
भा.प्र.से. से जुड़े डॉ. वीरेन्द्र प्रसाद अर्थशास्त्र एवं वित्तीय प्रबंधन में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की है। वे पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातकोत्तर भी हैं। रचनात्मक लेखन में उनकी रुचि है। प्रस्तुत है भीड़भाड़ से दूर रहने वाले कवि-लेखक वीरेन्द्र प्रसाद की कुछ कविताएँ और गीत-
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यहाँ भी रह जाओगे
जब तुम चले जाओगे
जैसे रह जाती है,
तृणपात पर तुहिन कण
पहली बरसात के बाद
धरती की सौंधी सुगंध
बोल तेरे खुशनुमा
बोलेगी आंखों की चमक
कुछ अधुरा सा सही, पर
दर्पण सा रह जाओगे
जब तुम चले जाओगे।
यहां भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है,
सकार में भी तारे
गुंचा के मुरझाने, पर भी
महक ढेर सारे
मंदिर की घंटियों में तुम
नदियां भी तुम्हें पुकारे
जीवन के डगर पर
थोड़ा सा रह जाओगे
जब तुम चले जाओगे।
यहां भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है,
दमकती प्रार्थना मन में
वसंत के जाने के बाद भी
कलरव रहता उपवन में
तुम्हारे होने का अहसास
जीवट बनाये, पल में
सूरज के किरणों जैसे
कण-कण में बस जाओगे
जब तुम चले जाओगे।
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पल भर को क्यों प्यार किया
सांस में आरोह, अवरोह उर में
ज्वलित चितवन, मलार सुर में
सम हर, रच अभिनव संसार
अजर ज्वार का क्यों श्रृंगार किया
पल भर को क्यों प्यार किया।
लय छंदों में जग बंध जाता
सित मोती का रेणु उड़ाता
चकित, कुछ कह भी नहीं पाया
चिर विरह क्यों स्वीकार किया
पल भर को क्यों प्यार किया।
लघु तृण से, तारों तक बिखरा
मुक्त मलय संग, सारंग निखरा
चिर मुक्त तुम्हीं ने जीवन का
मधु जीवन का क्यों आकार दिया
पल भर को क्यों प्यार किया।
तम सागर में अनजान बहा
पुलक पुलक, अचिर प्यार सहा
जब सपनों का लोक मिटाना था
उर का उर से, क्यों व्यापार किया
पल भर को क्यों प्यार किया।
वह पल अजर हुआ है आप
वह नेह मुझे रहा है नाप
चाहे रच लो नव इतिहास
चिर आसव से क्यों उद्धार किया
पल भर को क्यों प्यार किया।
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जब गाये वेदना के गीत
पत्तियों से मुक्त पतझर
ठूट टहनी से हरा झर
राग में मचला पवन शर
नवसृजन करता, बन अमीत
जब गाये बेदना के गीत।
सब जानते, टूटेगा, यह तारा
टिमटिमाता, डुबता यह सितारा
पुलक बंधनों में बंध सारा
मिलन उत्सव बन क्षण रीत
जब गाये वेदना के गीत।
नित चलने अविरत झरते
पुलक पुलक उर रीता करते
सौरभ से है जग को भरते
पाषाणी मानस लेते जीत
जब गाये वेदना के गीत।
सरित गढ़ने हिमकण गले
मिल पारावार, तटिनी मिटे
सागर का आतप, घन बने
हर बार दिखाता, राह प्रीत
जब गाये वेदना के गीत।
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