने पोस्टमैन की जगह ले लेगी और सभी बच्चे इस परम पुनीत कार्य के सौभाग्य से वंचित रह जायेंगे.
उसके पिता सजीवन लाल किसान थे, उनके पास बहुत अधिक खेती नहीं थी पर दूसरे लोगों से बटाई या बल्कट में उठाकर कड़ी मशक्कत करके खेती से थोड़ा बहुत कमा लिया करते थे. जिसमे बंटी भी उनकी मदद किया करता था. इस वजह से वह कम उम्र में ही ताकतवर हो गया था. रंग सांवला था पर शरीर मजबूत. उसके बारे में यह प्रसिद्ध था कि पहलवानी में बंटी अपने से डेढ़ गुना बड़े छोरे को पटखनी दे सकता है. दूसरी तरफ बंटी को यह बात भली भांति पता थी कि उसका भविष्य किसानी में ही है और पोस्टमैनी या समाज सेवा उसके लिए ज्ञानवर्धक एवं फिलहाल एक टेम्पररी काम है. जब कभी समय मिलता था तो वह पास के सरकारी स्कूल भी चला जाया करता था. स्कूल वह उस दिन जाता था, जिस दिन घर में कोई अन्य काम नहीं होता था. जब से मिड डे मील की व्यवस्था हो गयी थी, तब से वह खासकर वह दिन चुनता जिस दिन मिड डे मील में अच्छा भोजन मिलने वाला होता था. कुल मिलाकर बात यह थी कि गाँव के अधिकतर बच्चों के लिए पढाई सेकंड्री विषय होता था.
*पाजी- शैतान, पोटास-ताकत
खबरीलाल :- (पेट्टर)
उस गाँव में मुख्य रूप से दो ही तरह के व्यापारी थे, पहले किराना वाले और दूसरे दुदहा!! दुदहा नहीं समझते? कृष्ण जी के जमाने में उन्हें ग्वाला कहा जाता था. अब वक्त बदल गया था, अब उन्हें गाँव में दुदहा कहा जाता है. मतलब गाँव के कई लोगो से दूध खरीदकर उसे शहर में बेचने का काम यही लोग किया करते थे. पेट्टर के पिता जी भी दुदाही का काम किया करते थे. पर पेट्टर ने कभी उन्हें पिता जी या बाबू नहीं कहा. वह उन्हें चाचा कहा करता था, कारण यह था कि उसके बड़े बाबू का लड़का, जो उससे बड़ा था, उन्हें चाचा कहा करता था. देखादेखी वह भी चाचा कहने लगा. न किसी ने पेट्टर को समझाने की जरुरत समझी न सुधारने की.
हर मोहल्ले में एक पत्रकार भी हुआ करता था. जो हर घर की खबर रखता. जिसे वह अपने साथियों के साथ साझा किया करता था. चूंकि पेट्टर के चाचा दुदहा थे, तो गाँव भर में दूध दुहाने उनके चाचा जाया करते थे और पेट्टर का काम मोहल्ले के सभी घरों से दूध लाना होता. उसके बाद उसके चाचा सारा दूध लेकर शहर चले जाते. प्रतिदिन मोहल्ले के अधिकतर घरों के चक्कर लगाने के कारण उसे मोहल्ले के हर घर की खबर रहती थी. वह अपने साथियों को ताजातरीन लुभावनी ख़बरें दिया करता था. इसलिए सभी दोस्त उसे खबरीलाल कहकर बुलाते. पोस्टमैन की भांति उसे पढाई की फिक्र तभी सताती थी, जब उसका दुदाही और ख़बरें प्राप्त करने का काम ख़त्म हो जाता था. वह भी पोस्टमैन के साथ सरकारी स्कूल में उसी की कक्षा में पढता था और वह भी ठीक उसी दिन स्कूल जाता, जिस दिन उसके पास कोई अन्य काम न होता था. खबरीलाल के आँख-कान बहुत तेज थे लेकिन आवाज़ बहुत भारी थी. चूँकि वह सारा दिन काम करता था इसलिए वह अपनी उम्र के बच्चों से अधिक मजबूत हो गया था लेकिन धूप लगने के कारण सांवला भी हो गया था.
उस मोहल्ले के अधिकतर घर एक दूसरे से जुड़े हुए थे. ज्यादातर मकान कच्चे थे और कुछ पक्के. दो मंजिला मकान तो दूर दूर तक किसी का नहीं था. इसलिए छत छत होकर ही मोहल्ले के कई घर नापे जा सकते थे. किसके घर में क्या बन रहा है और आँगन में क्या चल रहा है, सब कुछ देखा जा सकता था.
