लेखक-पत्रकार अनुराग अन्वेषी से हमारा परिचय अनेक रूपों में है इसलिए उनका कवि रूप कुछ पीछे चला जाता है। जबकि वे समर्थ कवि हैं, उनके यहाँ हर तरह की कविताएँ हैं- मुखर भी और मौन भी। अभी हाल में उनका कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है ‘चिड़िया का है बहेलिये से रिश्ता आधुनिक’। संघीश प्रकाशन से प्रकाशित इसी संग्रह से कुछ कविताएँ पढ़िए-
===============================
राम नाम सत्य है
राम मेरे पूज्य हैं।
लेकिन तुम,
मेरे राम को नहीं पहचानते।
मेरे राम का चेहरा
इतना मानवीय है
कि उन्हें अपनाकर मैंने
अभिवादन के लिए
सीखा है बोलना
राम-राम।
अब के दौर में
परंपराएं बदल रही हैं
राम का नाम तो अब भी
सबकी जुबान पर है
लेकिन साथ ही दबा रखा है उन्होंने
अपनी बगल में चाकू।
यह देखकर भी मेरे मुंह से निकला वही नाम
राम-राम।
लेकिन इस बार मेरे स्वर में अभिवादन नहीं था
बल्कि अजब सी घृणा थी।
सच कहूं
घृणा करना
मुझे मेरे राम ने नहीं सिखाया था।
यह तो बदलते वक्त का असर है
कि राम हों या हनुमान
सबका चेहरा बदल रहा है
मेरे राम बलशाली और रक्षक थे
हनुमान सौम्य और रामभक्त थे
पर अब के राम सिर्फ शासक हैं
और हनुमान बल के पर्याय।
अब जब जय श्रीराम या
जय हनुमान के नारे लगते हैं
तो आस्था नहीं पैदा होती
डर पैदा होता है।
मुझे माफ करना मेरे राम,
मैं तुम्हें बुत बनते नहीं देख सकता।
मैं तो तुम्हें अपने भीतर
ऊर्जा की तरह पाना चाहता हूं
मगर पाता हूं कि मेरे भीतर
एक डरे-सहमे राम हैं
मेरे भीतर खुद को कैद समझकर
गुर्राते हुए हनुमान हैं।
ऐसे में मेरे मुंह से
फिर निकलता है तुम्हारा नाम
हे राम।
लेकिन महसूस करता हूं
कि इस स्वर में
आस्था नहीं अफसोस है
सचमुच राम,
हो सके तो मुझे माफ करना,
इन दिनों मैं शायद काफिर हो चला हूं।
तुम्हें नहीं कर पाता अब याद
क्षीण हो रही है मेरी भक्ति
नहीं मिल पाती तुमसे
कोई शक्ति।
आर्किमिडीज के सिद्धांत से परे
कई लोग डूबकर
उबर जाते हैं।
और कई बार उबरकर लोग
डूब जाते हैं।
डूबने उबरने की क्रिया-प्रक्रिया
बड़ी अजीब होती है
बहुत बार न दिखने वाली चीजें भी डूब जाती हैं।
डूबते दिल वाले को कभी देखो,
तुम्हें सिहरन होगी।
और जो दिलवाले होते हैं,
वे गहरे डूबकर भी कभी डूबते नहीं।
ऐसे लोगों को देखकर
तुम्हें प्रेरणा मिलेगी।
मैं, तुममें डूबा हुआ हूं।
इसलिए जानता हूं,
तुम्हें तो अहसास नहीं हो सकता
कि इस तरह भी डूबता है कोई।
तुम्हें गुरुत्वाकर्षण का तो पता है।
मगर आकर्षण की परिभाषा
तुम्हारी देहरी छू नहीं पाती।
तुम डूबे हो
निन्यानबे के चक्कर में।
जिंदगी से है तुम्हारा
छियानबे का रिश्ता।
क्योंकि, तुम्हें सिर्फ इतना पता है
कि डूबना एक क्रिया है
जो सिर्फ पानी में ही हो सकती।
तुमने डूबना
सिर्फ आर्किमिडीज के सिद्धांत से जाना है
जबकि जिंदगी में उसके गले तक डूबना
सबके वश की बात नहीं।
डूबना,
इनसान होने की पहली सीढ़ी है।
और हां, यह जान लो
कि इस डूबने के लिए
धनत्व की नहीं
बल्कि गहरे प्यार की दरकार होती है।
पत्नी अनीता के लिए
जब मैं सोचता हूं,
तुम टोकती हो।
और जब टोकती हो
मैं सोचने लग जाता हूं,
कि ये रिश्ता क्या है
कि तुम्हारा मेरे सोचने से
नाता क्या है?
