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आलोक शर्मा की तीन कविताएँ

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आलोक शर्मा अंग्रेज़ी के वरिष्ठ पत्रकार हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह में काम करते हैं। हिंदी में कविताएँ लिखते हैं। अपने समय को देखने का एक नज़रिया देते हैं। आज उनकी तीन कविताएँ पढ़िए-
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सलाम दानिश
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फ़रेब की चकाचौंध में
चौंधिया जाती हैं आँखें
और बुनने लगती हैं
सुनहरे-चमकीले धागों से
नज़ारों का वो कैनवास
जिसे देख मुदित हो उठते हैं
हुक्मरानों के चेहरे।
 
 
तब,
एक जोड़ी भोली-भाली आँखें
तोड़ देती हैं
सारा तिलिस्म एक झटके में,
और उभर उठते हैं
वो मंज़र
जिनसे नज़र चुराने की
हमें पड़ चुकी है आदत।
 
 
ज़रा झाँक के तो देखो
इस सुनहरे-चमकीले
कैनवास के पीछे
जहाँ पसरी हुई है बेबसी
बिखरा पड़ा है दर्द
और
मानवता के सीने में
बहुत गहराई तक
उतर चुका है नश्तर।
 
ज़रा झाँक के तो देखो
इन भोली-भाली
आँखों के अंदर,
तुम्हें नज़र आएगा
ज़िन्दगी का वो चेहरा
जिससे नज़र चुराने की
हम डाल चुके हैं आदत।
 
 
दिल्ली। जुलाई 17, 2021
 
 
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कोविड और चुप्पी
 
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बादल फटा
दहली धरती
और एक रेले में
बह गया सघन अवसाद
जो घुसा हुआ था
बादल के अंदर,
बढ़ाता जा रहा था
अपना और बादल का आकार।
 
 
नाराज़ था वो
षड़यंत्रकारी चुप्पी से
जो पसरी हुयी थी
बादल के बाहर,
लेकिन दुबका बैठा था डर से।
प्रलय तो होनी ही थी!
 
 
अब,
फट चुका है बादल
बह चुका है अवसाद
और बह गयी है चुप्पी
जिसके टूटने का इंतज़ार
अरसे से था
इस जहान को।
 
 
अब,
रह गए हैं सिर्फ़
सृजन के कुछ बीज
और ढेर सारी उमस,
इंतज़ार है
बादलों के बनने का
फिर से बरसने का
धरती के झूमने का।
 
अब,
कोई चुप नहीं रहेगा!
 
जून १७, २०२१
 
 
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जाऊं तोरे चरण कमल पर वारी…*
 
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उठो, सुनो भोर का
 
अनंत रियाज़
 
अनवरत आलाप
 
अनहद राग.
 
देखो, कब से मांग रही है
 
उषा तुमसे आज्ञा
 
अँधेरे की चादर हटाने की
 
उजाले की वर्षा करने की
 
और
 
धरती को परिष्कृत करने की.
 
 
जागो मेरे गिरधर
 
जागो मेरे गोपाल
 
बहुत लम्बी हो चली
 
इस बार रात.
 
बहुत ही गाढ़ा है, भयावह है
 
इस बार तिमिर.
 
 
सुनो, कब से चल रहा है
 
भोर का
 
अनंत रियाज़
 
अनवरत आलाप
 
अनहद राग.
 
लम्बे समय से हावी है
 
जीवन पर अंधकार
 
उठो मेरे गिरधर
 
उठो मेरे गोपाल
 
बहुत लम्बी हो चली
 
इस बार रात
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