हर घर की खबर रखने वाले खबरीलाल ने अभी हाल ही में अपने दोस्तों को एक बार फिर से ताज़ातरीन रंगीन खबर दी थी. किराने की दुकान वाले भोगिल के यहाँ टेलर की पत्नी काम करने के लिए आती है, उसको लेकर उसके पास एक सनसनीखेज खबर थी.
उसने अपने मित्रों से बताया “ जानते हो बे, कल हम छप्पर के नीचे से भोगिल के घर में झाँक के देखे थे. वह टेलर की दुलहिन सिर्फ उसका घर का काम नहीं करत आये. भोगिल के साथ काण्ड भी करती है.”
“काण्ड! कैसा काण्ड?” एक साथ सबके मुंह से निकल पड़ा. “ जैसे कुछ देर के लिए वीडियो हैंग कर गया हो. पोस्टमैन के अलावा अन्य दोनों दोस्तों(आशिक और गदहा) का मुंह तो ऐसा खुला था जैसे कहना चाह रहे हो “ जल्दी बको बे. कैसा काण्ड? ‘
उन दोनों का चेहरा देखकर खबरीलाल हँस हँस के लोटपोट हुआ जा रहा था “ बताता हूँ, ऐसा काण्ड जिसे तुम लोग अपनी ज़िन्दगी में पहली बार देखोगे. “ रूककर उसने रहस्योद्घाटन किया “टेलर की दुलहिन का बिलकुल नंगी देखा है. बिना कपडन के “
सभी के मुंह जैसे खुले हे वैसे खुले के खुले रह गए, पोस्टमैन के मुंह से निकला “ हैं?”
गदहा और आशिक ने ऐसे मुंह बनाया जैसे किसी को नग्न देखना जघन्य अपराध हो “ चल बे, झूठ बोलत हो. कौनो देख लेई न, तो ऐस छटाई करी कि न हगत बनी न मूतत “
“ हाँ बे, हम काहे झूठ बोलेंगे? अगर हमरे ऊपर विश्वास न होए तो भरी दुपहरिया में जब इस नीम के पेड़ की छाया उस नाली को बस छूने वाली होगी तब हम इशारा करबे, वही वक्त है जब पूरा काण्ड होत है. फिर तुम लोग दबे पाँव हमरे पास आ जाओ, छप्पर के बिलका से सब नज़ारा देखना. व वकत सब कोई सोवत है तो कौनो कैसे देख लेई “ अपना सर हिलाते हुए, वह माहौल का रस लेकर बता रहा था “ फिर देखना टेलर की दुलहिन का लेगपीस “
पोस्टमैन के दिमाग की बत्ती एकदम से जल उठी, मतलब जिस बात को उसने सिर्फ प्रेम पत्रों में पढ़ा था कहीं ये वही बात तो नहीं. आज वह उस क्रिया को अपनी नग्न आँखों से देखने वाला था. उसका शरीर कांपने लगा था, रोंगटे खड़े हो गए थे. पोस्टमैन के लिए यह नयी चीज़ ही थी. बाकी दोनों दोस्तों(गदहा और आशिक) को तो पहली बार पता चला था कि इस दुनिया में स्त्री पुरुष कुछ ऐसा भी कार्य करते है. उन्हें तो ऐसा लग रहा था जैसे स्त्री का जन्म सिर्फ घर का खाना बनाने और पुरुष का जन्म बाहर जाकर कमाने के लिए ही हुआ है. उन दोनों को प्रेम का मतलब सिर्फ यह पता था कि लड़की छत पर चढ़ जाती है और प्रेमी घर के सामने से गुजरता है या फिर प्रेमी पोस्टमैन के माध्यम से प्रेमिका के लिए ख़त भेजता है. उन्हें यह भी पता था कि प्रेम करते वक्त बच के प्रेम करना चाहिए वरना कुटाई होने के भी बहुत चांस होते है. इसके सिवाय उन्हें कुछ जानकारी नही थी. इससे अधिक का ज्ञान उन्हें आज प्राप्त हो रहा था. वे भी इस नए करतब को देखने के लिए उतावले थे. आखिर कोई भी नयी चीज़ हो, उत्सुकता तो पैदा करती ही है. लेकिन वहीं पर एक लड़का ऐसा भी था जो इस कृत्य को देखने का आदी हो चुका था. वह था -खबरीलाल. उसने पिछले दो दिन से इस क्रिया का नयन सुख उठाया था. उसके बाद उसने अपने दोस्तों को बताने के बारे में विचार किया. अब वह इस अति आनंदपूर्ण खेल का मजा अकेले नहीं बल्कि ग्रुप में लेना चाहता था.
