
राष्ट्रवाद के दौर में ‘उरी’ फिल्म आई और उसने जबरदस्त कमाई की. वार फिल्मों में कहानी के नाम पर वैसे तो कुछ ख़ास नहीं होता लेकिन फिर भी उनका अपना आकर्षण होता है. इस फिल्म के ऊपर सैयद एस. तौहीद की समीक्षा पढ़ें- मॉडरेटर
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उरी फिदायीन हमले और उसके बाद भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान में की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित फिल्म ‘उरी’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है। फ़िल्म घटनाओं का काल्पनिक डॉक्यूमेंटेशन करती है। कहानी मेजर विहान शेरगिल की है। मेजर विहान एक जांबाज योद्धा है। जोखिम भरे कामों को अंजाम देने के लिए जाना जाता है।
हम देखते हैं कि मेजर को दिल्ली पोस्टिंग मिलती है। उधर, उरी में पाकिस्तान फिदायीन हमले की बड़ी घटना को अंजाम दे देता है। इसके जवाब में सेना सर्जिकल स्ट्राइक का मिशन बनाती है। मेजर विहान को मिशन की जिम्मेदारी दी जाती है।अपने परिवार के साथ हुई ज्यादतियों का बदला लेने का उसका संकल्प उसे शक्ति देता है। पारिवारिक कारण उसे इंस्पायर करता है। भारतीय सेना उनकी अगुवाई में पाकिस्तान में घुसकर आतंकी अड्डे तबाह कर देती है। उसे करारा जवाब देती है। फ़िल्म की विषयवस्तु के बारे में दर्शकों के वाकिफ़ होने बावजूद इसे परदे पर देखना दिलचस्प है। वार फिल्मों के शौक़ीन ‘उरी’ मिस करना पसन्द नहीं करेंगे।
दुश्मन को घर में घुस कर मारने की वैचारिकता की बात करती ‘उरी’ तीखे तेवर की फ़िल्म है। प्रचलित राष्ट्रवाद को रेखांकित करने का काम करती है। इस तरह वो पॉपुलर स्टैंड लेती है। देशभक्ति के विषय पर फिल्म बनाकर दिलों में जगह बनाने का फॉर्मूला बॉलीवुड में नया नहीं । इस मायने में ‘उरी’ से ख़ास उम्मीद नहीं थी । लेकिन फ़िल्म निराश नहीं करती। हां बेहतरी की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। बहुत ज़्यादा एक्सपेक्टेशन वार फिल्मों के निर्माताओं को स्वतंत्र होने नहीं देती। परिणाम मामला औसत फिल्मों से आगे जा नहीं पाता।
‘उरी’ तकनीकी रूप से बेहतर है। कैमरा, एडिटिंग और साउंड विभागों ने दक्षता दिखाई है। वार प्रोजेक्ट के अनुसार संगीत का उपयोग प्रभावी है। विकी कौशल के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी थी जिसे उन्होंने अदा किया है। विकी कौशल कहानी की जान हैं। विहान शेरगिल की भूमिका को ज़रूरी फील देने में सफल रहे हैं। परेश रावल और रजित कपूर अपनी अपनी भूमिकाओं में ठीक ठाक हैं। चीजें आरोपित नहीं वास्तविक महसूस होती हैं। यामी गौतम को अधिक स्पेस नहीं मिला है। इस पर विचार करने की जरुरत थी। लीड एक्ट्रेस के हिस्से ख़ास नहीं आया है । पिंक फेम कीर्ति कुल्हारी को भी बहुत तवोज्जोह नहीं मिली। परेश रावल और रजित कपूर अपने किरदारों को निभा गए हैं। मोहित रैना का किरदार कहानी को मजबूती देता है। विक्की कौशल को मोहित ने अच्छे से सपोर्ट किया है। लेकिन चीजें बहुत बेहतर की जा सकती थीं।
हिंदी सिनेमा के संदर्भ में युद्ध आधारित फिल्मों का जिक्र हमेशा ‘बॉर्डर’ सरीखे फ़िल्म का स्मरण करा देता है। जेपी दत्ता ने युद्ध के साथ साथ सैनिकों के सामाजिक व व्यक्तिगत जीवन को परदे पर उतारा था। फ़िल्म बेहद कामयाब हुई। अक्सर वार फिल्मों के निर्माता अपने निकटतम आदर्श को दोहराने में जुटे रहें। आदित्य धर की ‘उरी’ भी यही कोशिश कर रही है। अपनी कोशिश में फ़िल्म कितनी सफ़ल हुई जानने के लिए आपको ‘उरी’ देखनी चाहिए।
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