और तुम्हारा टोकना
मुझे भाता क्यों है?
सचमुच मैं सोचता हूं,
कि किसी रोज
ठीक तुम्हारे टोकने से पहले,
मैं तुम्हें टोक दूंगा
कि इस तरह मुझे न टोको।
कि सोचने से
इस तरह मुझे न रोको।
तुम्हें नहीं पता
कि मैं क्या सोच रहा?
तुममें खुद को क्यों खोज रहा?
मैं सोचता हूं
कि जिस तरह तुम मुझमें बसी हो,
शायद इस तरह ही
कुछ-कुछ मैं भी
तुममें बसा होऊं।
बस, यही सोचता हूं
कि तुम्हारे रास्ते में कैसे
फूल बोऊं?
लेकिन ठीक इसी समय
तुम मुझे फिर टोक देती हो।
सोचना मेरा
छितरा जाता है
और अचानक पाता हूं
कि मेरे तपते मन पर
तुम छतनार बन तनी हो।
यह अलग बात है
कि ऊपर से अक्सर तुम
यही दिखने की कोशिश करती हो
कि मुझसे थोड़ी जली हो, थोड़ी भुनी हो।
सच बताऊं,
तो अब तुम्हें सोचते-सोचते
थोड़ा समझने भी लगा हूं।
तुम मेरी सोच पर ही नहीं,
मेरी समझ पर भी हो तारी।
मैं जान गया हूं
कि जब थम जाएगा तुम्हारा टोकना,
वह दिन मेरे लिए हो जाएगा
सबसे मुश्किल, सबसे भारी।
इसलिए अब बगैर सोचे
मैं सोचता रहूंगा,
और तुम मुझे टोकना
हमेशा रखना जारी।
आत्महंता
बहुत दिनों तक
वह इस मुगालते में रहा
कि उसने अपने भीतर बचा रखी है
थोड़ी सी स्त्री।
वह समझता रहा
कि इसी नाते वह कर पाता है
स्त्री और उसके संघर्षों का सम्मान।
एक स्त्री ने
जब दी उसकी मासूमियत को चुनौती
उसके सच्चे होने को बताया
दुनिया का सबसे बड़ा झूठ
और उसे कहा
कि तीन जन्म के बाद भी
तुम पुरुष ही रहोगे।
तब भौंचक रह गया था वह।
उस रोज उसने
रसोई में जाकर कढ़ी और चावल बनाए,
ब्रेख्त की कविताएं पढीं,
पाश और धूमिल की कविताओं में
तलाशता रहा प्रेम,
तोलस्तोय की किताबें पलटीं,
जॉन एलिया संग लेटा रहा घंटों,
अखबार और चैनलों में तलाशता रहा
सुकून भरी खबर,
लेकिन मन शांत नहीं हो सका उसका।
कबीर-नानक भी
उस रोज उसे नहीं दे पाए कोई सुकून।
तब उसने
अपने भीतर बसे
पुरुष और स्त्री को बहुत सख्ती से मार डाला।
अब वह
तृप्त जानवर है।
इस शहर के जंगल में
बेखौफ घूमता हुआ
बेबाक बोलता हुआ।
बस, अब आप तमाम
स्त्री और पुरुषों से गुजारिश है इतनी
कि उसे रहने दो उसके एकांत में
वह जानवर हो चुका है अब
पर कई-कई इनसानों से बेहतर है
अब भी वह
The post अनुराग अन्वेषी की कविताएँ appeared first on जानकी पुल - A Bridge of World's Literature..