खैर, किसी तरह दोपहर का वह वक्त आया जब नीम के पेड़ की छाया नाली को छूने लगी. बच्चों का यह वक्त कैसे गुजरा होगा, इसकी बस आप कल्पना कर लीजिये. सभी बच्चों के घर के लोग सो गए थे. लकड़ी की सीढ़ी लगाकर सभी बच्चे आज अपनी ज़िन्दगी में पहली बार इस क्रिया को आँखों देखने के लिए दबे पाँव डरते हुए चले जा रहा थे. पोस्टमैन को लग रहा था अब आज के बाद वह बड़ा हो जायेगा, आखिर वह इस दृश्य का भी आनंद ले लेगा. छत पर खबरीलाल पहले से ही झाँक रहा था, कब क्रिया प्रारम्भ हो और कब वह दोस्तों को इशारे से अपने पास बुलाये. आखिर वह वक्त आ ही गया. खबरीलाल ने अपने तीनों दोस्तों को आने का इशारा किया. सभी छप्पर में बने छिद्रों से उस क्रिया को देखने लगे.
टेलर की दुलहिन जैसेजैसे भोगिल के पास जा रही थी, वैसेवैसे इन चारों की साँसें तेज हुई जा रही थी. टेलर की दुलहिन ठीक पैसेंजर ट्रेन की रफ़्तार से कपड़े उतार रही थी और ये लोग शताब्दी में सवार थे. पोस्टमैन ने तो थ्योरी पढ़ रखी थी, वह प्रैक्टिकल देखना चाहता था. मगर पत्र में पोस्टमैन को कभी इतना विस्तार से पढने को नही मिला था. वहीँ अन्य दोनों दोस्तों के लिए यह एक रहस्यमयी फिल्म जैसा था, जिसे वे लोग पहली बार देख रहे थे. उनके लिए हर एक स्टेप नया स्टेप था. जीवन का एक नया रहस्य पता चल रहा था. सुरंग का द्वार खुल गया था. दूसरी तरफ नीचे आँगन में विविधभारती रेडियो स्टेशन पर बैकग्राउंड म्यूजिक चल रहा था –तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या, मन से मन का मिलन कोई कम तो नही. पर इन दोनों कामप्रेमियों के विचार इस गाने से बिलकुल भिन्न थे, इन दोनों का मानना था कि मन से मन का मिलन हो न पाया तो क्या, तन से तन का मिलन कोई कम तो नही. खैर, जैसे ही पास जाकर टेलर की दुलहिन ने पल्लू उतारी, चारपाई पर बैठे भोगिल ने उसकी साड़ी ऊपर उठा दी. इन चारो दोस्तों की उत्सुकता हर स्टेप के साथ चरम पर पहुचती जा रही थी. वे टेलर की दुलहिन की गोरी चिकनी मांसल लेगपीस के जैसे ही दर्शन पाए थे ठीक तभी पोस्टमैन के पिछवाड़े पर जोरदार छड़ी पड़ी, उतनी ही तेजी से उसकी निकली आवाज ”आये अम्मा! “ चाहे जेतना कुकर्म कर रहे हो पर जब मार पड़ती है तो अम्मा ही याद आती है. सुनते ही सब चौंक गए. छत वाले भी और छत वालों का अपनी क्रिया से मनोरंजन करवाने वाले भी. पीछे देखा तो सच में आशिक की अम्मा ही थी, जिसे बुलाना था वह पहले से ही हाज़िर था “ अरे करमजलो, नासपीटों पढ़े लिखे की उमर मा ई रांडन की नौटंकी देखे में जुटे हो.” छत वालों पर छड़ी बरसने लगी. सब अपने-अपने पिछवाड़े बचाते यहाँ वहां भागने लगे. सभी आये तो अपने अपने घर से थे लेकिन भागते हुए जो सीढ़ी पहले मिली उसके घर से नीचे उतर गए. आशिक की अम्मा सबको मारती जा रही थी और बड़बड़ाती जा रही थी “या रांड टेलर का घर बर्बाद किहिस ही. अब एखा करे आई है. जादा जवानी भरभरान है. नंगनाच मचाए है.“
इस कारण नीचे जो क्रिया होने वाली थी उस पर विराम लग गया. उन्हें भी पता चल गया था कि उनकी काली करतूत पकड़ी जा चुकी है. गाँव में हो-हल्ला मच गया और उन चारों के पिछवाड़े लाल हो गये. टेलर की दुलहिन का रोजगार बंद हो गया. अब वह सिर्फ टेलर के घर में चौका बेलन करने लगी. इन चारों बच्चों ने एक बार फिर से एक रोजगारशुदा नारी को चौका बेलन करने पर मजबूर करा दिया था.
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